राजपथ - जनपथ
यह तो अन्याय है
बिलासपुर में विकास कार्यों के लोकार्पण कार्यक्रम में पहले सीएम भूपेश बघेल के साथ मंच साझा करने, और फिर बाद में ट्वीटर पर इसकी आलोचना कर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ट्रोल हो गए। सोशल मीडिया में भाजपा के कार्यकर्ता ही कौशिक की खूब खिंचाई कर रहे हैं।
शनिवार को लोकार्पण कार्यक्रम में कौशिक, सीएम से गपियाते देखे जा रहे थे। सीएम के साथ उनकी हंसती मुस्कुराती तस्वीर सोशल मीडिया में छाई रही। कार्यक्रम निपटने के बाद कौशिक के तेवर बदल गए। उन्होंने ट्वीट किया कि भाजपा के कार्यकाल में शुरू हुए विकास कार्यों का भूपेश बघेल सिर्फ फीता काटना, और उद्घाटन का ही कार्य कर रहे हैं। कांग्रेस सरकार की इन तीन वर्षों में विकास कार्यों की कोई उपलब्धि नहीं है। बिलासपुर को कोई सौगात नहीं है, और न ही विकास कार्यों की कोई घोषणा है। बिलासपुर के साथ अन्याय क्यों ?
इसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने ट्वीटर पर ही उनकी खिंचाई कर दी। एक कार्यकर्ता देवेंद्र गुप्ता ने ट्वीट किया कि गजब करते हो कौशिक जी ! भूपेश बघेल जी के कथित विकास कार्यों के गवाह आप खुद उनके साथ कार्यक्रमों में मौजूद होकर बन रहे हैं। आपको लगता है वो अन्याय कर रहे हैं, तो आपको मंच साझा नहीं करना था, बल्कि वहीं धरने पर बैठ जाना चाहिए था। तब संदेश जाता कि आप वाकई दमदार नेता प्रतिपक्ष हैं। पर आपने ऐसा नहीं किया। क्योंकि आपका मामला सब सेट है। सरकार में आपकी भी हिस्सेदारी है।
जनाब, ये दिखावे का ट्वीट कर जनता और भाजपा कार्यकर्ताओं के आंखों में धूल झोंकना बंद करें। सबको पता है कि आप नेता प्रतिपक्ष नहीं, बल्कि भूपेश सरकार में 14वें मंत्री जैसी भूमिका में है। इस सरकार के निर्बाध तीन साल में आपके निकम्मेपन की भूमिका भी अहम रही है। कई और भाजपा कार्यकर्ताओं ने कौशिक को खूब भला बूरा कहा है। बात यही खत्म नहीं हो रही है। कई नेताओं ने कार्यक्रम का वीडियो क्लीप पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं को भेजा है, और यह कह दिया कि कौशिक के रहते प्रदेश में भाजपा की राह कठिन है।
सद्भावना, और मुसीबत
सरकार पूर्व सीएस की पत्नी को संविदा नियुक्ति देने, और फिर उसका संविलियन कर घिर सकती है। सुनते हैं कि भाजपा के कई नेताओं ने नियुक्ति संबंधी सारे दस्तावेज निकाल लिए हैं। चर्चा यह है कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने उदारता दिखाते हुए नियमों को ताक पर रखकर पूर्व सीएस की चिकित्सक पत्नी को नियुक्ति की अनुशंसा कर दी थी। अब उनके कामकाज को लेकर कई तरह की शिकायतें आ रही है, इसलिए मामला बढ़ गया है। रोजगार के मुद्दे पर भाजपा ने विधानसभा सत्र में सरकार को घेरने की तैयारी कर रखी है। ऐसे में यह मुद्दा भी सदन में गरमा सकता है। टीएस सद्भावना दिखाकर मुश्किल में घिर सकते हैं।
विकास का एक उदास चेहरा...
प्रदेश में अनेक जिले बने, कई विकासखंड मुख्यालय बने पर असंतुलन बना हुआ है। सरगुजा संभाग का कंदनई ऐसा गांव है जो चारों ओर घाट-पहाड़ और नदियों से घिरा है। इसका विकासखंड मुख्यालय मैनपाट 70 किलोमीटर दूर है। वे नदी पार कर पैदल बतौली पहुंचते हैं फिर बस चढक़र मैनपाट जाते हैं। आने-जाने में ही 2 दिन लग जाते हैं।
गांव के युवकों ने 2 साल पहले बतौली पैदल चलने के लिए श्रमदान कर कठिन मेहनत के साथ सडक़ बनाई लेकिन गिट्टी-पत्थर के अभाव में बारिश आते ही खराब हो गई। यहां के लिए बहुत दिनों से नई सडक़ मांगी जा रही थी। मंत्री अमरजीत भगत ने इसकी मंजूरी दी लेकिन ठेकेदार सडक़ के लिए पहाड़ी और घाट को पार करने के लिए तैयार नहीं है। डिजाइन के विपरीत यह सडक़ दूसरी ओर मोड़ दी गई। पिछले एक सप्ताह से कंदनई के ग्रामीण धरना दे रहे हैं, पर उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। उन्हें किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं मिल रहा है। क्या जरूरी है जिले और ब्लॉक के लिए नेताओं के दबाव में ही ऐसे फैसले लिए जाने चाहिए?
इतनी साफगोई भी ठीक नहीं
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कह दिया कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में तीसरे और चौथे नंबर के लिए लड़ रही है। मुकाबला कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच है। हर कोई जानता, मानता है की सत्ता की दौड़ में कांग्रेस पीछे है, पर वह ताकत से लड़ रही है। इस बार प्रियंका गांधी की वजह से पार्टी में अलग तरह का जोश है।
तीसरे-चौथे पोजिशन की बात सही भी हो तो यह बात बोलने के लिए दूसरों पर छोड़ देना चाहिए। अपनी ही पार्टी के लिए सिंहदेव का यह आकलन छत्तीसगढ़ के उन कार्यकर्ताओं-नेताओं को मायूस कर सकता है जो दौड़-दौड़ कर उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार के लिए जा रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार वहां सभाएं ले रहे हैं। सिंहदेव को उत्तराखंड की कमान सौंपी गई है। यह नहीं बताया कि वहां कांग्रेस की सरकार बन सकती है या नहीं। इसके पहले वे असम के चुनाव में प्रभारी बनाए गए थे। असम में कांग्रेस को बुरी पराजय मिली। मगर मेहनत करना तो उन्होंने वहां छोड़ा नहीं था। जिन लोगों को लग रहा है कि यूपी चुनाव के बाद राज्य के नेतृत्व में कोई बदलाव होने वाला है, इस बयान ने उनको और पीछे कर दिया।
पत्थर पर उगाए फूल
जब हम दरभा घाटी का नाम लेते हैं तो 25 मई 2013 की नरसंहार के तरफ ही ध्यान जाता है। पर यहां महिलाओं ने अपनी मेहनत से इतिहास रच दिया है। इन्होंने एक सहायता समूह बनाया और पपीते की हाईटेक खेती शुरू की। केवल 7 महीने में इन्होंने 10 एकड़ जमीन पर 30 लाख रुपए का पपीता उगाया। खास यह कि उन्होंने चट्टानी जमीन पर यह काम किया, जबकि पपीते के लिये भरपूर पानी चाहिये। इनके कौशल और परिश्रम की दिल्ली में हाल ही में रखे गए फ्रेश इंडिया शो में भी सराहा गया। कौन कहता है कि खेती लाभकारी व्यवसाय नहीं है, बस जोखिम भरे प्रयोग की जरूरत है।