राजपथ - जनपथ
स्कूल का नाम बदलने का फिर विरोध..
स्कूलों के नाम के साथ उसका इतिहास दर्ज होता है। साथ ही लोगों की भावनायें उससे जुड़ जाती हैं। रायगढ़, सरगुजा, जीपीएम सहित कुछ अन्य जिलों में स्कूलों का नाम बदलने को लेकर लोगों में असंतोष है। आंदोलन हुए हैं। अभ एक और मामला पिथौरा से आया है। यहां के सबसे पुराने राजा रणजीत सिंह कृषि उच्चतर माध्यमिक शाला का नाम माध्यमिक शिक्षा मंडल के पोर्टल से हटा दिया गया है और उसकी जगह स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम दर्ज कर दिया गया है।
स्कूल 63 साल पुरानी है। कौडिय़ा राज के आदिवासी राजा रणजीत सिंह ने इसके लिये जमीन दान की थी। उनको दानवीर, न्यायप्रिय और प्रजा के प्रति संवेदनशील राजा के तौर पर भी जाना जाता है। गोंड समाज के लोग नाम हटाने को लेकर उद्वेलित हैं। उन्होंने सीएम और स्कूल शिक्षा विभाग को सितंबर के बाद हुए हुए बदलाव के विरोध में पत्र लिखा और अपनी भावनाओं को जाहिर किया। पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसका नतीजा यह निकला है कि महासमुंद जिले के इस एकमात्र कृषि हायर सेकेंडरी स्कूल के छात्र भी आंदोलन पर उतर आये हैं। उन्होंने मंगलवार को प्रदर्शन किया और आगे आंदोलन तेज करने की बात कर रहे हैं।
दरअसल, शासन उन स्कूलों को आत्मानंद स्कूलों के रूप में संचालित करने जा रहा है जो वर्षों से अच्छे सेटअप के साथ तैयार हैं। इससे वहां मापदंड के अनुसार इंफ्रास्ट्रक्टर तैयार करने में उन्हें आसानी होती है। पर इन स्कूलों के नाम के साथ स्थानीय लोगों के जुड़ाव को नहीं समझा जा रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग के आदेश में यह साफ लिखा है कि पहले से ही किसी दानदाता या क्षेत्र के किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के नाम पर यदि कोई स्कूल है तो वह नाम विलोपित नहीं किया जायेगा, बल्कि उसके साथ यह लिखा जायेगा कि स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय के अंतर्गत संचालित है। इस आदेश का पालन न कर जगह-जगह विभिन्न जिलों में शिक्षा अधिकारी विवाद खड़ा कर रहे हैं।
आधी रात सडक़ पर लड़कियां..
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पूरे प्रदेश में अनेक अनूठे कार्यक्रम हुए, पर बिलासपुर के अरपा रिवर व्यू के किनारे लगी महिलाओं की जमघट का कोई मुकाबला नहीं था। यह कार्यक्रम ही रात 9 बजे के बाद शुरू हुआ। रात 12 बजे कार्यक्रम खत्म होने के बाद लड़कियों ने शहर की सडक़ों को पैदल भी नापा।
संदेश यह था कि हमेशा लड़कियों को कहा जाता है कि वे देर रात तक घर से बाहर क्यों रहती हैं। जब लडक़े बाहर रह सकते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं? सवाल मानसिकता का है। अनोखे आयोजन में गीत-संगीत का कार्यक्रम देर रात तक चला और पुरुषों ने भी वहां अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला इस कार्यक्रम की संयोजक थीं।
गांजा तस्करी इसलिये नहीं रुकती..
प्रदेश में गांजे की तस्करी पर रोक नहीं लग पा रही है। लगातार धरपकड़ के बावजूद। पत्थलगांव में बीते अक्टूबर में दुर्गा विसर्जन के दौरान गांजे से भरी एक कार ने जुलूस को रौंद दिया। इसमें एक मौत हुई और दो दर्जन घायल हो गये। इसके बाद सरकार के निर्देश पर पीएचक्यू ने सख्ती शुरू की। चेक पोस्ट पर 24 घंटे पुलिस की तैनाती और सीसीटीवी कैमरे का निर्देश हुआ। पर हर दिन किसी न किसी जिले में गांजे की खेप पकड़ी जा रही है। इनमें अधिकांश गांजा ओडिशा से आता है। पहले मलकानगिरी की पहाड़ी पर ही इसकी खेती होती थी, पर अब आंध्रप्रदेश सहित ओडिशा के दूसरे कई जिलों कालाहांडी, भवानीपट्टनम, गंजाम, कंधमाल में भी हो रही है। छत्तीसगढ़ से गुजरने वाले गांजे की बहुत कम खपत यहां होती है। बाकी यूपी, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, दमन-दीव, यहां तक जम्मू-कश्मीर में भी भेजा जाता है।
कारोबार चूंकि गैर-कानूनी है इसलिये छत्तीसगढ़ पुलिस इसके परिवहन पर रोक लगाने के लिये ताकत लगाती है। पत्थलगांव की घटना के चलते उन पर दबाव भी बना। थानों में दुर्घटनाओं के अलावा जो चारपहिया गाडिय़ां कबाड़ में तब्दील हो रही हैं, वे गांजा की तस्करी करते हुए ही पकड़ी गई हैं।
सांसद शशि थरूर, मेनका गांधी और केटीएस तुलसी गांजे के उत्पादन और कारोबार को मान्यता देने की मांग करते आये हैं। तुलसी ने तो शीर्ष कोर्ट में एक याचिका भी लगा रखी है। थरूर ने इसके समर्थन में करीब तीन साल पहले एक लंबा लेख भी लिखा था। वे इसे अर्थव्यवस्था से भी जोड़ते हैं। पैरवी करने वालों का कहना है कि सन् 1985 में अमेरिकी दबाव में इसे गैरकानूनी बनाया गया, ताकि शराब के कारोबारियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फायदा मिले।
नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट (एनडीटीटी), एम्स दिल्ली की रिपोर्ट है कि शराब के बाद सर्वाधिक पसंदीदा नशा, गांजा और भांग है। भांग को तो कहीं-कहीं, विशेष अवसरों पर कानूनी मान्यता है। वजह इसके साथ जुड़ी धार्मिक गतिविधियां, जैसे महाशिवरात्रि और होली। पर दिलचस्प यह है कि दोनों एक ही पौधे से तैयार होता है। गांजा पौधे को सुखाकर, तो भांग पीसकर बनाया जाता है। एक ही पौधा एक प्रारूप में अवैध तो दूसरे में वैध है।
बात यही है कि छत्तीसगढ़ में पकड़ा जा रहा गांजा कानून व्यवस्था से जुड़ा कम, अंतर्राज्जीय समस्या ज्यादा है। पता नहीं कितनी ही कारें, ट्रकें रोज गांजा लेकर गुजर जाती हैं। दो-चार को पुलिस पकड़ पाती है। पर, इसके चलते पुलिस, अदालतों और जेलों की अतिरिक्त ऊर्जा लग रही है।
महिलाओं के इशारे पर उड़ान
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर स्वामी विवेकानंद हवाईअड्डा पर हवाई यातायात नियंत्रण का पूरा काम महिलाओं को सौंपा गया। इसमें कंट्रोल टावर, अपैरल कंट्रोल और रूट कंट्रोल का काम शामिल था। रायपुर हवाईअड्डे का एयर ट्रैफिक कंट्रोल टॉवर प्रतिदिन 20 से अधिक उड़ानों को संभाल सकता है। जिंदाबाद.. नारी शक्ति!
ऑनलाइन जुए का दुष्परिणाम
बहुत सी पाबंदियां बेअसर हो रही हैं, मोबाइल फोन पर ऑनलाइन गेम, गैम्बलिंग और इन्वेस्टमेंट के चलते। हाल ही में संसद में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि बिटक्वाइन जैसी वर्चुअल करंसी को मान्यता नहीं दी गई है पर उसे रेगुलेट करने की कोशिश की जायेगी। अब ऐसे अनेक ऐप आ गये हैं जो आपको मामूली रकम निवेश करने के लिये उकसाते हैं, पर इनका हश्र क्या होगा, इसका पता नहीं होता। यही हाल ऑनलाइन जुआ का है। यह ताश पत्ती, वर्चुअल क्रिकेट या दूसरे खेलों के रूप में होता है। टीवी, अख़बारों में बड़े-बड़े सितारे इसका विज्ञापन करते हुए भी दिखते हैं। एक छोटा सा डिस्कलेमर बताया जाता है कि- सावधान आपको इसकी लत लग सकती है, अपनी जोखिम पर खेलें। अंबिकापुर में संदीप मिश्रा की बच्चों को जहर देने के बाद की गई खुदकुशी में पुलिस जांच से यह बात भी सामने आ रही है कि मृतक हाल के दिनों में दो लाख रुपये ऐसे ही एक ऑनलाइन गेम तीन पत्ती गोल्ड में हार गया था। जबकि, उस पर स्थानीय कर्ज का दबाव अलग से था। इस गेम के संचालकों को अब पुलिस नोटिस देकर जानकारी मांगने वाली है। यह हैरानी और चिंता की बात हो सकती कि कैसिनो खोलने, लॉटरी बेचने पर तो रोक है, पर इंटरनेट के जरिये ऐसे सब कारोबार वैध होते जा रहे हैं।
पात-पात पर ऑनलाइन ठग
दूसरे के कंप्यूटर या मोबाइल फोन को दुनिया के किसी भी छोर में बैठकर ऑपरेट किया जा सकता है। कंप्यूटर में पहले से था, जिसका आम तौर पर सिस्टम के ऑनलाइन मेंटनेंस, रिपेयरिंग के लिये इस्तेमाल किया जाता था। टीमविवर इनमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहा है। इसके अलावा एनि विवर, अल्ट्रावेयर, स्पेस डेस्क आदि भी हैं। पर, अब मोबाइल फोन पर अनेक ऐप हैं, जिनका ऑनलाइन ठगी में जबरदस्त इस्तेमाल किया जा रहा है। वृद्ध या कम पढ़े-लोग ही नहीं बल्कि अच्छे खासी डिग्री वाले, सरकारी या निजी कंपनियों में नौकरी कर रहे लोग, किसान, व्यापारी सभी इसके शिकार लोगों में शामिल हैं।
गूगल सर्च से किसी कंपनी या बैंक का फोन नंबर निकालकर डॉयल करने से समस्या शुरू होती है। ठगी का जाल बिछाये लोगों ने सर्च इंजन में अपने मोबाइल नंबर डाल रखे हैं। जबकि कस्टमर केयर नंबर या तो टोल फ्री होता है, या फिर लैंडलाइन का नंबर। मोबाइल नंबर जालसाजों के पास चला जाता है। इसके बाद वे एनी डेस्क जैसे ऐप मोबाइल फोन पर डाउनलोड कराते हैं। यहां गौर करने की बात है कि एनीडेस्क या कोई अन्य ऐप दूर बैठे किसी दूसरे को आपका फोन ऑपरेट करने की अनुमति तभी देता है, जब आप दूसरे को कोड नंबर बतायेंगे, जो ऐप के चालू करने पर मिलता है। ठग फोन को ऑपरेट करके ऑनलाइन पैसे अपने एकाउंट में जमा करा लेते हैं। गूगल की पता नहीं कोई जवाबदारी है या नहीं ऐसे फर्जी फोन नंबर्स को ब्लॉक करने की पर साइबर जागरूकता के लिये पुलिस ने बीते साल पूरे प्रदेश में अभियान चलाया था। अब भी हाट-मेलों में और सोशल मीडिया के जरिये कोशिशें ही रही हैं, पर लोग ठगी के शिकार हो ही रहे हैं। रोजाना केस दर्ज हो रहे हैं, वर्षों की जमा-पूंजी लुट रही है पर पुलिस बहुत कम लोगों की गर्दन दबोच पा रही है।
क्राइम ब्रांच की फिर से तैयारी
भाजपा विधानसभा में प्रदेश की कानून-व्यवस्था को मुद्दा बनाती रही है। इस बार सरकार के पास एक जवाब यह हो सकता है कि अपराधों पर अंकुश लगाने के लिये वह पुलिस क्राइम ब्रांच का फिर से गठन करने जा रही है। हाल ही गृह विभाग ने एक निर्देश दिया है कि राज्य के तीन बड़े जिले रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर में क्राइम ब्रांच गठित की जाये। क्राइम ब्रांच टीम भाजपा सरकार के समय प्रदेश के लगभग सभी जिलों में काम करती थी। गंभीर किस्म के अपराध, साइबर अपराधों का पता लगाने और अपराध होने पर तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने के लिए यह टीम तुरंत काम पर लग जाती थी। पर, कई जिलों से दबंगई और वसूली की शिकायत आने लगी। क्राइम ब्रांच ऐसी शाखा बन गई जो किसी भी इलाके में कार्रवाई करती थी पर थानेदार और उच्चाधिकारियों को भी बाद में इसका पता चलता था। जो जम गये थे वे घूम-फिर कर यहीं लौट आते थे। लगातार शिकायतों के बाद सभी टीमों को एक साथ भंग कर दिया गया था। अब यह टीम फिर से बनाने का जोखिम उठाया जा रहा है। देखना होगा कि पुलिस की छवि इससे सुधरेगी या फिर साख बिगड़ेगी।
घोटपाल मड़ई का आकर्षण
दक्षिण बस्तर का सबसे लोकप्रिय घोटपाल मड़ई इन दिनों चल रहा है। दूर दराज से ग्रामीण यहां पहुंच रहे हैं। उनके साथ आराध्य पुजारी, सिरहा, गुनिया, गायता भी होते हैं। इस मड़ई में पारंपरिक वेशभूषा और श्रृंगार के साथ पहुंचे एक स्थानीय आदिवासी।
गलत ब्रीफिंग, जायसवाल की रवानगी
नारायणपुर में एक आदिवासी युवक की पुलिस गोली से हुई मौत से उपजे विवाद पर राज्य की खुफिया एजेंसी को गलत ब्रीफिंग करना एसपी गिरिजाशंकर जायसवाल को हटाए जाने का कारण बन गया। 2010 बैच के आईपीएस जायसवाल को नारायणपुर में महज चार महीने पूर्व पदस्थ किया गया था।
पिछले दिनों नारायणपुर-अंतागढ़ मार्ग में मानू नरोटी नामक युवक के पुलिस की गोली से मौत होने के मामले में एसपी ने नक्सली ठहरा दिया। एसपी के इस बयान ने बस्तर संभाग के आदिवासी समुदाय को भडक़ा दिया। मानू नरोटी की मौत की घटना को समाज ने सिलेगर गोलीकांड से जोडऩे की कोशिश से सरकार ने मामले के पीछे की असल वजह का ब्यौरा जुटाना शुरू किया।
बताते है कि एसपी ने मामले की संवेदनशीलता को समझने में चूक कर दी। वे मारे गए युवक की पारिवारिक पृष्ठभूमि से पूरी तरह वाकिफ थे। चूंकि पुलिस की क्रॉस फायरिंग में आदिवासी युवक की जान चली गई, उस घटना को उचित ठहराने की जिद से मामला बिगड़ गया। बताते हैं कि एसपी जायसवाल ने मीडिया के साथ आला अफसरों से युवक को नक्सली बताने में हड़बड़ी कर दी। एसपी के इस दावे के उलट जब युवक के बस्तर फाईटर्स में प्रशिक्षण लेने और भाई के आरक्षक होने की जानकारी सामने आई, मानो नारायणपुर पुलिस महकमे की बुनियाद हिल गई। और तो और जब एसपी के सामने यह बात सामने आई कि मृत आदिवासी युवक को उन्हीं के हाथों प्रशिक्षण में प्रमाण-पत्र दिया गया था, तो हालत के हाथ से फिसलने का अहसास हुआ। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस जगह मुठभेड़ में युवक मारा गया वहां करीब दो साल से नक्सलियों का मूवमेंट नहीं रहा था।
सुनते हैं कि एसपी पिछले कई दिनों से मामले की निपटारे की कोशिश में थे। उन्होंने सत्तारूढ़ दल के विधायक से लेकर सांसद तक अपना पक्ष रखा। मामला आदिवासी समाज से था इसलिए सीएम पर ही मामला टिक गया था। चर्चा है कि घटना पर सही जानकारी देने से स्थिति को संभाला जा सकता था। एसपी की गलत बयानबाजी के बाद बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने पुलिस चूक को स्वीकार किया। अफसरों के बीच यह भी कानाफूसी हो रही है कि एसपी ने नवपदस्थ कलेक्टर ऋतुराज रघुवंशी को भी गलत जानकारी दी। राजधानी के अफसरों ने जब कलेक्टर को वारदात की सच्चाई से अवगत कराया तो वे भी असहज हो गए। नारायणपुर एसपी रहते जायसवाल ने बिना सोचे युवक को नक्सली बताने की भूल की, उसी दिन से उन्हें हटाए जाने की अटकलें तेज हो गई थीं।
डीएमएफ पर नियंत्रण किसका हो..?
