राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : हसरतों से बनी खबरें
18-Jan-2024 2:13 PM
 राजपथ-जनपथ :  हसरतों से बनी खबरें

हसरतों से बनी खबरें

छत्तीसगढ़ में पिछली भूपेश सरकार के दौरान हुए कोयला घोटाले में कुछ आईएएस और डिप्टी कलेक्टर सहित कई खनिज अफसर भी जेल में पड़े हुए हैं, और कांग्रेस पार्टी के सूर्यकांत तिवारी सरीखे रंगदार भी सैकड़ों करोड़ की रंगदारी वसूलने के हिसाब-किताब सहित पकड़ाए हुए हैं। केन्द्र सरकार की जांच एजेंसी ईडी से मीडिया का वास्ता वन-वे ट्रैफिक रहता है, और जब ईडी को कुछ कहना रहता है तो वह अपने वकील या प्रेसनोट के मार्फत जानकारी देती है, लेकिन खुद होकर उससे कुछ निकालना मुमकिन नहीं होता। ऐसी नौबत में ही बड़े-बड़े अखबारों में ईडी से जुड़ी पूरी तरह से गलत खबरें भी छप जाती हैं।

अब ऐसे में जब जेल में बंद चर्चित और बड़े अफसरों के बीच मारपीट की खबर किसी एक जगह से शुरू हो, तो वेबसाइटों के गलाकाट मुकाबले के इस दौर में किसी को खबर की सच्चाई परखने की फुर्सत नहीं रहती, और चारों तरफ यह मजेदार, चटपटी, और सनसनीखेज खबर छप रही है कि महिला जेल में आईएएस रानू साहू, और डिप्टी कलेक्टर सौम्या चौरसिया के बीच मारपीट हुई है। जिन पत्रकारों या वेबसाइटों को जिस नजरिए से इस बात को देखना हो, उस नजरिए से खबर बन जा रही है, और चारों तरफ फैल भी जा रही है। ऐसी कोई घटना हुई है या नहीं, यह बताने के लिए न तो जेल के लोग मुंह खोल रहे, और न ही ईडी के अफसर। यह बात किसी नीयत से खबर फैलाने वालों के लिए बिल्कुल सही रहती है, और बिना किसी खंडन के लोग अपनी हसरत को खबर बताकर फैला सकते हैं। लेकिन इस सबके बीच लोगों के लिए यह सबक भी निकल रहा है कि एक वक्त जिनकी पेशाब से चिराग जला करता था, आज उनकी जिंदगी ऐसी अंधेरी हो गई है कि दूर-दूर तक कोई चिराग नजर नहीं आ रहा। यह देखकर हर किसी को अपने दिमाग काबू में रखने चाहिए।

दिल्ली में अटकी डीजी की फाइल

सुनते हैं कि छत्तीसगढ़ में नए डीजीपी के नियुक्ति की फाइल दिल्ली में अटक गई है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सहमति के बाद ही इस पर मुहर लग पाएगी। बताया जा रहा है कि फिलहाल केन्द्र सरकार का फोकस केवल राम मंदिर है, लिहाजा दूसरे कामकाज पेंडिंग में है। संभावना जताई जा रही है कि 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही राज्य के नए डीजीपी के बारे में फैसला हो पाएगा। आईपीएस की एक लॉबी नियुक्ति में देरी से राहत महसूस कर रही है, डीजीपी पद के एक प्रमुख दावेदार इस महीने सेवानिवृत्त हो रहे हैं। देरी से उनकी दावेदारी स्वत:: खत्म हो जाएगी। हालांकि डीजीपी के लिए दिल्ली की खूब दौड़ लगाई गई है। कोशिश है कि इस महीने तक नियुक्ति पर मुहर लग जाए। अब देखना यह है कि किसकी किस्मत चमकती है।  

