राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : प्रतियोगी परीक्षाओं में खाली सेंटर्स
27-Aug-2024 3:11 PM
राजपथ-जनपथ : प्रतियोगी परीक्षाओं में खाली सेंटर्स

प्रतियोगी परीक्षाओं में खाली सेंटर्स

छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार ने बेरोजगारों को राहत प्रदान करने के उद्देश्य से प्रतियोगी परीक्षाओं में आवेदन शुल्क समाप्त कर दिया था। इसका उद्देश्य यह था कि जो लोग नौकरी की तलाश में हैं, उन पर आर्थिक बोझ कम किया जाए। इसका परिणाम यह हुआ कि पीएससी, व्यापमं और अन्य भर्ती परीक्षाओं में आवेदनों की संख्या बढऩे लगी।

लेकिन, समस्या यह है कि जितने लोग आवेदन करते हैं, उनमें से एक अच्छा खासा हिस्सा ऐसे युवाओं का होता है, जो परीक्षा देने आते ही नहीं। हाल ही में, पिछले रविवार को व्यापमं ने प्रयोगशाला सहायक और तकनीकी सहायक के पदों के लिए परीक्षा आयोजित की। रायगढ़ से खबर आई कि 6,000 से अधिक लोगों ने प्रयोगशाला सहायक के लिए आवेदन किया था, लेकिन पहली पाली में 2,500 से अधिक लोग परीक्षा देने नहीं पहुंचे। शाम की पाली में तो 2,900 से अधिक उम्मीदवार अनुपस्थित रहे। बिलासपुर में 35 हजार प्रतिभागियों में से 20 हजार अनुपस्थित रहे। अन्य जिलों में भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिली।

परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसी को आवेदनों की संख्या के अनुसार प्रश्नपत्रों की छपाई करानी पड़ती है। उसी के अनुसार परीक्षा केंद्रों और पर्यवेक्षकों की संख्या भी निर्धारित होती है। लेकिन जब परीक्षार्थी आवेदन करने के बाद परीक्षा में शामिल नहीं होते, तो यह पूरा खर्च व्यर्थ हो जाता है।

आवेदन करने के बाद परीक्षा से मुंह मोडऩे के पीछे क्या वजहें हो सकती हैं? एक कारण यह है कि जब शुल्क निशुल्क हो गया, तो ऐसे लोग भी आवेदन कर देते हैं जो परीक्षा की तैयारी में नहीं होते। लेकिन क्या केवल परीक्षा शुल्क में छूट देने से ही उनकी सारी समस्याओं का समाधान हो जाता है? एक-एक पद के लिए हजारों उम्मीदवार होते हैं और उन्हें प्रतियोगिता में सफल होने के लिए अच्छी कोचिंग, लाइब्रेरी, नोटबुक्स और किताबों की जरूरत पड़ती है।  इसके अलावा, परीक्षा केंद्र भी अक्सर जिला मुख्यालयों में होते हैं, जहां तक पहुंचने और वहां ठहरने का खर्च भी मामूली नहीं होता।

अभी हाल ही में लखनऊ से खबर आई है कि वहां सिपाही भर्ती परीक्षा में 2 लाख लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन लिखित परीक्षा में केवल 63 हजार ही पहुंचे। ये वे प्रतिभागी हैं, जिन्होंने परीक्षा फीस भी दी। छत्तीसगढ़ में परीक्षा शुल्क माफ कर देने से सरकार पर बोझ बढ़ गया लेकिन इस छूट के बाद भी परीक्षा नहीं दिला पाने वाले बेरोजगारों के सिर पर कितना बोझ है, इसे समझा जा सकता है।

बड़े-बड़ों के कॉल

दीवाली के मौके पर जुआ खेलने का चलन है, और अब जन्माष्टमी  पर भी जुआ खेला जाने लगा है। रायपुर के संपन्न परिवार के युवकों ने तो त्योहार के मौके पर शहर के एक बड़े होटल बेबीलॉन केपिटल को जुआ खेलने के लिए बुक कराया था। युुवकों को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस बड़े होटल में दबिश दे देगी। मगर पुलिस होटल में पहुंच गई, और जुआ खेलते युवकों को हिरासत में ले लिया। 

फिर क्या था, युवकों को छुड़ाने के लिए बड़े नेताओं के फोन आने लगे। चूंकि रकम ज्यादा थी, और यह मीडिया की जानकारी में भी आ गया था। इसलिए पुलिस ने आरोपी युवकों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया। बड़े लोगों के फोन आने से इतना फर्क जरूर पड़ा कि पुलिस ने एक ही नाम को सार्वजनिक किया है। बाकी नाम को छिपा लिया। यही नहीं, जुआरियों की फोटो भी जारी नहीं की। बड़े लोगों के लिए आम तौर पर पुलिस ऐसा करती है। 

मुनिया के सुर्ख लाल हो जाने का रहस्य

मुनिया पक्षी का नर जब सुर्ख लाल रंग का हो जाता है, जो इसे अन्य पक्षियों से विशिष्ट बनाता है। मात्र 10 सेंटीमीटर की यह छोटी चिडिय़ा, छोटे झुंडों में रहती है और समूह में लहरदार रफ्तार से उड़ान भरती है। इनमें से ‘लाल मुनिया’ अपनी विशिष्टता और आकर्षक रंगों के कारण सबसे अलग दिखाई देती है।

लाल मुनिया का मुख्य आहार घास के बीज और खेतों में गिरे अनाज होते हैं। ये छोटे तिनके एकत्र कर अपने घोंसले का निर्माण करती हैं। अंडे देने के बाद, यह मुनिया अपने समूह से अलग होकर घोंसले में समय बिताती है।

लाल मुनिया का नर और मादा सामान्य समय में एक जैसे रंग के होते हैं, लेकिन रोमांस की उत्तेजना में नर का रंग गहरा सुर्ख लाल हो जाता है, जिसमें सफेद छीटें दिखाई देती हैं। इस रंग परिवर्तन के कारण यह और भी आकर्षक लगती है, जैसा कि पहले से तीसरे क्रम की फोटो में देखा जा सकता है। बिलासपुर से लगभग 23 किलोमीटर दूर मोहनभाठा में प्राण चड्ढा ने यह तस्वीर ली। 

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