राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : घेर पाना मुश्किल ही नहीं...
07-May-2019
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ :  घेर पाना मुश्किल ही नहीं...

रमन सिंह के पूर्व प्रमुख सचिव अमन सिंह की गिनती देश के ताकतवर नौकरशाहों में होती रही है, लेकिन सरकार बदलते ही अमन सिंह दिक्कत में दिख रहे हैं। सरकार ने उनके खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए एसआईटी बनाई थी, जिसमें उन्हें फिलहाल अदालती राहत भी मिल गई है। मगर, कुछ और प्रकरण हैं जिसमें उन्हें थोड़ी-बहुत परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। एक प्रकरण उनकी अमेरिका यात्रा का है, जिसमें वे हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के कार्यक्रम में बतौर स्पीकर शामिल हुए थे। इस पूरी यात्रा पर करीब 7 लाख खर्च हुए थे। यह खर्चा एनआरडीए ने वहन किया था। अब इस पूरे खर्च को लेकर एनआरडीए दफ्तर में चर्चा हो रही है। 

दस्तावेजों को देखे तो पहली नजर में अमन सिंह कहीं गलत नहीं दिखते हैं। वजह यह है कि खुद जीएडी ने एनआरडीए चेयरमैन की अमेरिका यात्रा और खर्चें की अनुमति दी थी। इसमें प्रथम श्रेणी हवाई यात्रा की विशेष अनुमति भी थी। वैसे तो प्रथम श्रेणी में हवाई यात्रा की पात्रता सिर्फ सीएम को रहती है और तत्कालीन सीएम रमन सिंह की खुद की अमन सिंह के लिए विशेष अनुमति रही है। अब यह भी कहा जा रहा है कि संस्थान ने अतिथि के आने-जाने का खर्च वहन क्यों नहीं किया?  

जो लोग अमन सिंह को नजदीक से जानते हैं, वे मानते हैं कि अमन सिंह बहुत बारीक रहे हैं। मुकेश गुप्ता की तरह उनसे शायद ही कोई लापरवाह चूक हुई हो। यह जानकर लोगों को हैरानी होगी कि पिछले पांच साल में अमन सिंह ने किसी फाइल पर दस्तखत नहीं किए। जबकि सबसे ज्यादा गड़बड़ी उनके विभाग में सामने आ रही है, लेकिन इसके लिए वे जिम्मेदार नहीं दिखते हैं। जिस किसी फाइल में भी उनके दस्तखत हैं उनमें विभागीय मंत्री के साथ-साथ उनसे ऊपर के कई अफसरों के दस्तखत हैं। यानी उन्हें किसी गलती के लिए उन्हें अकेले जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। ये अलग बात है कि रमन सरकार में जो कुछ भी अच्छा हुआ, उसका श्रेय बिना कुछ किए अमन को ही मिला। नेता, अफसर हो या फिर पत्रकार, जिस किसी से भी उनकी ठनी, उन्हें पछाड़ कर ही दम लिया। उनकी कार्यशैली पर नजर रखने वाले दावा करते हैं कि अमन को घेर पाना मुश्किल ही नहीं, नामुकिन है।


कॉल रिकॉर्डिंग, जायज-नाजायज?
टेलीफोन पर लोगों से की जा रही बातचीत रिकॉर्ड करना जायज है या नहीं यह कहना अब कुछ मुश्किल हो चला है। एक वक्त था जब लोग अपनी कही बातों के साथ खड़े रहते थे, लेकिन अब खड़े-खड़े मुकर जाते हैं। बिलासपुर हाईकोर्ट में एक बड़े सरकारी वकील ने अभी सरगुजा से आने वाले छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख पत्रकार के खिलाफ पुलिस में शिकायत की कि उन्होंने अनिल टुटेजा की जमानत के बारे में पूछताछ करते हुए उन्हें डांटा, और उन्हें धमकाया भी। उन्हें यह बात बुरी लगी है, और इस पर पुलिस कार्रवाई करे। पुलिस पहली नजर में हैरान-परेशान हुई कि किसी को कोई बात बुरी लगी हो तो उसमें पुलिस क्या करे? लेकिन चूंकि बात प्रदेश के एक सबसे बड़े सरकारी वकील की थी, इसलिए पुलिस ने शिकायत में दिए गए फोन नंबर पर फोन करके पत्रकार को चमकाना शुरू किया। लेकिन थाने वाले को अंदाज नहीं था कि सामने ऐसा पत्रकार है जिसकी आए दिन मुख्यमंत्री और मंत्रियों से बात-मुलाकात होती रहती है, और जो कानून की थोड़ी सी समझ भी रखता है। उसने थाने को सलाह दी कि उसे औपचारिक नोटिस भेजा जाए तो वह पूछताछ के लिए पेश होगा। अब बुरे लगने पर तो कोई जुर्म बनता नहीं है, धारा लगती नहीं है, वकील का बयान पुलिस ने लिया नहीं है, ऐसे में नोटिस भेजे तो क्या भेजे?

कहा जा रहा है  कि इस पत्रकार ने इस बातचीत के टेलीफोन कॉल को रिकॉर्ड कर लिया था, और पूरी बातचीत में वकील साहब जवाब दे रहे थे, उन्हें कुछ बुरा लगते नहीं दिख रहा था। लेकिन अगर बातचीत रिकॉर्ड नहीं होती तो अमूमन लोग यह मान लेते कि पत्रकार था तो धमकाया ही होगा, और वकील है तो शिकायत सही ही होगी। 

अब इस केस को देखें तो लगता है कि कॉल रिकॉर्ड करना जायज है क्योंकि कब कोई किसी कॉल को धमकाने वाला कहने लगे, इसका कोई ठिकाना तो है नहीं। अभी-अभी एक दूसरे मामले में रायपुर की एक सामाजिक कार्यकर्ता महिला ने पुलिस में रिपोर्ट की है कि किस तरह उद्योग विभाग का एक अधिकारी उससे फोन पर नशे में ऊलजलूल बातें कर रहा था, और बात पूरी होने के बाद उस अधिकारी के आसपास के लोग किस तरह शराब पीते हुए आपस में उस महिला के बारे में गंदी और अश्लील बातें कर रहे थे। अब इसकी भी अगर रिकॉर्डिंग नहीं होती, तो यह शिकायत कैसे हो पाती? इसलिए आत्मरक्षा में ऐसी रिकॉर्डिंग अब नाजायज नहीं कही जा सकती।
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