राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : प्रमोशन के खेल
22-Aug-2024 4:13 PM
राजपथ-जनपथ : प्रमोशन के खेल

प्रमोशन के खेल 

पीडब्ल्यूडी में प्रमोशन पर विवाद छिड़ा है। सरकार ने एसई से सीई के पद पर पदोन्नति के लिए नियमों में संशोधन कर दिया है। इसमें एसई के पद पर न्यूनतम पांच वर्ष के कार्य अनुभव को घटाकर चार साल कर दिया है। 

बताते हैं कि वर्तमान में सभी जगहों पर एसई, सीई के प्रभार पर हैं, और नियमों में संशोधन के बाद सभी सीई के पद पर प्रमोट हो रहे हैं। इसके लिए डीपीसी भी हो चुकी है। 
कहा जा रहा है कि राज्य बनने के बाद पहली बार पीडब्ल्यूडी में प्रमोशन के लिए नियमों में संशोधन किया गया है। इससे जूनियर अफसर नाखुश हैं। क्योंकि कई वंचित भी हो जा रहे हैं। खास बात यह है कि पीडब्ल्यूडी के नियम बाकी निर्माण विभाग में भी लागू होते हैं। इससे निर्माण विभागों में हलचल मची है। कई अफसर कोर्ट जाने की तैयारी भी कर रहे हैं। 

दूसरी तरफ, निर्माण विभाग से परे राजस्व विभाग में भी कई बार संशोधन हो चुका है। तहसीलदार के पद पर पदोन्नति के लिए नायब तहसीलदारों ने पिछली सरकार में एक साथ ताकत लगाई थी, और इसका नतीजा यह रहा कि विभाग से लेकर पीएससी तक फाइल इतनी तेजी से चली कि एक साथ सवा सौ अफसर प्रमोट हो गए। ये अलग बात है कि इसके लिए सबको काफी कुछ न्योछावर भी करना पड़ा। लेकिन प्रमोशन के लिए सब खुशी खुशी तैयार थे। वैसी एकजुटता निर्माण विभागों में नहीं दिख रही है। देखना है आगे क्या होता है। 

निगम में प्रदर्शन घेराव अब रोज

एक वर्ष के भीतर प्रदेश के तीसरे चुनाव दिसंबर में होने हैं। इन्हें शहर या नगर सरकार के चुनाव कहा जाता है। इन चुनावों को राजनीति की पहली सीढ़ी भी कहते हैं । इसलिए यह सीढ़ी चढऩे वार्ड मोहल्लों के युवा, नामचीन लोग सक्रिय हो गए हैं। वे मोहल्ले की समस्याओं को लेकर रोजाना निगम मुख्यालय, जोन कार्यालय और वर्तमान पार्षद कार्यालयों में प्रदर्शन घेराव करने लगे हैं। यह प्रदर्शन राजधानी से लेकर दूरस्थ निकायों में  जारी हैं। निगम के आयुक्त, सीएमओ , जोन कमिश्नर सभी परेशान हैं। 

सरकार के हालिया जनसमस्या निवारण शिविर में सभी समस्याओं का गली गली निवारण के बाद भी समस्याएं खामियां तो बनी रहेंगी। ये ही इनके विरोध प्रदर्शन का हथियार होतीं हैं। बार बार बिजली गुल होना,स्ट्रीट लाइट न जलना, कुत्तों का आतंक, गंदगी आदि आदि । जो जितना ज्यादा प्रदर्शन करेगा उसकी पूछपरख मोहल्ले में होगी और टिकट का दावेदार भी। टिकट पाकर जीत गया तो एमआईसी सदस्य ,जोन अध्यक्ष बनना तो तय है। और यदि बहुमत के आधार पर महापौर चुना जाना होगा तो अपने समर्थन के बदले नगदी और अन्यान्य फायदे अलग।  इसलिए साल के आखिरी तक शहर ये सब प्रपंच देखेगा।

गुजरात के कानून की यहां भी जरूरत

छत्तीसगढ़ में हाल ही में एक व्यक्ति ने अपनी मां की मौत के लिए पड़ोस की महिला को जिम्मेदार ठहराते हुए उसकी हत्या कर दी, क्योंकि उसे विश्वास था कि महिला ने जादू टोने से उसकी मां की जान ली। इस तरह के अंधविश्वास से प्रेरित अपराध छत्तीसगढ़ में बेहद आम हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में 20 हत्याएं जादू टोने के चलते हुई हैं, जो पूरे देश में सबसे ज्यादा हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ में टोनही प्रथा अधिनियम 2005 लागू है, लेकिन इसका प्रभाव सीमित है और अंधविश्वास का प्रभाव समाज पर गहरा असर डालता है।
बुधवार को गुजरात विधानसभा द्वारा पारित किया गया कानून छत्तीसगढ़ के लिए एक उदाहरण बन सकता है। इस नए कानून में मानव बलि, काला जादू, और अन्य क्रूर व अमानवीय प्रथाओं को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। अगर कोई व्यक्ति किसी को रस्सी या जंजीर से बांधकर, मारपीट कर, मिर्च का धुआं करके, या किसी अन्य अमानवीय तरीके से ‘भूत-प्रेत’  निकालने का दावा करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा, अगर कोई तांत्रिक या बाबा अलौकिक शक्तियों का दिखावा कर किसी महिला या पुरुष के साथ शारीरिक शोषण करता है, तो यह भी कानूनन अपराध होगा।

गुजरात के इस कानून में यहां तक शामिल किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति तंत्र-मंत्र के जरिए इलाज का दावा करता है, जैसे कि धागे, ताबीज, या झाड़-फूंक से इलाज करना, तो उसे भी सजा मिलेगी। ये प्रावधान न केवल अंधविश्वास से प्रेरित अपराधों को रोकने में मदद करेंगे, बल्कि समाज को इस तरह के गलत और हानिकारक विश्वासों से भी बचाएंगे।

यदि छत्तीसगढ़ में भी ऐसा कानून लागू हो जाए, तो यहां अंधविश्वास के आधार पर होने वाले अपराधों और शोषण पर प्रभावी रोक लगाई जा सकेगी। तब शायद अंगूठी बांटकर, पर्ची खोलकर और चंगाई सभाएं लगाकर मुसीबत में फंसे लोगों को झांसे में लेना बंद हो जाए।

कानून बहाली का तरीका

बिहार में भारत बंद का असर जोरदार था। पुलिसवालों का उत्साह भी सातवें आसमान पर था। पटना की सडक़ों पर पुलिस पूरी मुस्तैदी से तैनात थी, और वहां तैनात एसडीएम साहब भी जोश में। उन्होंने लाठीचार्ज का आदेश दिया, और फिर क्या था, सिपाही लोग एक्शन मोड में आ गए। एक सिपाही साहब को तो यह याद ही नहीं रहा कि सामने कौन खड़े हैं। नतीजा यह हुआ कि जिसने लाठीचार्ज का आदेश दिया था, वही खुद सिपाही के निशाने पर आ गया! सिपाही ने एसडीएम साहब पर ऐसी जोरदार लाठियां बरसाईं कि बेचारे एसडीएम साहब भी सोच में पड़ गए कि कानून व्यवस्था बहाल करने का यह कौन सा तरीका है! अब सिपाही को यह कैसे पता चलता कि सामने वाला उसका बॉस है, जब खुद साहब ‘सिविलियन’ लुक में थे। शायद अगली बार से एसडीएम साहब अपनी पहचान वाली जैकेट जरूर पहनेंगे, ताकि उत्साही सिपाही उन्हें भीड़ का हिस्सा न समझ बैठे!

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