राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : अब कहां के कद्दावर रह गए...
08-Mar-2024 4:13 PM
	 राजपथ-जनपथ : अब कहां के कद्दावर रह गए...

अब कहां के कद्दावर रह गए...

वाणिज्य, उद्योग व श्रम मंत्री, कोरबा विधायक लखन लाल देवांगन से सवाल करते हुए किसी मीडियाकर्मी ने पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के नाम के सामने कद्दावर शब्द जोड़ दिया। देवांगन ने पलटकर कहा-अब कहां के कद्दावर नेता हैं। कोरबा में अब उनको कोई नहीं जानता। पैसे के बल पर तीन बार से चुनाव जीत रहे थे। इस बार प्रत्याशी मिल गया तो 12 के भाव चल दिए....। यानि मंत्रीजी का यह मानना है कि इस बार जयसिंह को हराने के लिए तगड़ा प्रत्याशी मिल गया। इसके पहले के प्रत्याशी उनकी पार्टी ने कमजोर दिए। लोकसभा चुनाव पास है, इसलिए ऐसे तीखे बयान कांग्रेस-भाजपा दोनों तरफ से आ सकते हैं। सत्ता में हों तो तेवर और भी तल्ख हो जाते हैं। याद करिये, पिछली सरकार के मंत्रियों के जुबान से भी भाजपा नेताओं के बारे में क्या क्या फूटते थे।

प्रशासन पर दबाव

भाजपा के एक-दो नए नवेले विधायकों की स्थानीय प्रशासन से पटरी नहीं बैठ पा रही है। विधायक कोई गैर जरूरी काम लेकर जाते हैं, तो आला प्रशासनिक अफसर तवज्जो नहीं दे रहे हैं। सरगुजा संभाग के एक जिले में तो विधायक के करीबियों ने अपने विधानसभा क्षेत्र के 40 पंचायत सचिवों की लिस्ट देकर कलेक्टर पर तबादले के लिए दबाव बनाया। 

कलेक्टर ने लिस्ट देखी, और फिर साफ तौर पर कह दिया कि तीन-चार से अधिक तबादले नहीं हो सकते हैं। ऐसे ही जमीन से जुड़े विवाद पर कार्रवाई न हो, इसके लिए कलेक्टर पर दबाव बनाने की कोशिश की गई। मगर कलेक्टर ने कार्रवाई रोकने से मना कर दिया। कुछ इसी तरह की शिकायतें भी अलग-अलग जगहों पर आई है। कुछ विधायकों की शिकायत पार्टी संगठन तक पहुंची है। संकेत है कि आने वाले दिनों में अतिसक्रिय जनप्रतिनिधियों पर लगाम लगाने के लिए हिदायत दी जा सकती है। 

हाईकोर्ट की फटकार

बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान डिप्टी कलेक्टरों की आरटीओ के पद पर पोस्टिंग नाराजगी जताई। कोर्ट ने सरकार से पूछ लिया कि आरटीओ के पद पर डिप्टी कलेक्टरों की पोस्टिंग क्यों की जा रही है? परिवहन विभाग के लोग क्या करेंगे? उन्होंने इस मामले में एजी को तलब किया है।   

जस्टिस एनके व्यास की एकल पीठ ने पूछ लिया कि हर जगह डिप्टी कलेक्टर, या आईएएस की पोस्टिंग क्यों की जाती है। मूल कैडर के अफसर क्या करेंगे? कोर्ट की तलखी के बाद सरकार ने आनन-फानन में परिवहन में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ आधा दर्जन से अधिक डिप्टी कलेक्टरों को मुक्त कर उनकी सेवाएं सामान्य प्रशासन विभाग को लौटा दी गई है। 

हालांकि ये सारी पोस्टिंग पिछली सरकार में हुई थी, और प्रशासनिक अफसरों की मलाईदार परिवहन विभाग में पोस्टिंग की परम्परा लंबे समय से चली आ रही है। मगर अब कोर्ट के संज्ञान में प्रकरण आने के बाद अब शायद ही विशेषकर राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की पोस्टिंग परिवहन में हो पाए। 

नक्सल मोर्चे पर तैनाती 

बस्तर आईजी सुंदरराज पी. को बस्तर इलाके में सेवाएं देते 8 साल से अधिक हो चुके हैं। धुर नक्सल प्रभावित इलाके में सबसे ज्यादा समय तक काम करने वाले दूसरे अफसर हैं। इससे पहले एडीजी टीजे लॉगकुमेर भी करीब 5 साल से अधिक समय बस्तर में पदस्थ रहे। 

बाद में लॉगकुमेर अपने गृह राज्य नागालैंड चले गए, और वहां डीजीपी भी बने। इससे परे सुंदरराज नारायणपुर एसपी रहे। इसके बाद दंतेवाड़ा डीआईजी बने, और फिर बस्तर के प्रभारी आईजी और प्रमोशन के बाद पूर्णकालिक आईजी के पद पर काम कर रहे हैं। 

आईपीएस के 2003 बैच के अफसर सुंदरराज की साख अच्छी है। और यही वजह है कि चुनाव आयोग ने भी नियमों को शिथिल कर बस्तर में बने रहने दिया। सुंदरराज के रहते नक्सल गतिविधियों में काफी हद तक कमी आई है। सुंदरराज बस्तर में सबसे ज्यादा समय तक पदस्थ रहने वाले अफसर बन गए हैं। फिलहाल तो सरकार का उन्हें हटाने का इरादा भी नहीं दिख रहा है। 

साइकिल गुम गई तो भूल जाइये...

