राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : कमिश्नर पद पर उठापटक
30-Aug-2024 2:57 PM
राजपथ-जनपथ : कमिश्नर पद पर उठापटक

कमिश्नर पद पर उठापटक

बिलासपुर कमिश्नर (संभागायुक्त) पद पर जनक प्रसाद पाठक की पोस्टिंग के दो-तीन घंटे बाद ही मंत्रालय से नया आदेश जारी कर उनकी जगह महादेव कावरे को पदस्थ कर दिया गया। वह तो ठीक, लेकिन सिर्फ तीन सप्ताह में नीलम नामदेव एक्का को क्यों हटा दिया गया?

इस बात की चर्चा तो हो ही रही है कि पाठक से क्यों जिम्मेदारी वापस ली गई। उनके खिलाफ एक महिला के यौन शोषण का अपराध दर्ज है। इस समय वे हाईकोर्ट से मिली जमानत के चलते जेल से बाहर हैं। केस होने के बाद से पाठक को कोई भी ऐसा फील्ड नहीं दिया गया जिसमें आम जनता से सीधे मेल-मुलाकात करनी पड़े। ऐसी यह पहली पोस्टिंग थी। शिकायत करने वाली महिला जांजगीर की है, जो बिलासपुर संभाग के ही अधीन आता है। फिर हाईकोर्ट भी बिलासपुर में ही है। पता चला है कि पाठक का आदेश जारी होने पर कुछ भाजपा नेताओं ने तत्काल ऊपर शिकायत कर दी और मंत्रालय ने भी आदेश बदलने में देरी नहीं की।

इधर तीन सप्ताह में ही एक्का को हटाने के पीछे की कहानी भी सामने आ रही है। बिलासपुर शहर के ह्रदयस्थल पर एक बेशकीमती जमीन है, जो मिशन अस्पताल कंपाउंड के नाम से जाना जाता है। सौ साल से ज्यादा पुरानी इसकी लीज 10 साल पहले खत्म हो चुकी है। अरबों में इस जमीन की कीमत है। अस्पताल ठीक से चल नहीं रहा लेकिन यहां की जमीन दूसरे लैब, अस्पताल, मेले, ठेले और स्ट्रीट फूड के लिए किराये में दे दिए गए हैं। लीजधारक डॉ. रमन जोगी को प्रशासन की नोटिस मिली। इसके खिलाफ वे हाईकोर्ट गए, वहां से जब राहत नहीं मिली तो तत्काल कलेक्टर ने खाली करने का अल्टीमेटम दिया। लीजधारक ने 4 दिन का समय मांगा। बड़े-बड़े उपकरण, सामान आदि हटाने के नाम पर। प्रशासन ने व्यवहारिक दिक्कत तो समझते हुए समय दे दिया। मगर मियाद खत्म होने से पहले ही कमिश्नर एक्का की कोर्ट से बेदखली पर दी गई कलेक्टर की नोटिस पर स्थगन मिल गया। इसके दो दिन बाद ही एक्का का ट्रांसफर हो गया।

राह तकते भाजपा समर्थक वकील 

भाजपा से जुड़े वकील नाराज चल रहे हैं। इसकी वजह यह है कि साय सरकार को 8 महीने हो चुके हैं, लेकिन रायपुर छोडक़र बाकी जिलों में अब तक सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति नहीं हो पाई है। अभी भी भूपेश सरकार द्वारा नियुक्त सरकारी अधिवक्ता पद पर बने हुए हैं। 

रायपुर में लोक अभियोजक और अन्य सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति दो दिन पहले ही की गई है। विधि विभाग का प्रभार डिप्टी सीएम अरुण साव के पास है। बताते हैं कि नियुक्तियों में पार्टी संगठन का हस्तक्षेप रहता है। यही वजह है कि अभी तक विचार मंथन का दौर चल ही रहा है। इस वजह से नियुक्तियां नहीं हो पा रही है। प्रदेश में सरकार बदलने के बाद भी अदालत में कांग्रेस समर्थक वकीलों के दबदबा देखकर भाजपा से जुड़े वकीलों की नाराजगी स्वाभाविक है। 