जिला खनिज न्यास फंड जबसे मिल रहा है, छत्तीसगढ़ में विवाद होता रहा है। एक बड़ी रकम इस कोष में आती है। पिछले साल का आंकड़ा करीब 1100 करोड़ रुपये था। सन् 2015 में जब यह नीति बनी कि खनिज प्रभावित क्षेत्रों के पर्यावरण, पेयजल, स्कूल, सडक़ के लिये खनिज संचालकों को अपनी रॉयल्टी का एक भाग देना पड़ेगा तब किसी को नहीं अंदाजा नहीं था कि छत्तीसगढ़ जैसे खनिज संसाधनों से भरपूर राज्य में कितना पैसा आ सकता है। उस वक्त विधायक और सांसद तो सदस्य बनाये गये पर खर्च करने के लिये बनाई गई समिति के अध्यक्ष कलेक्टर हुए। खूब मनमानी हुई, अनाप-शनाप खर्च किये गये। शहरों पौधारोपण के नाम पर करोड़ों रुपये फूंके गये। एयरपोर्ट की बाउंड्रीवाल बना दी गई। लोगों को पहले-पहल समझ ही नहीं आया कि राशि किस तरह से खर्च हो। विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने इस गड़बड़ी को देखा। सरकार बनने के बाद उसने कलेक्टरों को हटाकर जिलों के प्रभारी मंत्री को जिला खनिज न्यास का अध्यक्ष बना दिया। कुछ अशासकीय प्रतिनिधि भी नियुक्त किये गये। पर इस व्यवस्था को लेकर सांसदों ने दिल्ली में शिकायत कर दी। आईएएस लॉबी भी नाराज थी। पिछले साल यह फंड केंद्र के निर्देश पर फिर कलेक्टर्स के हाथ आ गया।
इस फंड को लेकर कोरबा जिले की बात ही अलग है। प्रदेश के सारे डीएमएफ का फंड अकेले इस जिले के बराबर नहीं है। यहां करीब 600 करोड़ रुपये जमा होते हैं।
जांजगीर-चांपा जिले के अकलतरा के विधायक सौरभ सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र भेजकर फंड में भारी गड़बड़ी का आरोप लगाया। 24 घंटे के भीतर ही सोशल मीडिया पर एक दूसरी चि_ी प्रधानमंत्री को ही लिखी गई वायरल हुई। इसमें रामपुर विधायक व पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर ने सौरभ सिंह के आरोपों का खंडन था। इसमें खनिज न्यास मद से होने वाले खर्चों को सही बताया गया था। कहा गया कि सौरभ सिंह कोरबा जिले के ही नहीं तो वे यहां दखल क्यों दे रहे हैं? कंवर ने तुरंत खंडन किया और कहा कि यह पत्र फर्जी है। वे कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। वे अपनी ही पार्टी के विधायक के खिलाफ क्यों लिखेंगे और वायरल करेंगे।
भाजपा के सौरभ सिंह ने कलेक्टर को निशाने पर लिया, मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने भी लिया। दोनों का आरोप है कि भ्रष्टाचार हो रहा है। फंड का सही इस्तेमाल हो रहा है या नहीं यह निगरानी केंद्र का खनिज मंत्रालय करता है। देखें उनके पत्र पर कोई जांच शुरू होती है या नहीं। मंत्री जयसिंह के लिये भी चुनौती है कि उनकी शिकायत को ऊपर कितनी तरजीह मिलेगी। कलेक्टर और जि़ले के मंत्री का ऐसा टकराव इनमें से किसे सही साबित करेगा?
युद्ध की रसोई पर मार...
यूं तो होली, दीपावली की तरह खर्चीला त्यौहार नहीं, पर इस बार रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते रसोईघर में भी असर दिखेगा। खाद्य तेलों की कीमतों में अभी से ही वृद्धि होने लगी है। छत्तीसगढ़ के बाजारों में सनफ्लावर तेल की कीमत में हाल के दिनों में 25 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। यह 165-175 रुपये तक पहुंच गया है। भारत जितना सनफ्लावर तेल या उसके कच्चे माल का आयात करता है, रिपोर्ट के मुताबिक उसका 75 फीसदी रूस से ही आता है। यूक्रेन से भी आयात होता है। पर बाकी खाद्य तेलों या उनके कच्चे माल का आयात रूस या यूक्रेन से नहीं होता। इसके बावजूद अन्य खाद्य तेलों सोयाबीन, राइस ब्रान तेल और पाम आयल के भी दाम बढऩे लगे हैं। मतलब यही है कि इस बार होली में आम गृहणियों को हाथ खींचकर पकवान बनाने पड़ सकते हैं।
ट्रैफिक का अनुशासन
ज्यादातर सडक़ दुर्घटनायें यातायात नियमों के उल्लंघन के कारण ही होती है। ओवरटेक करना तो हमारा पसंदीदा शगल है, मानों किसी जगह 5-10 मिनट पहले पहुंचकर हम देश बदल लेंगे। कहीं जाम लग गया हो दायें-बायें देखे बिना रोड को तब तक नापते हैं, जब तक खुद आगे जाकर फंस ना जाएं। पीली-सफेद पट्टियां हमें नजर नहीं आती। ऐसा करने वालों को सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इम्फाल, मणिपुर की यह तस्वीर कुछ सीख देती है।
मेडिकल कॉलेज के रास्ते में रोड़ा
सुनने में यह अजीब लगता है पर कोरबा जिले में डॉक्टरों की एक ऐसी लॉबी काम कर रही ह जो यहां मेडिकल कॉलेज खोलने के रास्ते में अड़ंगा डाल रहे हैं। उन्हें इस बात की चिंता है कि यदि मेडिकल कॉलेज के चलते यहां सरकारी और सस्ते इलाज की सुविधा शुरू की गई तो निजी अस्पतालों की प्रैक्टिस मारी जायेगी।
मालूम हो कि केंद्र सरकार ने ऐसे जिलों में मेडिकल कॉलेज खोलने की मंजूरी दी थी, जहां पहले से सरकारी या निजी मेडिकल कॉलेज नहीं है। सन् 2020 में कोरबा के लिये भी घोषणा की गई थी। इस बीच जिला अस्पताल की सुविधायें मेडिकल की पढ़ाई के हिसाब से तो कुछ बढ़ा दी गई हैं, पर विशेषज्ञ चिकित्सकों और स्टाफ की भर्ती रुकी है। भवन का निर्माण नहीं हुआ है। कद्दावर नेताओं के कोरबा जिले में एक बड़ी चिकित्सा सुविधा से आम लोग वंचित हैं।
आदिवासियों पर दर्ज मुकदमे
हाल ही में कांग्रेस नेताओं के साधारण मामलों के मुकदमे वापस लेने की घोषणा की गई। इसकी प्रक्रिया चल रही है। कलेक्टर, एसपी और जिला अभियोजन अधिकारी की जिलों में समितियां बनी हैं, जो ऐसे प्रकरणों की सिफारिश करेगी, जिन्हें वापस लिए जा सकें। सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने वादा किया था कि बस्तर की जेलों में बंद आदिवासियों के मुकदमे वापस लिये जाएंगे। सरकार ने इसके लिये सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आनंद पटनायक की अध्यक्षता में एक समिति भी बनाई थी। पर आदिवासियों की रिहाई का सिलसिला बहुत धीमी गति से चल रहा है। सरकारी आंकड़ा है कि अब तक 900 से कुछ अधिक आदिवासी ही रिहा किये जा सके हैं। जिन के खिलाफ अपराध दर्ज हैं उन आदिवासियों की संख्या 23 हजार है। इनमें जिनको रिहा किया जा सकता है, या मुकदमे वापस लिये जा सकते हैं, उनकी संख्या 16 हजार के पास है। ज्यादातर मामले गंभीर भी नहीं हैं। कई मामलों में वर्षों से ट्रायल नहीं हो पाया है। आदिवासी बिना सुनवाई के ही लंबे समय से जेल में बंद है। भाजपा तो सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा ही रही है, पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम जैसे नेता भी पूछ रहे हैं कि आखिर इनकी रिहाई और मुकदमे वापस लेने में कौन सी अड़चन आ रही है।
ऑटो का नाटो से रिश्ता
नाटो का ऑटो रिक्शा से क्या रिश्ता हो सकता है, पर कल्पना की उड़ान कहीं भी भरी जा सकती है। रूसी हमले में यूक्रेन को नाटो देशों से उम्मीद के अनुरूप मदद नहीं मिलने का यहां मजाक बनाया गया है। मुसीबत में नाटो नहीं ऑटो काम आता है। सोशल मीडिया पर इस पर टिप्पणी में एक ने लिख मारा- भाटो (जीजा) भी काम आता है।
कोदो कुटकी की महत्ता
कोदो और कुटकी छत्तीसगढ़ की जलवायु के अनुरूप फसलें हैं, मगर दोनों बड़े उपेक्षित अनाज हैं। लोग इनका सेवन पसंद नहीं करते। ज्यादातर लोगों को इसके बाजार का भी पता नहीं। पहले के शोध में यह निष्कर्ष निकाला जा चुका है कि कोदो मधुमेह नियंत्रण, गुर्दों और मूत्राशय के लिए फायदेमंद है। यह रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रभावों से भी मुक्त होता है। यानि बिना रासायनिक खाद के उगाया जाता है। अब वैज्ञानिकों ने कुटकी के गुणों का भी पता लगा लिया है। लखनऊ के अखिल भारतीय अनुसंधान परिषद ने इसके पौधे के वर्क से पिक्रोलिव नाम की एक नई दवा विकसित की है जिससे फैटी लीवर का उपचार किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार कोदो कुटकी को प्रोत्साहित भी कर रही है। आने वाले दिनों में इसकी मांग बढ़ सकती है।
नया रायपुर से विस्थापित लोगों की मांगें
नया रायपुर के निर्माण से प्रभावित किसानों का आंदोलन सरकार के लिए गले की फांस बनता जा रहा है।
बीते दिनों मंत्री रविंद्र चौबे ने घोषणा की कि किसानों की 8 में से 6 मांगे मान ली गई हैं। बाकी 2 मांगों के लिए कानूनी मशविरा हो रहा है। इसके बाद भी किसानों का आंदोलन जारी है और वे नया रायपुर विकास प्राधिकरण भवन के सामने पहले की तरह आंदोलन पर बैठे हुए हैं। किसानों का कहना है कि सरकार ने जिन मांगों को मान लेने की बात कही, उन पर पहले से ही सहमति बन चुकी थी। दरअसल आंदोलनकारी किसान सभी 27 गांवों के सभी वयस्कों के लिए 12 सो वर्ग फीट विकसित भूखंड और बसाहट का पट्टा मांग रहे हैं। प्राधिकरण के लिए इतनी बड़ी मांग का रास्ता निकालना मुश्किल हो रहा है। बीती सरकारों ने जब आनन-फानन में राजधानी के लिए जगह तय की तब किसानों के साथ कोई समझौता नहीं किया, बैठक नहीं की। आज यह मौजूदा सरकार के सिर पर यह समस्या सवार है।
मंत्री बड़ा या कलेक्टर
कोरबा जिले के लोगों को अगर कलेक्टर से कोई काम कराना है तो मंत्री जी से ना मिलें। कलेक्टर भडक़ सकती है। मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने जिस तरह मीडिया के सामने कलेक्टर रानू साहू पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया है वह उनके बीच बढ़ी हुई दूरी को बताने के लिए काफी है। याद होगा कि जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी, तब मंत्री अग्रवाल ने वहां के कलेक्टर पी दयानंद को भ्रष्ट बताते हुए सरकार आने पर निपटा देने की बात कही थी। पर अब तो उनकी अपनी सरकार है। दयानंद के खिलाफ एक जांच नहीं कार्रवाई नहीं हो पाई है। मंत्री के इस गुस्से को देखकर लोग सवाल कर रहे हैं कि कलेक्टर ज्यादा ताकतवर होता है या मंत्री। आप भी जवाब ढूंढिए।
खोखला स्वास्थ्य....
यह किसी दुर्घटनाग्रस्त जहाज के भीतर की तस्वीर नहीं है। यह हमारी राजधानी में ही खोखली हो चुकी स्वास्थ्य सेवाओं की है। शहर के खोखो पारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में इमरजेंसी सेवा के लिए खरीदे गए एंबुलेंस इसकी कहानी बता रहे हैं। इन्हीं में से एक एंबुलेंस के एक-एक पुर्जे को निकालकर अज्ञात लोगों ने बेच दिया है। अस्पताल के लोगों का यह भी कहना है कि पुर्जे बेचें नहीं, अन्य एंबुलेंस में लगाए गए हैं।
उत्सुकता भोजराम के बैच की
कोरबा एसपी भोजराम पटेल लो-प्रोफाईल में रहकर काम करने वाले अफसरों में गिने जाते है। लेकिन दूसरे सर्विस के अधिकारी उनके बैच को जानने के लिए काफी उत्सुक रहते है। दरअसल भोजराम पटेल छत्तीसगढ़ के ही बांशिदे है। वह 2013 बैच के आईपीएस अफसर है। उनके बैच के कुछ अफसरो को सूबे में नाम और काम से आसानी से पहचाना जाता है। भोजराम के बैच के जितेन्द्र शुक्ला, मोहित गर्ग और अभिषेक पल्लव के नाम का जिक्र होते ही बैच भी याद आ जाता है। दरअसल राज्य पुलिस में आमद देने से पहले भोजराम को अपना ट्रेनिंग दो बार छोडऩा पड़ा था। हैदराबाद में प्रशिक्षण के बीच पिता की सेहत बिगडऩेऔर निधन के चलते भोजराम अपने बैच के साथियों को छोडऩे विवश हो गए थे। उन्हें बाद में दूसरे बैच के अफसरों के साथ प्रशिक्षण पूरा करना पड़ा। वैसे भोजराम को 2013 बैच का अफसर माना जाता है, पर देर से ज्वाईनिंग देने से बैच से उनका नाम छूट जाता है। भोजराम पटेल उस समय आईपीएस बिरादरी में चर्चा में आए वह एडीशनल एसपी नियुक्ति हुए सीधे कांकेर एसपी पदस्थ हो गए। बताते है कि तत्कालीन गर्वनर श्रीमती आंनदीबेन पटेल की सिफारिश पर सरकार ने उन्हें कांकेर जैसे बड़े जिले की कप्तानी सौंप दी। सुनते है कि भोजराम के धार्मिक भाव और रामायण की गहरी समझ रखने से पूर्व राज्यपाल काफी प्रभावित हुई थी। ओएसडी नियुक्ति से पूर्व महामहिम ने भोजराम का धार्मिक विषयों पर पकड़ जानने के लिए औपचारिक साक्षात्कार लिया था।
छत्तीसगढ़ में पृथ्वी का केंद्र
क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी का केंद्र कहां है? बैगा आदिवासियों की मान्यता के अनुसार यह छत्तीसगढ़ के सरोदा दादर में है। यह वही जगह है जिसे यहां के रहवासी पृथ्वी का केंद्र मानते हैं। लेकिन, पृथ्वी का भौगोलिक केंद्र तुर्की के इस्किलिप में ४०ए५२'हृ-३४ए३४'श्व पर है, जैसा कि वैज्ञानिक इसेनबर्ग ने गणना की है।
कोविद के खाली बिस्तर
कोविड-19 महामारी का प्रकोप तीसरी लहर में दूसरी लहर की अपेक्षा कम था। पर अधिकांश जिलों में व्यवस्था ऐसी की गई थी कि यदि बड़ी संख्या में मरीज आएं तब भी उनको इलाज मिल सके। रायपुर, बिलासपुर, सरगुजा और दूसरे जिलों में कोविड-19 के जो सेट अप तैयार किए गए थे, वे अब खाली पड़े हैं। दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों में दूसरी बीमारियों के मरीज भटक रहे हैं। केंद्र सरकार की भी गाइडलाइन आ चुकी है कि तीसरी लहर समाप्ति की ओर है और सारी सेवाएं पहले की तरह शुरू की जाएं, तब इन कोविड-19 अस्पतालों का क्या किया जाए? भिलाई में इसकी पहल शुरू की गई है। यहां पर 114 बिस्तरों का कोविड-19 केयर सेंटर बनाया गया था, जिसे जिला प्रशासन ने अधिगृहित करने का निर्णय लिया है। यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि सेक्टर-9 अस्पताल में मरीजों को भर्ती करने की जगह नहीं मिल पा रही है। कमोबेश दूसरे जिलों का भी यही हाल है और क्यों नहीं वहां भी इसी तरह के कदम उठाए जाएं।
मनोबल बढ़ाने वाला पेपर
ऑफलाइन के खिलाफ अब ज्ञापन, धरना-प्रदर्शन का कोई मतलब रहने गया है क्योंकि परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। कल पहले दिन सीजी बोर्ड ने बारहवीं की परीक्षा ली और आज दसवीं का पर्चा हुुआ।
बीते दो सत्रों में कोरोना के कारण ऑफलाइन परीक्षा में बाधा पहुंची थी, पर इस बार ऑनलाइन पढ़ाई होने के बावजूद ऑफलाइन ली जा रही है। इससे परीक्षार्थियों में थोड़ा डर बना हुआ है। पर पहले दिन जो बच्चे परचे देकर निकले उनके चेहरे खिले हुए दिखे। दरअसल पर्चा हिंदी का था। फिर भी सरल होना उन्हें मुस्कुराने का मौका दे रहा था। आगे के प्रश्न पत्रों से पता चलेगा कि पर्चा सेट करने वालों ने बच्चों के साथ कितनी नरमी बरती है।
नये जिलों की मुश्किलें
सारंगढ़ और बिलाईगढ़ के नागरिकों ने एक बार फिर आंदोलन शुरू कर दिया है। घोषणा के समय से ही रायगढ़ से काटकर अलग जिला बनाने का यहां विरोध हो रहा है। इस बार क्षेत्र के लोग पंडाल लगाकर बेमियादी आंदोलन करने के लिये तैयार हैं। एक मार्च को इन्होंने चक्काजाम भी किया था। यहां के नागरिक रायगढ़ जिले में ही रहना चाहते हैं क्योंकि रायगढ़ में आवागमन, शिक्षा व व्यवसाय की सुविधा सारंगढ़ के मुकाबले कहीं बेहतर है। आंदोलनकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया था कि वे जिस जिले में रहना चाहते हैं, वहीं रहेंगे। पर प्रशासन के लिये यह फैसला लेना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि बीच के कुछ गांव नये जिले को अधिक सुविधाजनक मान रहे हैं। ऐसी ही परिस्थितियां गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में भी पैदा हुई है, जहां पसान इलाके के लोग कोरबा से अलग नहीं होना चाहते।
झील का वैभव
जगदलपुर का दलपत सागर संभवत: छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा मानव निर्मित झील है। यह बस्तर की ऐतिहासिक धरोहर भी है। राजा दलपत साय ने इसे बनवाया। इस बार महाशिवरात्रि के मौके पर शिव का दर्शन करने वालों के लिये यहां पहुंचने की विशेष व्यवस्था की गई। सुबह नाव में बारी-बारी श्रद्धालुओं को छोडऩे का सिलसिला चला, फिर शाम को उन्हें वापस लाया गया। कोई हादसा न हो इसलिये गोताखोर भी तैनात किये गये थे।
यूक्रेन की पढ़ाई पर विराम?
