राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : कुछ बचे, कुछ निपटे
03-Aug-2024 4:52 PM
राजपथ-जनपथ :  कुछ बचे, कुछ निपटे

 कुछ बचे, कुछ निपटे 

आईएएस अफसरों की एक लंबी सूची जारी होने के बाद कुछ अफसरों ने राहत की सांस ली है। ये वो अफसर हैं जिनके खिलाफ शिकायतें हुई थीं लेकिन वो अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे। इन्हीं में से एक नए जिले के एक कलेक्टर के खिलाफ स्थानीय प्रशासनिक अफसर और नेताओं में नाराजगी देखी गई है।

कलेक्टर अपने रूखे व्यवहार के कारण काफी चर्चित हो रहे हैं। पिछले दिनों भरी बैठक में उन्होंने छोटी सी बात पर जनपद सीईओ को बाहर जाने के लिए कह दिया। चर्चा थी कि कलेक्टर का तबादला हो जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यही नहीं, पिछली सरकार में कलेक्टर मलाईदार निगम के एमडी थे, वहां भी गड़बड़ी के गंभीर मामले आए थे, लेकिन सरकार बदलने के बाद कलेक्टर बनने में कामयाब रहे।

इससे परे एक अन्य मामले में स्पीकर ने विधानसभा में एक कलेक्टर  की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए थे। मगर उन्हें भी नहीं बदला गया। हालांकि सरकार से जुड़े लोगों का कहना है कि इक्का-दुक्का तबादले होते रहेंगे, ऐसे में जिनके खिलाफ शिकायत है, उन्हें बदला जा सकता है। फिलहाल तो अफसर निश्चिंत हो गए हैं।

दवा उद्योग  
सीएसआईडीसी बोर्ड की बैठक में एक फैसले को लेकर काफी चर्चा हो रही है। यह फैसला लिया गया है कि नवा रायपुर के सेक्टर-22 में फार्मास्युटिकल पार्क बनेगा। इसके लिए करीब डेढ़ सौ एकड़ जमीन चिन्हित कर ली गई है। फार्मास्युटिकल यानि दवाई बनाने के लिए बकायदा पार्क स्थापना के प्रस्ताव पर पिछली सरकारों में भी विचार होता रहा है।

भिलाई में भी फार्मास्युटिकल पार्क बनाने की योजना थी। मगर यह खतरनाक प्रदूषणकारी उद्योगों की श्रेणी में आता है। लिहाजा, रमन सरकार में स्थानीय लोगों के विरोध के बाद फार्मास्युटिकल पार्क योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अब फार्मास्युटिकल पार्क को नवा रायपुर में स्थापित करने की योजना पर काम शुरू हो रहा है। स्वाभाविक है कि वहां भी इसका विरोध होगा। वैसे भी नवा रायपुर में प्रदूषण रहित उद्योग लगाने पर सहमति रही है। इसी वजह से वहां आईटी पार्क की स्थापना की कोशिश हो रही है। ऐसे में फार्मास्युटिकल पार्क का क्या होता है, यह देखना है। 

एक और छूट खत्म...

प्रदेश सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों पर दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि को 50 प्रतिशत घटाने का निर्णय लिया है। इससे बाइक और स्कूटर की कीमतें 5 से 10 हजार रुपये तक बढ़ सकती हैं। कारों की कीमत में एक लाख रुपये तक का इजाफा हो सकता है। हाल ही में सरकार ने जमीन की रजिस्ट्री पर मिलने वाली 30 प्रतिशत छूट भी समाप्त कर दी थी। इसके बाद 400 यूनिट तक बिजली का हाफ बिल तो जारी रखा गया, लेकिन बिजली की दरें बढ़ाकर राजस्व बढ़ाने का इंतजाम कर लिया गया। स्पंज आयरन उद्योग भी तालेबंदी का आंदोलन कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें मिलने वाली रियायत पहले के मुकाबले काफी कम हो गई है।

सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले शराब के दाम भी बढ़ाए हैं। अब ई-बाइक पर कम की गई छूट से करीब 80-90 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। पिछली सरकार ने 2022 में इलेक्ट्रिक वाहन नीति की घोषणा की थी, जिसमें तय किया गया था कि स्टेट जीएसटी और पंजीकरण शुल्क में 100 प्रतिशत की छूट केवल दो साल के लिए होगी। 2024 से यह छूट 50 प्रतिशत कर दी जाएगी और 2026 तक यह छूट जारी रहेगी। फिर एक साल 25 प्रतिशत ही रियायत रहेगी। 2027 तक छूट पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।

2022 में नीति बनाते समय अनुमान लगाया गया था कि 2027 तक सडक़ों पर 15 प्रतिशत निजी और कमर्शियल गाडिय़ां बैटरी से दौडऩे वाली होंगी। लेकिन पिछले दो सालों में कई लक्ष्य पूरे नहीं हो पाए हैं, जैसे इलेक्ट्रिक व्हीकल प्लांट, ईवी बैटरी प्लांट और चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिए प्रोत्साहन। अगर छत्तीसगढ़ में ईवी और उनकी बैटरी बने और पर्याप्त ई-चार्जिंग स्टेशन हों, तो शायद छूट की जरूरत ही न पड़े। उपभोक्ताओं को छत्तीसगढ़ में बनने वाली गाडिय़ां सस्ती मिल सकती हैं। अभी मिलने वाली गाडिय़ां, खासकर बाइक, स्कूटर इतनी महंगी क्यों है, क्या वास्तव में इतनी लागत है, इसे लेकर ग्राहकों में संशय है। 2027 तक 15 प्रतिशत इलेक्ट्रिक व्हीकल चलाने का लक्ष्य पूरा हो सकता है। पर, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार रियायत कम करने से बचने वाली राशि को किस तरह खर्च करती है।

इतना जोखिम उठाना जरूरी है?

छत्तीसगढ़ में लगातार हो रही बारिश ने कई नदियों और नालों को उफान पर ला दिया है। दूरस्थ क्षेत्रों के छोटे पुल-पुलिये पानी में डूब गए हैं, जिन्हें लोग अपनी जान की परवाह किए बिना पार कर रहे हैं। यहां तक कि स्कूल बसों को भी खतरनाक स्थितियों में से गुजारा जा रहा है। जशपुर जिले के ढेंगुरजोर नाले की यह तस्वीर बगीचा ब्लॉक के बछराव की है, जहां सैकड़ों लोगों को रोजाना इस नाले को पार करना पड़ता है। स्कूल बस चालक मासूम बच्चों की जान को जोखिम में डाल रहे हैं। बस का जरा सा फिसलना बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है और लोगों की जान जा सकती है। पीडब्ल्यूडी ने सुरक्षा के लिए कोई बैरियर नहीं लगाया है और न ही पुलिस या प्रशासन की तैनाती है।

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