राजपथ - जनपथ
मेडिकल कॉलेज के रास्ते में रोड़ा
सुनने में यह अजीब लगता है पर कोरबा जिले में डॉक्टरों की एक ऐसी लॉबी काम कर रही ह जो यहां मेडिकल कॉलेज खोलने के रास्ते में अड़ंगा डाल रहे हैं। उन्हें इस बात की चिंता है कि यदि मेडिकल कॉलेज के चलते यहां सरकारी और सस्ते इलाज की सुविधा शुरू की गई तो निजी अस्पतालों की प्रैक्टिस मारी जायेगी।
मालूम हो कि केंद्र सरकार ने ऐसे जिलों में मेडिकल कॉलेज खोलने की मंजूरी दी थी, जहां पहले से सरकारी या निजी मेडिकल कॉलेज नहीं है। सन् 2020 में कोरबा के लिये भी घोषणा की गई थी। इस बीच जिला अस्पताल की सुविधायें मेडिकल की पढ़ाई के हिसाब से तो कुछ बढ़ा दी गई हैं, पर विशेषज्ञ चिकित्सकों और स्टाफ की भर्ती रुकी है। भवन का निर्माण नहीं हुआ है। कद्दावर नेताओं के कोरबा जिले में एक बड़ी चिकित्सा सुविधा से आम लोग वंचित हैं।
आदिवासियों पर दर्ज मुकदमे
हाल ही में कांग्रेस नेताओं के साधारण मामलों के मुकदमे वापस लेने की घोषणा की गई। इसकी प्रक्रिया चल रही है। कलेक्टर, एसपी और जिला अभियोजन अधिकारी की जिलों में समितियां बनी हैं, जो ऐसे प्रकरणों की सिफारिश करेगी, जिन्हें वापस लिए जा सकें। सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने वादा किया था कि बस्तर की जेलों में बंद आदिवासियों के मुकदमे वापस लिये जाएंगे। सरकार ने इसके लिये सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आनंद पटनायक की अध्यक्षता में एक समिति भी बनाई थी। पर आदिवासियों की रिहाई का सिलसिला बहुत धीमी गति से चल रहा है। सरकारी आंकड़ा है कि अब तक 900 से कुछ अधिक आदिवासी ही रिहा किये जा सके हैं। जिन के खिलाफ अपराध दर्ज हैं उन आदिवासियों की संख्या 23 हजार है। इनमें जिनको रिहा किया जा सकता है, या मुकदमे वापस लिये जा सकते हैं, उनकी संख्या 16 हजार के पास है। ज्यादातर मामले गंभीर भी नहीं हैं। कई मामलों में वर्षों से ट्रायल नहीं हो पाया है। आदिवासी बिना सुनवाई के ही लंबे समय से जेल में बंद है। भाजपा तो सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा ही रही है, पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम जैसे नेता भी पूछ रहे हैं कि आखिर इनकी रिहाई और मुकदमे वापस लेने में कौन सी अड़चन आ रही है।
ऑटो का नाटो से रिश्ता
नाटो का ऑटो रिक्शा से क्या रिश्ता हो सकता है, पर कल्पना की उड़ान कहीं भी भरी जा सकती है। रूसी हमले में यूक्रेन को नाटो देशों से उम्मीद के अनुरूप मदद नहीं मिलने का यहां मजाक बनाया गया है। मुसीबत में नाटो नहीं ऑटो काम आता है। सोशल मीडिया पर इस पर टिप्पणी में एक ने लिख मारा- भाटो (जीजा) भी काम आता है।