राजपथ - जनपथ
भूपेश गैरहाजिर
पूर्व सीएम भूपेश बघेल इन दिनों संगठन के कार्यों के लिए दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, बिहार आदि के दौरे कर रहे हैं। इसलिए बजट सत्र में उनकी उपस्थिति कम नजर आ रहे हैं। इस पर अजय चंद्राकर लगातार नौ दिनों से नजर बनाए हुए हैं। आज उनसे रहा नहीं गया। सदन में बघेल को देख चंद्राकर ने स्पीकर से कहा कि अध्यक्ष जी विधानसभा में दर्शन देने के लिए पूर्व सीएम का अभिनंदन हैं, दर्शन देकर बड़ी कृपा की।
पूर्व सीएम बघेल ने जवाब में कहा कि अजय जी, आप मेरी अनुपस्थिति पर रोज टिप्पणी करते हैं। जबकि पूरा ट्रेजरी बेंच (मंत्रियों की कुर्सियां) खाली है। इस पर चंद्राकर ने कहा कि मैंने टिप्पणी कहा कि,धन्यवाद दिया है दर्शन देने के लिए। उन्होंने कहा कि अध्यक्षजी विधानसभा में मेडिकल कैंप चल रहा है। विपक्ष को इलाज की जरूरत है। नहीं आ रहे। पूर्व सीएम आज आ रहे हैं। शुरू के दो दिन में एक एक मिनट में बहिर्गमन कर चले जाते रहे हैं। बघेल ने कहा कि इलाज की जरूरत हमें नहीं आपको है।
घर का जानकार दर्द
कांग्रेस विधायक चातुरी नंद ने गुरुवार को अपने तारांकित प्रश्न पर चर्चा, छांट,छांट कर तार्किक पूरक प्रश्नों पर आसंदी से बधाई ली। नि: संदेह उन्होंने काफी चातुर्यता का परिचय दिया। सरायपाली के मिडिल स्कूल की शिक्षिका रहीं चातुरी नंद पहली बार विधायक चुनी गईं। कल की अपनी पूरी चर्चा छत्तीसगढ़ी भाषा में की। गृह मंत्री ने जवाब भी छत्तीसगढ़ी में ही दिया।
चर्चा में सब कुछ था- तथ्य थे, आरोप थे, गलत जवाब पर उंगली उठाई, छत्तीसगढ़ी लोकोक्ति के साथ पीडि़तों का दर्द बयां किया और स्पीकर समेत वरिष्ठ विधायकों के पूर्व के प्रश्नों का संदर्भ भी। पुलिस कर्मियों के भत्तों को लेकर काफी बारीक जानकारी दी। किट भत्ता, सायकल भत्ता, भोजन भत्ता, पौष्टिक आहार भत्ता, वर्दी धुलाई अलाउंस से लेक एचआरए तक। इन दशक पुराने न्यूनतम भत्ता से महंगाई इन दिनों में गुजारे को मुश्किल बताया। चर्चा सुनकर लगा विधायक ने किसी पुलिसकर्मी के साथ बैठकर पहले होम वर्क किया होगा। नि: संदेह किया है, होमवर्क ही। उन्हें दशकों का अनुभव भी है। भुक्तभोगी भी हैं। इस संबंध में पता किया तो मालूम हुआ विधायक-पति, पुलिसकर्मी ही हैं। पति के साथ 60 हजार जवानों की पीड़ा को भला ऐसे और कौन पेश कर सकते हैं। इस सदन में पूर्व में भी सिपाही, सब इंस्पेक्टर से लेकर डीएसपी तक विधायक रहे लेकिन किसी ने या तो प्रश्न ही नहीं किया ,या फिर प्रश्नों में इतने तर्क नहीं रहे।
जोगी सतर्क थे, पवार निश्चिन्त
चुनाव आयोग ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का कब्जा इसके संस्थापक शरद पवार के हाथ से छीन कर उनके भतीजे अजित पवार को सौंप दिया है। दुखी शरद पवार ने कहा कि चुनाव आयोग ने पार्टी को उनसे छीना जिन लोगों ने इसकी स्थापना की। हमारा चुनाव चिन्ह भी ले गए।
