राजपथ - जनपथ
फर्जी डॉक्टर की 10 साल से तैनाती
सृष्टि हॉस्पिटल कोरबा में फर्जी डॉक्टर बीते 11 साल से सैकड़ों मरीजों की जान से खेलता रहा लेकिन स्वास्थ्य विभाग के स्थानीय अधिकारी आंख मूंद कर बैठे थे। पीडि़त संतोष गुप्ता के धैर्य को भी समझना होगा कि पथरी के ऑपरेशन के नाम पर किडनी निकालने वाले डॉक्टर की शिकायत वह बीते 10 साल से अधिकारियों से कर रहा था। प्रशासन की जब नींद खुली तो आरोपी फर्जी डॉक्टर एसएन यादव फरार हो चुका है। आये दिन स्वास्थ्य अधिकारी झोला छाप डॉक्टर, नॉन रजिस्टर्ड प्रैक्टिशनरों, अवैध पैथोलैब पर कार्रवाई के नाम पर वाहवाही बटोरता है, पर, गांव, कस्बों की ऐसी दुकानों में तो गरीब मरीज यह समझकर ही जाते हैं कि वे डिग्री नहीं रखते। एक नर्सिंग होम, जहां लोग निश्चिंत होकर महंगा होने के बाद भी इलाज के लिये पहुंचते हैं, वहां धोखाधड़ी स्वास्थ्य महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार और लालफीताशाही को उजागर करता है। जब भी किसी निजी अस्पताल में एमबीबीएस डॉक्टरों की नियुक्ति होती है, उसके डिग्री की पुष्टि के लिये एक कॉपी सीएमएचओ को भेजी जाती है। तब कोई जांच नहीं गई जब 2012 में उसकी नियुक्ति की गई। बिहार मेडिकल काउंसिल में उसका रजिस्ट्रेशन तो है, पर एमसीआई और चेन्नई मेडिकल कॉलेज में उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है, जहां से यादव सर्जन की डिग्री लेने का दावा कर रहा था। यादव के अलावा स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी, कर्मचारी जिन्होंने यादव को शह दी उन पर कार्रवाई के लिये न तो जिला प्रशासन ने कोई कदम अब तक उठाया है, न ही स्वास्थ्य विभाग ने।
सृष्टि हॉस्पिटल को भाजपा विधायक व पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर ने जन-सहयोग से शुरू कराया था, पर इसकी देख-रेख उनके तब के करीबी देवेंद्र पांडे करते थे। एक जिम्मेदारी इनकी भी तो बनती है।
मिस्र के सफेद गिद्धों का संरक्षण
गिद्धों को अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने संकटग्रस्त प्राणी के रूप में चिह्नांकित किया है। देसी गिद्धों की संख्या अपने देश में बहुत घट रही है। गिद्धों को पर्यावरण संतुलन व जैव विविधता के संरक्षण के लिये बहुत उपयोगी माना जाता है। पर देसी गिद्धों की प्रजाति अपने यहां लगातार घट रही है। ऐसे में दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक में इनकी लगातार आमद हो रही है। मिस्र के इन गिद्धों का रंग सफेद होता है, इसलिये आम बोलचाल में लोग इसे सफेद गिद्ध ही कहते हैं। दुर्ग कलेक्टर और डीएफओ की ओर से कोशिश हो रही है कि यह इलाका सफेद गिद्धों का स्थायी इलाका बन जाये। गिद्ध मृत जानवरों का मांस खाते हैं। यहां उनके लिये समुचित आहार मिले, इसकी कोशिश भी की जायेगी। ऐसे ऊंचे पौधे लगाने की योजना है, जिनमें घोंसला बनाकर ठहरना आम तौर पर गिद्ध पसंद करते हैं। पंजाब में यह प्रयोग बीते कुछ सालों से चल रहा है। वहां इंसानों के बीच रहकर मिस्र के सफेद गिद्धों का अच्छा प्रजनन देखने को मिला है। धमधा से कुछ आगे बेमेतरा के गिधवा जलाशय में अलग पक्षी विहार बनाने का काम भी चल रहा है।
मोमोज का छत्तीसगढ़ी संस्करण !
एक प्रदेश की खास खाद्य सामग्री का दूसरे प्रदेश में रूपांतरण हो जाना भी लोगों को सांस्कृतिक रूप से बड़ा परेशान करता है। जब दक्षिण भारत का डोसा दिल्ली और पंजाब जाकर पनीर डोसा में तब्दील हो जाता है, तो लोग थोड़ा सा हैरान होते हैं। इसी तरह चीन के बहुत से व्यंजन जब हिंदुस्तान में तरह-तरह से अपने अंदाज में ढाल लिए जाते हैं, तो भी लोग परेशान होते हैं। जब चीन से निकलकर कोरोना वायरस के फैलने की तोहमत लगाई गई, तो सोशल मीडिया पर बहुत से लोगों ने मजेदार पोस्टर बनाकर डाले कि हिंदुस्तान में जिस तरह चाउमीन और दूसरे चीनी व्यंजन बदल दिए गए हैं, उसी से गुस्सा होकर चीन ने कोरोना वायरस भेजा है।
अब छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में धार्मिक मेला लगा है तो वहां पहुंचे ‘छत्तीसगढ़’ अखबार के फोटोग्राफर को छत्तीसगढिय़ा मोमोज की दुकान देखने मिली। अब भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों से लेकर सिक्किम और नेपाल तक का यह व्यंजन छत्तीसगढ़ के अंदाज में ढालकर कैसा बनाया गया है, इसे तो वहां खाने वाले लोग ही बता सकते हैं लेकिन धार्मिक मेले के बीच भी पोस्टर में तो चिकन मोमोज लिखा हुआ दिख रहा है, मौके पर यह है कि नहीं, यह नहीं मालूम। फिलहाल राजधानी रायपुर में कॉलेजों और विश्वविद्यालय के पूरे इलाके को देखें तो मोमोज के दर्जनभर स्टॉल लगे दिखते हैं, यानी यह नेपाली व्यंजन यहां भी लोकप्रिय तो हो ही गया है। जो लोग इसे पहली बार देखते हैं उन्हें यह उबले हुए बिना तले हुए समोसे, या उबली हुई गुझिया जैसा दिखता है।