राजपथ - जनपथ
नैतिकता भी कोई चीज होती है
सरकार बदलने के बाद भी कांग्रेस के कई नेता मंडल-आयोग पर काबिज हैं। सरकार ने उन्हें हटाने का आदेश जारी किया था। मगर पहले महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक, और अब उर्दु अकादमी के चेयरमैन इदरीश गांधी, रेंट कंट्रोल ट्रिब्यूनल के सदस्य सुशील आनंद शुक्ला को स्टे मिल गया है। कुछ और नेता पद से हटाए जाने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले हैं।
नैतिकता तो यह थी कि सरकार बदलते ही कांग्रेस नेताओं को पद छोड़ देना चाहिए था। मगर कांग्रेस नेता पद का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। ये अलग बात है कि कई नेताओं ने तो चुनाव नतीजे आते ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। सरकारी पद पर काबिज नेताओं को पार्टी के नेता ही काफी भला-बुरा कह रहे हैं। इन्हीं में से एक आरडीए के पूर्व डायरेक्टर राजेंद्र पप्पू बंजारे ने सोशल मीडिया पर लिखा कि कांग्रेस सरकार के नहीं आने के बाद मैंने भाजपा का चाय पीना उचित नहीं समझा।
उन्होंने आगे लिखा कि मैंने पद का मोह नहीं किया। जबकि हमारे आदेश में चार साल का कार्यकाल था। दो साल अभी बाकी बचा हुआ था। नैतिकता भी कोई चीज होती है। जिस पार्टी ने पद दिया है, उसकी हार के बाद पद पर बने रहना शोभा नहीं देता है।
फिर भी गनीमत है
नई सरकार ने प्रशासनिक फेरबदल में बड़े बड़ों की ऐसी हालत कर दी है कि उनका मन ही नहीं कर रहा काम को लेकर। दुनिया जहान से जी उठ गया है । तबादले के चार दिन बाद जब बड़े साहब ने सेक्रेटरी ब्लाक को चेक कराया तो मालूम चला कभी दो नंबर रहे साहब आफिस भी नहीं आ रहे। उन्हें पहले फ्लोर पर कमरा दिया गया है। इन साहब ने ही सबसे पहले पांचवी मंजिल का दफ्तर खाली किया था। और नतीजों वाले ही दिन।
दरअसल, ये साहब कुछ जूनियर्स के साथ महानदी भवन में ही नतीजों के लिए चैनल बदल बदलकर टीवी देख रहे थे। बारह बजे तक तो स्थिति अच्छी थी। लग रहा था अपन फिर पॉवरफुल होंगे और शपथ के बाद बड़े साहब को खो कर देंगे। लेकिन दो बजे तक तो जोश काफूर हो गया। साहब लोग उठे कमरा खाली किया। बाद के दस दिन तो ठीक रहा लेकिन 88 लिस्ट में अपनी पोजीशन देखकर मायूस हो गए। गनीमत है सरकार को राजस्व मंडल का ख्याल न आया।
ब्रेड का स्वाद कैसा है?
रेलवे स्टेशन में स्टॉल पर मिलने वाला खाना गुणवत्तापूर्ण है या नहीं, यह जानने के लिए प्लेटफार्मों पर चूहे बड़ी तादाद में मंडराते रहते हैं। यह इटारसी रेलवे स्टेशन की तस्वीर है, किसी यात्री ने ट्रेन पर बैठे-बैठे जूम करके खींची है।
भला हुआ मेरी गगरी फूटी..
तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान का चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा से ज्यादा खुशी किसी को नहीं है और सबसे ज्यादा दुखी लोग भी यहीं दिखाई दे रहे हैं। मगर दुख चुनाव परिणाम का नहीं, उसके बाद के घटनाक्रमों का है। इशारों-इशारों में, अस्पष्ट रूप से, मौके से चूके कुछ नेताओं का दुख छत्तीसगढ़ में भी छलक ही रहा है। पर चुनाव जीतने के बाद मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद से बेदखल कर दिए गए शिवराज सिंह चौहान का दर्द छिपाए नहीं छुप रहा। अपने विधानसभा क्षेत्र के दौरे पर कार्यकर्ताओं के बीच उन्होंने कहा- अच्छा हुआ कि राजनीति से थोड़ा हटकर काम करने का मौका मिला है। मुझे अभी भी एक मिनट फुर्सत नहीं है। राजनीति में भी बहुत अच्छे लोग हैं, मोदी जी जैसे लोग देश के लिए जीते हैं...। मगर कई लोग ऐसे हैं जो रंग देखते हैं..। मुख्यमंत्री हैं, तो भाई साहब आपके चरण तो कमल के समान हैं... हाथ जोड़ते हैं। और बाद में नहीं रहे तो होर्डिंग से फोटो ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग। बड़ा मजेदार क्षेत्र है यह..।
राष्ट्रगान से ड्यूटी की शुरुआत
जांजगीर चांपा जिले के नए कलेक्टर आकाश छिकारा ने आदेश दिया है कि दफ्तर में कामकाज की शुरुआत राष्ट्रगान से होगी। पहले दिन सेंट्रल गवर्नमेंट के एक अधिकारी का दौरा होने के कारण यह परंपरा शुरू नहीं हो पाई। लेकिन दूसरे दिन कलेक्टर ठीक 9:50 बजे ऑफिस पहुंच गए। जब किसी भी जिले में नए कलेक्टर चार्ज लेते हैं तो वहां के अधिकारी-कर्मचारी कुछ दिन तक समय के पाबंद हो जाते हैं। जब सरकारी दफ्तरों में कामकाज के लिए 5 दिनों का सप्ताह तय किया गया, ड्यूटी का समय एक घंटे बढ़ाया भी गया था। पर देखा गया कि कई कर्मचारी 11:00 बजे से पहले आते नहीं। कम से कम छिकारा के कलेक्टर रहते यह उम्मीद की जा सकती है कि राष्ट्रगान में उपस्थित होने की मजबूरी के चलते वे समय पर अपनी कुर्सी में मौजूद नजर आएंगे। व्यवस्था और अच्छी करनी हो तो कलेक्टर को शाम 5:30 बजे भी राष्ट्रगान का एक सत्र रख देना चाहिए।