राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : चुनावी निवेश कभी लौटता है?
22-Nov-2023 4:02 PM
राजपथ-जनपथ : चुनावी निवेश कभी लौटता है?

चुनावी निवेश कभी लौटता है?

विधानसभा चुनाव निपटने के बाद जीत-हार को लेकर राजनीतिक दलों के अपने-अपने दावे हैं। रायपुर की सीटों में कांग्रेस, और भाजपा के रणनीतिकार अपने पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं की भूमिका की समीक्षा कर रहे हैं। 

चर्चा है कि कांग्रेस में एक विधानसभा सीट में मतदाता पर्ची नहीं बंटने की शिकायतों की पड़ताल की गई। यह बताया गया कि चुनाव संचालक ने एक युवा नेता को पर्ची बांटने का ठेका दिया था। इसके लिए लाखों रुपए दिए गए थे। मगर नेताजी ने पर्ची नहीं बंटवाई। अब इसको लेकर पूछताछ हो रही है। 

कहा जा रहा है कि इसी सीट पर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने जाति  समीकरण को ध्यान में रखकर एक निर्दलीय प्रत्याशी को उतारा था।  पर्दे के पीछे निर्दलीय पर काफी कुछ निवेश भी किया गया था। यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि निर्दलीय प्रत्याशी अपने समाज का वोट हासिल कर लेंगे, और इससे परम्परागत भाजपा के वोट बैंक को नुकसान होगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। 

चर्चा है कि निर्दलीय प्रत्याशी ने अंतिम दिनों में प्रचार बंद कर दिया था। इससे नाराज कांग्रेस के लोग अब निर्दलीय से निवेश की गई राशि वापस देने  के लिए दबाव बनाए हुए हैं। चुनाव नतीजे आने के बाद विवाद और बढऩे की आशंका जताई जा रही है। 

नई रणनीति का क्या असर होगा?

कांग्रेस में इस बार प्रचार के लिए अलग ही रणनीति बनाई थी। आखिरी के दिनों में जिन क्षेत्रों में पार्टी प्रत्याशी की स्थिति कमजोर दिखी, वहां अपनी ताकत झोंकी है, और इससे बेहतर नतीजे की उम्मीद भी बढ़ी है। 

बताते हैं कि प्रचार के शुरूआती दौर में धमतरी, भाटापारा, और वैशाली नगर में कांग्रेस प्रत्याशी की स्थिति खराब थी। इसके बाद सीएम भूपेश बघेल, और प्रभारी सैलजा ने प्रमुख पदाधिकारियों को इसका जिम्मा दिया। धमतरी में टिकट कटने से नाराज चल रहे पूर्व विधायक गुरुमुख सिंह होरा की ड्यूटी लगाई, तो गिरीश देवांगन को भाटापारा भेजा गया। 

इन प्रत्याशियों को अतिरिक्त संसाधन भी उपलब्ध कराए गए। इसका नतीजा यह रहा कि इन सीटों पर पार्टी प्रत्याशी की स्थिति बेहतर हुई है। अब पार्टी के रणनीति कामयाब हुई है या नहीं, यह तो 3 तारीख को नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।

झीरम की जांच क्या आसान हुई?

झीरम घाटी हत्याकांड का पूरा सच सामने आने का न केवल प्रभावित परिवार और कांग्रेस बल्कि आम लोग भी इंतजार कर रहे हैं। सन् 2018 में सत्ता में आने के 15 दिन के भीतर ही छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने एनआईए को चि_ी लिखी, जिसमें उसने जांच पूरी नहीं होने पर ऐतराज करते हुए केस डायरी वापस मांगी। सरकार ने कहा कि एसआईटी बनाकर वह खुद मामले की जांच कराएगी। मगर केस नहीं किया गया। जांच के मामले में स्थिति अभी भी वही है। हत्याकांड के 3 दिन बाद ही तत्कालीन भाजपा सरकार ने न्यायिक आयोग का गठन कर दिया था। मगर इसकी रिपोर्ट आने में 8 साल लग गए। नवंबर 2021 में इसकी सीलबंद 4000 से अधिक पन्नों की रिपोर्ट तत्कालीन राज्यपाल अनुसूया उईके को सौंपी गई। रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपे जाने को लेकर बहस अलग छिड़ गई थी, मगर उनको कोई निर्णय लेना नहीं था, इसलिए उन्होंने इसे सरकार के पास भेज दिया। रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद सरकार ने कहा कि यह अधूरी है। चार दिन बाद ही जस्टिस सतीश के अग्निहोत्री की अध्यक्षता और जी मिन्हाजुद्दीन की सदस्यता वाले एक नए आयोग का गठन किया गया। इसमें जांच के जो बिंदु जोड़े गए, उनमें एक था कि क्या हमले के बाद हताहतों  के लिए समुचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई गई थी?, इस हत्याकांड के बाद ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए क्या कोई कदम उठाए गए थे? अन्य महत्वपूर्ण बिंदु सरकार और आयोग जिसे आवश्यक समझे, जोड़े जाएंगे। 

