राजपथ - जनपथ
छापे वाली कालोनियाँ
रायपुर शहर के बाहरी इलाके में स्थित स्वर्णभूमि और लॉ-विस्टा, धनाढ्यों की कॉलोनी है। ईडी हो या फिर आईटी, यहां लगातार दबिश दे रही है। पिछले 3-4 वर्षों में यहां ईडी-आईटी अफसरों का आना-जाना लगा रहा है। अब तक दोनों कॉलोनियों में करीब 50 से अधिक कारोबारियों-उद्योगपतियों के यहां जांच-पड़ताल हो चुकी है।
दोनों कॉलोनियों को मध्य भारत की बेहतरीन कॉलोनियों में गिना जाता है। यही वजह है कि कई प्रभावशाली नेता, अफसर, उद्योगपति, और कारोबारी यहां निवास करते हैं। हाल यह है कि जिनके यहां छापे डलते हैं, तो वो स्वाभाविक तौर पर परेशान होते हैं, लेकिन उनके अड़ोस-पड़ोस के लोग भी सशंकित रहते हैं।
भगत पर छापा
पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के यहां आईटी की रेड से हडक़ंप मचा हुआ है। भगत काफी पहले से जांच एजेंसियों के निशाने पर थे। अब उनका कहना है कि वे विधानसभा चुनाव हारने के बाद वो सरगुजा सीट से लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे थे।
दो दिन पहले ही हमारे अख़बार में कस्टम मिलिंग घोटाले पर रिपोर्ट छपी थी, भगत उस दौर में भूपेश सरकार के खाद्य मंत्री थे। उस वक़्त के भ्रष्टाचार का लोकसभा चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन राजनीति में आड़ लेना तो आम बात है।
दिलचस्प बात यह है कि पार्टी के प्रमुख नेता लोकसभा चुनाव लडऩे के अनिच्छुक हैं। सिर्फ अमरजीत भगत, और डॉ. शिवकुमार डहरिया ही ऐसे हैं, जो कि विधानसभा चुनाव हारने के बाद लोकसभा टिकट के लिए प्रयासरत हैं। अब अमरजीत के यहां तो आईटी ने दबिश दे दी है, और चर्चा है कि आने वाले दिनों में उनकी मुश्किलें बढ़ सकती है। ऐसे में उनकी टिकट का क्या होगा, यह देखना है।
विधायकों के खिलाफ मोर्चा
राजनांदगांव की खुज्जी सीट से कांग्रेस विधायक भोलाराम साहू के खिलाफ पार्टी के स्थानीय पदाधिकारियों ने मोर्चा खोल दिया है, और अब जिले की एक और कांग्रेस विधायक डोंगरगढ़ की हर्षिता स्वामी बघेल के खिलाफ भी पार्टी के पदाधिकारी लामबंद हो गए हैं।
चर्चा है कि हर्षिता के व्यवहार को लेकर डोंगरगढ़ के कुछ पदाधिकारियों ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज से शिकायत की है। भोलाराम साहू के खिलाफ भी शिकायत को लेकर पदाधिकारी, दीपक बैज से मिले थे। अब लोकसभा चुनाव निकट हैं। ऐसे में पार्टी नेताओं की आपसी खटपट से चुनाव में नुकसान होने का अंदेशा जताया जा रहा है।
नक्सलियों का गुप्त ठिकाना...
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसी महीने छत्तीसगढ़ में नक्सल के खात्मे के उपायों पर बैठक ली। केंद्र के बाद राज्य में भी भाजपा की सरकार बन जाने के बाद बस्तर में हिंसा खत्म करने के लिए प्रयासों में कुछ तेजी दिखने के आसार थे। इसी बीच प्रभावित क्षेत्रों में तीन और बटालियन तैनात करने का फैसला लिया गया। मगर, बीजापुर में सर्चिंग पर निकले जवानों पर नक्सलियों ने फिर हमला कर यह बताने की कोशिश की है कि उन्हें खदेडऩा आसान नहीं है। इधर एक तस्वीर अबूझमाड़ से आई है। यहां एक बड़ी सुरंग सुरक्षा बल के जवानों ने खोज निकाली है। ऐसी सुरंगें और भी हो सकती हैं। नक्सली इनका इस्तेमाल छिपने के लिए करते हैं। कई हिस्सों में बंटी सुरंग जिस तरह से व्यवस्थित है, उससे लगता है कि इसके निर्माण में किसी विशेषज्ञ की मदद जरूर ली गई होगी। गृह मंत्रालय की कई रिपोर्ट्स हैं जिनमें बताया गया है कि नेपाल, बांग्लादेश और कुछ दूसरे दक्षिण एशियाई देशों से नक्सलियों को हथियार, गोला बारूद और उपकरण मिलते हैं, और प्रशिक्षण भी। क्या इसका आइडिया भी उन्हें बाहर से मिला ? अब तक मैदान व जंगलों के बीच नक्सलियों की तलाश करने वाले सुरक्षा बलों को अब ऐसे बंकरों को भी ढूंढना होगा।
कांग्रेस में कितने नए चेहरे होंगे ?