लाल बत्ती के दावेदार सक्रिय

लालबत्ती पाने की कतार में खड़े बीजेपी के नेता भी खूब सक्रियता दिखा रहे हैं। नेताओं-मंत्रियों के चौखट देर रात तक गुलजार हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद निगम-मंडलों में नियुक्ति की जाएगी। दावेदारों का कहना है कि संगठन के प्रमुख नेताओं ने कुर्सी बांटने की कवायद शुरू कर दी है। लिस्ट करीब-करीब बन गई है। इसकी सच्चाई के बारे में तो नहीं पता, लेकिन लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए भाई साहब के पास भी भीड़ जुट रही है। दावेदारों को लगता है कि भले लिस्ट लोकसभा के बाद आए, लेकिन नाम तो जुड़ जाना चाहिए।

इनसे उम्मीद थी चुनाव जिताने की...

स्थानीय निकायों और जनपद पंचायतों में कांग्रेस की सरकार एक के बाद एक ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर गिर रही है। आरंग जनपद पंचायत में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का हश्र देखें तो यहां के 25 सदस्यों में से 24 ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट डाले। अर्थात जनपद अध्यक्ष को किसी ने वोट नहीं दिया, उनको सिर्फ अपना वोट मिला। यहां कांग्रेस के 21 सदस्य हैं। किसी ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष का बचाव नहीं किया। यह मानना मुश्किल है कि केवल भाजपा की तिकड़म से हुआ होगा। शायद तमाम सदस्य अपने अध्यक्ष से भारी असंतुष्ट और उनको खिसकाने के लिए मौके की तलाश में थे। कसमसाहट के बावजूद अनुशासन के चलते जब तक अपनी सरकार रही बर्दाश्त किया और सरकार बदलते ही मोर्चा खोल दिया। अभी तक जिन नगर पंचायत और जनपदों से कांग्रेस के अध्यक्ष उपाध्यक्ष हटाए गए हैं उनमें से अनेक इलाके कांग्रेस के कद्दावर मंत्री या विधायक रहे लोगों के हैं। यह डॉ शिव डहरिया का क्षेत्र है। आरंग के अध्यक्ष तो युवक कांग्रेस के महासचिव भी हैं।

यह अनुमान लगाया जा सकता है कि निकायों और जनपदों में कांग्रेस के जनप्रतिनिधि किस तरह काम कर रहे थे और उनकी लोकप्रियता का क्या हाल था। जिन स्थानों में कांग्रेस की सत्ता ढह रही है, वहां से पार्टी के खिलाफ वोट देने वाले सदस्यों, पार्षदों का बयान आ रहा है कि हमने सरकार के रहते इनकी शिकायत की थी लेकिन सुनी नहीं गई, उल्टे उनके ही हाथ में विधानसभा चुनाव में बड़ी-बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पार्टी के नेता अब उनकी कुर्सी बचाने के सवाल पर असहाय दिख रहे हैं।

सरकार में ताकत का बंटवारा

छत्तीसगढ़ में पुलिस कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देने का निर्णय कांग्रेस की पिछली सरकार ने लिया था। यह उसके चुनाव घोषणा पत्र में शामिल भी था। तब कई जिलों में आदेश का पालन हुआ, फिर बाद में स्थगित कर दिया गया। वीआईपी ड्यूटी व क्राइम कंट्रोल के लिए बल की कमी का कारण बताया गया। अब उपमुख्यमंत्री व गृह मंत्री विजय शर्मा के ध्यान में यह बात लाई गई और उन्होंने कहा कि एक दिन तो घर परिवार के लिए समय देने का हक पुलिस जवानों का भी बनता है। उन्होंने रोस्टर के अनुसार इसे लागू करने का निर्देश दे दिया। निर्देश के बाद डीजीपी अशोक जुनेजा ने इस आशय का पत्र जारी कर दिया। इधर कल जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने ऐसे किसी आदेश की जानकारी नहीं होने की बात कही। यानि डिप्टी सीएम ने कोई आदेश दिया और वह मुख्यमंत्री को मालूम नहीं है। इसी तरह करीब 10 दिन पहले उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने मुंगेली के एक कार्यक्रम में घोषणा की, कि राजीव गांधी न्याय योजना की चौथी किस्त का भुगतान किसानों को किया जाएगा, इस राशि पर उनका अधिकार है। साव की घोषणा पर कोई सरकारी आदेश, निर्देश, पत्र आदि जारी नहीं हुए हैं।

