राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : चाचा की मेहनत रंग लाई
17-Apr-2024 2:31 PM
 राजपथ-जनपथ : चाचा की मेहनत रंग लाई

चाचा की मेहनत रंग लाई

मौजूदा साल के यूपीएसपी के नतीजों में छत्तीसगढ़ पुलिस के आईजी बीएन मीणा के घर की बेटी ने भी कमाल किया है। बद्रीनारायण की भतीजी नेहा मीणा ने 569वीं रैंक हासिल कर आईपीएस के लिए अपनी जगह पक्की कर ली है। बताते है कि नेहा ने यूपीएसपी की शुरूआत से नतीजे तक की तैयारी अपने चाचा बीएन मीणा की देखरेख में की। हैदराबाद स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल आईपीएस ट्रेनिंग सेंटर में पहुंचाने के लिए मीणा ने किताबों  के कलेक्शन से लेकर देश-दुनिया की ज्ञानवर्धक विषयों से भतीजी की बौद्धिक क्षमता को मजबूत किया। नेहा के पिता श्रवण मीणा इंडियन रेवन्यू सर्विस के अफसर है। 

सुनते है कि बीएन मीणा अपने परिवार के बच्चों के कैरियर को लेकर बेहद गंभीर है। राजधानी रायपुर में वह न सिर्फ नेहा समेत अपने भाईयों और बहनों के बच्चों को यूपीएसपी एक्जाम के लिए अपने अनुभव के जरिए तैयारी पर फोकस कर रहे है। नेहा ने छत्तीसगढ़ के इतिहास को लेकर साक्षात्कार में पूछे गए सवालो का सही जवाब दिया। नेहा के आईपीएस चुने जाने से मीणा परिवार के घर की अन्य बेटियों के लिए आगे बढऩे का द्वार खुल गया।

प्रचार से दूरी के बाद भी...

चर्चा है कि ईडी की रेड के बाद से पूर्व मंत्री अमरजीत भगत, और उनके समर्थक प्रचार में पूरी तरह जुट नहीं पा रहे हैं। भगत सरगुजा से प्रत्याशी शशि सिंह के नामांकन दाखिले के मौके पर मौजूद तो थे, लेकिन कुछ देर बाद वहां से निकल गए। भगत, और उनके तमाम करीबी लोग ईडी की जांच के घेरे में हैं। यही वजह है कि कांग्रेस के स्थानीय नेता अमरजीत से दूरी बनाकर चल रहे हैं। 

अमरजीत ने अपने विधानसभा क्षेत्र सीतापुर में विकास के काफी काम कराए हैं, और तो और चुनाव के पहले उन्होंने हर मतदाताओं तक पहुंच बनाने की कोशिश भी की। साड़ी, टी-शर्ट खूब बटवाए थे, लेकिन वो भाजपा के रामकुमार टोप्पो के आगे नहीं टिक पाए। अब लोकसभा चुनाव प्रचार में भले ही अमरजीत ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रहे हैं, लेकिन वहां कोई भी सभा हो, एक-दो ग्रामीण अमरजीत भगत की गिफ्ट की हुई टी-शर्ट पहने नजर आ जाते हैं। टी-शर्ट पर लिखा होता है-सीतापुर विधायक अमरजीत भगत। 

खाली अफसर छाँट रहे डीजीपी

पुलिस मुख्यालय में खाली बैठे अफसर इस बात की चर्चा करने लगे हैं कि कौन खुशनसीब होगा, जिसे सरकार पुलिस का मुखिया बनाएगी। कुछ नाम तो पहले ही तैर रहे हैं, लेकिन कुछ चौंकाने वाला फैसला भी हो सकता है। हालांकि यह भीतर ही भीतर चल रही है, क्योंकि सरकार का फोकस अभी चुनाव कराना है। 4 जून को चुनाव परिणाम आएगा। नई सरकार के गठन की प्रक्रिया में जून महीना निकल जाएगा। अगस्त में डीजीपी अशोक जुनेजा का कार्यकाल खत्म होगा। 

वैसे खुशनसीब जुनेजा ही हैं, जो सत्ता परिवर्तन के बाद भी पद पर बने हुए हैं। डीएम अवस्थी जब डीजीपी बने थे, तब यह माना गया था कि जुनेजा को यह सौभाग्य नहीं मिल पाएगा, लेकिन खुशनसीबी देखिए कि पहले करीब दस महीने अस्थाई तौर पर डीजीपी की जिम्मेदारी संभालते रहे और फिर जब गृह विभाग की मंजूरी आई तो दो साल के लिए नियुक्ति मिल गई। रिटायरमेंट के एक साल ज्यादा का मौका मिला। 5 अगस्त -22 को उन्हें दो साल के लिए पूर्णकालिक डीजीपी नियुक्त किया गया था।

स्कूल बैग पर चुनाव भारी..

