राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : भगत अब तक नाराज
04-Nov-2023 4:35 PM
राजपथ-जनपथ : भगत अब तक नाराज

भगत अब तक नाराज

जशपुर से टिकट नहीं मिलने से पूर्व मंत्री गणेश राम भगत नाराज चल रहे हैं। उनके सैकड़ों समर्थक, रायपुर में दो दिन तक कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में धरने पर बैठे थे। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया उन्हें किसी तरह समझा बुझाकर जशपुर वापस भेजने में सफल रहे। भगत से बातचीत भी की, लेकिन उनकी नाराजगी बरकरार है। 

बताते हैं कि भगत प्रचार-प्रसार से दूरी बनाए हुए हैं। उनके कट्टर समर्थक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। भगत जशपुर के बड़े हिन्दूवादी नेता हैं, और वो धर्मांतरण के मुद्दे के खिलाफ जनजाति सुरक्षा मंच बनाकर काम कर रहे हैं। 

भगत ईसाई बने आदिवासियों को आरक्षण देने के खिलाफ मुहिम भी चलाई है। और अब जब कोप भवन में बैठे हैं, तो जशपुर जिले की तीनों सीट जशपुर, कुनकुरी और पत्थलगांव में भाजपा प्रत्याशियों की राह कठिन हो गई है। वैसे भी तीनों सीट कांग्रेस के पास है। जबकि जशपुर जिले की सीटों पर भाजपा का दबदबा रहा है। मगर इस बार भगत की नाराजगी से भाजपा की तीनों सीटों को कब्जा करने के रणनीति पर पानी फिरता दिख रहा है। हालांकि पार्टी के रणनीतिकार भगत को भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार के लिए तैयार करने में जुटे हुए हैं। देखना है आगे क्या होता है।

कई ने राहत की साँस ली 

सीएम भूपेश बघेल का ट्वीट-प्रमोद को उन्होंने क्या दिखाया? फिर प्रमोद ने उन्हें क्या बताया? काफी चर्चा में रहा। उनके ट्वीट को लेकर काफी उत्सुकता रही, और अंदाजा लगाया जा रहा था कि कांग्रेस किसी  स्टिंग ऑपरेशन का खुलासा कर सकती है। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ, और शाम को भाजपा के घोषणा पत्र जारी होने के बाद कांग्रेस ने 'देख रहा है प्रमोद' के कई वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किए, जिसमें राज्य सरकार की योजनाओं, और कांग्रेस सरकार पर भरोसे की बात बताई गई थी। ये वीडियो वेब सीरीज 'पंचायत' के कलाकार के साथ शूट किए गए। 

दिलचस्प बात यह है कि प्रमोद नाम के कांग्रेस नेताओं से पूछताछ हो रही थी। कुछ लोग प्रमोद दुबे का बृजमोहन अग्रवाल के साथ कोई स्टिंग ऑपरेशन होने की बात कह रहे थे तो कुछ लोग बलौदाबाजार के विधायक प्रमोद शर्मा से संपर्क कर वस्तुस्थिति की जानकारी लेने की कोशिश कर रहे थे।

प्रमोद कुछ दिन पहले ही कांग्रेस में आए हैं, और उनके पहले भाजपा में जाने की अटकलें लगाई जा रही थी। प्रमोद खुद इस तरह के संकेत दे चुके थे। चर्चा यह भी रही कि उनसे जुड़ा कोई स्टिंग सामने आ सकता है। यही नहीं, यूपी के नेता और छत्तीसगढ़ के मीडिया इंचार्ज प्रमोद तिवारी को लेकर भी कुछ इसी तरह के कयास लगाए जा रहे थे। 

यही नहीं, कुछ कांग्रेस नेता तो किसी प्रमोद सिन्हा नाम के ईडी अफसर का स्टिंग होने की चर्चा कर रहे थे। कुल मिलाकर प्रमोद नाम के नेता पूछताछ से काफी परेशान रहे, और जब सब कुछ साफ हुआ तो कई 'प्रमोद'  ने राहत की सांस ली। 

