राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : रईसों से रियायत
28-Aug-2024 2:52 PM
राजपथ-जनपथ :  रईसों से रियायत

रईसों से रियायत

यूं तो पुलिस की हर कार्रवाई पर उंगली और प्रश्न चिन्ह लगाए जाते रहते हैं। लेकिन कल राजधानी में रसूखदार जुआरियों पर हुई कार्रवाई पर सैकड़ों, हजारों उंगलियां उठ रही हैं। इतनी तो बीते 24 वर्ष में नहीं उठीं होंगी। इनमें से कुछ उंगलियां ऐसी हैं- बेबीलॉन में जुआरियों के जुटने की खबर पहले देर रात तक सक्रिय रहने वाले पत्रकारों को नहीं मिलती तो कुछ होता ही नहीं है। पुलिस, सैल्यूट मारकर ससम्मान छोड़ देती। मीडिया के लोग होटल नहीं पहुंचते तो एक अदद एफआईआर भी न होती।

रिपोर्टर बार बार टीआई, सीएसपी, एएसपी और अंतत: एसएसपी तक को कॉल न करते तो महज दो लाख रूपए की जब्ती भी नहीं होती। और आखिर में मंगलवार को दिनभर सोशल मीडिया में किरकिरी न होती तो देर शाम तक रसूखदार जुआरियों के नाम घोषित नहीं होते। यह भी चर्चा है कि एक एक जुआरी का नाम लिखने से पहले पुलिस ने सभी के पिता से अनुमति ली गई । इस बात पर सहमति बनी कि परंपरागत रूप से एफआईआर के बजाए बिना वल्दियत के नाम जारी किए जाएंगे। बात दांव पर लगी रकम को लेकर भी उठ रही है। कुछ कहते हैं कि मात्र 1.98 लाख ही मिले। पत्ते इसी के लिए फेटे जा रहे थे। तो चर्चा में कुछ 11 लाख, कुछ 20 लाख बता रहे। यह हो भी सकता है क्योंकि जीतने वाले को सारा पेमेंट तो पेटीएम,फोन-पे और योनो एप से भी किए गए थे। अब साइबर सेल का काम है पता लगा ले।

दारूबाज़ गुंडे को पकड़ा तो सजा पुलिस को !!

ऐसे में शराब और नशे से समाज को कैसे निजात मिलेगी। एक तरफ पुलिस पर शराब जब्ती और दूसरी तरफ हंगामा करते  नशेडिय़ों पर कार्रवाई का दबाव है। कार्रवाई करने पर नौकरी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का डंडा भी चल रहा है। कल अंबिकापुर में यही सब हुआ। पुलिस हवलदार देव नारायण नेताम, पब्लिक कंप्लेंट पर बस स्टैंड में हंगामा कर रहे राजू राजवाड़े को पकड़ लाया। उस पर कार्रवाई के लिए देवनारायण और थाना स्टाफ ने सारी प्रक्रिया पूरी की। लेकिन राजू राजवाड़े था कि पकड़े जाने के बाद से ही हंगामा बरपे हुए था। इस पर भी थाना स्टाफ ने एहतियात बरता और मोबाइल पर वीडियो रिकॉर्ड कर लिया । पर उन्हें क्या मालूम कि मंत्री का जेठ होना ही भारी पड़ सकता है उनके कर्तव्य पर। हालांकि मंत्री ने कहा था कि जेठ ही नहीं कोई भी कार्रवाई होगी। 

लेकिन आकाओं को खुश करने एसपी साहब ने जेठ तो नहीं  देव नारायण को अटैच कर दिया । और अब यह मामला वायरल वीडियो की तरह पब्लिक डोमेन में चला गया है। अंबिकापुर से जानकार बताते हैं कि देव नारायण एक हवलदार  ही नहीं एक जनसेवक भी है। सभी के बीच उसका सम्मान है। कोरोना काल में अपनी जान की परवाह किए बिना उसने कइयों की जान बचाई थी। पर अब नेकी कर दरिया में डाल की स्थिति हो गई है। जन सामान्य में अटैचमेंट को लेकर जबरदस्त आक्रोश है। वाट्सएप पर कप्तान साहब की किरकिरी करने लगे हैं। सरगुजा के हर वर्ग के सोशल मीडिया में लाइन अटैच पर तीखी प्रतिक्रिया वायरल होती रही। साहब को जवाब देते नहीं बन रहा। पहले कहा जा रहा है कि अटैच रहेगा लेकिन लाइन में नहीं उसी थाने में काम भी करेगा।  सुबह पुलिस ने एक मैसेज कर लाइन अटैच की खबरों का खंडन किया है।

