राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : गिनती के पहले ईश्वर की बारी
23-Nov-2023 4:18 PM
राजपथ-जनपथ : गिनती के पहले ईश्वर की बारी

गिनती के पहले ईश्वर की बारी  

चुनाव निपटने के बाद कांग्रेस, और भाजपा के कई प्रत्याशी तीर्थ यात्रा पर निकल गए हंै। ज्यादातर प्रत्याशी धर्म-कर्म में लगे हैं। सीएम भूपेश बघेल राजस्थान में चुनाव प्रचार के लिए गए हैं, लेकिन उनका भी वहां नाथद्वारा में प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर में दर्शन के लिए जाने का कार्यक्रम है। 

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज सपरिवार  और लखेश्वर बघेल महाकाल के दर्शन के लिए उज्जैन गए हैं। जबकि आबकारी मंत्री कवासी लखमा तेलंगाना के प्रसिद्ध राम मंदिर के दर्शन के लिए गए हैं। उनके साथ सुकमा के तमाम छोटे-बड़े नेता भी हैं। दर्शन के बहाने वो भद्राचलम में कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार भी कर रहे हैं। नतीजे आने में 10 दिन बाकी हैं। ऐसे में सभी प्रत्याशी पूजा पाठ और परिवार को भरपूर समय दे रहे हैं। 

खर्चा कौन देगा 

रायपुर नगर निगम के आधा दर्जन से अधिक पार्षद नाराज चल रहे हैं। चर्चा है कि इन पार्षदों को पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में अपने वार्डों में रैली निकालने के निर्देश दिए गए हैं। पार्षदों ने मतदान के दो दिन पहले अपने-अपने वार्डों में रैली निकालकर जोरदार शक्ति प्रदर्शन भी किया। 

चुनाव निपटने के बाद अब रैली का खर्च मांगने के लिए चुनाव प्रबंधन से जुड़े लोगों से संपर्क किया गया, तो कोई ठोस जवाब नहीं मिल रहा है। ये सभी पार्षद रैली पर 5-5 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। अभी तो रणनीति के तहत सभी खामोश हैं, लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद पार्षदों का गुस्सा फट सकता है। देखना है आगे क्या होता है। 

आधी मूंछ की शर्त

विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, अब नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे। अब जिन सीटों पर स्थिति टक्कर की है, वहां के प्रत्याशियों ने खामोशी ओढ़ ली है। कुछ प्रत्याशी अपने समर्थकों के साथ नफे-नुकसान का गणित लगा रहे हैं। कुछ समर्थक ऐसे हैं जो हार-जीत का शर्त लगा रहे हैं। 

चर्चा है कि कुछ समर्थकों ने शर्त की रकम तीसरे प्रत्याशी तक को दे दी है। कुछ समर्थक जीत को लेकर इतना अधिक आश्वस्त हैं कि वे आधी मूंछ मुड़ाने की शर्त लगा रहे हैं। ऐसे में विपक्षी समर्थक भी कम नहीं है, वे शर्त पर शर्त रख रहे हैं कि हम हार गए तो शर्त का पालन करेंगे, लेकिन आप हार गए तो शर्त का पालन कराने आप 10 जमानतदार लाइये। तभी शर्त लगाएंगे। वैसे प्रदेश के लोगों ने मूंछों की बड़ी इज्जत की है। भाजपा के पूर्व दिग्गज स्व. दिलीप सिंह जूदेव ने 2003 में अपनी पूरी मूंछ ही दांव पर लगा दी थी, भाजपा जीती भी और मूंछ बनी रहीं।

बड़ी अदालतों में ऊंची पॉलिटिक्स

इलाहाबाद हाईकोर्ट से रिटायर हुए चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर ने जबलपुर से लॉ की डिग्री ली थी। अलग राज्य बनने के बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। सन् 2005 में उन्हें सीनियर एडवोकेट का दर्जा मिला। उन्हें मार्च 2009 में यहीं पर जज नियुक्त किया गया। उन्होंने 9 साल यहां सेवा दी। जनवरी 2018 में उनका तबादला इलाहाबाद कर दिया गया। लोगों को लगा कि एक ही कोर्ट में 9 साल सेवा देने के बाद तबादला किया जाना स्वाभाविक प्रक्रिया है। पर वे तबादला नहीं चाहते थे। उन्होंने अपना आदेश रद्द कराने की कोशिश की और पुनर्विचार का आवेदन भेजा। इस बीच करीब 8 माह छत्तीसगढ़ में ही वे काम करते रहे। सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने जस्टिस दिवाकर के आवेदन को खारिज करते हुए तबादले की अनुशंसा को यथावत रखा। आखिरकार उन्हें 4 अक्टूबर 2018 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज्वाइनिंग देनी पड़ी। मार्च 2023 में वे इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने और अभी दो दिन पहले रिटायर हो गए।

अधिवक्ताओं के बीच विदाई भाषण में उन्होंने लीक से हटकर कुछ बात की। उन्होंने तब के सीजेआई जस्टिस मिश्रा पर गंभीर आरोप लगाए। कहा कि उन्होंने परेशान करने के लिए मेरा तबादला किया। दूसरी ओर सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने मेरे साथ हुए अन्याय को सुधारा।

