राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : लंबित विधेयक नई सरकार के हाथ
19-Nov-2023 3:16 PM
राजपथ-जनपथ : लंबित विधेयक नई सरकार के हाथ

लंबित विधेयक नई सरकार के हाथ

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और तमिलनाडु सरकार की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने और विधेयक पर हस्ताक्षर करने को लेकर राज्यपालों के रवैये पर गंभीर चिंता जताई और कड़ी टिप्पणी की थी। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि वे आग से ना खेलें, वे निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं हैं, बिल दबाकर न बैठें। इसके बाद खबर यह आई है कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने वे 10 विधेयक विधानसभा को लौटा दिए, जिन पर उन्होंने हस्ताक्षर नहीं किए थे। तमिलनाडु  विधानसभा में सरकार ने विपक्षी अन्नाद्रमुक और भाजपा के बहिर्गमन के बीच इन विधेयकों को फिर से पेश कर दिया। अब ये विधेयक फिर पारित हो जाएं तो प्रावधानों के मुताबिक राज्यपाल को इन पर हस्ताक्षर करना होगा। इनमें से कुछ विधेयक राज्यपाल के पास सन् 2020 से लंबित थे। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का असर पंजाब और पश्चिम बंगाल में भी हुआ है। पंजाब के राज्यपाल की ओर से बताया गया है कि उन्होंने विधेयक जानबूझकर नहीं रोके, बल्कि कानूनी सलाह लेनी थी। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने दावा किया, उनके पास कोई भी विधेयक लंबित नहीं है।

संयोगवश, छत्तीसगढ़ सरकार भी पंजाब और तमिलनाडु की तरह राज्यपाल के पास विधेयकों के लंबित रहने को लेकर परेशान रही है। इनमें विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्तियों और हटाने का अधिकार राज्यपाल की जगह मंत्रिपरिषद् को देना, कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय का नाम बदलना आदि शामिल हैं। पर सबसे अधिक चर्चा में आया आरक्षण संशोधन विधेयक। विधानसभा के विशेष सत्र में इससे जुड़े दो भागों में यह विधेयक पारित करके राज्यपाल के पास भेजा गया। लंबे समय तक रुके रहने पर कांग्रेस ने आंदोलन किया, भाजपा को घेरा। इस बीच हाईकोर्ट ने रमन सरकार के दौरान पारित 58 प्रतिशत आरक्षण के आदेश को असंवैधानिक घोषित कर दिया। इसके चलते प्रदेश में आरक्षण की स्थिति शून्य हो गई। इसके चलते सरकारी नौकरियों में भर्ती रुक गई और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश बंद हो गया। हाईकोर्ट के आदेश पर जब सुप्रीम कोर्ट से स्थगन मिला, तब कहीं जाकर गतिरोध खत्म हुआ। पर विशेष सत्र में पारित 76 प्रतिशत आरक्षण का विधेयक अब तक राज्यपाल के पास रुका हुआ है।

पंजाब और तमिलनाडु के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है जब छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन की प्रक्रिया चल रही है। यदि कुछ पहले सुप्रीम कोर्ट का रुख सामने आया होता तो छत्तीसगढ़ सरकार भी अपने विधेयकों को लौटाने या हस्ताक्षर करने का दबाव बना सकती थी। अब जो होगा नई सरकार में होगा। वह चाहेगी तो इन विधेयकों को दोबारा विधानसभा में लाएगी।

रेलवे में कम मतदान क्यों?

केंद्रीय कर्मचारियों को क्या विधानसभा चुनावों से अधिक लेना-देना नहीं है? यह सवाल तब पैदा हुआ है जब रेलवे क्षेत्र के वार्डों से मतदान की स्थिति सामने आई। बिलासपुर में रेलवे के दो केंद्रों में वोटिंग 36 प्रतिशत ही रही। दो हजार वोटरों में से करीब 700 ने ही वोट डाले। पूछे जाने पर बूथ पर मंडरा रहे पार्टी कार्यकर्ताओं ने बताया कि ऐसा हर बार होता है। रेलवे की तो एक अलग कॉलोनी है इसलिये जानकारी मिल गई, पर दूसरे केंद्र सरकार के संस्थाओं के अधिकारी कर्मचारी भी विधानसभा चुनाव में अधिक रुचि नहीं लेते। नगरीय निकाय चुनाव में भी ऐसा ही है। लोकसभा चुनाव में जरूर 55-60 प्रतिशत मतदान हो जाता है। रेलवे में बहुत से रनिंग स्टाफ भी होते हैं, जिनको मतदान के दिन छुट्टी नहीं दी जा सकती। ऐसे कर्मचारियों को डाक मतदान करने का अधिकार है, पर वे इसका इस्तेमाल करने में रुचि नहीं लेते।

एक ओर प्रदेश के दूरस्थ अंचलों से खबरें आई हैं कि मीलों चलकर, नदी-नाले पार कर नक्सली और हाथियों के डर के बीच लोग वोट देने के लिए निकले, वहीं दूसरी ओर जिनके घर के आसपास ही बूथ बने हैं, उन्होंने मत देने के अधिकार को कर्तव्य के रूप में लिया ही नहीं।

लकड़ा भाजी भी, चटनी भी..

छत्तीसगढ़ के हर हिस्से में अलग-अलग पारंपरिक भोजन मिलते हैं। भाजियों की अनगिनत श्रेणियां हैं। इन दिनों सरगुजा और जशपुर में लकड़ा के फूल खिले हुए हैं। जितने सुंदर इसके फूल हैं, उतने ही स्वादिष्ट व्यंजन बनते हैं। कच्चे में इसकी भाजी बनाकर खाई जा सकती है। चाहे तो इसे सुखाकर रख लें, और चटपटी चटनी बनाकर भात या रोटी के साथ खाएं। बाहर के जो लोग इसके बारे में जानते हैं, वे इसका स्वाद एक बार जरूर लेना चाहते हैं। ([email protected])

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