नार्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ एसोसियेशन (नाचा) ने एक सूची राज्यपाल को भेजी है, जिसमें 110 छात्रों के नाम हैं। राज्यपाल ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से यह विवरण साझा किया है। इसके अलावा कुछ नाम और हो सकते हैं, जो ‘नाचा’ के पास न हों। राज्य सरकार के नोडल अधिकारी यह दावा तो कर रहे हैं कि अब तक छत्तीसगढ़ के 26 विद्यार्थी देश आ चुके हैं, पर उनका नाम अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है। दूसरी तरफ, मेडिकल की पढ़ाई के लिये यूक्रेन जाने का चलन बीते कुछ सालों में बढ़ा है। छत्तीसगढ़ में ही कई एजेसियां विद्यार्थियों को भेजने का काम कर रही हैं। मुमकिन है, अब वह सिलसिला थम जायेगा। एक सवाल ऐसे मौके पर खड़ा हो रहा है कि क्या मेडिकल सीटों की संख्या देश में बढ़ेगी? क्या भारी-भरकम फीस की जगह लोगों की आर्थिक क्षमता के दायरे में यह शिक्षा मिल पायेगी? या डॉक्टर बनने के इच्छुक छात्र किसी और देश की ओर रुख करेंगे?
पढ़-लिखकर लूट के धंधे में...
रायपुर पुलिस ने इन चार लोगों को पकड़ा। एक ग्रेजुएट है, एक मैट्रिक पास। बाकी दो आठवीं, दसवीं। लूटपाट के धंधे में लग गये। ऑटोरिक्शा में बैठकर साथ के सवारियों की जेबें साफ करते हुए दबोचे गये। कतई इनकी आपराधिक गतिविधि का समर्थन नहीं किया जा सकता, पर पढऩे-लिखने के बावजूद इस धंधे में क्यों उतरे हैं, समाजशास्त्री बतायेंगे, सरकार बतायेगी। और हम सबको तो सोचना ही चाहिये।
बढ़ेगी पूछपरख
पड़ोसी राज्य झारखंड के 84 बैच के आईएएस राजीव कुमार अगले मुख्य चुनाव आयुक्त होंगे। वर्तमान में वो चुनाव आयुक्त का दायित्व संभाल रहे हैं। यह भी तय है कि अगला लोकसभा चुनाव राजीव कुमार ही कराएंगे। आप सोच रहे होंगे कि राजीव कुमार का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है। दरअसल, राजीव कुमार का छत्तीसगढ़ से भी कनेक्शन हैं। उनके दामाद यहां एक जिले के कलेक्टर हैं। अब राजीव कुमार चुनाव कराएंगे, तो दामाद बाबू की पूछपरख तो बढ़ेगी ही।
सरकार को ही सामने आना होगा
रायगढ़ में राजस्व कर्मियों की रिपोर्ट पर चार वकीलों के खिलाफ अपराध दर्ज करने, और गिरफ्तारी के बाद से विवाद लगातार बढ़ रहा है। पहले राजस्व कर्मियों ने काम बंद कर दिया था, और अब वकीलों ने मोर्चा खोल दिया है। पूरे प्रदेशभर में वकील, राजस्व अमले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।
कई लोग तो रायगढ़ विवाद के लिए जिला प्रशासन के शीर्ष अफसर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सुनते हैं कि तहसीलदार, और वकीलों के बीच मारपीट की घटना को पहले हल्के में लिया गया। शीर्ष अफसर जिले में ही नहीं थे। बाद में राजस्व कर्मी हड़ताल पर चले गए, तो उन्हें शांत करने वकीलों को गिरफ्तार कर लिया गया। कुल मिलाकर दोनों के बीच सुलह के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई। इसके बाद विवाद बढ़ गया।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि राजस्व विभाग में रिश्वतखोरी आम है। रायगढ़ जिला तो इसके लिए कुख्यात है। ऐसे में तो एक न एक दिन लड़ाई सड़क़ पर आनी ही थी। देखना है कि सरकार वकीलों को शांत करने के लिए क्या कुछ करती है।
हीरासिंह की प्रतिमा से सलूक..
कोरबा, तानाखार, बांगो इलाके में स्व. हीरासिंह मरकाम की अलग प्रतिष्ठा है। कभी वे चुनाव हारे, कभी जीते, पर आदिवासी समुदाय उन्हें अपना पथ-प्रदर्शक मानता है। बांगो इलाके के उनके प्रशंसकों ने गुरसिया बाजार में उनकी एक प्रतिमा लगाई, इसी महीने। यह बाजार भी स्व. हीरासिंह ने शुरू कराया था, ताकि उनके भाई-बंधु अपनी उपज लाकर यहां बेच लें। प्रतिमा लगाने के एक ही सप्ताह बाद किसी ने उसे खंडित कर दिया। लोग उद्वेलित हो गये। बाजार बंद करा दिया। पुलिस का दावा है कि यह जिनकी हरकत है, उनको गिरफ्तार किया जा चुका है। मरकाम के अनुयायियों का कहना है कि ऐसा नहीं है। जिस दुकानदार ने उकसाया उसे बचाया जा रहा है। भडक़े आदिवासियों ने कुछ दुकानों में तोडफ़ोड़ की है, वाहनों में आग लगाई है। समर्थकों ने 48 घंटे का वक्त पुलिस और प्रशासन को दिया है, निष्पक्ष कार्रवाई के लिये। बेहतर हो कि इस संवेदनशील मामले को केवल पुलिस और प्रशासन के भरोसे न छोड़ा जाये बल्कि जन-प्रतिनिधि भी अपनी भूमिका का निर्वाह करें।
महुये की महंगी कुकीज..
आम धारणा यही है कि महुये से शराब बनती है। इसके अलावा किसी काम का नहीं। पर सरगुजा में एक नया प्रयोग हो रहा है। सरगुजा जिले में नेशनल लाइवलीहुड मिशन के तहत महुये की कुकीज़ बनाने का काम शुरू किया है। अभी यह बेकरी की एक फैक्ट्री में बनाई जा रही है, बाद में गौठानों में इसका सेटअप तैयार करने की योजना है। थोड़ा सा मैदा, थोड़ा महुआ, कुल मिलाकर जो खर्च कुकीज़ बनाने में आता है वह 100 रुपये से भी कम है, पर यह 400 रुपये किलो में बिक रहा है। बस्तर में भी कुछ प्रयोग हुए हैं। महुआ से यहां मसाला गुड़, काजू मसाला, काढ़ा और इमली मिलाकर सॉस भी बनाने का काम हो रहा है। जिन्हें महुआ पसंद है वे इस फार्मेट में भी खा-पी सकते हैं। किसी को ऐतराज नहीं होगा।
बांस की सडक़
महाशिवरात्रि पर लोगों की आस्था के को ध्यान में रखते हुए की गई एक कोशिश। तीर्थयात्रियों के लिए ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सीमा पर कांगेर घाटी नेशनल पार्क के पहले कोलाब नदी पर चट्टानों के ऊपर बनी बांस की चटाई से बनी एक वन सडक़। महाशिवरात्रि पर ओडिशा में लगने वाले मेले के लिये जाना अब आसान हो गया। सोशल मीडिया पर आईएफएस विजया रात्रे ने यह तस्वीर साझा की है।
भाजपा का पीछा करती कांग्रेस
कांग्रेस भाजपा की तरह कैडर बेस पार्टी नहीं है। जो मन से कांग्रेसी है जरूरी नहीं कि वह सदस्य बनने के लिए भी रूचि दिखाए। पर छत्तीसगढ़ में लक्ष्य पूरा करने को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया गया है। टारगेट 10 लाख सदस्य बनाने का है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम की मानें तो अब तक आठ लाख सदस्य बनाए जा चुके हैं और 31 मार्च तक इसे 10 लाख तक पहुंचाना है। मरकाम ने पहले बीजेपी के डिजिटल सदस्यता अभियान का मजाक उड़ाया। पर अब लक्ष्य पूरा करने के लिए कांग्रेस ने भी यह तरीका अपना लिया है। सुनने में आ रहा है बहुत से ऐसे पुराने कांग्रेसी छूट गए हैं और अभियान चला रहे नेता-कार्यकर्ता उन तक पहुंचे ही नहीं है। बीजेपी ने तंज कसा है पार्टी के लोग ही सदस्यता नहीं लेना चाह रहे हैं। जनता ने बहुमत तो दिया, पर अब निराश है। अच्छा होगा कि कांग्रेसी अपने ही पुराने उसूलों पर चले और बीजेपी की तरह सदस्य बनाने की होड़-दौड़ से बाहर रहे। आखिर सदस्यता के लिहाज से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा बीते विधानसभा चुनाव में 15 सीटों पर ही तो सिमट गई थी।
इतना कीमती टमाटर!
यूपी के जगदीशपुर में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के बारे में ऐसी जानकारी दी, जो यही के लोगों को पता नहीं है। उन्होंने बताया हर जिले में फूड प्रोसेसिंग पार्क खुल गए हैं और कंपनियां उनके उत्पाद हाथों-हाथ खरीद रही है। टमाटर उगाया नहीं कि यह फूड प्रोसेसिंग कंपनियों के लोग आकर खेतों से उठा लेते हैं। अब राहुल गांधी जी को कौन बताए कि टमाटर की कीमत तो बीच-बीच में इतनी खराब हो जाती है कि लोग उसे तोडऩे का भी खर्च नहीं उठा पाते हैं और कई बार सडक़ों में फेंक देते हैं।
यह तो अन्याय है
बिलासपुर में विकास कार्यों के लोकार्पण कार्यक्रम में पहले सीएम भूपेश बघेल के साथ मंच साझा करने, और फिर बाद में ट्वीटर पर इसकी आलोचना कर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ट्रोल हो गए। सोशल मीडिया में भाजपा के कार्यकर्ता ही कौशिक की खूब खिंचाई कर रहे हैं।
शनिवार को लोकार्पण कार्यक्रम में कौशिक, सीएम से गपियाते देखे जा रहे थे। सीएम के साथ उनकी हंसती मुस्कुराती तस्वीर सोशल मीडिया में छाई रही। कार्यक्रम निपटने के बाद कौशिक के तेवर बदल गए। उन्होंने ट्वीट किया कि भाजपा के कार्यकाल में शुरू हुए विकास कार्यों का भूपेश बघेल सिर्फ फीता काटना, और उद्घाटन का ही कार्य कर रहे हैं। कांग्रेस सरकार की इन तीन वर्षों में विकास कार्यों की कोई उपलब्धि नहीं है। बिलासपुर को कोई सौगात नहीं है, और न ही विकास कार्यों की कोई घोषणा है। बिलासपुर के साथ अन्याय क्यों ?
इसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने ट्वीटर पर ही उनकी खिंचाई कर दी। एक कार्यकर्ता देवेंद्र गुप्ता ने ट्वीट किया कि गजब करते हो कौशिक जी ! भूपेश बघेल जी के कथित विकास कार्यों के गवाह आप खुद उनके साथ कार्यक्रमों में मौजूद होकर बन रहे हैं। आपको लगता है वो अन्याय कर रहे हैं, तो आपको मंच साझा नहीं करना था, बल्कि वहीं धरने पर बैठ जाना चाहिए था। तब संदेश जाता कि आप वाकई दमदार नेता प्रतिपक्ष हैं। पर आपने ऐसा नहीं किया। क्योंकि आपका मामला सब सेट है। सरकार में आपकी भी हिस्सेदारी है।
जनाब, ये दिखावे का ट्वीट कर जनता और भाजपा कार्यकर्ताओं के आंखों में धूल झोंकना बंद करें। सबको पता है कि आप नेता प्रतिपक्ष नहीं, बल्कि भूपेश सरकार में 14वें मंत्री जैसी भूमिका में है। इस सरकार के निर्बाध तीन साल में आपके निकम्मेपन की भूमिका भी अहम रही है। कई और भाजपा कार्यकर्ताओं ने कौशिक को खूब भला बूरा कहा है। बात यही खत्म नहीं हो रही है। कई नेताओं ने कार्यक्रम का वीडियो क्लीप पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं को भेजा है, और यह कह दिया कि कौशिक के रहते प्रदेश में भाजपा की राह कठिन है।
सद्भावना, और मुसीबत
सरकार पूर्व सीएस की पत्नी को संविदा नियुक्ति देने, और फिर उसका संविलियन कर घिर सकती है। सुनते हैं कि भाजपा के कई नेताओं ने नियुक्ति संबंधी सारे दस्तावेज निकाल लिए हैं। चर्चा यह है कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने उदारता दिखाते हुए नियमों को ताक पर रखकर पूर्व सीएस की चिकित्सक पत्नी को नियुक्ति की अनुशंसा कर दी थी। अब उनके कामकाज को लेकर कई तरह की शिकायतें आ रही है, इसलिए मामला बढ़ गया है। रोजगार के मुद्दे पर भाजपा ने विधानसभा सत्र में सरकार को घेरने की तैयारी कर रखी है। ऐसे में यह मुद्दा भी सदन में गरमा सकता है। टीएस सद्भावना दिखाकर मुश्किल में घिर सकते हैं।
विकास का एक उदास चेहरा...
प्रदेश में अनेक जिले बने, कई विकासखंड मुख्यालय बने पर असंतुलन बना हुआ है। सरगुजा संभाग का कंदनई ऐसा गांव है जो चारों ओर घाट-पहाड़ और नदियों से घिरा है। इसका विकासखंड मुख्यालय मैनपाट 70 किलोमीटर दूर है। वे नदी पार कर पैदल बतौली पहुंचते हैं फिर बस चढक़र मैनपाट जाते हैं। आने-जाने में ही 2 दिन लग जाते हैं।
गांव के युवकों ने 2 साल पहले बतौली पैदल चलने के लिए श्रमदान कर कठिन मेहनत के साथ सडक़ बनाई लेकिन गिट्टी-पत्थर के अभाव में बारिश आते ही खराब हो गई। यहां के लिए बहुत दिनों से नई सडक़ मांगी जा रही थी। मंत्री अमरजीत भगत ने इसकी मंजूरी दी लेकिन ठेकेदार सडक़ के लिए पहाड़ी और घाट को पार करने के लिए तैयार नहीं है। डिजाइन के विपरीत यह सडक़ दूसरी ओर मोड़ दी गई। पिछले एक सप्ताह से कंदनई के ग्रामीण धरना दे रहे हैं, पर उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। उन्हें किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं मिल रहा है। क्या जरूरी है जिले और ब्लॉक के लिए नेताओं के दबाव में ही ऐसे फैसले लिए जाने चाहिए?