घोषणा करके फंस गए प्रत्याशी

भाजपा का चुनावी घोषणा पत्र आ चुका है। इसमें 3100 रुपए में धान खरीदी के साथ ही और भी घोषणाएं हैं। लेकिन कांग्रेस के कर्जमाफी के वादे के बाद भाजपा नेता दावे कर रहे थे, हमारा घोषणा पत्र राकेट होगा। 
इस चक्कर में भाजपा के कुछ प्रत्याशियों ने बढ़ चढ़ कर बातें जनसभाओं में भी कर दी थी। 

कवर्धा जिले के एक प्रत्याशी ने तो यहां तक कह दिया था कि राष्ट्रीयकृत बैंकों के दो लाख के कर्ज हम माफ करेंगे। इसका वीडियो दूसरे जिलों में भी वायरल हुआ। लोगों में चर्चा का विषय बना रहा कि यह तो वाकई में रॉकेट होगा। पर जब घोषणा पत्र आया तो रॉकेट लांचिंग पैड से गायब था। अब प्रत्याशी चेहरा छिपाते फिर रहे हैं।

टिकट देने से परहेज, गानों से नहीं...

मतदाताओं को लुभाने में लोक कलाकारों की बड़ी भूमिका होती है। इनकी लोकप्रियता की वजह से कई राजनीतिक दल इन्हें टिकट भी देते हैं पर कई बार इसी के चलते चुनाव जीत भी जाते हैं। सन् 2018 के चुनाव में दो लोक गायकों, जांजगीर-चांपा जिले की पामगढ़ सीट से गोरेलाल बर्मन को तथा उससे लगी हुई सीट मस्तूरी से दिलीप लहरिया को कांग्रेस ने टिकट दी थी। दोनों चुनाव हार गए थे। फर्क यह था कि लहरिया ने विधायक रहते हुए चुनाव लड़ा था। बर्मन बसपा प्रत्याशी इंदु बंजारे से करीब 3000 मतों से हार गए थे। लहरिया मस्तूरी सीट से बसपा से भी नीचे उतरकर तीसरी पोजिशन पर थे और करीब 14 हजार वोटों से हार गए थे। देखा जाए तो बर्मन प्रदर्शन अच्छा ही था क्योंकि पामगढ़ क्षेत्र बसपा का गढ़ रहा है। भाजपा यहां तीसरे नंबर पर थी। पर इस बार कांग्रेस ने इस बार बर्मन को टिकट नहीं दी और लहरिया को फिर मौका दिया है। बर्मन को भेदभाव बर्दाश्त नहीं हुआ, उनकी नाराजगी फूट पड़ी। पिछले सप्ताह उन्होंने कांग्रेस से 20 साल पुराना नाता तोड़ लिया। वे जेसीसी (जोगी) में शामिल हो गए और मैदान में उतर गए हैं। कांग्रेस ने उनकी कला का सन् 2018 में सही इस्तेमाल किया। कांग्रेस की चुनावी गाड़ी में एक गाना खूब बजा- छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा, गरूआ, घुरुवा, बारी...। इसके अलावा भी कई गीत हैं, जो उन्होंने खुद लिखे भी हैं।

पार्टी छोड़ते ही कांग्रेस नेताओं को बर्मन ने पत्र लिखकर कहा कि वे उनके गानों का चुनाव में इस्तेमाल बंद करें। पार्टी की ओर से शायद कोई जवाब नहीं आया और गानों का इस्तेमाल भी बंद नहीं हुआ। इसलिए बर्मन ने अब दूसरी चि_ी लिखी है कि यदि उनके गानों को कांग्रेस ने बजाना बंद नहीं किया तो वे कोर्ट जाएंगे। अतीत बर्मन का पीछा कर रहा है, चिंता जायज है। बाकी सीटों पर हो सकता है फर्क न पड़े मगर, पामगढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी के लिए ये गाने बजेंगे तो बर्मन को नुकसान तो हो ही सकता है।

निष्ठावान कांग्रेसी और दलबदलू..

