राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : लोक सेवकों के चर्चे
06-Apr-2024 4:35 PM
राजपथ-जनपथ : लोक सेवकों के चर्चे

लोक सेवकों के चर्चे

इन दिनों प्रशासनिक गलियारों में लोक सेवक कहे जाने वाले अफसरों की चर्चाएं हैं। इनके और परिवार के  रहन सहन शौक भी उतने ही चर्चा में है। अपने शौक के लिए किसी भृत्य की बर्खास्तगी से भी गुरेज नहीं करते।

एक लोक सेवक ट्रांसफर होकर आए तो उनके गमले के पेड़ मर गए । बंगले में तैनात  पूरे अमले को उनकी मेमसाहब के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा।मरता क्या न करता तत्काल 128 नए गमले फुल साइज के पेड़ लगाकर दिए गए। अब रोज उनके यहां 5 लोग बंगले में 2 टाइम मेम साहब के आदेश से गमले के पास ड्यूटी में रहते हैं।इन साहब  के घर में अलग अलग विभागों की 5 गाडिय़ां गैरेज में रहतीं हैं। 

वहीं डाक विभाग के एक पूर्व निदेशक (अब मैसूर में पदस्थ) की पत्नी ने एक भृत्य को बर्खास्त करवा दिया था कि उसके टूटकर नीचे गिरे शीशी का घी साहब के खाने में परोसा था। बाद में आए,नए साहब ने इस भृत्य को बहाल किया।

तो वन विभाग के एक लोक सेवक ने अपने आप को राजधानी में ही पदस्थ रखने, पूर्व मंत्री के कारों की रखवाली  के लिए पांच दैवेभो को गैरेज  में नियुक्ति दी है। इतना ही नहीं इन साहब को मुर्दों की भी चिंता है। नेताजी के सामाजिक कब्रिस्तान की देखरेख के लिए भी दैवेभो रखवाए हैं।

भीतरघातियों से आग्रह

विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के कई नेताओं ने भीतरघात का आरोप लगाया था। इन्हीं में से एक कांग्रेस प्रत्याशी  भी शामिल हैं। लोकसभा प्रत्याशी देवेंद्र यादव की मौजूदगी में जब पहली बैठक हुई तो उन्हें आग्रह करना पड़ा कि कोई गद्दारी ना करे। भीतरघात करने वालों को ललकारने के मामले तो आपने सुने होंगे पर अनुनय विनय और आग्रह के संभवत: बिरले ही मौके आए होंगे। प्रत्याशी का यह दर्द शैलेष पांडेय और विजय केशरवानी बेहतर समझ रहे होंगे, एक ऑडियो ने जिनके लिए बड़ा गड्ढा कर दिया था।

पार्टी प्रवेश करने वालों की तलाश

किसी प्रोडक्ट के प्रचार प्रसार के लिए आपने तरह तरह के विज्ञापन देखे होंगे... वेकन्सी के भी विज्ञापन... कल्पना कीजिए कि चुनाव से पहले ऐसा विज्ञापन टंगा हो... पार्टी प्रवेश के लिए योग्य उम्मीदवार की तलाश है। खैर ऐसे विज्ञापन तो नहीं टंगे हैं पर बड़े पैमाने पर अभियान चल रहा है। पार्टी के कुछ नेता इसी काम में लगाए गए हैं। एक दो बड़े नाम के साथ कुछ छुटभैये टाइप के और भीड़ बढ़ाने के लिए दिहाड़ी मजदूर जुटाकर आंकड़ा बढ़ाया जाता है। आश्चर्य नहीं है कि आने वाले कुछ दिनों में इस काम के लिए एजेंसी खुल जाए और मैनेजमेंट के विद्यार्थी भर्ती किए जाएं।

मुफ्त में होगा दर्शन...

‘द केरला स्टोरी’ को दूरदर्शन पर प्रसारित करने की घोषणा की गई है। केरल के मुख्यमंत्री और वहां विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, दोनों ने ही इसका विरोध किया है। चुनाव आयोग से की गई शिकायत में उन्होंने कहा है कि यह फिल्म मतदाताओं को ध्रुवीकरण के लिए भडक़ाती है। फिल्म का प्रदर्शन सांप्रदायिक तनाव बढ़ा सकता है। इसके जरिये बीजेपी को चुनावी लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। जब रिलीज हुई तो इस फिल्म के तरफदार लोगों ने फ्री सिनेमा टिकट बुक कराई थी। इधर, हाल ही में ऐसे ही झुकाव वाली एक दूसरी फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर आई है। निर्माता-अभिनेता रणदीप हुड्डा ने बताया कि इस फिल्म को बनाने में उन्हें अपनी जमीन भी बेचनी पड़ गई। मगर यह फिल्म सिनेमाघरों से बहुत जल्द उतर गई। खबरों के मुताबिक फिल्म की आधी लागत भी नहीं निकल पाई है। ऐसी फिल्मों के एक प्रशंसक का कहना है कि फिल्म देखने के लिए वह नहीं गया। कारण उसने यह बताया कि जो जानकारी वाट्सएप पर दिन-रात मुफ्त मिल रही हो, उसे जानने के लिए 200 रुपये खर्च क्यों करें? द केरला स्टोरी तो वैसे भी हिट हो गई थी। उसने खासी कमाई की। दूरदर्शन को तो अभी रणदीप हुड्डा को मदद करने की जरूरत थी।

अब नहीं होगी पशु बलि...

छत्तीसगढ़ में अनेक देवी मंदिर हैं, कुछ को शक्ति पीठ भी माना जाता है। अतीत में सभी में किसी न किसी तरह के जानवरों की बलि देने की प्रथा रही है। समय के साथ माना जाने लगा कि यह एक कुरीति है, जिसे खत्म होना चाहिए। रायगढ़ जिले में स्थित चंद्रहासिनी देवी के मंदिर में सैकड़ों सालों से बलि दी जाती है। कुछ लोग मन्नत पूरी करने के लिए, तो कुछ मन्नत पूरी होने के बाद बलि देते आए हैं। अब मंदिर प्रबंधन ने यह तय किया है कि बलि देने की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी। निरीह पशुओं के प्रति हिंसा और उसका सार्वजनिक प्रदर्शन कर मान्यता देना सभ्य होते समाज के अनुकूल नहीं है। चंद्रहासिनी मंदिर में लोग दूर-दूर से बलि देने के लिए लोग पहुंचते थे। इसे अचानक बंद कर देने से होने वाली अव्यवस्था से शायद मंदिर ट्रस्ट चिंतित है। इसीलिये इसे तत्काल लागू नहीं किया जा रहा है। इसका पालन शारदेय नवरात्रि के पहले अक्टूबर में होगा।

पानी मिले न मिले...

राजस्थान से लौटे एक पर्यटक ने यह तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली है। राजस्थान में जब जल प्रबंधन ठीक तरह से  नहीं हो पाया था, तब मेहमानों के पीने के लिए पानी मिले न मिले छाछ जरूर मिल जाता था। यह नागौर जिले के खरनाल रोड पर लगा बोर्ड है। पर्यटक ने बताये गए पते पर जाकर बोर्ड में लिखे दावे को परख भी लिया है। वहां बिना किसी राजनीतिक दल के समर्थन से चलने वाली एक गौशाला भी है। 

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