विधानसभा के अनपेक्षित चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व प्रयास में था कि कुछ बड़े चेहरे मैदान में उतार दें, ताकि पार्टी की रीति नीतियों के अलावा उनके कद के चलते भी वोट मिले। जो लोग मंत्री रह चुके हैं, उनसे ये उम्मीद अधिक रखी जा रही है। लगता होगा कि उनके पास संसाधनों की कमी नहीं होगी। पर जैसी खबर आ रही है, कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे ज्यादातर नेताओं ने लोकसभा लडऩे के लिए दिलचस्पी नहीं दिखाई है। हाल ही में पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू ने यह जरूर कहा है कि पार्टी उन्हें जो जिम्मेदारी देगी, निभाएंगे। इसमें लोकसभा प्रत्याशी बनाया जाना भी शामिल है। वे दुर्ग से सांसद रह चुके हैं। इसी तरह से डॉ. शिव डहरिया अपनी पत्नी को जांजगीर-चांपा से उतारने के लिए खुद से ही प्रयास कर रहे हैं। कांकेर से मोहन मरकाम को भी सहमत बताया जा रहा है। दो सीटों बस्तर और कोरबा में कांग्रेस के मौजूदा सांसदों की टिकट बदले जाने की संभावना कम ही है। इसके बावजूद आधा दर्जन सीटें ऐसी हैं, जिनमें उपयुक्त प्रत्याशी को लेकर मंथन किया जाना है। बताया जा रहा है कि जो 160 आवेदन अब तक कांग्रेस को मिले हैं, उनमें पूर्व मंत्री या वरिष्ठ विधायक, पूर्व विधायकों के नाम नहीं है। आशय यही है कि वे चुनाव लडऩे के इच्छुक नहीं है। यह अलग बात है कि हाईकमान से निर्देश मिलने पर उन्हें अनिच्छा के बाद भी लडऩा पड़ेगा। पर इससे हटकर सोचा जाए तो, एक मौका कांग्रेस के पास है कि वह चूके हुए पुराने नेताओं की जगह नए चेहरों को आगे कर दे। भाजपा ने यह जोखिम पिछले लोकसभा चुनाव में ही नहीं, बीते विधानसभा चुनाव में और मंत्रिमंडल के गठन में भी उठाया है।
हेलमेट सिर्फ एक हाईवे पर जरूरी
इस बार सडक़ सुरक्षा सप्ताह नहीं, सडक़ सुरक्षा माह मनाया जा रहा है। यानि सडक़ों पर दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ज्यादा गंभीरता से काम होना है। लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि वे ट्रैफिक नियमों का पालन करें। इनमें एक बड़ा जरूरी नियम है कि दोपहिया चालक हेलमेट पहनकर चलें। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार और उसके पहले भाजपा की सरकार रहते हुए कई बार हेलमेट की अनिवार्यता के लिए अभियान चलाए गए लेकिन कुछ हफ्तों, महीनों के बाद कार्रवाई हर बार ढीली पड़ गई। इस बार यातायात सुरक्षा माह का उद्घाटन करते हुए बीते 14 जनवरी को जशपुर के बगीचा से एक जागरूकता रथ को खुद मुख्यमंत्री ने हरी झंडी दिखाई थी। इसे अब 15 दिन हो चुके लेकिन सडक़ों पर नजर दौड़ाएं तो ज्यादातर बाइक सवार बिना हेलमेट ही नजर आ रहे हैं। ट्रैफिक पुलिस की चालान का खौफ तो है ही नहीं, अपनी जान की फिक्र भी नहीं। मुख्यमंत्री से रथ रवाना कराने के बाद अफसर भूल गए। ऐसे में कल दुर्ग में कलेक्टर और पुलिस अधिकारियों के बीच हुई बैठक में तय किया गया है कि हेलमेट को लेकर एक फरवरी से अभियान तेज किया जाएगा। खासकर रायपुर दुर्ग नेशनल हाईवे पर चेकिंग लगातार की जाएगी, कार्रवाई की जाएगी। मगर, यह पहल सिर्फ दुर्ग से क्यों हुई है? बाकी जिलों में सडक़ सुरक्षा के नाम पर गोष्ठियां, वाद-विवाद, पेंटिंग आदि की स्पर्धाएं ही हो रही हैं।