कांग्रेस और भाजपा से बगावत कर दूसरे दलों का दामन पकडक़र चुनाव मैदान में उतरने वाले बहुत से उम्मीदवार खुद भी चुनाव जीत सकने के प्रति आश्वस्त नहीं होंगे, फिर भी वे इसलिये उतर गए हैं ताकि उनकी टिकट काटकर जिसे मौका दिया गया, उनको निपटा सकें। पर दल बदलकर मैदान पर उतरने वाले कई प्रत्याशी बहुत गंभीरता से लड़ रहे हैं। सन् 2013 में विधायक धर्मजीत सिंह ने लोरमी सीट से कांग्रेस से चुनाव लड़ा था। जीत नहीं पाए। उसके पहले कांग्रेस से विधायक रह चुके थे। सन् 2018 में उन्होंने जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) की टिकट पर यहीं से चुनाव लड़ा। अब इस बार वे भाजपा की टिकट पर तखतपुर विधानसभा क्षेत्र से मैदान में हैं। यहां से विधायक रश्मि सिंह को फिर टिकट दी गई है। पिछला चुनाव उन्होंने 2900 के अंतर से जीता था। रिपोर्ट कार्ड दुरुस्त नहीं था। चर्चा यह थी कि यहां से प्रत्याशी बदल लिया जाएगा लेकिन टिकट सिफारिश से बच गई। पिछले चुनाव में जेसीसी से ही उनका मुकाबला था। धर्मजीत सिंह उसी पार्टी को छोडक़र मैदान में हैं। पिछली बार की मामूली अंतर से हुई जीत और जेसीसी मतदाताओं पर धर्मजीत सिंह के प्रभाव के अनुमान को देखते हुए कांग्रेस ने प्रचार का तरीका बदल लिया है। रश्मि सिंह और उनके समर्थक याद दिला रहे हैं कि धर्मजीत सिंह ने कांग्रेस से राजनीति शुरू की। पार्टी ने ही विधायक बनाया, फिर उन्होंने मौका देख पार्टी छोड़ी, जेसीसी में चले गए। अब जेसीसी छोडक़र भाजपा में आ गए। तो ऐसे बार-बार दल बदलने वालों से सावधान रहें। दूसरी तरफ अपनी पृष्ठभूमि याद दिला रही हैं कि उनके पिता और ससुर दोनों यहां से विधायक रहे। कभी टिकट मिली, कभी नहीं मिली। कभी हारे, कभी जीते। पर 50 साल से कांग्रेस से नाता नहीं तोड़ा।  
इधर धर्मजीत सिंह को भाजपा कार्यकर्ताओं का साथ मिल रहा है, जो दावेदार थे, वे भी साथ दिख रहे है। कांग्रेस और जेसीसी की पृष्ठभूमि के चलते कुछ पुराने लोग भी उनके साथ आ गए हैं।

चुनाव बहिष्कार में प्रयोग ..

चुनाव प्रचार के लिए नये-नये तरीके इस्तेमाल किये जाते तो हैं पर बस्तर में चुनाव बहिष्कार के लिए जोर लगा रहे माओवादी भी इसे आजमाने लगे हैं। स्टेट हाईवे क्रमांक 25 पर पखांजूर के पास जनकपुर में एक चौराहे पर पारंपरिक पोस्टर के अलावा नक्सलियों ने बैलून पर भी चुनाव बहिष्कार के नारे लिखकर बांध दिए। बैनर और बैलून हटाने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी। मगर, पुलिस फोर्स को जैसे ही बता चला वह वहां पहुंची। बैनर पोस्टर तथा बैलून हटा लिए गए।   

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