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में किए गए अनेक प्रावधानों में से एक यह भी है कि स्कूली बच्चों के बैग का अधिकतम वजन कितना होना चाहिए। पहली, दूसरी कक्षा के बच्चों का बस्ता अधिकतम 2200 ग्राम हो। तीसरी, चौथी और पांचवी के बच्चों का बैग अधिकतम 2.5 किलोग्राम, छठवीं, सातवीं का 3 किलोग्राम, आठवीं का 4 किलोग्राम और नवमीं, दसवीं का अधिकतम 4.5 किलो होना चाहिए। इस वजन में बैग और स्कूल डायरी का वजन भी शामिल किया गया है। सप्ताह में एक दिन नो बैग डे भी होना चाहिए। कक्षा दूसरी तक के बच्चों को कोई होमवर्क भी नहीं दिया जा सकता। इस पर निगरानी रखने के लिए स्कूलों में वजन मशीन होनी चाहिए, साथ ही नोटिस बोर्ड में चार्ट को दर्शाया जाना चाहिए।

दिल्ली और कर्नाटक दो ऐसे राज्य हैं, जहां इन नियमों का कड़ाई से पालन किया जा रहा है। मध्यप्रदेश सरकार ने कुछ दिन पहले एक सर्कुलर निकालकर स्कूल बैग पॉलिसी का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया है। छत्तीसगढ़ के किसी भी स्कूल में न तो ऐसे वजन के चार्ट दिखेंगे, न तौल मशीन। प्रत्येक शिक्षा सत्र के शुरू होने के पहले ही निजी प्रकाशकों और प्राइवेट स्कूलों के बीच साठगांठ हो जाती है। तय किताब दुकानों से भारी मात्रा में महंगी कॉपी किताबें खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है। इनमें से आधी किताबें सत्र बीत जाने के बाद भी नहीं खुलतीं। बच्चों पर वजन का बोझ तो अभिभावकों की जेब पर बोझ।  मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में वहां के कलेक्टर ने दो बुक सेलरों के गोदामों पर छापा मारा था। वहां लाखों रुपयों की ऐसी किताबें मिली, जिन्हें प्राइवेट स्कूल के बच्चों को जबरन थमाया जाना था। पाठ्यक्रम के अनुसार उनकी जरूरत ही नहीं थी। इसके बाद कलेक्टर ने जिले के 300 से अधिक प्राइवेट स्कूलों से उनके यहां पढ़ाई जाने वाली किताबों की सूची मांगी तो अधिकांश ने जमा ही नहीं किए। अब उन पर कार्रवाई की तैयारी हो रही है। मध्यप्रदेश के जबलपुर में ही तो जिला प्रशासन ने एक अनूठी पहल की है। उसने बुक फेयर लगवाई है। इसमें हर क्लास के लिए जरूरी किताबों की सूची अभिभावकों को दी जा रही है। यह सूची प्राइवेट स्कूलों से ही मांगी गई है। कलेक्टर के खौफ में अनावश्यक किताबें शामिल नहीं की गई। इस बुक फेयर में न केवल कॉपी किताब बल्कि जूते, मोजे, टाई, बेल्ट, यूनिफॉर्म सब पर डिस्काउंट मिल रहे हैं।  

छत्तीसगढ़ में क्या हो रहा है? मनमानी रोकने की जिम्मेदारी जिले के प्रशासन और शिक्षा अधिकारियों की है, पर उनकी ओर से बैठकें नहीं बुलाई जा रही हैं। कुछ जिलों में डीईओ ने बैठक बुलाई तो स्कूलों के संचालक पहुंचे ही नहीं। पूरा प्रशासन इस समय चुनाव में व्यस्त है जिसका निजी स्कूल और बुक सेलर फायदा उठा रहे हैं।

धान बोनस का साइड इफेक्ट

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर की आरएल रिछारिया प्रयोगशाला में धान की 24 हजार 750 प्रजातियां सुरक्षित हैं। मगर इनमें से कितनी किस्में खेतों तक पहुंच पाई हैं? छत्तीसगढ़ की सामान्य थाली में विष्णुभोग, एचएमटी चावल दिखाई देते हैं। पर इनकी कीमत धीरे-धीरे आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है। विष्णुभोग इस समय 80 रुपये पार कर गया है। कुछ साल पहले तक यह 30-35 रुपये में मिल जाता था। एचएमटी की कीमत इस समय 55 से 60 रुपये है, जो 20 से 25 रुपये में उपलब्ध होती थी। इनका मांग के अनुसार उत्पादन ही नहीं हो रहा है। धान के कटोरे छत्तीसगढ़ के लिए विडंबना ही है कि 25 हजार से अधिक किस्मों की धान उगाने की क्षमता रखने वाले इस राज्य में अब आकर्षण सिर्फ मोटे धान की ओर रह गया है। मोटे धान की खेती कम खर्चीली है और प्रति एकड़ वजन भी ज्यादा मिलता है। केंद्र सरकार दोनों का ही समर्थन मूल्य हर साल तय करती है लेकिन उनमें अंतर प्रति क्विंटल 100 रुपये के आसपास ही होता है। इन पर दिया जाने वाला बोनस एक बराबर है। फिलहाल इसके कोई आसार नहीं हैं कि सरकार बारीक धान की फसल लेने के लिए कोई प्रोत्साहन नीति लाएगी, क्योंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए उसके पास पर्याप्त वजनी मोटा धान मिल रहा है। जो लोग पतले चावल के बगैर  भोजन अधूरा समझते हैं, वे विष्णु भोग खाते समय सोच सकते हैं कि उनकी थाली में बासमती है, क्योंकि कुछ समय पहले तक बासमती भी 80-85 रुपये में मिल जाता था।

([email protected])

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news