टिकट के पहले मारपीट 

राजधानी के कटोरा तालाब में भाजपा के दो युवा व्यापारी नेता आपस में भिड़ गए। जमकर मारपीट हुई, और मामला थाने पहुंच गया। पुलिस पर दोनों पक्षों की तरफ से एक-दूसरे के खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव बना। पुलिस ने तो अपनी तरफ से प्रकरण दर्ज कर लिया है। लेकिन अब दोनों ही युवा नेता तो अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं। 

बताते हैं कि दोनों युवा नेता पार्षद टिकट के दावेदार हैं। एक तो चुनाव लड़ चुके हैं, और दूसरे के पिता पार्षद रह चुके हैं। दो महीने बाद निकाय चुनाव की बिगुल बजनी है। मगर घटना के चलते नई समस्या खड़ी हो गई है। दोनों व्यापारी नेताओं के बीच मारपीट के कई वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुए हैं। पार्टी के प्रमुख नेताओं तक प्रकरण संज्ञान में आ चुका है। 

एक प्रमुख नेता ने दोनों दावेदारों से जुड़े लोगों को स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि मारपीट की वजह से पार्टी की काफी बदनामी हो गई है। दोनों में से किसी को टिकट देना जोखिम भरा होगा। क्योंकि इसके इतने वीडियो सोशल मीडिया में तैर रहे हैं कि आसपास के तीन-चार वार्डों में इसका असर पड़ सकता है। यानी मारपीट के बाद फिलहाल दोनों ही युवा टिकट की दौड़ से बाहर हो गए हैं। अब आगे क्या होता है, यह तो चुनाव नजदीक आने के बाद ही पता चलेगा। 

सरकारी फैसला ऐसे वापस !!

आखिरकार स्कूल शिक्षा विभाग के स्कूलों, और शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण का फैसला कुछ समय के लिए टल गया है। विभाग ने सभी जिलों से कम दर्ज संख्या वाले स्कूलों की जानकारी बुलाई थी। ऐसे में करीब 4 हजार स्कूल बंद करने की स्थिति में थे। यही नहीं, करीब 10 हजार शिक्षक इधर-उधर हो सकते थे। 

युक्तियुक्तकरण का फैसला सरकार के लिए जोखिम भरा हो सकता था। क्योंकि शिक्षकों ने युक्तियुक्तकरण के खिलाफ हड़ताल की तैयारी कर रखी थी। यह विभाग सीएम के पास है। नगरीय निकाय चुनाव नजदीक है, और हड़ताल की वजह से नुकसान का अंदेशा था। इस वजह से फिलहाल युक्तियुक्तकरण का फैसला टाल दिया गया है। 

दूसरी तरफ, सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने बतौर स्कूल शिक्षा मंत्री करीब 3 हजार शिक्षकों, और अन्य स्टॉफ के तबादले का प्रस्ताव लोकसभा चुनाव आचार संहिता लगने से पहले भेजा था। इनमें ज्यादातर तबादले विधायकों और पार्टी नेताओं की अनुशंसा के अलावा मेडिकल ग्राउंड पर प्रस्तावित था। ये प्रस्ताव युक्तियुक्त करण की वजह से अटक गए थे। अब जब युक्तियुक्तकरण नहीं हो रहा है, तो तबादला प्रस्ताव का क्या होगा, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा। 

सीनियर टीचर की बाइक

बहुत सी नौकरियों में सीनियर हो जाने के बाद भी प्रमोशन नहीं मिलता। एक ही पद पर खटते रहना पड़ता है। शिक्षा विभाग में शायद ऐसा ज्यादा होता है। इस शिक्षक को अपनी बाइक पर लिखकर बताना पड़ रहा है कि वह कितना वरिष्ठ है। 
(सोशल मीडिया से) 

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