राजपथ - जनपथ
गर्भगृह जाने वाले यहां से अकेले
अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में छत्तीसगढ़ से 140 विशिष्ट लोगों को आमंत्रित किया गया था। मगर शदाणी दरबार के प्रमुख संत युधिष्ठिर लाल अकेले ऐसे थे जिन्हें देशभर के चुनिंदा 5 सौ विशिष्ट जनों के साथ मंदिर के गर्भगृह में जाकर दर्शन का सौभाग्य मिला।
शदाणी दरबार के प्रमुख ने योग गुरु रामदेव, और फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन सहित अन्य हस्तियों से मुलाकात भी की। वैसे तो बड़ी संख्या में यहां से लोग अयोध्या जाकर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होना चाहते थे, लेकिन सुरक्षा कारणों से बाहर से लोगों को आने की अनुमति नहीं थी। केवल वो ही जा सकते थे, जिन्हें निमंत्रण पत्र भेजा गया था।
छत्तीसगढ़ सरकार ने अब प्रदेश के लोगों को रामलला दर्शन के लिए ले जाने की योजना तैयार की है। हर साल 20 हजार लोगों को मुफ्त में दर्शन कराने के लिए यात्रा पर ले जाया जाएगा। कैबिनेट योजना को मंजूरी दे चुकी है, और 7 फरवरी को दुर्ग से पहली ट्रेन अयोध्या के लिए चलेगी।
राम लला के नाम पर ठगी
किसी दुकान की शटर हमेशा खुली रखनी हो तो हमेशा अपडेट रहना चाहिए। पूरे देश में ऑनलाइन ठगी के रोजाना हजारों मामले हो रहे हैं और लोगों की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये लुट रहे हैं। ठगबाज हर समय शोध करते हैं कि कौन सा मार्केट गरम है। उन्होंने ताजा -ताजा ट्रैक श्रीराम के नाम पर पकड़ा है। अमेजॉन और कुछ दूसरे वेबसाइट पर पिछले एक पखवाड़े से संदेश आ रहे हैं कि अयोध्या में श्रीराम को भोग लगाए गए प्रसाद की होम डिलीवरी की जाएगी। मंदिर प्रबंधन की ओर से बताया जा चुका है कि अभी तो राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा ही नहीं हुई है, उनको भोग लगाने का काम तो बाद में शुरू होगा। इसके अलावा किसी को ऑनलाइन डिलीवरी के लिए अधिकृत किया भी नहीं गया है।
अब रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद फिर प्रसाद डिलीवरी के लिंक मोबाइल फोन पर आ रहे हैं। दर्शन के लिए वीवीआईपी पास दिलाने, शुभ अवसर होने की खुशी में मोबाइल पर फ्री रिचार्ज अमाउंट डालने का झांसा दिया जा रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में भी यह ठगी जोरों पर हो रही है। विभिन्न जिलों की पुलिस लोगों को सतर्क कर रही है कि ऐसे मेसैजेस से सतर्क रहें, किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करें, डाउनलोड नहीं करें। आप भी सतर्क रहें।
सफाई और हो जाए
रामलला की प्रतिमा के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को सचमुच ही दीवाली की तरह मनाया गया। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में तो आधी रात तक फटाके दीवाली की तरह ही फूटते रहे, और जगह-जगह सडक़ किनारे आयोजन चलते रहे, लोगों ने खूब दीये जलाए, और चारों तरफ ढोल-नगाड़े भी बजते रहे। कुल मिलाकर यह कि पिछले कुछ महीनों में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की दखल से जो रोक लाउडस्पीकरों पर चल रही थी, वह पूरी तरह बेअसर हो गई, और साउंड सर्विस वालों को भी फटाके वालों, और दीये बनाने वाले कुम्हारों के साथ काम मिल गया। अब चारों तरफ फटाकों और भंडारों की वजह से जो गंदगी फैली है, उसे भी साफ करने का आव्हान, मंदिरों को साफ करने की तरह दिया जाना चाहिए, क्योंकि कण-कण में भगवान माने जाते हैं, और धरती का कोई भी कण इस हिसाब से गंदा नहीं छोडऩा चाहिए।
सभी 11 का लक्ष्य
विधानसभा का बजट सत्र निपटने के तुरंत बाद लोकसभा चुनाव का बिगुल बज सकता है। इसके लिए चुनाव आचार संहिता मार्च के पहले पखवाड़े में लग सकती है। भाजपा संगठन के नेताओं ने इस सिलसिले में मंत्रियों को हिदायत दे रखी है। रामलला के माहौल के बीच में पार्टी ने सभी 11 सीटों को जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर खुद कमजोर माने जाने वाली सीटों पर ध्यान केन्द्रित किए हुए हैं, और वो प्रमुख नेताओं से लगातार बैठक कर रहे हैं। तीन क्लस्टर प्रभारियों अजय चंद्राकर, अमर अग्रवाल व राजेश मूणत के हिस्से काफी कुछ जिम्मेदारी है। संकेत साफ है कि सत्र के बीच में प्रचार तेज किया जाएगा।
तेरहवीं के बाद ?