राजस्व में मददगार कोचिये

प्रदेश की संस्कारधानी राजनांदगांव से एक रोचक खबर है कि यहां पर पिछले कुछ महीनों से शराब की बिक्री घट गई है। एक तरफ सरकार का समाज कल्याण, महिला बाल विकास जैसे विभाग और पुलिस के कई अधिकारी अपनी व्यक्तिगत रूचि से शराब के विरुद्ध अभियान चलाते हैं, पर कम बिक्री से सरकार का ही आबकारी विभाग चिंता में पड़ जाता है।

आबकारी विभाग नजर रखता है कि दुकान में सेल्समैन जल्दी सर्विस दे रहा है या नहीं। अभी-अभी एक नीति बनाई गई है, जिससे शराब के पॉपुलर ब्रांड दुकानों में आसानी से मिले, ताकि राजस्व बढ़े और पड़ोसी राज्यों से हो रही तस्करी रुके। आबकारी विभाग को शराब की बिक्री का लक्ष्य भी मिलता है। खबरों के मुताबिक राजनांदगांव में इस वित्तीय वर्ष के दौरान केवल मई माह ऐसा रहा, जब निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप शराब बिकी। मगर कुल बिक्री अब तक के लक्ष्य से 22 प्रतिशत कम हुई है। अफसरों ने इसकी वजह तलाशी तो पता चला कि कोचियों पर हो रही पुलिस कार्रवाई इसका बड़ा कारण है।

अवैध शराब जब्त करने का अधिकार आबकारी और पुलिस, दोनों के पास है। पर, उनके बीच तालमेल कभी नहीं बैठता। कोचियों को दोनों से रिश्ते रखने पड़ते हैं। संतुलन बिगड़ा तो जब्ती, गिरफ्तारी कर नकेल कसी जाती है। जब शराब बिक्री ठेकेदारों के हाथ थी, तो कोचिये उनके सेल्समैन की तरह काम करते थे। ऊपर से नीचे सेटिंग बनाए रखने का सिरदर्द ठेकेदार झेल लेते थे। सन् 2018 में सरकार बनाने वाली कांग्रेस शराबबंदी का वादा निभाने में विफल रही। उस समय जिस पैमाने पर अवैध शराब बिकी का जाल बुना गया, उसमें शामिल अफसर-कारोबारियों को कोचिये कहना भी सही नहीं होगा। जब पूर्ववर्ती रमन सरकार ने ठेकेदारों के हाथ से शराब बिक्री का काम छीना तो कहा कि कोचिये अब इस पृथ्वी पर नजर नहीं आएंगे। मगर, कोचियों का अस्तित्व कितना जरूरी है, यह आबकारी अफसरों को हो रही चिंता से पता चलता है।

एक साथ 6 की जान जोखिम में

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले की गंगालूर तहसील के कमकानार गांव में सोमवार की सुबह 10 बजे एक गर्भवती महिला प्रसव से तड़पने लगी। ग्रामीणों ने डायल 112 और एंबुलेंस को फोन किया। किसी स्वास्थ्य कर्मी को भेजने की मांग की। मगर बीच में चिंतावगु नदी के कारण कोई मदद नहीं मिल पाई। नदी के ऊपर कोई पुल नहीं, नाव की भी व्यवस्था नहीं। पांच ग्रामीण तैयार हुए, गर्भवती को खाट पर लिटाया और उसे दूसरी ओर पहुंचाया। बस्तर संभाग के दूरदराज के गांवों में इस तरह के दृश्य आये दिन दिखाई दे रहे हैं।

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