जस्टिस दिवाकर ने यह साफ नहीं किया है कि छत्तीसगढ़ में लंबा समय बिता लेने के बाद भी वे तबादला क्यों नहीं चाहते थे। शायद यहां उन्हें चीफ जस्टिस के ओहदे तक पहुंचने का मौका जल्दी मिल जाता। पर एक बात का जिक्र यहां जरूरी है कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने उन्हीं वर्षों में स्थानीय पृष्ठभूमि वाले और लंबे समय से पदस्थ जजों के स्थानांतरण की मांग उठाई थी। एसोसिएशन ने दिल्ली जाकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को इस संबंध में ज्ञापन भी सौंपा था। यह जरूर है कि इसमें उन्होंने जस्टिस दिवाकर या किसी अन्य जज विशेष का नाम नहीं लिया था।

बताते चलें कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर चुके जस्टिस पी सैम कोशी ने वकालत के दौरान एसईसीएल, रेलवे जोन, एनएमडीसी, छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल आदि के लिए पैरवी की थी। भाजपा शासन काल में दो साल तक डिप्टी एडवोकेट जनरल भी वे रहे। उन्हें सितंबर 2013 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में ही जज नियुक्त किया गया। करीब 10 साल बाद यानि इसी साल 2023 में  उन्होंने खुद ही अपने तबादले के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में आवेदन दिया। इस पर कॉलेजियम ने विचार किया और उनका मध्यप्रदेश तबादला कर दिया। जस्टिस कोशी ने मध्यप्रदेश को छोडक़र किसी भी दूसरे राज्य में भेजने का आग्रह किया। शायद इसलिए कि पहले वे वहां के कई संस्थानों के लिए वे प्रैक्टिस कर चुके थे। उनका आग्रह मान लिया गया और उन्हें तेलंगाना भेजा गया।

जस्टिस दिवाकर ने कहा है कि तबादले के अलावा भी अलग-अलग तरह की विपरीत घटनाएं उनके साथ हुईं। यह शायद प्रमोशन से जुड़ा है। वे वरिष्ठता में जस्टिस प्रशांत मिश्रा से ऊपर थे। दोनों ने ही छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक साथ प्रैक्टिस शुरू की थी। जस्टिस दिवाकर मार्च 2009 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में नियुक्त हुए थे, जबकि जस्टिस प्रशांत मिश्रा इसके 9 माह बाद दिसंबर 2009 में। पर जस्टिस मिश्रा 1 जून 2021 को ही आंध्र प्रदेश के चीफ जस्टिस बन गए थे और पिछले मई में वे सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त किये गए। जस्टिस दिवाकर मार्च 2023 में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बनाए गए। रिटायरमेंट की वजह से उनका सफर यहीं तक रहा। संभवत: चीफ जस्टिस पद पर हुई नियुक्ति को लेकर जस्टिस दिवाकर ने कहा कि सीजेआई ने उनके साथ हुए अन्याय को दूर किया।

इस बार अधिक व्यावहारिक दावा

सन् 2018 में भारतीय जनता पार्टी ने 65 पार का नारा दिया था। केंद्रीय गृह मंत्री हर चुनावी सभा में इसका दावा ठोकते थे। प्रदेश के नेताओं ने उनको यही संख्या बताई होगी। पर नतीजे अप्रत्याशित रहे। नई पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ बनाकर चुनाव लडऩे के दौरान स्व. अजीत जोगी ने 72 सीटों का लक्ष्य रखा था। हर पोस्टर में यह दावा होता था।

इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने 75 पार का नारा दिया। कई बार कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रखने के लिए बढ़-चढक़र बातें कहनी पड़ती है, चाहे जमीनी हकीकत वैसी नहीं हो। मगर, टीएस सिंहदेव मतगणना के पहले लगातार भूचाल ला रहे हैं। वोटिंग के तुरंत बाद ही उन्होंने कहा कि इस बार मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला तो फिर कभी नहीं मिलेगा। अब उन्होंने कहा है कि 75 पार उनको संभव नहीं दिखता। कोरिया और जशपुर, जहां पूरी 6 सीटें कांग्रेस को पिछली बार आई थी, उनको लेकर भी उन्होंने उम्मीद जताई कि तीन ही जीत सकते हैं। सरगुजा जिले की सभी 8 सीटों पर जीतने का दावा उन्होंने जरूर किया है।। वे कह रहे हैं कि कुल जीत दो तिहाई सीटों (60)  तक हो सकती है, यानि 2018 से कम । इधर भाजपा ने चुनाव अभियान के दौरान सीटों की संख्या पर कोई दावा करने से परहेज किया। अब डॉ. रमन सिंह का मानना है कि 52 से 55 सीटें आ सकती हैं। दोनों में से भी किसी एक का ही दावा सच के करीब होगा। पर दोनों ही दावे हवाबाजी नहीं है। वोट पड़ चुके हैं इसलिए कुछ व्यावहारिक सा आकलन किया जा सकता है। वैसे असल अनुमान 30 नवंबर की शाम 5 बजे के बाद लगेगा, जब मतदान का अंतिम चरण पूरा हो जाएगा और मतगणना तक एग्जिट पोल अखबार-टीवी पर चलते रहेंगे।

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