इन दोनों मामलों से यह तो समझ में आता है कि पिछली सरकारों की तरह अब यह जरूरी नहीं है कि छोटा-बड़ा हर फैसला मुख्यमंत्री से पूछकर लिया जाए। उप-मुख्यमंत्रियों को पर्याप्त अधिकार दिए गए हैं। 

क्लास रूम में अमर...

भाजपा में जब किसी को अनायास टिकट मिल जाए या उसे मंत्री बना दिया जाए तो प्रतिक्रिया होती है कि वे साधारण से कार्यकर्ता हैं। पार्टी जो जिम्मेदारी देती वहन करते हैं। ठीक ऐसी ही प्रतिक्रिया तब भी होती है, जब टिकट न मिले या मंत्री नहीं बनाया जाए। यह भाजपा में ही मुमकिन है कि पांच बार के विधायक और 15 साल के मंत्री रहे अमर अग्रवाल जैसे वरिष्ठ नेता किसी क्लास जैसे कक्ष में कॉपी कलम लेकर बैठें। उन्हे दो अन्य विधायकों राजेश मूणत और अजय चंद्राकर के साथ लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए क्लस्टर प्रभारी बनाया गया है। उनकी क्लास दिल्ली में ली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और संगठन से बीएल संतोष ने।

कांग्रेस में एक बार कोई विधायक बन गया तो जिंदगी भर उससे दरी नहीं बिछवाया जा सकता, पर भाजपा ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ है।

जेल में वीआईपी 

जेल का मतलब हिन्दी में सुधारगृह बताया जाता है। सुधारगृह उनके लिए जो कोई अपराध किये हों। लोकतंत्र में कानून जिन्हें सजा देता है, उन्हें सुधारगृह भेजा जाता है। लेकिन जेलों में ऐसे आरोपी भी रहते हैं, जिन पर आरोप साबित नहीं हुआ रहता। खासकर राजनीतिक आरोप ऐसे भी आरोप होते हैं जो शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार के मामलों से जुड़े होते हैं। उपमुख्यमंत्री ने जेल का निरीक्षण किया और वहां भी गए, जहां उन्हें आरोपी बनाकर रखा गया था। तब यहां कांग्रेस की सरकार थी, लिहाजा उन्हें कोई वीआईपी सुविधा नहीं मिली होगी। पिछली सरकार में कई ऐसे अफसर हैं, जिन्हें ईडी ने गिरफ्तार किया है और वे अभी रिमांड पर चल रहे हैं। उन्हें जेल में विशेष बैरक में रखा गया है।

आम लोगों ने ऐसी अनेक चर्चा चलती है कि फलां अधिकारी बहुत कद्दावर है, उसे सारी वीआईपी सुविधाएं जेल में मिल रही हैं। पूरा कामकाज जेल से ही चल रहा है। ऐसी बातें अक्सर सुनने में आती हैं। बीते दिनों केंद्रीय जेल में बंद दो वीआईपी अफसरों के बीच विवाद की भी चर्चा है। अब उपमुख्यमंत्री ने निरीक्षण कर साफ कह दिया है कि किसी को वीआईपी सुविधा नहीं दी जाए और सामान्य क़ैदियों के भोजन का स्तर सुधारा जाए। जेल में बंद अफसर अब अपने कर्मों को कोस रहे होंगे, कि कहां फंस गए। कब निकलेंगे बाहर। ([email protected])

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