बीते साल प्रकाश झा की एक फिल्म ओटीटी पर आई थी, मट्टो की साइकिल। इसमें प्रकाश झा खुद गांव के एक दिहाड़ी मजदूर के किरदार में हैं। काम पर शहर जाने के लिए उसके पास दो दशक पुरानी टूटी-फूटी साइकिल है। बार-बार नई खरीद लेने की सोचता है पर दो छोटी बेटियों और बीमार पत्नी के कारण बचत ही नहीं हो पाती और कर्ज में डूबा रहता है। साइकिल दुकान वाला भी बार-बार रिपेयरिंग करवाने का मजाक उड़ाकर नई साइकिल खरीदने की सलाह देता रहता है। एक दिन उस टूटी-फूटी साइकिल पर एक ट्रैक्टर चढ़ गया। साइकिल पूरी तरह बर्बाद। कई दिन तक पैदल शहर जाकर काम ढूंढता है, पर ऐसा करना बहुत थका देता है। आखिरकार वह ऊंचे ब्याज पर एक और कर्ज लेकर नई साइकिल खरीद लेता है। अब वह नई साइकिल लेकर फर्राटे से काम पर आना जाना करने लगा। मगर, दो चार दिन बाद शाम के वक्त लौटते समय कुछ लुटेरे उसकी साइकिल छीनकर भाग जाते हैं। मजदूर की पीड़ा का कोई ठिकाना नहीं। वह थाने और ग्राम प्रधान के चक्कर लगाता है। कोई उसकी साइकिल ढूंढने में मदद नहीं करता, न एफआईआर दर्ज की जाती। उसकी कीमत 3500 रुपये की थी। शायद प्रकाश झा जुलाई में लागू हो रहे कानून के बाद इस फिल्म को बनाते तो उन्हें स्टोरी को कोई दूसरा मोड़ देना पड़ता।

इस कहानी का जिक्र इसलिए क्योंकि, रिटायर्ड आईपीएस आर के विज ने सोशल मीडिया पर साइकिल के साथ एक पोस्ट डालकर बताया है कि एक जुलाई से देश में जो नया कानून लागू होने वाला है, उसमें 5 हजार से कम की चोरी असंज्ञेय अपराध है। इससे पुलिस को यह फायदा है कि छोटी चोरियों के लिए अपराध तो वह पंजीबद्ध कर लेगी लेकिन विवेचना की जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी। नुकसान यह है कि जिस गरीब की एफआईआर नहीं लिखी जाती, उसके पास वकील को देने के लिए पैसे नहीं होंगे और उसे न्याय मिलना मुश्किल हो जाएगा। दूसरा नुकसान यह भी है कि इस कीमत तक की संपत्ति चुराने वाला पुलिस की निगाह में अपराधी ही नहीं माना जाएगा।

शादी के लिए अतिथि का इंतजार

विवाह का मुहूर्त एक बार तय होने के बाद जोड़े और उनके परिवार के लोगों को उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है। मगर ऐन वक्त पर यह निरस्त हो जाए तो? मगर, मामला निर्धन परिवारों का हो और आयोजन सरकारी हो, तो सब मुमकिन है। कोरबा में महिला बाल विकास विभाग की ओर से महिला दिवस के मौके पर आज सामूहिक विवाह का कार्यक्रम रखा गया था। इसमें करीब 250 जोड़े विवाह सूत्र में बंधने वाले थे। मगर एक दिन पहले कल बताया गया कि समारोह स्थगित कर दिया गया है। अगली तारीख जल्दी बताएंगे। दूसरी बार यह कार्यक्रम टाला गया। इसके पहले फरवरी महीने में भी विवाह की एक तिथि घोषित की गई थी। उसे भी एक दिन पहले ही स्थगित कर दिया गया। एक माह बाद की तारीख तय हुई, वह भी रद्द। यह जरूर है कि समारोह की ज्यादातर तैयारियां सरकारी महकमा ही करता है लेकिन जिन जोड़ों की शादी हो रही हों और जिनके परिवार में हो रही हैं, उनके घर में भी रौनक छाई रहती है। घर को सजाते-संवारते हैं, रिश्तेदारों तक न्यौता भेज चुके होते हैं।
बताया जा रहा है कि विभाग को एक अदद मुख्य अतिथि तय करना है, जिनसे समय नहीं मिल पा रहा है।  

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