विधानसभा चुनाव में बुरी हार से कांग्रेस में निराशा है। कांग्रेस के नेता अब तक इससे उबर नहीं पाए हैं। लोकसभा चुनाव नजदीक है, ऐसे में प्रमुख नेताओं के सक्रिय नहीं होने से माहौल नहीं बन पा रहा है। विधानसभा चुनाव में बुरी हार झेल चुके एक नेता ने तो हास परिहास के बीच अपने कुछ लोगों से कह दिया कि वो तेरहवीं के बाद ही सक्रिय होंगे। नेताजी के परिवार में किसी का निधन तो हुआ नहीं है। ऐसे में तेरहवीं का आशय लोकसभा चुनाव के संभावित नतीजों से लगा रहे हैं।
पुलिस को वीकली ऑफ कैसे?
डिप्टी सीएम ने बैठक में बोल दिया कि पुलिसकर्मियों को वीकली ऑफ दिया जाए। अब अफसर परेशान हैं कि वीकली ऑफ कैसे शुरू करें। देने की स्थिति रहती तो पिछली सरकार में ही दे देते। तब कांग्रेस की सरकार की प्राथमिकता में वीकली ऑफ देना भी था। कांग्रेस सरकार का फोकस भी ऐसी कोशिशों में था जिसमें पैसे खर्च न हों। पर जब थानों के स्टाफ को हर हफ्ते एक दिन छुट्टी देने की बात आई, तब यह संभव नहीं हुआ, क्योंकि इतने स्टाफ ही नहीं हैं कि वीकली ऑफ दिया जा सके। अब नए सिरे से मंथन शुरू हो चुका है कि किस तरह इसे पूरा किया जा सके।
दलबदल महा अभियान
लोकसभा चुनावों से पहले फिर से दलबदल महाअभियान शुरू हो रहा है। इस बार तो उस पार्टी के नेता पाला बदल रहे हैं, जो भाजपा का विरोध करके ही बनी और दो राज्यों में सरकार चला रही है। आप पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष समेत छह प्रमुख शीर्ष पदाधिकारी आज दोपहर मफलर छोड़ भगवा दुपट्टा पहनने जा रहे। जाने से पहले उन्होंने इस्तीफा दिया और अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को भला बुरा कहा। प्रदेश अध्यक्ष की राष्ट्रीय कोर कमेटी में भी रहे हैं।
बस्तर के आंदोलनों पर नीति क्या?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रायपुर में बैठक के दौरान छत्तीसगढ़ खासकर बस्तर की माओवादी हिंसा में कमी आने को लेकर सशस्त्र बलों की सराहना की। दावा किया गया कि हिंसक घटनाओं में 80 प्रतिशत कमी आई है, और उग्रवादियों का भौगोलिक क्षेत्र भी सिमट गया है। नक्सलियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशन चलाने और उनकी फंडिग का रास्ता पहचान कर उसे बंद करने का निर्देश भी दिया है।
नक्सल हिंसा में बीते पांच साल के दौरान कमी देखी गई है। सुरक्षा बल ऐसे अनेक स्थानों पर भी कैंप बनाने में सफल रहे जो कभी पूरी तरह नक्सलियों के नियंत्रण में होते थे। विधानसभा चुनाव के पहले गृह मंत्री ने अपने छत्तीसगढ़ दौरे में कई बार कहा कि सन् 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले नक्सलियों को छत्तीसगढ़ से उखाड़ फेकेंगे। इस बार की बैठक में उन्होंने तीन साल का लक्ष्य दिया है।
शाह की बैठक की जो रिपोर्ट आई है उसके मुताबिक उन्होंने फोर्स की भूमिका पर चर्चा को केंद्रित रखा है। इससे जुड़े कई दूसरे पहलुओं पर बैठक में कोई बात हुई हो तो वह बाहर नहीं आई है। जैसे जेलों में बिना मुकदमों के वर्षों से आदिसायियों का बंद रहना। कांग्रेस सरकार के समय इसकी थोड़ी कोशिश हुई थी। बाद में आंकड़े आए तो पता चला कि जुआ, शराब, मारपीट के मामलों में ही बंद लोगों को रिहा किया गया। जिन पर माओवादी गतिविधियों में संलिप्तता का आरोप है, उनके मुकदमों की सुनवाई और रिहाई में कोई तेजी नहीं आई। दंतेवाड़ा जिला जेल अब भी प्रदेश के सर्वाधिक ओवरक्राउडेड जेलों में से एक बना हुआ है। दूसरी तरफ बस्तर में अनेक ऐसे मुठभेड़ हुए हैं, जिनको लेकर ग्रामीणों का आरोप है कि निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई थी। ताजा उदाहरण 6 माह की बच्ची की फायरिंग में हुई मौत है। ऐसी घटनाओं पर कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू हुए आंदोलन अभी तक खत्म नहीं हुए हैं।
नक्सल समस्या के जानकार लोगों का कहना है कि यदि यह संघर्ष माओवादियों के बहकावे में आकर भी किये जा रहे हों, जैसा सरकारें और पुलिस दावा करती है- तब भी बस्तर में शांति कायम करने के लिए उनको भरोसे में लेना जरूरी है। भाजपा सरकार बनने के बाद केंद्रीय व राज्य के गृह मंत्री दोनों ने ही नक्सलियों से वार्ता की इच्छा दिखाई थी, लेकिन इन मुद्दों पर उनका क्या रुख है, बाहर निकलकर नहीं आया।