इस घटना ने प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी की याद दिला दी है। कांग्रेस से अलग होने पर जब उन्होंने नई पार्टी बनाई, तब नाम की घोषणा की- जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी)। इसे अभी भी संक्षेप में जेसीसी (जे) कहा जाता है। लोगों ने पूछा कि अभी तो जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ नाम से कोई दूसरा दल नहीं है, फिर ब्रैकेट में जोगी लिखने की क्या जरूरत है? सयाने जोगी ने जवाब दिया कि आज नहीं है, यह बात ठीक है। ? मगर, कल को कोई बगावत करने वाला पार्टी के नाम पर दावा करेगा तो उसे जोगी नाम चिपकाकर चलना पड़ेगा। और मुझसे अलग होकर कोई जोगी नाम जोडक़र कैसे रखेगा? मेरी पार्टी का नाम मेरे पास ही रहेगा। और जब नाम मेरे पास रहेगा तो चुनाव चिन्ह पर भी कोई दावा नहीं कर पाएगा।
शायद शरद पवार स्व. जोगी की तरह सतर्क होते तो उनको पार्टी का नाम छिन जाने का सदमा आज नहीं झेलना पड़ता। चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने की नौबत नहीं आती। यह जरूर है कि जोगी की तरह सिर्फ सरनेम से काम नहीं चलता। उन्हें अपनी पार्टी के नाम के साथ अपना पूरा नाम ‘शरद पवार’ जोडऩा पड़ता। आखिर, उनके भतीजे अजीत का भी सरनेम पवार ही है।
सौ फीसदी खरे सांसद..?
कांकेर के भाजपा सांसद मोहन मंडावी के नाम पर एक खास उपलब्धि जुड़ गई है। लोकसभा के सत्रों में उनकी सौ प्रतिशत उपलब्धि रही। ऐसा रिकॉर्ड अजमेर के सांसद भगरीथ चौधरी ने भी बनाया। दोनों पहली बार के भाजपा सांसद हैं और संयोग से पूरे कार्यकाल में एक ही सीट पर अगल-बगल बैठे। कुछ दिनों पहले सदन में श्रीराम पर स्वरचित छत्तीसगढ़ी गीत गाकर भी मंडावी चर्चा में आए थे। हाल ही में मंडावी ने बताया कि पिछले दो दशकों के भीतर वे अपने क्षेत्र में रामचरितमानस की 48 हजार प्रतियां बांट चुके हैं, जिन पर करीब एक करोड़ रुपए की लागत आई है।
कोविड महामारी के दौरान दो साल पहले मंडावी ने सदन में एक महत्वपूर्ण मामला उठाया था। उन्होंने कहा था कि राज्य के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए आवास की सुविधाएं नहीं हैं। वे अपनी जान जोखिम में डालकर महामारी से बचाव के लिए सेवाएं दे रहे हैं। खासकर महिला स्टाफ के लिए एनआरएचएम फंड से आवास की स्वीकृति दी जानी चाहिए।
मगर, 100 प्रतिशत उपस्थिति वाले मंडावी सहित अन्य भाजपा सांसदों से प्रदेश के लोगों की एक आम शिकायत पूरे पांच साल रही कि उन्होंने रेलवे से जुड़ी छत्तीसगढ़ की मांगों को सदन में ठीक तरह से नहीं उठाया। ट्रेनों की लेटलतीफी को या तो उन्होंने उचित ठहराया या फिर कांग्रेस को जिम्मेदार बता दिया।
टेक्नॉलॉजी से दो-दो हाथ...
सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए ई-केवाईसी जरूरी है। खेतों में काम करने वाले किसान-मजदूरों को इस तकनीक का अभी इस्तेमाल करना भले ही नहीं आता हो, पर उन्हें मालूम है कि अब यह उनके जीवन का जरूरी हिस्सा बनता जा रहा है। आने वाले कुछ वर्षों में शायद हमें यह भी देखने को मिले जब किसान-मजदूर खुद अपने हाथ से सॉफ्टवेयर और ऐप ऑपरेट करें। तकनीक का अनुसरण कर फसल का निरीक्षण बेहतर तरीके से करें, ज्यादा उपज लें और अच्छा बाजार ढूंढ लें। यह रायगढ़ जिले के एक गांव की तस्वीर है, जहां एक कर्मचारी जन-धन योजना का लाभ पहुंचाने के लिए एक ग्रामीण का ब्यौरा डिजिटली एकत्र कर रहा है।