इतनी साफगोई भी ठीक नहीं
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कह दिया कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में तीसरे और चौथे नंबर के लिए लड़ रही है। मुकाबला कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच है। हर कोई जानता, मानता है की सत्ता की दौड़ में कांग्रेस पीछे है, पर वह ताकत से लड़ रही है। इस बार प्रियंका गांधी की वजह से पार्टी में अलग तरह का जोश है।
तीसरे-चौथे पोजिशन की बात सही भी हो तो यह बात बोलने के लिए दूसरों पर छोड़ देना चाहिए। अपनी ही पार्टी के लिए सिंहदेव का यह आकलन छत्तीसगढ़ के उन कार्यकर्ताओं-नेताओं को मायूस कर सकता है जो दौड़-दौड़ कर उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार के लिए जा रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार वहां सभाएं ले रहे हैं। सिंहदेव को उत्तराखंड की कमान सौंपी गई है। यह नहीं बताया कि वहां कांग्रेस की सरकार बन सकती है या नहीं। इसके पहले वे असम के चुनाव में प्रभारी बनाए गए थे। असम में कांग्रेस को बुरी पराजय मिली। मगर मेहनत करना तो उन्होंने वहां छोड़ा नहीं था। जिन लोगों को लग रहा है कि यूपी चुनाव के बाद राज्य के नेतृत्व में कोई बदलाव होने वाला है, इस बयान ने उनको और पीछे कर दिया।
पत्थर पर उगाए फूल
जब हम दरभा घाटी का नाम लेते हैं तो 25 मई 2013 की नरसंहार के तरफ ही ध्यान जाता है। पर यहां महिलाओं ने अपनी मेहनत से इतिहास रच दिया है। इन्होंने एक सहायता समूह बनाया और पपीते की हाईटेक खेती शुरू की। केवल 7 महीने में इन्होंने 10 एकड़ जमीन पर 30 लाख रुपए का पपीता उगाया। खास यह कि उन्होंने चट्टानी जमीन पर यह काम किया, जबकि पपीते के लिये भरपूर पानी चाहिये। इनके कौशल और परिश्रम की दिल्ली में हाल ही में रखे गए फ्रेश इंडिया शो में भी सराहा गया। कौन कहता है कि खेती लाभकारी व्यवसाय नहीं है, बस जोखिम भरे प्रयोग की जरूरत है।
राजधानी से कटा बस्तर
रायपुर जगदलपुर के बीच हर 15 मिनट में एक बस चलती है। दूसरी गाडिय़ों की संख्या भी सैकड़ों में है। पर इन सबके लिए केशकाल घाटी से गुजरना दुरूह कार्य हो गया है। कई सालों से यह मुसीबत बनी हुई है। ट्रक बस के चालकों को 8-8, 10-10 घंटे तक जाम में फंसना पड़ रहा है। वर्षों से चल रहा निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है। काम में तेजी लाने के नाम पर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने 10 दिन से घाट को भारी वाहनों के लिए बंद कर रखा है। इसके चलते कोंडागांव से कांकेर का रास्ता करीब 70 किलोमीटर लंबा हो चुका है। पर यह सडक़ भी मुफीद नहीं है। नारायणपुर मोड़ पर सैकड़ों ट्रक कई दिनों से खड़े हैं।
केशकाल घाटी की सडक़ भारी वाहनों से ही खराब हुई है लेकिन इन वाहनों के लिए एक वैकल्पिक रास्ता पिछले 2 साल से बन रहा है। यह सडक़ अब तक पूरी नहीं हुई है।
समस्या का स्थायी समाधान हो इस पर नेताओं और जनप्रतिनिधियों का ध्यान नहीं है।
बेजुबानों के ऊपर एसिड अटैक
घटना हैरान करने वाली है और इसके पीछे की वजह भी साफ नहीं। सक्ती में इन दिनों गायों पर एसिड अटैक हो रहा है। हाल के दिनों में कम से कम 5 गायों पर एसिड उड़ेला जा चुका है। इनमें से कुछ गर्भवती भी हैं। ऐसा करने वालों का मकसद क्या है और ऐसा करने वाले कौन हैं, इसका पता नहीं चला है।
करीब 3 साल पहले दुर्ग जिले के चिखली गांव में भी 2 गायों के ऊपर एसिड अटैक का मामला सामने आया था। पहले भी वहां इस तरह की घटनाएं हो चुकी थी।
घटना की एक वजह यह हो सकती है कि आवारा पशु बाड़ी खेतों में घुसकर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। देश के दूसरे भागों में पकड़े गए आरोपियों ने यही बयान दिया है। छत्तीसगढ़ जहां पशुओं को गौठानों में रखने और खुले में नहीं घूमने देने के लिए तमाम व्यवस्था करने का दावा किया जाता है वहां ऐसी घटना क्यों हो रही है? ([email protected])
पंचायतों, निकायों में कांग्रेस का संकट
भाटापारा जनपद पंचायत के 25 सदस्यों में भाजपा के सिर्फ 6 हैं और शेष कांग्रेस से। इसके बावजूद कांग्रेस की जनपद अध्यक्ष संगीता साहू के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव को लेकर पार्टी में हडक़ंप मचा है। अविश्वास प्रस्ताव की मांग तो भाजपा के तीन सदस्यों की है, पर जैसे ही कलेक्टर ने इसके लिये सभा की तारीख तय की, कांग्रेस के 19 में से 16 सदस्य भूमिगत हो गए। जाहिर है भाजपा अपने 6 सदस्यों के भरोसे तो अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकती थी। 16 पार्षदों का एक साथ गायब हो जाना बताता है कि वे बगावत करने जा रहे हैं। अब संगठन के स्थानीय पदाधिकारी उन कांग्रेस सदस्यों से अपील कर रहे हैं कि भाजपा के साथ न जायें। शिकायतों को मिल-बैठकर दूर कर लिया जायेगा।
हाल ही में खरौद नगर पंचायत में अध्यक्ष किसी तरह अपनी कुर्सी बचा ले गये। वहां भी कई कांग्रेस पार्षदों का अविश्वास प्रस्ताव को समर्थन था, पर यह हटाने के लिये जरूरी दो तिहाई समर्थन न मिल पाये, इस पर जोर लगा लिया गया। कुछ पार्षद वापस लौट गये। पर 9 में से 6 विरोध में थे। यानि बहुमत तो नहीं रहा। इधर रायगढ़ में कांग्रेस के 27 पार्षदों में से 16 ने इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया था। घोषणा होते ही भाजपा अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में लग गई। वह तो बात बन गई कि ऐन मौके पर महिला कांग्रेस अध्यक्ष बरखा सिंह ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे पर 16 पार्षद इसीलिये अड़े थे क्योंकि उनकी शिकायत 40-50 दिन से पड़ी हुई थी। अध्यक्ष पर पार्टी की ही एक महिला पार्षद से गाली-गलौच और मारपीट का आरोप था, पर प्रदेश के नेता कोई कार्रवाई नहीं कर रहे थे।
भाटापारा, खरौद व रायगढ़ के मामलों को देखकर लगता है कि कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारियों में सत्ता में भागीदारी के लिये बेचैनी बढ़ी हुई है। प्रदेश के बड़े नेता उनकी बात सुन नहीं रहे हैं। मामला जब ज्यादा तूल पकड़ता है तब डैमेज रोकने के लिये कदम उठाये जा रहे हैं।
नेतागिरी काम नहीं आई...
कौन किस मकसद से फोटो खिंचवा रहा है, किसकी क्या पृष्ठभूमि है अमूमन अधिकारी-नेता जानने की कोशिश नहीं करते। स्वागत के सिलसिले में पड़ताल करने का वक्त होता भी नहीं है। हाल में जब बिलासपुर में नई एसएसपी पारुल माथुर ने पद संभाला तो बहुत से लोगों ने उन्हें बुके भेंटकर बधाई दी और तस्वीरें भी खिंचा ली। इनमें एक नाम था मस्तूरी से कांग्रेस नेता अंकित साहू का। साहू ने तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल की और बताया कि जिले की कानून-व्यवस्था पर उसकी एसएसपी महोदया से चर्चा हुई। इसके अगले हफ्ते पुलिस ने अंकित साहू को धर दबोचा। दरअसल, वह पिस्टल और 6 जिंदा कारतूस के साथ घूमते हुए पकड़ा गया। उसने इन हथियारों की तस्वीर मोबाइल पर खींच रखी थी और उन्हें बेचने के लिये ग्राहक की तलाश कर रहा था। सिविल लाइन पुलिस को खबर मिली और उसे रायपुर रोड में पकड़ लिया गया। पुलिस ने तो एसएसपी के साथ फोटो दिखाने के बावजूद उस पर कोई नरमी नहीं बरती और आर्म्स एक्ट के तहत बुक कर दिया, पर कांग्रेस ने अब तक कोई बयान नहीं दिया है कि वह कांग्रेस में किसी पद पर है या नहीं, यदि है तो हटाया गया या नहीं।
रेलवे कोच में दफ्तर
कोविड -19 की भयानक लहर आई तो रेलवे जोन के रायपुर और बिलासपुर स्टेशनों में 100 से ज्यादा कोच आइसोलेशन वार्ड में बदल दिये गये थे। देशभर के कई स्टेशनों में ऐसी व्यवस्था की गई। हाल ही में जबलपुर रेलवे स्टेशन की तस्वीर सामने आई थी, जहां कोच के भीतर एक आकर्षक रेस्टोरेंट बनाया गया है। अब एक तस्वीर बिलासपुर रेलवे स्टेशन की और आई है, जिसमें यहां के खाली कोच में रेलवे ने अपना एक ऑफिस खोल लिया है। किनारे के प्लेटफॉर्म पर खड़ी इस ट्रेन को देखने से बिल्कुल अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि भीतर कोई दफ्तर चल रहा है। हालांकि यह व्यवस्था अस्थायी बताई जा रही है, क्योंकि पुराने बिल्डिंग में सुधार के काम चल रहे हैं। पर यह एक नया प्रयोग तो है ही, जिसे आगे रुपये बचाने के लिये अमल में लाया जा सकता है।
आवास और आवासीय आयुक्त
दिल्ली में आवासीय आयुक्त डॉ. एम गीता की केन्द्र सरकार में पोस्टिंग हो गई है। उन्हें जल्द रिलीव भी किया जा सकता है। नए आवासीय आयुक्त को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। जन प्रतिनिधियों, और विभाग प्रमुखों की मांग रही है कि दिल्ली में आवासीय आयुक्त के पद पर सीनियर आईएएस अफसर की पोस्टिंग होनी चाहिए। यह भी सुझाव दिया गया है कि आयुक्त के पास कोई अतिरिक्त प्रभार न हो। केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों से तालमेल के लिए दिल्ली में सीनियर अफसर का होना जरूरी है।
सुनते हैं कि गीता स्वास्थ्यगत कारणों से दिल्ली में रहना चाहती थीं। यही वजह है कि उन्हें कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी नहीं दी गई। उनके पास कोई और प्रभार न होने के कारण आवासीय आयुक्त का काम बेहतर ढंग से कर रही थीं, लेकिन अब उनकी नई पोस्टिंग के बाद से फिर समस्या पैदा हो गई है। ताजा समस्या यूक्रेन संकट को लेकर है।
यूक्रेन में दो दर्जन से अधिक छत्तीसगढ़ी विद्यार्थी, और अन्य लोग फंसे हुए हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने केन्द्र सरकार, और विदेशी दूतावास व फंसे लोगों से संपर्क के लिए जिस लाइजन अफसर को जिम्मेदारी दी है वो कभी बिजली बोर्ड का गेस्टहाउस संभालते थे। अब रिटायर हो चुके हैं, और सरकार ने उन्हें संविदा पर रखा है। ऐसे कठिन मौके पर वो कितना कुछ कर पाएंगे, इसका अंदाजा लगाना कठिन है।
दूसरी तरफ, रमन सरकार में ताकतवर अफसरों ने दिल्ली में बंगला आदि रखने के लिए भी आवासीय आयुक्त के पद को अपने पास रखा था। रमन सरकार में ऐसे मौके भी आए हैं जब सीएस, और एसीएस रैंक के अफसरों ने दिल्ली में एक और पद निर्मित कराकर आवासीय आयुक्त के पद को सिर्फ इसलिए ही अपने पास रखा था ताकि वहां बंगला और अन्य सुख सुविधाएं मिलती रहे। तब अफसरों की कमी नहीं थी, इसलिए काम चल गया। इससे परे दूसरे राज्यों में सीनियर, और काबिल अफसरों को आवासीय आयुक्त के रूप में पदस्थ किया जाता है। उत्तरप्रदेश के आवासीय आयुक्त रहे अजीत कुमार सेठ बाद में कैबिनेट सचिव बने। इसी तरह गुजरात के आवासीय आयुक्त रहे भरतलाल वर्तमान में केन्द्र सरकार में सचिव के पद पर हैं।
छत्तीसगढ़ के कुछ आवासीय आयुक्तों ने बेहतर काम किया है। आईएफएस अफसर बी वी उमा देवी के आवासीय आयुक्त के रूप में काम को सराहा गया था। उन्होंने उत्तराखंड आपदा के दौरान छत्तीसगढ़ के फंसे लोगों को निकलवाने में अहम भूमिका निभाई थी। मगर मौजूदा समय में अफसरों की कमी के चलते आवासीय आयुक्त पद पर बिना अतिरिक्त प्रभार के सीनियर अफसरों की पोस्टिंग हो पाएगी, यह फिलहाल मुश्किल दिख रहा है।
ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने की पहल
राज्य में परिवहन विभाग ने जून 2020 में एक आदेश निकाला था कि वाहन का इस्तेमाल कर किसी ने महिला संबंधी अपराध किया और उसे कोर्ट ने दोषी पाया तो उसका ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त कर दिया जायेगा। बलौदाबाजार में कोर्ट ने एक व्यक्ति को नाबालिग से छेड़छाड़ और अपहरण का दोषी पाया। एसएसपी ने उसका ड्राइविंग लाइसेंस 5 साल के लिये निरस्त करने परिवहन विभाग को पत्र लिखा। ज्यादातर अपराधों में बाइक, कार आदि इस्तेमाल तो किये ही जाते हैं। ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त होने से कम से कम बाकी लोगों को सबक मिलेगा। कहा जा रहा है कि राज्य में इस प्रावधान के तहत यह पहली कार्रवाई है।
अच्छी बात है, पर दूसरी तरफ इसकी पड़ताल होती ही कितनी है कि कोई वाहन चालक लाइसेंसधारक है या नहीं। इस तरह की जांच तो कभी-कभी अभियान चलाकर ही की जाती है। लोग क्लीनर के हाथ में ट्रक तक थमा देते हैं, जो बड़ी-बड़ी दुर्घटनाओं को अंजाम देते हैं। उपरोक्त मामले में 5 साल के लिये लाइसेंस को निरस्त किया जा रहा है, लगभग इतनी या इससे ज्यादा अवधि तक आरोपी तो जेल ही काटेगा। यानि बाहर निकलने के बाद वह फिर नया लाइसेंस बनवाने का पात्र हो जायेगा? नियम कुछ व्यवहारिक हो तो खौफ हो। पांच साल तक लाइसेंस निरस्त रखने की अवधि सजा काटने के बाद की रखी जा सकती है। लाइसेंस निरस्त किया गया है इसकी सूचना भी सार्वजनिक हो, ट्रैफिक पुलिस के पास भी सूची हो। चेकिंग हो तो वास्तविक हो, नजराना लेकर छोड़ देने का खेल न हो।
सैकड़ों छात्रों को फेल करने का फरमान
सरगुजा के बतौली में 10वीं, 12वीं बोर्ड की प्रायोगिक परीक्षा से गायब रहने के कारण करीब 370 छात्र-छात्राओं को फेल कर दिया गया है। अब इनके लिये मुख्य परीक्षा का कोई मतलब नहीं रह गया है। प्रायोगिक में पास हुए बिना उनकी मार्कशीट में उत्तीर्ण नहीं लिखा जायेगा। दरअसल, यहां के छात्र-छात्रा बीते कई दिनों से पुराने हिंदी स्कूल में स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल खोलने का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने नेशनल हाइवे पर चक्काजाम कर दिया। स्थानीय नागरिकों और भाजपा नेताओं का भी उन्हें साथ मिला। भीड़ एक हजार से ऊपर पहुंच गई। जोश में 10वीं, 12वीं के वे छात्र भी आंदोलन में साथ हो गये, जिनकी प्रायोगिक परीक्षा हो रही थी। किसी ने उन्हें बहका दिया होगा कि सब के सब गायब रहेंगे तो परीक्षा स्थगित कर दी जायेगी, लेकिन स्कूल के प्राचार्य ने इसे कठोर अनुशासनहीनता के रूप में लिया। परीक्षा आगे नहीं खिसकाई और सबको गैरहाजिर बता दिया। यानि उन्हें शून्य नंबर मिले।
रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा अधिकारी दुबारा परीक्षा लेने के लिये तैयार नहीं हैं, वे कह रहे हैं कि अब इन्हें मौका अगले साल ही मिलेगा।
कोरोना संक्रमण काल के बाद पहली बार ऑफलाइन परीक्षायें हो रही हैं। प्रायोगिक परीक्षाओं की तिथियां स्थानीय स्तर पर ही तय की जाती हैं। यदि किसी नासमझी के कारण बच्चों ने एक राय होकर परीक्षा का बहिष्कार किया तो इसमें लचीला रवैया रखा जा सकता था। आखिर उनका आंदोलन भी अपने स्कूल के मूल स्वरूप को बचाये रखने के लिये ही हो रहा था। यानि उनको अपनी पढ़ाई की चिंता तो है। बहरहाल, इस कड़े रुख पर जिला पंचायत सरगुजा की बैठक में भी ऐतराज जताया गया है, साथ ही उन लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है जिन्होंने परीक्षा को छोडक़र बच्चों को सडक़ पर उतरने के लिये उकसाया।
मतदान में एक योगदान..
