राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : पहली महिला डीएफओ का महत्व
23-Feb-2022 6:29 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : पहली महिला डीएफओ का महत्व

पहली महिला डीएफओ का महत्व

वन महकमे में हुए पहली प्रशासनिक सर्जरी में राजनांदगांव के लिए डीएफओ के तौर पर सलमा फारूखी की नियुक्ति कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहली दफा डीएफओ के पद पर राजनांदगांव में महिला अफसर को पदस्थ किया गया है। 2008 बैच की राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर आईएफएस बनी सलमा को राजनांदगांव में काम करने का पुराना प्रशासनिक अनुभव भी है। 2012-13 के दौरान वह एसडीओ भी रही है। सलमा कटघोरा वन मंडलाधिकारी शमा फारूखी की बहन हैं । पिछले दिनों शमा कोरबा कलेक्टर रानू साहू के साथ प्रशासनिक मतभेद के चलते सुर्खियों में रहीं। उनकी वन मुख्यालय में वापसी करने के साथ सरकार ने सलमा को राजनांदगांव जैसे बड़े जिले में डीएफओ की जिम्मेदारी सौंपी है। वैसे पिछले  कुछ सालों से राजनांदगांव में डीएफओ औसतन सालभर ही पदस्थ रहे हैं। पंकज राजपूत, प्रणय मिश्रा जैसे अफसरों को जल्द ही अरण्य भवन बुला लिया गया। 2011 बैच के गुरूनाथन एन. भी राजनंादगांव में बमुश्किल सालभर ही टिक पाए। महिला डीएफओ की तैनाती से वन महकमे के आला अफसर उनके कार्यशैली की जानकारी ले रहे हैं। सलमा फारूखी की पोस्टिंग के पीछे राजनीतिक कारण भी गिनाए जा रहे हैं। यहां यह भी गौर करने लायक बात यह है कि दुर्ग सीसीएफ के पद पर एक महिला अफसर जिम्मा सम्हाल रही है।

एक उलट भूमिका वाली तस्वीर

बात अपने छत्तीसगढ़ की हो या देश के किसी दूसरे राज्य की। यदि किसी महिला प्रत्याशी को मजबूरी में चुनाव लड़ाना है तो साथ में उसके पति, पिता या किसी संबंधी की तस्वीर भी प्रचार सामग्री में मिलती है। पंचायत चुनाव में आम है, लोकसभा, विधानसभा चुनावों में भी कई बार यह दिखाई देता है। मतदाता सूची में नाम के साथ बीच में पति का नाम भी डाला जाता है। जीत जाने के बाद पति या पिता का ही दबदबा बना रहता है। उन्हें भ्रम होता है कि महिला अपने दम पर नेतागिरी नहीं कर सकती। चुनाव जीतना और फिर जीते हुए पद को संभालना, भोगना पति या पिता का ही काम है।

पर पंजाब विधानसभा चुनाव के फिरोजपुर (ग्रामीण) का यह पोस्टर सबसे हटकर है। यहां सीपीआई (लिबरेशन) के प्रत्याशी सुरेश कुमार हैं। पोस्टर में उन्होंने बराबर आकार में अपनी पत्नी परमजीत कौर को जगह दे रखी है। दोनों ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता हैं। सुरेश कुमार ईमानदारी से मानते हैं कि इलाके में उनकी पत्नी ज्यादा लोकप्रिय हैं। वे दस साल से भी ज्यादा समय से दलितों, पिछड़ों के लिये काम कर रही हैं। मैं तो निजी बस में कंडक्टर था। दो साल ही हुए हैं, राजनीति में आए।

उम्मीद करनी चाहिये कि इस शुरुआत की बयार दूसरे शहरों और राज्यों में भी पहुंचेगी। अपने यहां छत्तीसगढ़ में भी, जहां पर कि निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधि के सरकारी दफ़्तर में उनके पति बैठकर जुआ खेलते पकड़ाते हैं।

पुरंदेश्वरी के तीखे तेवर...

