राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : पदनाम की महिमा
15-Jan-2024 2:31 PM
राजपथ-जनपथ : पदनाम की महिमा

पदनाम की महिमा 

सारा जीवन, स्टेटस, प्रोफाइल का होकर रह गया है। चाहे वह निजी कंपनी के कार्मिक का हो या फिर सरकारी मुलाजिम। निजी कंपनी में अपॉइंटमेंट के ही समय पदनाम तय हो जाता है तो सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के साथ ।

सबको पदनाम चाहिए। यह भी देखने में आया है कि इस नाम के लिए, सरकारी अधिकारी कर्मचारी वेतन वृद्धि भी नहीं चाहते। हम यह बात इसलिए कह रहे हैं कि पड़ोस के झारखंड में शिक्षाविदों को अपने नाम पर आपत्ति है । कॉलेज में रिक्त हजारों  सहायक प्राध्यापक के  पदों को यथावत रिक्त रख सरकार ने अतिथि प्राध्यापक के रूप में डेली वेजेस पर नियुक्त किया है । इनकी सालभर के लिए नियुक्त की जाती हैं और वेतन एकमुश्त, बिना अन्य सेवा लाभ के दिया जाता है।  बस ऐसे सहायक प्राध्यापकों को पदनाम का विरोध है। सही भी है। मप्र की तरह अतिथि प्राध्यापक ,छत्तीसगढ़ की तरह संविदा प्राध्यापक तक तो ठीक है , झारखंड में इन्हें आवश्यकता आधारित सहायक प्राध्यापक के पद नाम से नियुक्त और पुकारा जाता है । अब भला विरोध का विषय है ही। 

छत्तीसगढ़ में भी कुछ कर्मचारी अपने आप को आफिसर,अधिकारी कहलवाना चाहते हैं, कैडर और काम भले बाबू या उससे भी निचले क्रम का हो। जैसे सरकारी अस्पताल की नर्स,वार्ड ब्वॉय स्वयं को नर्सिंग आफिसर का पदनाम चाहते हैं तो मंत्रालय में ग्रेड-1 लिपिक सहायक अनुभाग अधिकारी कहलवाने में सफल रहे।

बेदखल करने की आंधी चली..

सरकार रहते हुए कांग्रेस ने प्रदेश के प्राय: सभी नगर निगमों में अपना महापौर बिठाया, अधिकांश नगर पालिका और नगर पंचायतों में भी सफल रही। इसे पार्टी के नेता सरकार की नीतियों और कांग्रेस के प्रति आम जनता में बढ़ते विश्वास का नाम दे रहे थे। मगर सरकार जाते ही एक के बाद एक नगरीय निकायों और जनपद पंचायत कांग्रेस के हाथों से फिसल रहे हैं। इनमें सबसे बड़ी सफलता खाद्य मंत्री दयालदास बघेल को मिली, ऐसा दिखाई दे रहा है। उनको सिर्फ 20 दिन ही हुए हैं मंत्री बने, मगर उन्होंने कांग्रेस की बहुमत वाली दो नगर पंचायत और एक जनपद पंचायत में भाजपा का परचम लहरा दिया है। नवागढ़ नगर पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो गया तो मारो के नगर पंचायत अध्यक्ष ने स्थिति को भांपते हुए सभा से पहले ही इस्तीफा दे दिया। जनपद पंचायत बेमेतरा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों की कुर्सी अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाने के चलते छिन गई। 

इन सभी स्थानों पर बहुमत कांग्रेस का था। इसके बावजूद जमकर सभी निकायों में क्रॉस वोटिंग हुई। पहले अविश्वास प्रस्ताव की नौबत आने पर पर्यवेक्षक भेजे जाते थे और असंतुष्ट सदस्यों को समझाने बुझाने की कोशिश की जाती थी। मगर विपक्ष में आने के बाद कांग्रेस की ऐसी कोई कोशिश नहीं दिखाई दे रही है। प्रदेश की एक दर्जन से अधिक स्थानीय निकायों में या तो कांग्रेस की कुर्सी छिन चुकी है या छीनी जाने वाली है। दूसरी ओर पार्टी के भीतर अजीब सा सन्नाटा दिखाई दे रहा है।

अब किस बात की देरी?

परसा ईस्ट केते बासन एक्सटेंशन से निर्बाध कोयला खनन के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को पत्र लिखा है। ऐसा ही पत्र 2 साल पहले भी राजस्थान के मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को लिखा था। फर्क यही है कि पिछली बार दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी और अभी भाजपा की है। पत्र का मजनून भी लगभग वही है। इसमें कहा गया है कि राजस्थान सरकार अपने बिजली संयंत्रों के लिए छत्तीसगढ़ के कोयले पर निर्भर है। उत्खनन में देरी के कारण राजस्थान संकट में है। 
इस कोल ब्लॉक के लिए पेड़ों की कटाई का पहला चरण हाल ही में सख्त पहरेदारी के बीच पूरा किया जा चुका है। दोनों ही जगह भाजपा की सरकारें हैं। फिर भी छत्तीसगढ़ सरकार से राजस्थान का मदद मांगना कुछ अटपटा लग सकता है। इसके दो कारण हो सकते हैं। एक तो अभी सिर्फ पेड़ों की कटाई हुई है, खनन शुरू नहीं हुआ है। खनन चालू होने पर विरोध का दूसरा दौर झेलना पड़ सकता है। दूसरी वजह छत्तीसगढ़ विधानसभा से पारित संकल्प हो सकती है, जिसमें हसदेव क्षेत्र में किसी भी नए खदान को मंजूरी नहीं देने की बात की गई है। राजस्थान के सीएम छत्तीसगढ़ के सीएम को धर्मसंकट में डालना चाहते हैं।

पहरेदार पुतले...

वैसे इसे गांव के लोग बोलचाल की भाषा में काग भगोड़ा कहते हैं लेकिन यह केवल कौव्वों के लिए नहीं बल्कि बंदर, सियार आदि जानवरों को भी खेतों से दूर रखने में मदद करता है। उपलब्ध पुराने कपड़े, मटके, लकड़ी से इस किसान खुद तैयार करते हैं और खेत की मेड़ पर खड़ा कर देते हैं। तस्वीर एक अरहर के खेत की है, जो नांदघाट से मुंगेली के बीच ली गई है। (तस्वीर-प्राण चड्ढा)

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