पड़ोसी राज्य ओडिशा में इन दिनों पंचायत चुनाव हो रहे हैं। कल चौथे चरण का मतदान पूरा हुआ। इस दौरान सोशल मीडिया पर आई इस तस्वीर ने लोगों का ध्यान खींचा। पोलिंग बूथ में तैनात एक महिला कांस्टेबल ने वोट देने आई 90 साल की वृद्धा को अपनी गोदी में उठाकर भीतर पहुंचाया।
पहली महिला डीएफओ का महत्व
वन महकमे में हुए पहली प्रशासनिक सर्जरी में राजनांदगांव के लिए डीएफओ के तौर पर सलमा फारूखी की नियुक्ति कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहली दफा डीएफओ के पद पर राजनांदगांव में महिला अफसर को पदस्थ किया गया है। 2008 बैच की राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर आईएफएस बनी सलमा को राजनांदगांव में काम करने का पुराना प्रशासनिक अनुभव भी है। 2012-13 के दौरान वह एसडीओ भी रही है। सलमा कटघोरा वन मंडलाधिकारी शमा फारूखी की बहन हैं । पिछले दिनों शमा कोरबा कलेक्टर रानू साहू के साथ प्रशासनिक मतभेद के चलते सुर्खियों में रहीं। उनकी वन मुख्यालय में वापसी करने के साथ सरकार ने सलमा को राजनांदगांव जैसे बड़े जिले में डीएफओ की जिम्मेदारी सौंपी है। वैसे पिछले कुछ सालों से राजनांदगांव में डीएफओ औसतन सालभर ही पदस्थ रहे हैं। पंकज राजपूत, प्रणय मिश्रा जैसे अफसरों को जल्द ही अरण्य भवन बुला लिया गया। 2011 बैच के गुरूनाथन एन. भी राजनंादगांव में बमुश्किल सालभर ही टिक पाए। महिला डीएफओ की तैनाती से वन महकमे के आला अफसर उनके कार्यशैली की जानकारी ले रहे हैं। सलमा फारूखी की पोस्टिंग के पीछे राजनीतिक कारण भी गिनाए जा रहे हैं। यहां यह भी गौर करने लायक बात यह है कि दुर्ग सीसीएफ के पद पर एक महिला अफसर जिम्मा सम्हाल रही है।
एक उलट भूमिका वाली तस्वीर
बात अपने छत्तीसगढ़ की हो या देश के किसी दूसरे राज्य की। यदि किसी महिला प्रत्याशी को मजबूरी में चुनाव लड़ाना है तो साथ में उसके पति, पिता या किसी संबंधी की तस्वीर भी प्रचार सामग्री में मिलती है। पंचायत चुनाव में आम है, लोकसभा, विधानसभा चुनावों में भी कई बार यह दिखाई देता है। मतदाता सूची में नाम के साथ बीच में पति का नाम भी डाला जाता है। जीत जाने के बाद पति या पिता का ही दबदबा बना रहता है। उन्हें भ्रम होता है कि महिला अपने दम पर नेतागिरी नहीं कर सकती। चुनाव जीतना और फिर जीते हुए पद को संभालना, भोगना पति या पिता का ही काम है।
पर पंजाब विधानसभा चुनाव के फिरोजपुर (ग्रामीण) का यह पोस्टर सबसे हटकर है। यहां सीपीआई (लिबरेशन) के प्रत्याशी सुरेश कुमार हैं। पोस्टर में उन्होंने बराबर आकार में अपनी पत्नी परमजीत कौर को जगह दे रखी है। दोनों ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता हैं। सुरेश कुमार ईमानदारी से मानते हैं कि इलाके में उनकी पत्नी ज्यादा लोकप्रिय हैं। वे दस साल से भी ज्यादा समय से दलितों, पिछड़ों के लिये काम कर रही हैं। मैं तो निजी बस में कंडक्टर था। दो साल ही हुए हैं, राजनीति में आए।
उम्मीद करनी चाहिये कि इस शुरुआत की बयार दूसरे शहरों और राज्यों में भी पहुंचेगी। अपने यहां छत्तीसगढ़ में भी, जहां पर कि निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधि के सरकारी दफ़्तर में उनके पति बैठकर जुआ खेलते पकड़ाते हैं।
पुरंदेश्वरी के तीखे तेवर...
संगठनात्मक ढांचे में कांग्रेस से कई कदम आगे रहने वाली भाजपा की गतिविधियां मंद पड़ी है। भाजपा की प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी बस्तर के दौरे पर थीं। उन्होंने रायपुर शहर जिला इकाई की वहीं से वर्चुअल बैठक ली। पता चला कि बूथ कमेटियां सिर्फ 50 फीसदी ही बन सकी हैं। राजधानी में ही यह हाल है। बाकी जिलों का आंकड़ा अभी सामने आना बाकी है। वैसे तीन दिन के बस्तर दौरे के दौरान भी उन्होंने पाया कि यहां भी जिलों में बूथ कमेटियां बनाने की रफ्तार धीमी ही है। पुरंदेश्वरी के तेवर तीखे रहे। उन्होंने जिला अध्यक्ष और पदाधिकारियों की क्लास ली। कमेटियां जल्द बनाने कहा। याद होगा, इसके पहले भाजपा की युवा मोर्चा, महिला कांग्रेस और दूसरी इकाईयों का गठन भी तय समय के काफी बाद तक नहीं हो पाया था। बार-बार प्रदेश प्रभारी ने नाराजगी जताई तब जाकर यह पूरा हो सका। कहीं ऐसा तो नहीं कि पुरंदेश्वरी के तेवर से प्रदेश के बड़े भाजपा नेता असहज महसूस कर रहे हैं और उन्हें सहयोग नहीं करना चाहते? या फिर लगता है कि जो तरीका उनका है वह छत्तीसगढ़ भाजपा में फिट नहीं बैठता?
वर्चुअल मीटिंग में रिश्ता तय करना..
सुकमा के किसी लडक़ी के लिये जशपुर के लडक़े का विवाह प्रस्ताव आया। शादी-ब्याह का मामला था, सो एक दो लोग जाकर देख आयें यह ठीक नहीं था। घर कैसा है, परिवार के लोग कैसे हैं। यह सब देखने समझने के लिये पांच-छह लोगों को तो जाना चाहिए। गये और रिश्ता नहीं जमा तो क्या होगा? डीजल-पेट्रोल और टैक्सी भाड़ा में 15-20 हजार फूंक देना व्यर्थ। तब, दोनों पक्षों ने एक तरीका आजमाया। इंटरनेट के जरिये वर्चुअल मुलाकात रखी गई। दोनों पक्षों से 10-12 लोग शामिल हो गए। सबने एक दूसरे से बात कर ली। व्यवहार समझ लिया। कैमरे से ही पूरा घर, एक दूसरे का रहन-सहन देख लिया। लडक़ी को कई बार असहज लगता है कि भावी दूल्हे के साथ उसे अलग बिठाया जाये। शर्माते हुए चाय-नाश्ता लेकर आये। फिर बात नहीं जमी तो और भी बुरा। इस मामले में वर्चुअल मीटिंग के बाद वार्तालाप का सेशन लडक़ी, लडक़े के बीच अलग से रख लिया गया। कोरोना काल ने वर्चुअल बैठक, सभा, सेमिनार की तरफ लोगों का झुकाव बढ़ाया। पर लगता है धीरे-धीरे यह चलन में आ जायेगा।
लगे हाथ, इस माह की शुरुआत में एक खबर आई थी कि अभिजीत और संस्कृति नाम के एक भारतीय जोड़े ने थ्री डी वर्चुअल शादी की, जिसमें 500 मेहमान भी शामिल हुई। यह भारत में ऐसी पहली शादी थी। जोड़े ने ही नहीं मेहमानों ने भी डिजिटल अवतार लिया। यह तरीका मेटावर्स कहा जाता है। फेसबुक आगे चलकर यही होने वाला है। हालांकि इस विवाह का फिजिकल इवेंट भोपाल में बाद में हुआ। मतलब, तकनीक की एक सीमा ही है, फीलिंग तो आमने-सामने मिलने से ही आती है।
दिल है छोटा सा...छोटी सी आशा
पीलीभीत की चुनावी सभा में अमित शाह ने पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के कंधे पर हाथ रखा, तो यहां उनके समर्थकों की बांछें खिल गईं। अमित शाह ने बृजमोहन से पीलीभीत जिले में पार्टी प्रत्याशियों का हाल जाना। पार्टी ने बृजमोहन को पीलीभीत के दो विधानसभा के चुनाव प्रचार की कमान सौंपी है।
पीलीभीत पूर्व केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी का क्षेत्र है। वो इन दिनों पार्टी से खफा चल रही हैं। ऐसे में पीलीभीत में कमल खिलाना पार्टी के लिए चुनौती बन गई है। चूंकि बृजमोहन को चुनाव प्रबंधन में महारत हासिल है, पार्टी ने उन्हें कठिन माने जाने वाले क्षेत्र में लगाया है। सोमवार को चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले बृजमोहन ने डोर टू डोर संपर्क किया, और फिर वोटिंग से पहले की सारी तैयारियों की समीक्षा कर दिल्ली निकल गए।
चुनावी सभा में बृजमोहन को अमित शाह ने जिस तरह महत्व दिया है, उससे प्रदेश भाजपा में नए समीकरण बनने की अटकलें लगाई जा रही है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि युवा मोर्चा के दिनों के साथी रहे राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, बृजमोहन के बजाए रमन सिंह के बेहद करीबी हो गए हैं। हाल यह है कि प्रदेश भाजपा संगठन में अब तक सारे फैसले रमन सिंह के मनमाफिक होते रहे हैं।
दूसरी तरफ, पार्टी संगठन की कार्यप्रणाली से प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी, और सह प्रभारी नितिन नबीन नाराजगी जता चुके हैं। ऐसे में प्रदेश भाजपा में बड़े बदलाव की उम्मीद जताई जा रही है। इसमें बृजमोहन, और उनके खेमे को कितना महत्व मिलता है, यह देखना है। फिलहाल तो अमित शाह ने बृजमोहन के कंधे पर हाथ रखकर समर्थकों को खुश कर दिया है।
शह और मात
कोरबा कलेक्टर रानू साहू, और कटघोरा डीएफओ शमा फारूकी के बीच जंग का नतीजा निकल गया। शमा फारूकी को हटाकर अरण्य भवन में पदस्थ कर दिया गया। शमा को पुरानी शिकायतों के आधार पर हटाया गया है। कांग्रेस विधायक मोहित केरकेट्टा ने कुछ महीने पहले उनके खिलाफ लंबी चौड़ी शिकायतें वन मंत्री को भेजी थी।
जहां तक कलेक्टर से जिस बिन्दु को लेकर बहस हुई थी उसमें शमा का पक्ष मजबूत था। चूंकि माहौल शमा के खिलाफ था इसलिए उन्हें हटना ही था। इन सबके बावजूद वो हार गई हैं, ऐसा कहना भी गलत है। तबादला सूची में शमा के साथ उनकी सगी बहन सलमा फारूकी का भी नाम है, जो डीएफओ के पद पर प्रमोट होने के बाद पहली बार फील्ड में जा रही हैं, और उन्हें राजनांदगांव वन मंडल की प्राइम पोस्टिंग मिली है। खास बात यह भी है कि शमा, और सलमा एक साथ राजनांदगांव वन मंडल में एसडीओ के पद पर काम कर चुकी हैं।
नशे के खिलाफ एक गांव..
यह माना जाता है कि शराब जैसी बुराई रोकने के लिये कानून से ज्यादा सामाजिक दबाव काम आता है। गरियाबंद जिले के छुरा विकासखंड के ग्राम सरकड़ा में भी यह कोशिश की गई है, पर नियम-कायदे कुछ मायनों में सख्त तो कुछ लुभावने भी हैं। मसलन, शराब पर ही पाबंदी नहीं है बल्कि गांजा-भांग पर भी रोक लगाई गई है। गांव में पीने, बेचने, खरीदने पर बंदिश तो है ही बाहर से भी नशा करके घुस नहीं सकते। निगरानी के लिये महिलाओं की कमांडो टीम भी बनाई गई है। पालियों में दिन-रात निगरानी की जा रही है। आकर्षक यह है कि नियम तोडऩे पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है, जिसमें से 50 फीसदी रकम मुखबिर को बतौर इनाम मिलेगी। अब तक एक को गांजा बेचते और चार को नशे में हुड़दंग करते पकड़ा जा चुका है। हुआ यह है कि अब थानों में भी मामले नहीं जा रहे हैं क्योंकि अधिकांश लड़ाई-झगड़ों की जड़ नशा ही है। जुर्माना लगाने का अधिकार गांव के पंचों को है या नहीं इस पर विवाद हो सकता है, पर इस व्यवस्था से गांव में जो शांति कायम हुई है, उसे गांव के लोग राम-राज कह रहे हैं।
ऑफलाइन परीक्षा के दबाव..
पता नहीं कैसे प्रश्न आयेंगे, जो प्रश्न याद किये हैं वे नहीं आये तो क्या होगा। कहीं अकेले ही न फेल हो जाऊं...। ऑनलाइन पढ़ाई के बाद हो रही ऑफलाइन परीक्षा को लेकर कुछ ऐसे सवाल बच्चों के दिमाग में तैर रहे हैं। कहीं पांच दिन की क्लास लगी है, कहीं एक सप्ताह की। दो मार्च से छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल की परीक्षायें शुरू हो रही हैं। पिछली बार 12वीं बोर्ड में 97 प्रतिशत रिजल्ट था और 10वीं बोर्ड का तो लगभग 100 प्रतिशत। उत्तर पुस्तिका घर पर बैठकर जो तैयार की गई थीं। इस बार करीब दो साल के अंतराल ऑफलाइन परीक्षा होगी। कोर्स तो ऑफलाइन मोड में पूरा किया नहीं जा सका, सो उन्हें टिप्स दिये जा रहे हैं। राजधानी रायपुर से सीजी बोर्ड परीक्षाओं में शामिल हो रहे सरकारी और निजी स्कूलों के करीब 30 हजार बच्चों को टिप्स दिये गये कि प्रश्न कैसे हल करने हैं। कोर्स की बातें तो हो गईं, पर इसमें बच्चों का आत्मविश्वास बनाये रखने, बढ़ाने के लिये भी टिप्स देने का सत्र रखा जाना चाहिये था, जो नहीं हुआ। दरअसल, काउंसलिंग तो सिर्फ बच्चों को नहीं, बल्कि पालकों को भी देने की जरूरत है कि कम से कम इस बार अव्वल आने, ज्यादा से ज्यादा अंक लाने के लिये दबाव न डालें। सवाल, यह भी है कि क्या क्या बोर्ड उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में इस बार उदारता बरतेगा?