संगठनात्मक ढांचे में कांग्रेस से कई कदम आगे रहने वाली भाजपा की गतिविधियां मंद पड़ी है। भाजपा की प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी बस्तर के दौरे पर थीं। उन्होंने रायपुर शहर जिला इकाई की वहीं से वर्चुअल बैठक ली। पता चला कि बूथ कमेटियां सिर्फ 50 फीसदी ही बन सकी हैं। राजधानी में ही यह हाल है। बाकी जिलों का आंकड़ा अभी सामने आना बाकी है। वैसे तीन दिन के बस्तर दौरे के दौरान भी उन्होंने पाया कि यहां भी जिलों में बूथ कमेटियां बनाने की रफ्तार धीमी ही है। पुरंदेश्वरी के तेवर तीखे रहे। उन्होंने जिला अध्यक्ष और पदाधिकारियों की क्लास ली। कमेटियां जल्द बनाने कहा। याद होगा, इसके पहले भाजपा की युवा मोर्चा, महिला कांग्रेस और दूसरी इकाईयों का गठन भी तय समय के काफी बाद तक नहीं हो पाया था। बार-बार प्रदेश प्रभारी ने नाराजगी जताई तब जाकर यह पूरा हो सका। कहीं ऐसा तो नहीं कि पुरंदेश्वरी के तेवर से प्रदेश के बड़े भाजपा नेता असहज महसूस कर रहे हैं और उन्हें सहयोग नहीं करना चाहते? या फिर लगता है कि जो तरीका उनका है वह छत्तीसगढ़ भाजपा में फिट नहीं बैठता? 

वर्चुअल मीटिंग में रिश्ता तय करना..

सुकमा के किसी लडक़ी के लिये जशपुर के लडक़े का विवाह प्रस्ताव आया। शादी-ब्याह का मामला था, सो एक दो लोग जाकर देख आयें यह ठीक नहीं था। घर कैसा है, परिवार के लोग कैसे हैं। यह सब देखने समझने के लिये पांच-छह लोगों को तो जाना चाहिए। गये और रिश्ता नहीं जमा तो क्या होगा? डीजल-पेट्रोल और टैक्सी भाड़ा में 15-20 हजार फूंक देना व्यर्थ। तब, दोनों पक्षों ने एक तरीका आजमाया। इंटरनेट के जरिये वर्चुअल मुलाकात रखी गई। दोनों पक्षों से 10-12 लोग शामिल हो गए। सबने एक दूसरे से बात कर ली। व्यवहार समझ लिया। कैमरे से ही पूरा घर, एक दूसरे का रहन-सहन देख लिया। लडक़ी को कई बार असहज लगता है कि भावी दूल्हे के साथ उसे अलग बिठाया जाये। शर्माते हुए चाय-नाश्ता लेकर आये। फिर बात नहीं जमी तो और भी बुरा। इस मामले में वर्चुअल मीटिंग के बाद वार्तालाप का सेशन लडक़ी, लडक़े के बीच अलग से रख लिया गया। कोरोना काल ने वर्चुअल बैठक, सभा, सेमिनार की तरफ लोगों का झुकाव बढ़ाया। पर लगता है धीरे-धीरे यह चलन में आ जायेगा।

लगे हाथ, इस माह की शुरुआत में एक खबर आई थी कि अभिजीत और संस्कृति नाम के एक भारतीय जोड़े ने थ्री डी वर्चुअल शादी की, जिसमें 500 मेहमान भी शामिल हुई। यह भारत में ऐसी पहली शादी थी। जोड़े ने ही नहीं मेहमानों ने भी डिजिटल अवतार लिया। यह तरीका मेटावर्स कहा जाता है। फेसबुक आगे चलकर यही होने वाला है। हालांकि इस विवाह का फिजिकल इवेंट भोपाल में बाद में हुआ। मतलब, तकनीक की एक सीमा ही है, फीलिंग तो आमने-सामने मिलने से ही आती है। 

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