इस दूसरे आयोग को 6 माह के भीतर रिपोर्ट देनी थी लेकिन उसका भी कार्यकाल लगातार बढ़ाया गया। इस साल अगस्त महीने में कार्यकाल फिर बढऩे के बाद आयोग को अब 10 फरवरी 2024 तक समय मिल गया है। भाजपा नेता धरमलाल कौशिक ने इस आयोग के औचित्य को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसके चलते कुछ समय तक के लिए आयोग पर कोर्ट ने रोक भी लगा दी थी। झीरम हमले में मारे गए कांग्रेस नेता उदय मुदलियार के बेटे जितेंद्र मुदलियार ने जून 2020 में दरभा थाने में एक एफआईआर झीरम घाटी हत्याकांड के पीछे के  कथित षड्यंत्र की जांच को लेकर दर्ज कराई। इसके लिए सरकार ने एक 10 सदस्यीय एसआईटी बनाई, जिसकी कमान तत्कालीन डीआईजी सुंदरराज पी. को सौंपी गई। एनआईए ने छत्तीसगढ़ पुलिस के अधिकार को हाईकोर्ट में चुनौती दी। छत्तीसगढ़ सरकार और जितेंद्र मुदलियार की ओर से कहा गया कि एनआईए केवल आपराधिक घटना की जांच कर रही है, जबकि छत्तीसगढ़ पुलिस इसके पीछे के षड्यंत्र का पता लगाएगी। हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलने पर एनआईए ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जहां से छत्तीसगढ़ पुलिस के पक्ष में फैसला आया है। 

अब इस मामले में स्थिति यह है कि प्रारंभिक रिपोर्ट के बाद एनआईए ने पूरी जांच अब तक नहीं की है। जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग ने 8 साल बाद जो रिपोर्ट सौंपी उसमें क्या था, यह सिर्फ सरकार को पता है। जो दूसरा आयोग बनाया गया उसे भी 6 माह में रिपोर्ट देनी थी मगर अब उसे फरवरी 2024 तक का वक्त मिल गया है। घटना के पीछे के षड्यंत्र की जांच छत्तीसगढ़ पुलिस अब जाकर 10 साल बाद शुरू करेगी। 

क्या होगा यदि जस्टिस मिश्रा आयोग की और जस्टिस अग्निहोत्री आयोग की रिपोर्ट आपस में विरोधाभासी होंगे? और इधर एनआईए और छत्तीसगढ़ पुलिस की जांच रिपोर्ट आपस में टकराएंगीं?

यदि कांग्रेस की सरकार दोबारा प्रदेश में बनती है तो मुमकिन है अग्निहोत्री आयोग और छत्तीसगढ़ पुलिस किसी निष्कर्ष पर पहुंचकर रिपोर्ट सार्वजनिक करे। मगर भाजपा ने इन दोनों की जांच को अनावश्यक बताया है। यदि उसकी सरकार बनी तो शायद छत्तीसगढ़ पुलिस की जांच रुक जाए और जस्टिस अग्निहोत्री आयोग को भी काम करने रोके। छत्तीसगढ़ पुलिस को मिली मंजूरी के बावजूद जांच किस दिशा में बढ़ेगी यह नई सरकार के बनने से ही तय होगा।

एयरपोर्ट में पार्किंग रंगदारी

 

माना एयरपोर्ट पहुंचते ही कार, टैक्सी वालों को 50 रुपये की पार्किंग रसीद थमाने के विवाद ने तूल पकड़ा तो मई माह में एयरपोर्ट प्रबंधन ने ठेका चलाने वाली कंपनी अंजनी इंटरप्राइजेज को नोटिस थमाई, जबकि पहले सात मिनट तक का कोई शुल्क नहीं लेने का नियम था। जून माह में इस सात मिनट के समय को घटाकर 4 मिनट कर दिया गया। मगर अब भी अवैध वसूली नहीं रुकी है। दोपहिया वाहनों के लिए प्रारंभिक शुल्क 10 रुपये है। मगर, शुल्क 50 रुपये लेकर बकायदा रसीद भी दी जा रही है। 

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