मितानिन अब और स्मार्ट..
छत्तीसगढ़ देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां मितानिन (आशा वर्कर) की प्रोत्साहन राशि का भुगतान ऑनलाइन किया जा रहा है। एक पायलट प्रोजेक्ट रायपुर जिले के अभनपुर में नवंबर 2020 में शुरू किया गया था, जिसे अब पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया है। प्रदेश में 69 हजार मितानिन हैं जो ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के मुख्य आधार हैं। अब उन्हें अपनी सेवाओं के एवज में राशि प्राप्त करने के लिये किसी बैरियर से नहीं गुजरना पड़ेगा। उनके अकाउंट में सीधे राशि आ रही है।
हिंदी की जगह पर अंग्रेजी स्कूलों का विरोध
स्वामी आत्मानंद स्कूलों के नामकरण और इनमें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई के फैसले को लेकर कई जगह विवाद खड़ा हो रहा है। बीते दिसंबर महीने में रायगढ़ के सबसे पुराने व बड़े कूल सेठ किरोड़ीमल नटवर हायर सेकेंडरी स्कूल के बाहर स्वामी आत्मानंद स्कूल का बोर्ड देखकर नागरिकों में रोष फैल गया। एक सर्वदलीय समिति बन गई। प्रशासन ने आखिरकार नागरिकों के दबाव में तय किया कि स्कूल का नाम वही पुराना रहेगा। बदला गया बोर्ड हटाया गया और स्कूल के पुराने नाम के नीचे लिखा गया, स्वामी आत्मानंद योजना के तहत संचालित स्कूल। इधर गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में भी इसी बात को लेकर विरोध शुरू हुआ है। पेंड्रा में स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दुबे के नाम पर हायर सेकेंडरी स्कूल है। इस स्कूल के सैकड़ों बच्चे 5 किलोमीटर पैदल मार्च कर छुट्टी के दिन प्रदर्शन करने कलेक्टोरेट पहुंच गये। इन्हें एक तो स्कूल का नाम बदलने पर ऐतराज था, फिर आशंका थी कि स्कूल में हो रही साज-सज्जा, लैब, फर्नीचर के बाद उनकी फीस बढ़ जायेगी जो गरीब पालक भर नहीं पायेंगे। इस मामले में भी कलेक्टर और डीईओ को सफाई देनी पड़ी कि न तो नाम बदलेगा, न ही फीस बढ़ेगी, बल्कि गणवेश, किताबें मुफ्त ही मिलेगी।
प्रदेश के कई शहरों में अंग्रेजी स्कूलों को खोलने के लिये पहले से संचालित हिंदी माध्यम स्कूल बंद किये जा रहे हैं, जिसको लेकर प्रदर्शन भी हो रहे हैं। सरगुजा के बतौली, मैनपाट इलाके में स्वामी आत्मानंद योजना के लिये चयनित स्कूलों के विरोध में तो हाईकोर्ट में ही याचिका लगा दी गई है। इसमें कहा गया है कि उत्कृष्ट विद्यालय बनने से इस आदिवासी अंचल के हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को पढऩे के लिये स्कूल नहीं मिलेगा। ज्यादातर लोग विशेष सरंक्षित पडों, पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग हैं। याचिका में कहा गया है कि पहली, छठवीं और नवमीं में प्रवेश लेने से उन्हें रोका जा रहा है। घरघोड़ा, सरायपाली, जशपुर से भी हिंदी माध्यम स्कूलों को बचाने के लिये अलग-अलग याचिकायें हाईकोर्ट में लगी हुई हैं।
ज्यादातर विरोध कई शंकाओं का समाधान नहीं होने की वजह से हो रहा है। रायगढ़ और जीपीएम जिले में जो परिस्थितियां पैदा हुईं, उससे निपटने के लिये अधिकारी तब सामने आये जब नागरिक और छात्र सडक़ पर उतरे। कोर्ट में जो मामले गये हैं, शायद उनमें भी कोई कोशिश नहीं हुई। योजना नई है, इसलिये लोगों की चिंता जायज है।
सवाल विलोपित अधिनियम का..
रविवार को व्वायवसायिक परीक्षा मंडल ने फूड इंस्पेक्टर पदों के लिये परीक्षा ली थी। 200 अंकों का एक ही प्रश्न-पत्र था। कुछ ऐसे अभ्यर्थी थे जिन्होंने इसके एक सप्ताह पहले सीजीपीएससी परीक्षा भी दी थी। उसके मुकाबले यह प्रश्न-पत्र कुछ सरल था। पर, शिकायत इसमें भी थी। संयुक्त मध्यप्रदेश के समय खाद्य अधिनियम में सन् 1992 में संशोधन किया जा चुका है। खाद्य विभाग इन्हीं अधिनियमों के तहत कार्रवाई करता है लेकिन प्रश्न विलोपित किये जा चुके 1986 के खाद्य अधिनियम से संबंधित पूछे गये, जिसकी तैयारी छात्रों ने की ही नहीं थी। उन्हें लगा पुराने अधिनियमों की जानकारी रखकर वे क्या करेंगे, जो लागू है उसी को रटें। अब इस पर परीक्षार्थी अपनी आपत्ति मंडल के सामने दर्ज कराने वाले हैं।
बलांगीर के कद्दू
वैसे तो छत्तीसगढ़ में भी कद्दू की भरपूर पैदावार होती है, पर इसकी खपत भी खूब है। इस समय बलांगीर ओडिशा से खेप के खेप कद्दू राजधानी रायपुर पहुंच रहे हैं। ये जो कद्दू आये हैं उसका उत्पादन और विपणन का काम महिलाओं का समूह- महाशक्ति कर रहा है, जिसे नाबार्ड से भी मदद मिली है।
कोरबा के विस्थापितों को नौकरी नहीं..
हाल ही में एक मामला हाईकोर्ट में आया था, जिसमें प्रस्तावित प्रोजेक्ट से मिट्टी निकालने का 250 करोड़ रुपये का ठेका तो एसईसीएल ने निकाल दिया लेकिन मौके पर पूरा गांव बसा हुआ था। फैसला ठेकेदार के पक्ष में हुआ, उनको ब्लैक लिस्ट से हटाना पड़ा। कोरबा जिले के कुंसमुंडा, दीपका और गेवरा में नई परियोजनाओं को शुरू करने में एसईसीएल को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। नये प्रोजेक्ट के लिये जमीन आबंटित होने के बावजूद लोग उसे खाली नहीं कर रहे हैं। जिन लोगों ने पुरानी परियोजनाओं में जमीन दी, वे भी आये दिन आंदोलन कर रहे हैं। हालत यह है कि सन् 1990 में जमीन देने वालों को भी नौकरी नहीं मिली। इनमें से कई लोगों की मौत हो चुकी। अब उनके वारिस लड़ाई लड़ रहे हैं। एसईसीएल का कहना है कि ऐसा प्रावधान नहीं है। प्राय: जिन मुद्दों पर कोई रास्ता नहीं निकालते बनता कंपनी उसे कोल इंडिया का नीतिगत मामला कहकर टालती है। अब एसईसीएल प्रबंधन ने प्रशासन के दबाव में कोल इंडिया को इस नीति में बदलाव का प्रस्ताव भेजने के लिये सहमत हुआ है। पर, यह नहीं लगता कि कोल इंडिया से बहुत जल्दी कोई जवाब आयेगा। इसी के चलते आंदोलन चल रहा है। नई परियोजना शुरू नहीं कर पाने के कारण एसईसीएल के उत्पादन कमी आई है, जिसके चलते छोटे उद्योगों को आपूर्ति घटाई गई है। हाल ही में इसके विरोध में एसईसीएल मुख्यालय के सामने प्रदर्शन भी हुआ था।
छत्तीसगढ़ के एक जिले की दो प्रभावशाली महिला अफसरों के बीच विवाद ने पिछले दिनों खूब सुर्खियां बटोरीं। हालांकि महिला आईएएस अफसर के लिए यह कोई नई बात नहीं है। कर्मचारी-अधिकारी उनके बर्ताव के कारण प्रताडि़त महसूस कर रहे हैं। आईएफएस वन अफसर से तू-तू, मैं-मैं के अलावा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ दुव्र्यवहार के कारण काफी कोहराम मचा था। वकीलों ने मैडम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। खेद प्रकट के बाद वकील शांत हुए। पटवारियों की नाराजगी जाहिर है। एक पटवारी के खिलाफ एक पक्षीय कार्रवाई से पूरे जिले के पटवारी भडक़े हुए हैं।
दरअसल मैडम पूरे जिले में तानाशाही अंदाज में राज चलाना चाहती हैं। ऐसे में किसी ने नियम-कानून की बात की तो समझिए उसकी खैर नहीं। इस जिले की कुर्सी पहले से काफी रौबदार वाली मानी जाती है। खनिज संपदा और उद्योग से भरा-पूरा जिला है। कोयले की खदानें हैं, जिस पर चौतरफा नजरें है। कुल मिलाकर रौबदार के साथ-साथ काजल की कोठरी का ताज भी है। जहां के कुछ दाग ऐसे भी होते हैं, जो आसानी से छूटते नहीं। ऐसे ही पावर प्लांट के विस्तार के दाग पर राजधानी में बैठे प्रमुख लोगों की नजर पड़ गई है। चर्चा है कि इस बारे में मैडम से जानकारी भी ली गई। फिलहाल इस खेल में अम्पायर के निर्णय का इंतजार किया जा रहा है।
बकाया किस्सों में राष्ट्रीय दिवस पर फेसबुक पर पोस्ट की गईं शराबखोरी की तस्वीरें भी हैं। और पिछले जिले में रेत से तेल निकालने की कहानियां भी।
घटना लिंगानुपात का
छत्तीसगढ़ में लिंगानुपात बीते 10 सालों में गिरा है। पहले यह 1000 पुरुषों में 960 था पर अब यह घटकर 938 पर आ गया है। इसकी एक बड़ी वजह भ्रूण हत्या भी हो सकती है। प्रदेश में करीब 800 अल्ट्रासाउंड मशीनें हैं, जो इस नाम पर स्थापित की जाती हैं कि गर्भ में पल रहे शिशु और गर्भवती की सेहत की जांच की जा सके, लेकिन इसी जांच के साथ यह भी पता लगाया जा सकता है कि भ्रूण मेल है या फीमेल।
नियम कहता है कि हर तीन माह में इन जांच केंद्रों की जांच स्वास्थ्य विभाग को करनी चाहिये, लेकिन आम तौर पर साल में एकाध बार ही जांच हो पाती है। कई सेंटर तो जांच से छूट भी जाते हैं। ज्यादातर केंद्र जांच के रिकॉर्ड तो रखते हैं, जो नियम के अनुसार दो साल तक संभालना जरूरी होता है, पर इस जांच में लडक़ा या लडक़ी होने का कुछ भी सबूत नहीं होता। इन दिनों स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेशभर में जांच के लिये अभियान चला रखा है, पर अब तक जांच का आंकड़ा 500 भी पार नहीं कर पाया है। संतान की चाह रखने वालों के लिये भी बाजार फल-फूल रहा है। प्रदेश में इन विट्रो फर्जिलाइजेशन ट्रीटमेंट (आईवीएफ) के 32 केंद्र हैं। इनकी भी जांच स्वास्थ्य विभाग को नियमित रूप से करनी है, पर नहीं हो रही। पीसीपीएनडीटी के अधिकारी कहते हैं कि हर जांच केंद्र में कोई न कोई गड़बड़ी तो मिल ही जाती है। हालांकि कार्रवाई सिर्फ 4 पर हुई है। लिंगानुपात का अंतर बढऩा एक खतरे का संकेत है, जिसकी ओर सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है।
बस्तर की बालायें..
सिलगेर में अपनी मांगों को लेकर आदिवासी समुदाय पिछले कई महीनों से आंदोलन कर रहा है। यहीं उन्होंने पहले आदिवासी विद्रोह की पहचान भूमकाल दिवस भी मनाया। इस मौके पर दूर-दूर से आदिवासी पहुंचे। उन्होंने आंदोलन स्थल पर पारंपरिक नृत्य गीत भी गाये। इसी मौके पर किसी गांव से पहुंचीं इन दो बालिकाओं ने भी प्रस्तुति दी।
ऑनलाइन मर्डर के सामान
छत्तीसगढ़ पुलिस करे भी तो क्या, फ्लिपकार्ट, अमेजान वालों को चि_ी लिखकर कहा कि चाकू क्यों भेजते हो। बंद करो। मगर इन लोगों ने कहा कि हम तो चाकू बकरा, मुर्गी काटने के लिये भेजते हैं। कोई रूल रेगुलेशन केंद्र सरकार तय करेगी तो बंद कर देंगे। जो भी सामान हम भेज रहे हैं वे सब सर्टिफाइड है। चाकुओं का इस्तेमाल अगर कोई लोगों को नुकसान पहुंचाने के लिये करते हैं तो उस पर हमारी जवाबदारी नहीं। राजनांदगांव में पुलिस ने अभियान चलाकर कल 72 घातक चाकुओं को जब्त किया। सामान मंगाने वालों की लिस्ट देखकर सबको पकड़ लिया। इस लिस्ट में कई नाम लड़कियों के हैं। हो सकता है कोई एक दो क्राइम से जुड़ी हों, पर हो सकता है कि ज्यादातर ने आत्मरक्षा के लिये मंगाया हो। महिला सुरक्षा के लिये दिये गये तमाम हेल्पलाइन नंबरों, महिला पुलिस की रक्षा टीम क्या कर रही है? क्यों लड़कियों को इसकी जरूरत पड़ रही है?
बांस के कितने फायदे..
कंधे पर उठाये हुए इस सामान को क्या कहते हैं? भाषा विज्ञों से पूछें तो चट्टा कहेंगे। यह तस्वीर बस्तर के एक गांव की है। गौर से देखें तो इसमें परंपरा और परिवर्तन की बहुत की कई खूबियां दिख सकती हैं। एक- हाथ में जो नॉयलोन का थैला है वह कोलकाता से बनकर आता है। जिस रास्ते पर ग्रामीण चल रहा है वह न सीएम न पीएम सडक़ योजना में शामिल है, मगर पैदल सडक़ नाप कर भी चलने वाला खुश है। पास के किसी हाट से उसने जो चट्टा खरीदा उसके कई काम हैं। इसे बिछा दें तो सोते हुए गर्माहट महसूस कर सकते हैं। शादी-ब्याह में मड़वा का घेरा बना सकते हैं। वेग के साथ बारिश हो तो मिट्टी की दीवार के आगे सटाकर घर बचा सकते हैं। छत्तीसगढ़ के जंगलों में घूमने पर पता चल सकता है कि वहां बांस की कीमत और अहमियत क्या है।
और एडवोकेट प्रोटेक्शन?
पिछले पांच दिनों से हड़ताल कर रहे नायब तहसीलदार व तहसीलदारों को सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है। कलेक्टरों को इस बारे में राज्य सरकार ने निर्देश दिया है। रायगढ़ मारपीट मामले में चार अधिवक्ताओं की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। सरकार की कोशिश है कि राजस्व अधिकारी अपनी हड़ताल जल्दी खत्म कर दें। न्यायालयों में अधिकारी बैठना शुरू करेंगे, तो धीरे-धीरे वकील भी कोर्ट आना शुरू कर देंगे। आखिर उन पर भी मुवक्किलों का दबाव है। दूसरी तरफ वकील लंबे समय से एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लाने की मांग कर रहे हैं। रायगढ़ घटना के बाद इस मामले को वे फिर उठा रहे हैं। संतुलित फैसला तब होता जब सरकार तहसीलदारों को सुरक्षा देने के साथ ही अधिवक्ताओं को भी आश्वस्त करती।
पेंडेंसी का पहाड़
संभागीय मुख्यालय और कलेक्ट्रेट में नियमित रूप से बैठक होती है, जिनमें लंबित राजस्व मामलों को निपटाने के लिये नई-नई समयसीमा तय की जाती है। पर मुकदमे हैं कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहे। तहसील और उसके नीचे की अदालतों में पक्षकारों और वकीलों को साहब की खाली कुर्सी निराश करती है। कभी पता चलता है कि वे बड़े साहब की मीटिंग में गये हैं, कभी कहीं बेजा-कब्जा तोड़वाने गये हैं, तो कई बार पता नहीं चलता कि कहां गये। कोरोना महामारी के कारण राजस्व न्यायालयों के कामकाज पर भी असर पड़ा, पर इसमें हुए समय के नुकसान की भरपाई करने की कोई कोशिश नहीं हुई। अब हालत यह है कि पूरे प्रदेश में 1 लाख 67 हजार राजस्व मामले पेंडिंग हैं। अकेले राजधानी रायपुर में 17 हजार से ज्यादा रुके मामले हैं। अधिकारियों का कोर्ट में नहीं बैठना तो एक कारण हैं, आंदोलनकारी वकीलों की मानें तो राजस्व विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार इसकी बड़ी वजह है। इस समय चल रहे टकराव को एक मौके के रूप में लिया जा सकता है कि राजस्व मामलों के पारदर्शिता के साथ निपटारे के लिये युद्धस्तर पर अभियान चले।
सधा हुआ बयान..
