राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : दोनों पार्टी दारू में डूबी हुई !!
23-Aug-2024 4:26 PM
राजपथ-जनपथ : दोनों पार्टी दारू में डूबी हुई !!

दोनों पार्टी दारू में डूबी हुई !!

आम आदमी पार्टी की रायपुर दक्षिण, और स्थानीय निकायों के चुनाव पर नजर है। दक्षिण में पार्टी की रणनीति राज्यसभा सदस्य संदीप पाठक तैयार कर रहे हैं। पार्टी प्रदेश में आम चुनाव में ज्यादा कुछ नहीं कर पाई, लेकिन उपचुनाव और निकाय-पंचायत चुनाव में ताकत दिखाकर आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार कर रही है। 

सुनते हैं कि उपचुनाव में दिल्ली सरकार के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी प्रचार के लिए आ सकते हैं। सिसोदिया आबकारी घोटाले में फंसे हैं, और हाल ही में जेल से छूटे हैं। आप, केन्द्र सरकार पर विरोधी दल के नेताओं को फंसाने का आरोप लगा रही है। 

दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में भी आबकारी घोटाला हुआ है। यहां भी कांग्रेस के कई नेताओं के खिलाफ आबकारी केस में प्रकरण दर्ज है। कई अफसर-कारोबारी जेल में हैं। इन सबके बीच उपचुनाव में आम आदमी पार्टी, आबकारी घोटाला को भी जोर शोर से उठाने की तैयारी कर रही है। अब यह देखना है कि छत्तीसगढ़ के आबकारी घोटाले पर आप नेता किस पर प्रहार करते हैं। 

कलेक्टर कौन..!

बस्तर संभाग के एक जिले के कलेक्टर के खिलाफ स्थानीय भाजपा नेता काफी शिकायतें कर रहे हैं। कलेक्टर ने अपना ज्यादातर काम एडिशनल कलेक्टर को दे रखा है, और एडिशनल कलेक्टर को लेकर शिकायत यह है कि वो बिना लेन देन के कोई काम नहीं करते हैं। 

बताते हैं कि भाजपा नेताओं ने मंत्री जी से पहले शिकायत भी की थी।  मगर कुछ नहीं हुआ। एडिशनल कलेक्टर के खिलाफ पुराने प्रकरणों की फेहरिस्त तैयार की है, और मंत्री जी के दौरे पर उन्हें सौंपने की तैयारी चल रही है। भाजपा नेताओं का आरोप है कि कलेक्टर जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं। ताकि उनके दामन पर दाग न लगे, और फ़ायदा भी हो जाए। अब निकायों-पंचायतों के चुनाव नजदीक है इसलिए मंत्री जी भी कार्यकर्ताओं को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा पा रहे हैं। देखना है कि शिकायतों का क्या तोड़ निकालते हैं।

अभयदान और परफार्मेंस

फिलहाल के लिए अभयदान मिलने के बाद मंत्रियों में काम करने की होड़ है। उत्साह भी है। जिन नए नवेले मंत्रियों पर खतरा था वे अब  अपनी जगह भी सुरक्षित रखना चाहते हैं और संगठन के सामने अपना काम भी साबित करना चाहते हैं। इसलिए जिलों के दौरे, अपने विभागीय दफ्तरों में बिना बताए दबिश देने लगे हैं। इसी उत्साह में एक मंत्री जी ने पहले एक बड़े उद्योग समूह के स्थानीय प्रतिनिधि को बुलाया, फिर कह दिया कि अपने मालिक से बात कराओ। स्थानीय प्रतिनिधि की इतनी हैसियत नहीं थी कि वह सीधे मालिक को फोन करता। उसने ऊपर संदेश पहुंचाया। उन्हें क्या पता कि वाट्स एप में यह संदेश फॉरवर्ड होकर दिल्ली तक पहुंच जाएगा। बस फिर क्या था। मंत्री जी को बता दिया गया कि इतने ऊपर नहीं जाना है। जो बात छनकर आई है, उसमें मंत्री के ओएसडी ने ही चाबी भरा था।

पुराने स्वनामधन्य ओएसडी

भाजपा की 15 साल की सरकार जब गई तब मंत्रियों के हार के कारणों में ओएसडी नामक शब्द काफी चर्चा में रहा। कुछ स्वनामधन्य किस्म के अफसर अभी फिर से ओएसडी बन गए हैं। कुछ छाती ताने सामने हैं तो कुछ पर्दे के पीछे बंगलों में तैनात है। और हिसाब-किताब का काम इन्हें ही दिया गया।

कभी शिक्षा विभाग सम्हाल चुके ये साहब अब पानी का घनमीटर नाप रहे हैं। इनकी नियुक्तियों के समय ही आपत्ति आई, लेकिन मंत्रियों ने जैसे जैसे संगठन को मैनेज कर लिया, लेकिन कई ओएसडी के भगवान बनने की चर्चा फिर शुरू हो गई है। ऐसे ही एक  एक ओएसडी को तो मंत्री ने बाहर कर दिया है। बाकी मंत्री संभलकर रहें, नहीं तो पिछले परिणाम अच्छे नहीं रहे हैं।

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