अनुभवी नेताओं का बयान राजनीति सीखने वालों के लिये काम आ सकता है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के ही ताजा बयान को लीजिये, राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत को उन्होंने सलाह दी कि वे सोनिया गांधी से बार-बार मिलकर वक्त जाया न करें, बल्कि कोल ब्लॉक चाहिये तो कोयला मंत्री या मंत्रालय के स्तर पर प्रयास करें। पर कौशिक ने यह साफ नहीं किया कि वे हसदेव में कोल ब्लॉक आवंटित करने के पक्ष में हैं या नहीं। यदि पक्ष में हैं तो केंद्र में सरकार उनकी है, गहलोत की मदद कर सकते हैं।
रागी से बने व्यंजन...
कोदो-कुटकी, रागी कुछ ऐसे उत्पाद हैं जिनमें पानी और देखभाल की जरूरत कम पड़ती है। पर बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिलने के कारण उगाने में किसान दिलचस्पी कम लेते हैं। अब छत्तीसगढ़ सरकार ने मिलेट्स मिशन शुरू किया है। इस बार 1 लाख 17 हजार हेक्टेयर पैदावार का लक्ष्य रखा गया है। यह तस्वीर रायगढ़ की है, जहां स्व-सहायता समूह ने तरह-तरह के फूड रागी से तैयार किये हैं। रायगढ़ कलेक्ट्रेट की कैंटीन में इसका स्वाद लिया जा सकता है।
फर्जी डॉक्टर की 10 साल से तैनाती
सृष्टि हॉस्पिटल कोरबा में फर्जी डॉक्टर बीते 11 साल से सैकड़ों मरीजों की जान से खेलता रहा लेकिन स्वास्थ्य विभाग के स्थानीय अधिकारी आंख मूंद कर बैठे थे। पीडि़त संतोष गुप्ता के धैर्य को भी समझना होगा कि पथरी के ऑपरेशन के नाम पर किडनी निकालने वाले डॉक्टर की शिकायत वह बीते 10 साल से अधिकारियों से कर रहा था। प्रशासन की जब नींद खुली तो आरोपी फर्जी डॉक्टर एसएन यादव फरार हो चुका है। आये दिन स्वास्थ्य अधिकारी झोला छाप डॉक्टर, नॉन रजिस्टर्ड प्रैक्टिशनरों, अवैध पैथोलैब पर कार्रवाई के नाम पर वाहवाही बटोरता है, पर, गांव, कस्बों की ऐसी दुकानों में तो गरीब मरीज यह समझकर ही जाते हैं कि वे डिग्री नहीं रखते। एक नर्सिंग होम, जहां लोग निश्चिंत होकर महंगा होने के बाद भी इलाज के लिये पहुंचते हैं, वहां धोखाधड़ी स्वास्थ्य महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार और लालफीताशाही को उजागर करता है। जब भी किसी निजी अस्पताल में एमबीबीएस डॉक्टरों की नियुक्ति होती है, उसके डिग्री की पुष्टि के लिये एक कॉपी सीएमएचओ को भेजी जाती है। तब कोई जांच नहीं गई जब 2012 में उसकी नियुक्ति की गई। बिहार मेडिकल काउंसिल में उसका रजिस्ट्रेशन तो है, पर एमसीआई और चेन्नई मेडिकल कॉलेज में उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है, जहां से यादव सर्जन की डिग्री लेने का दावा कर रहा था। यादव के अलावा स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी, कर्मचारी जिन्होंने यादव को शह दी उन पर कार्रवाई के लिये न तो जिला प्रशासन ने कोई कदम अब तक उठाया है, न ही स्वास्थ्य विभाग ने।
सृष्टि हॉस्पिटल को भाजपा विधायक व पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर ने जन-सहयोग से शुरू कराया था, पर इसकी देख-रेख उनके तब के करीबी देवेंद्र पांडे करते थे। एक जिम्मेदारी इनकी भी तो बनती है।
मिस्र के सफेद गिद्धों का संरक्षण
गिद्धों को अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने संकटग्रस्त प्राणी के रूप में चिह्नांकित किया है। देसी गिद्धों की संख्या अपने देश में बहुत घट रही है। गिद्धों को पर्यावरण संतुलन व जैव विविधता के संरक्षण के लिये बहुत उपयोगी माना जाता है। पर देसी गिद्धों की प्रजाति अपने यहां लगातार घट रही है। ऐसे में दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक में इनकी लगातार आमद हो रही है। मिस्र के इन गिद्धों का रंग सफेद होता है, इसलिये आम बोलचाल में लोग इसे सफेद गिद्ध ही कहते हैं। दुर्ग कलेक्टर और डीएफओ की ओर से कोशिश हो रही है कि यह इलाका सफेद गिद्धों का स्थायी इलाका बन जाये। गिद्ध मृत जानवरों का मांस खाते हैं। यहां उनके लिये समुचित आहार मिले, इसकी कोशिश भी की जायेगी। ऐसे ऊंचे पौधे लगाने की योजना है, जिनमें घोंसला बनाकर ठहरना आम तौर पर गिद्ध पसंद करते हैं। पंजाब में यह प्रयोग बीते कुछ सालों से चल रहा है। वहां इंसानों के बीच रहकर मिस्र के सफेद गिद्धों का अच्छा प्रजनन देखने को मिला है। धमधा से कुछ आगे बेमेतरा के गिधवा जलाशय में अलग पक्षी विहार बनाने का काम भी चल रहा है।
मोमोज का छत्तीसगढ़ी संस्करण !
एक प्रदेश की खास खाद्य सामग्री का दूसरे प्रदेश में रूपांतरण हो जाना भी लोगों को सांस्कृतिक रूप से बड़ा परेशान करता है। जब दक्षिण भारत का डोसा दिल्ली और पंजाब जाकर पनीर डोसा में तब्दील हो जाता है, तो लोग थोड़ा सा हैरान होते हैं। इसी तरह चीन के बहुत से व्यंजन जब हिंदुस्तान में तरह-तरह से अपने अंदाज में ढाल लिए जाते हैं, तो भी लोग परेशान होते हैं। जब चीन से निकलकर कोरोना वायरस के फैलने की तोहमत लगाई गई, तो सोशल मीडिया पर बहुत से लोगों ने मजेदार पोस्टर बनाकर डाले कि हिंदुस्तान में जिस तरह चाउमीन और दूसरे चीनी व्यंजन बदल दिए गए हैं, उसी से गुस्सा होकर चीन ने कोरोना वायरस भेजा है।
अब छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में धार्मिक मेला लगा है तो वहां पहुंचे ‘छत्तीसगढ़’ अखबार के फोटोग्राफर को छत्तीसगढिय़ा मोमोज की दुकान देखने मिली। अब भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों से लेकर सिक्किम और नेपाल तक का यह व्यंजन छत्तीसगढ़ के अंदाज में ढालकर कैसा बनाया गया है, इसे तो वहां खाने वाले लोग ही बता सकते हैं लेकिन धार्मिक मेले के बीच भी पोस्टर में तो चिकन मोमोज लिखा हुआ दिख रहा है, मौके पर यह है कि नहीं, यह नहीं मालूम। फिलहाल राजधानी रायपुर में कॉलेजों और विश्वविद्यालय के पूरे इलाके को देखें तो मोमोज के दर्जनभर स्टॉल लगे दिखते हैं, यानी यह नेपाली व्यंजन यहां भी लोकप्रिय तो हो ही गया है। जो लोग इसे पहली बार देखते हैं उन्हें यह उबले हुए बिना तले हुए समोसे, या उबली हुई गुझिया जैसा दिखता है।
पत्रकारों को एसपी का साथ...
ग्रामीण अंचलों में प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के साथ सीधे टकराने वाले पत्रकारों के खिलाफ अक्सर बेवजह एफआईआर दर्ज करा दी जाती है। थानेदार भी नेताओं और अधिकारियों के दबाव में देरी नहीं लगाते। कई बार उनकी पोल खोलने वाले पत्रकारों से रंजिश भी होती है इसलिये कार्रवाई में जरूरत से ज्यादा सक्रियता दिखाई जाती है। पर मुंगेली जिले में अब पत्रकार कुछ अधिक खुलकर काम कर सकेंगे। पुलिस अधीक्षक डीआर आचला ने सभी थानेदारों को पत्र लिखकर हिदायत दी है पत्रकारों के खिलाफ शिकायत प्राप्त होने पर सूक्ष्मता के साथ उसकी जांच करें और अपराध दर्ज करने के पहले मेरे संज्ञान में सारी बातें लायें। इसके बगैर एफआईआर बिल्कुल दर्ज नहीं की जाये। एसपी ने यह भी कहा है कि पत्रकारों के माध्यम से ही विभिन्न प्रकार की सूचनायें समय पर समाज को मिलती है। वे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ हैं। कई बार वे अपनी व्यवहारिक समस्यायें बता चुके हैं, वरिष्ठ अधिकारियों से भी दिशा निर्देश मिलता रहा है।
उम्मीद करनी चाहिये कि बाकी जिलों में भी ग्रामीण पत्रकारों और अंशकालीन संवाददाताओं की हिफाजत के लिये पुलिस अधिकारी इस तरह की पहल करेंगे।
अपनों के मुकदमों की वापसी
प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के तीन साल बाद चक्काजाम, धरना, प्रदर्शन, पुतला दहन, नगर बंद करने के राजनीतिक मामलों को वापस लिया जा रहा है। बिलासपुर में सबसे ज्यादा 113 नेताओं को इससे राहत मिलने वाली है, हालांकि केस करीब 2200 लोगों के खिलाफ दर्ज हैं। इन्हीं आंदोलनों का असर यह हुआ कि बिलासपुर विधानसभा सीट 20 साल बाद वापस कांग्रेस के हाथ में आ सकी।
राजनांदगांव भी जो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का क्षेत्र है, 78 नेताओं को राहत मिलेगी, जिनके खिलाफ 13 अलग-अलग मामले दर्ज किये गये थे। हालांकि मामलों की वापसी की अनुशंसा करने वाली टीम पर सीधे कोई राजनीतिक दखल नहीं है। कलेक्टर, एसपी और जिला अभियोजन अधिकारी की समिति इस पर निर्णय ले रही है। जाहिर है कि कुछ तो सिफारिशों पर भी ध्यान उनको देना पड़ रहा होगा। इसीलिये कुछ पार्टी कार्यकर्ता, खासकर युवक कांग्रेस से जुड़े नेता आरोप लगा रहे हैं कि मामलों की वापसी में भी कांग्रेस की गुटबाजी दिखाई दे रही है। वरिष्ठ नेताओं के मामले तो वापस लिये जा रहे हैं, पर असल में सामने रहने वाले युवाओं को अधर में छोड़ा जा रहा है। उनका कहना है कि बिना भेदभाव ऐसे सभी मामले वापस होने चाहिये जो गंभीर प्रकृति के नहीं हैं।
वेलेंटाइन डे के नाम पर ठगी
ऑनलाइन ठगी करने वाले मनोविज्ञानी होते हैं। वे किस नाम पर कब लोगों के एकाउंट से रुपये पार किये जा सकते हैं, इसकी समझ रखते हैं। वेलेंटाइन डे के नाम पर कुछ लोगों के मोबाइल फोन और ई-मेल पर मेसैज आने लगे। तमाम लुभावने ऑफर, बहुत सस्ते में विदेश यात्रा का प्रलोभन। थाइलैंड, यूएई से लेकर पेरिस तक। कई लोग ठगे गये, कुछ की रिपोर्ट पुलिस में की गई है। जगदलपुर में कई शिकायतें दर्ज की है। यहां पुलिस ने लोगों को आगाह किया है कि ऐसी धोखाधड़ी से बचें।
वकील की विवादित पोस्ट
रायगढ़ की घटना के बाद राजस्व अधिकारियों और वकीलों के बीच बढ़ती कलह एक जिले से दूसरे जिले, कस्बों और तहसीलों तक पहुंच चुका है। कल कनिष्ठ राजस्व अधिकारियों ने सरकारी दफ्तरों में ताला लगाया और लिपिकों ने भी जगह-जगह धरना प्रदर्शन किया। वकील भी काली पट्टी लगाकर काम पर हैं। इधर स्टेट बार कौंसिल ने भी मामले में संज्ञान लेते हुए अपनी एक जांच टीम बना दी है और दोषी पाए जाने पर राजस्व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठाने की बात कही है। इधर नायब तहसीलदार और वकीलों के बीच विवाद में एक नया मोड़ ले लिया है। सारंगढ़ के किसी वकील की सोशल मीडिया पर राजस्व अधिकारियों के खिलाफ की गई टिप्पणी को लेकर पुलिस में शिकायत कर दी गई है। कथित रूप से इसमें कहा गया है कि तहसीलदार भिखारी हैं और राजस्व अधिकारी दुष्ट। कहा गया कि वकीलों के पास बड़े-बड़े अपराधियों की कुंडली होती है। पुसौर तहसीलदार ने चक्रधर नगर थाने में लिखित आवेदन देकर आईटी एक्ट के तहत सोशल मीडिया पोस्ट करने वाले अधिवक्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की फरियाद की है।
जिस तरह से जंग लड़ी जा रही है उससे ऐसा लगता है कि वकील और राजस्व अधिकारी भले ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं मगर दोनों काफी वक्त से एक दूसरे से असहज हैं, अब मौका मिला है।
एक खास सरकारी स्कूल
सुदूर बस्तर के तिरिया गांव का हायर सेकेंडरी स्कूल कई मामलों में असाधारण है। यहां एक हॉल में सुरुचिपूर्ण, पर्यावरण अनुकूल बांस का फर्नीचर है। कमरे में पौधे भी दिखाई दे रहे हैं। दीवार पर राजपक्षी पहाड़ी मैना, बाइसन, आदिवासी नृत्य के दृश्य भी उकेरे गये हैं। दोपहर की लंच के बाद यहां छात्रों की ‘संसद’ बैठती है, जिसमें सभी मंत्री होते हैं। इन छात्रों की संख्या 18 होती है, जो अपने कक्षाओं से ही चुने गये हैं। प्रिंसिपल या कोई शिक्षक इस संसद की अध्यक्षता करते हैं। वे स्वास्थ्य, स्वच्छता, खेल, खेती और पढ़ाई पर अपने किये गये कार्यों की रिपोर्ट देते हैं और आगे की योजनायें बनाते हैं। यह सब सरकारी स्कूल में हो रहा है, जहां इस गतिविधि के लिये अलग से कोई फंड भी नहीं है।
वकील की विवादित पोस्ट
रायगढ़ की घटना के बाद राजस्व अधिकारियों और वकीलों के बीच बढ़ती कलह एक जिले से दूसरे जिले, कस्बों और तहसीलों तक पहुंच चुका है। कल कनिष्ठ राजस्व अधिकारियों ने सरकारी दफ्तरों में ताला लगाया और लिपिकों ने भी जगह-जगह धरना प्रदर्शन किया। वकील भी काली पट्टी लगाकर काम पर हैं। इधर स्टेट बार कौंसिल ने भी मामले में संज्ञान लेते हुए अपनी एक जांच टीम बना दी है और दोषी पाए जाने पर राजस्व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठाने की बात कही है। इधर नायब तहसीलदार और वकीलों के बीच विवाद में एक नया मोड़ ले लिया है। सारंगढ़ के किसी वकील की सोशल मीडिया पर राजस्व अधिकारियों के खिलाफ की गई टिप्पणी को लेकर पुलिस में शिकायत कर दी गई है। कथित रूप से इसमें कहा गया है कि तहसीलदार भिखारी हैं और राजस्व अधिकारी दुष्ट। कहा गया कि वकीलों के पास बड़े-बड़े अपराधियों की कुंडली होती है। पुसौर तहसीलदार ने चक्रधर नगर थाने में लिखित आवेदन देकर आईटी एक्ट के तहत सोशल मीडिया पोस्ट करने वाले अधिवक्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की फरियाद की है।
जिस तरह से जंग लड़ी जा रही है उससे ऐसा लगता है कि वकील और राजस्व अधिकारी भले ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं मगर दोनों काफी वक्त से एक दूसरे से असहज हैं, अब मौका मिला है।
एक और धर्म-संसद...
छत्तीसगढ़ में एक और धर्म-संसद शांतिपूर्वक निपट गया। हरिद्वार और रायपुर में रखे गए सम्मेलनों में अल्पसंख्यकों और महात्मा गांधी के खिलाफ उगले गए भाषणों की वजह से काफी बवाल हुआ। आनाकानी के बाद उत्तराखंड पुलिस ने हरिद्वार में विवादित भाषण देने वाले कुछ संतों और वक्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली थी। रायपुर के धर्म संसद में गांधीजी के खिलाफ बातें और नाथूराम गोडसे का अभिनंदन करने वाले कालीचरण के खिलाफ देशद्रोह का अपराध दर्ज कर उनको गिरफ्तार किया गया। इस माहौल के बीच 13 फरवरी को बिलासपुर में गोवर्धन मठ पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद के पहुंचने पर हिंदू-राष्ट्र संगोष्ठी रखने की घोषणा की गई, तो लोगों के कान खड़े हो गए। कांग्रेस विधायक शैलेश पांडे का नाम देखकर इशारा किया गया कि देखिए इस आयोजन में भी रायपुर की तरह कांग्रेसी आगे आ गए हैं।
पर, यह हिंदू राष्ट्र संगोष्ठी हरिद्वार और रायपुर से बिल्कुल अलग थी। यह खुला मंच नहीं था। निश्चलानंद जब भी छत्तीसगढ़ या देश के दूसरे भागों के दौरे पर होते हैं, वह इस तरह की संगोष्ठी, सभा, चर्चा करते ही हैं। अपने भाषणों में वे सनातन धर्म वेद पुराण के उद्देश्यों और मनु संहिता की वे पैरवी करते आए हैं। हिंदू राष्ट्र का उनका अभियान राजनैतिक आंदोलन है, ऐसा भी नहीं देखा गया। न केवल विधायक पांडे बल्कि कई मंत्री, पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री उनसे जुड़े हैं। बिलासपुर के कार्यक्रम में विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने भी भाग लिया। कांग्रेस की एक अन्य विधायक रश्मि सिंह ठाकुर तथा अपेक्स बैंक अध्यक्ष बैजनाथ चंद्राकर भी शामिल थे। विधायक शैलेंद्र पांडे का नाम लेकर इस संगोष्ठी पर सवाल खड़ा किया गया, पर वे तो उत्तराखंड और यूपी में चुनाव प्रचार के कारण भाग ही नहीं ले पाये। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल भी इस कार्यक्रम में नहीं दिखे, जिन पर अपनी नाराजगी चुनाव से पहले निश्चलानंद दिखा चुके हैं। निश्चलानंद इस समय वे छत्तीसगढ़ के 15 दिन के प्रवास पर हैं। कांग्रेस-भाजपा दोनों दल के नेता उनके पास पहुंच रहे हैं।
सीजीपीएससी परीक्षा थी या यूपीएससी?
रविवार को छत्तीसगढ़ के 250 से अधिक परीक्षा केंद्रों में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा रखी गई । दो पालियों की परीक्षा देकर केंद्रों से निकले ज्यादातर अभ्यर्थी इस बात से मायूस नजर आए कि इस बार सवाल बड़े कठिन थे। परंपरा से हटकर छत्तीसगढ़ी में हाना और जनउला पूछा गया। छत्तीसगढ़ी साहित्य की कुछ पंक्तियों का उल्लेख कर लेखकों का नाम पूछा गया। चांग देवी का मंदिर कहां है, लाल बंगला किस जनजाति में प्रचलित है, भारत और पुर्तगाल के बीच समुद्री विरासत को लेकर क्या समझौता हुआ था, दुनिया की नदियों की लंबाई के आधार पर क्रम, देश के बड़े बांधों के निर्माण का क्रम। ये कुछ सवाल यूपीएससी स्तर का दिखाई दे रहे थे। बात यह है कि सामान्य अध्ययन प्रश्न-पत्र के माध्यम से ही मेरिट तय होना है। दूसरे प्रश्न पत्र सी-सेट में 33 प्रतिशत अंक काफी है। यदि सी-सेट बहुत अच्छा भी बना है और प्रारंभिक परीक्षा में न्यूनतम अंक नहीं मिला तो परीक्षार्थी मुख्य परीक्षा से बाहर कर दिया जाएगा।
अब तक सीजीपीएससी की जितनी भी परीक्षायें हुई हैं उन्हें हाईकोर्ट में चुनौती दी जाती रही है। सन् 2003 का मामला भी अभी तक कोर्ट में ही लटका हुआ है। शायद कठिन प्रश्न पत्र लाकर सीजीपीएससी कोई कोशिश कर रही हो, अपनी छवि ठीक करने की।
तगड़े झटके के लिये रहें तैयार..
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल डीजल के दामों में फिर आग लग गई है। वर्षों बाद इस समय कच्चे तेल का दाम 87 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया है। इसके पहले जनवरी 2014 में कच्चे तेल के दाम ने इस कीमत को पार किया था। इसके बावजूद ज्यादातर राज्यों में पेट्रोल डीजल के दाम नहीं बढ़ रहे हैं। पिछले 75 दिनों से कीमत लगभग स्थिर है। जानकार कहते हैं कि यदि ढाई माह पहले के अनुपात में आज डीजल पेट्रोल के दाम तय करें तो यह 125 से 135 रुपये प्रति लीटर में बिकना चाहिये। पर, यूपी सहित 5 राज्यों में हो रहे चुनाव ने इस वृद्धि को रोक रखा है।
जब भी केंद्र सरकार से पेट्रोलियम के दामों पर सवाल उठाया जाता है तो वह कहती है कि पेट्रोलियम कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार भाव के हिसाब से इसका दर घटाती-बढ़ाती है। सरकार के इस में कोई नियंत्रण नहीं है लेकिन जब-जब चुनाव आते हैं यह साफ हो जाता है कि यदि केंद्र सरकार इशारा दे तो पेट्रोलियम कंपनियां घाटे में रहने के बाद भी दाम नहीं बढ़ातीं। उसकी भरपाई चुनाव के बाद करती है। 10 मार्च को जब मतदान के सभी चरणों के मतदान पूरे हो जाएंगे तब एक बड़े झटके के लिए फिर हमें तैयार रहना पड़ेगा।
यह छोटी फिक्र की बात नहीं
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में कल दिन दहाड़े व्यस्त बाजार के बीच जिस तरह एक ट्रैफिक सिपाही को तीन मोटरसाइकिल सवारों ने पीटा और उस पर कूद-कूदकर हमला किया, उसे चाकू दिखाया, यह बात तो सदमा पहुंचाने वाली है ही, लेकिन इससे भी अधिक सदमा पहुंचाने वाली बात यह है कि इस हमले के दौरान आसपास से दूसरे लोग आते जाते रहे, इस हमले को देखते रहे, अपनी गाडिय़ां रोक कर नजारा देखते रहे, लेकिन किसी एक ने भी इस सिपाही की मदद करने की कोशिश नहीं की। गुंडे-मवाली जो ऐसा हमला करते हैं, वे तो पकड़ा गए, लेकिन समाज की लापरवाही और बेफिक्री, उसके पीछे की वजह पकड़ में आना अभी बाकी है। कौन सी वजह है कि ट्रैफिक सिपाही के साथ लोगों की हमदर्दी नहीं थी, या फिर गुंडों का मुकाबला करने की ताकत नहीं थी, या फिर इनका पीछा करके कुछ लोग यही पता लगा लेते कि मारपीट करके भागने वाले ये लोग कौन हैं?
समाज और पुलिस इन दोनों को यह सोचना चाहिए कि इनके बीच इतना बड़ा फासला कैसे है? क्या पुलिस के साथ लोगों की हमदर्दी खत्म हो चुकी है, या फिर लोगों को यह भरोसा ही नहीं है कि गुंडों को रोकने के बाद वे खुद जिंदा रह पाएंगे? यह एक बहुत फिक्र की बात इसलिए है कि न तो हर पुलिस जवान को हथियारबंद किया जा सकता है, और न ही हथियार इस किस्म की मारपीट में किसी को बचा सकते हैं। बचाव तो सिर्फ समाज की भागीदारी से हो सकता है वरना एक अकेला पुलिस जवान कितने लोगों से निपट सकता है, कितने लोगों की मनमानी, गुंडागर्दी को रोक सकता है? इसलिए जनता का भरोसा कैसे जीता जाए और जनता का अपने-आप पर भरोसा कैसे कायम हो सके यह सोचने की जरूरत है, और यह छोटी फिक्र की बात नहीं है।
प्रशासन और वकीलों में तनातनी
रायगढ़ के राजस्व न्यायालय में मारपीट की घटना से उपजी रस्साकशी बढ़ती ही जा रही है। राजस्व अधिकारी और वकील दोनों ही पक्ष अपनी बातों पर अड़े हैं। एडीएम का वकीलों से कहना है कि जिन अधिवक्ताओं ने मारपीट की-उनका सरेंडर करवा दीजिए, मामला खत्म हो जाएगा। पक्षकारों से वसूली वकील हमारे नाम से कर लेते हैं और पक्ष में फैसला नहीं होने पर हम पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा देते हैं। दूसरी ओर वकीलों का कहना है कि हमारी शिकायत भी पुलिस लिखे। वकीलों के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट की जो धारा लगाई गई है वह वापस ली जाए। लिपिक के खिलाफ पहले से ही शिकायत है। नायब तहसीलदार और लिपिक दोनों को हटायें तब आगे बात होगी।
थोड़े दिन पहले कोरबा कलेक्टर के साथ भी वहां के वकीलों की तनातनी हुई थी लेकिन मामले ने तूल नहीं पकड़ा। कलेक्टर ने वकीलों को बुलाकर खेद व्यक्त कर दिया और गलतफहमी हो जाने की बात कही। पर रायगढ़ के मामले में कनिष्ठ राजस्व अधिकारी इस मूड में नहीं दिखाई दे रहे हैं। यहां लिपिक के साथ भी मारपीट का आरोप है। प्रदेश भर के कनिष्ठ राजस्व अधिकारी और लिपिक कर्मचारी संगठन दोनों इस मामले में कूद पड़े हैं। प्रदेश के दूसरे अधिवक्ता संगठनों का अभी ऐसा दबाव नहीं बना है। रायगढ़ के वकीलों ने मांगें नहीं माने जाने तक कोर्ट का काम बंद रखने की घोषणा की है। लंबा खिंचा तो वकीलों के पेशे पर असर पड़ सकता है, पर अधिकारी-कर्मचारियों का क्या है, उनका तो वेतन निकलता ही रहेगा।
रेलवे कोच रेस्टॉरेंट
पश्चिम मध्य रेलवे के जबलपुर मंडल में 5 और भोपाल मंडल में 2 रेस्टॉरेंट कोच तैयार कर लिये गये हैं। भारतीय रेल ने अतिरिक्त राजस्व जुटाने के लिये यह नया प्रयोग किया है। जो कोच अनुपयोगी हो चुके हैं, उन्हें स्टेशन की किसी सुविधाजनक जगह पर खड़ा कर रेस्टॉरेंट की तरह तैयार किया जा रहा है। बिलासपुर रेलवे जोन के अधिकारियों का कहना है कि छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर और नागपुर मंडल में भी यह प्रयोग लागू होगा। यह तस्वीर जबलपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 8 पर बनाये गये रेस्टारेंट की है।
एंग्लो इंडियन विधायक में पेंच
सरकार के अंदरखाने में एंग्लो इंडियन विधायक के मनोनयन पर मंथन चल रहा है। वैसे तो विधानसभा के इसी सत्र में विधायक के मनोनयन की कोशिश थी, लेकिन अब इसमें पेंच भी है। केंद्र सरकार ने दिसंबर-2020 में कानून बनाकर लोकसभा, और विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन विधायक के मनोनयन की व्यवस्था खत्म कर दी है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ में विधायक का मनोनयन हो पाएगा, अथवा नहीं। विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव देवेंद्र वर्मा का मानना है कि छत्तीसगढ़ में एंग्लो इंडियन विधायक के मनोनयन में कोई दिक्कत नहीं है। यदि राज्यपाल को ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में एंग्लो इंडियन सदस्य का प्रतिनिधित्व नहीं है, तो वह सरकार की सिफारिश पर एक विधायक मनोनीत कर सकती हैं। केंद्र का कानून भी मनोनयन में आड़े नहीं आएगा, क्योंकि कानून छत्तीसगढ़ की इस बार की विधानसभा के गठन के बाद बना है। वर्मा का कहना है कि विधायक का मनोनयन विधानसभा के इसी कार्यकाल के लिए है। बाकी विधायकों के साथ-साथ एंग्लो इंडियन विधायक का भी कार्यकाल खत्म हो जाएगा। दूसरी तरफ, एंग्लो इंडियन विधायक को मतदान का भी अधिकार होता है। चूंकि कांग्रेस के पास वैसे ही दो तिहाई बहुमत है। ऐसे में एंग्लो इंडियन विधायक की नियुक्ति पर कोई रूचि नहीं ली गई। अब विधायक के कुछ दावेदारों के बायोडाटा भी सीएम तक पहुंच चुके हैं। सरकार क्या फैसला लेती है, यह देखना है।
5 डे वीक से यह नुकसान भी...
सरकारी दफ्तर बंद, यानी गांव से कस्बों से पहुंचने वाली जिला मुख्यालयों की भीड़ में कमी। सप्ताह में 5 दिन की वर्किंग से जिन लोगों को बड़ा नुकसान हुआ है उनमें ऑटो चालक भी शामिल हैं। बहुत से लोग स्टेशन और बस स्टैंड से अपने काम के लिए ऑटो रिक्शा से ही कलेक्ट्रेट और दूसरे सरकारी दफ्तर पहुंचते हैं। कई सरकारी कर्मचारी भी ऑटो रिक्शा का रोजाना अप-डाउन के लिये इस्तेमाल करते हैं। प्रदेश सरकार ने जब से 5 दिन की वर्किंग डे शुरू की है इनकी कमाई पर असर पड़ा है। कोरोना में किस्त नहीं चुका पाने पर दर्जनों ऑटो चालकों को अपनी वाहन बेचकर दूसरा काम-धंधा पकडऩा पड़ गया था। इसके बाद डीजल के दाम बढ़े तो उन्हें फिर नुकसान हुआ, क्योंकि किराया प्रतिस्पर्धा के चलते नहीं बढ़ा पाये। सुबह 10 बजे दफ्तर नहीं पहुंचने को लेकर के कई जिलों में ताबड़तोड़ कार्रवाई चल रही है। कारण बताओ नोटिस दी जा रही है और वेतन रोके जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में ऑटोचालक ही नहीं बल्कि सरकारी दफ्तरों के भरोसे कैंटीन और स्टेशनरी का काम करने वाले भी मना रहे हैं कि यह नया प्रयोग विफल हो जाये और दफ्तर पहले के जैसे खुलें।
ट्रैफिक कंट्रोल के लिये सडक़ पर डांस
करीब 7 साल पहले इंदौर के ट्रैफिक पुलिस जवान रंजीत सिंह का वीडियो सामने आया था। उनके वीडियो एक करोड़ से अधिक बार देखे गये हैं। देखने वालों ने उनके काम के प्रति जज्बे की बड़ी तारीफ की और उन्हें माइकल जैक्सन कहकर भी पुकारा। अब ऐसा ही कुछ जशपुर जिले के ट्रैफिक जवान पद्मन बरेठ के बारे में कहा जा रहा है। जिला पुलिस से ट्रैफिक में इनको आये 4-6 दिन ही हुए हैं लेकिन चौराहे पर यातायात संभालने की इनकी विशेष स्टाइल ने लोगों का ध्यान खींचा है। इनके भी कई वीडियो सोशल मीडिया पर चल निकले हैं। अमूमन ट्रैफिक जवान के संकेतों की परवाह किए बगैर लोग चौक-चौराहे से सरपट निकलने की कोशिश करते हैं या फिर जाम में फंस जाने पर किसी कोने में मोबाइल फोन पर बतियाते ट्रैफिक जवानों पर गुस्सा करते हैं। पर, पद्मन का डांस करते हुए ट्रैफिक कंट्रोल करना राहगीरों को पसंद आ रहा है। वैसे, जशपुर में कलेक्टोरेट वाली लाइन को छोड़ दें तो शहर के भीतर ट्रैफिक दबाव ज्यादा नहीं है। अफसरों के ध्यान में बात आई तो शायद इनकी सेवायें राजधानी जैसी जगह पर ली जाये, जहां लोगों में खासकर दुपहिया सवारों में ट्रैफिक रूल को तोडऩे की घटनायें ज्यादा दिखाई देती है। पद्मन बरेठ लोगों के लिये प्रेरणा बन सकते हैं कि जो काम मिला है उसे मन से करें। उसमें उत्साह और रूचि दिखायें तो थकान कम लगेगी।