राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : सुनील सोनी से सवाल
05-Aug-2024 3:35 PM
 राजपथ-जनपथ : सुनील सोनी से सवाल

सुनील सोनी से सवाल

रायपुर के पूर्व सांसद सुनील सोनी पिछले दिनों दिल्ली गए, तो उन्होंने बृजमोहन अग्रवाल को भाजपा, और कई दूसरे दलों के सांसदों से मिलवाया। सुनील सोनी भले ही एक बार सांसद रहे, लेकिन उन्होंने  भाजपा के साथ-साथ दूसरे दलों के सांसदों से मित्रवत संबंध बना लिए थे। ये अलग बात है कि दिल्ली में अच्छी पकड़ होने के बावजूद उन्हें टिकट नहीं मिली।

कई सांसद उनसे जानना चाह रहे थे कि आखिर उन्हें टिकट क्यों नहीं मिली? जबकि सुनील सोनी रिकॉर्ड सवा 3 लाख से अधिक वोटों से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। अनौपचारिक चर्चा के बीच कई सांसदों ने उनके संसद में नहीं होने पर अफसोस भी जाहिर किया। गुरुदासपुर के सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा ने सुनील सोनी से कहा कि अगर आप कांग्रेस में होते, तो आपके साथ ऐसा नहीं होता। 

रंधावा जी को कौन बताए, सुनील सोनी रायपुर से कांग्रेस टिकट से लड़ते तो संसद शायद ही पहुंच पाते। 

हरेली के अलग-अलग रंग 

कांग्रेस सरकार में हरेली उत्सव मनाने की शुरुआत हुई थी। सरकार बदलने के बाद भी यह उत्सव जोर शोर से मनाया गया। पहले पूर्ववर्ती सीएम भूपेश बघेल सरकारी निवास में हरेली उत्सव का आयोजन करते थे। महिलाओं को साड़ी-लिफाफा आदि गिफ्ट करते थे। सीएम पद से हटने के बाद भी उन्होंने अपने निवास पर हरेली उत्सव का आयोजन किया।  भूपेश बघेल के यहां उत्सव में उनके करीबी नेताओं के अलावा पाटन से बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की थी। वो अब सरकार में नहीं है, इसलिए गिफ्ट भी नहीं बंटा। दूसरी तरफ, सीएम हाउस में हरेली उत्सव कार्यक्रम में सीएम के साथ स्पीकर डॉ.रमन सिंह, डिप्टी सीएम विजय शर्मा, और कई मंत्री थे। 

डिप्टी सीएम अरुण साव और राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने भी अपने सरकारी निवास पर हरेली उत्सव रखा था। भीड़ भाड़ के मामले में टंकराम वर्मा के यहां सबसे ज्यादा रौनक दिखी। उनके यहां कार्यकर्ताओं को बेरोकटोक आने दिया गया। इस वजह से भी वहां माहौल भी बेहतर नजर आया। यही नहीं, सीएम साय तीनों आयोजनों में शामिल हुए। 

भारतीय होने का वैश्विक लक्षण

बहुत से लोग पढ़े-लिखे होने का सबूत देने के लिए अंग्रेजी-हिंदी की मिलावट कर बातचीत करते हैं। इसके बावजूद कि सुनने और बोलने वाले दोनों अच्छी तरह हिंदी जानते हैं। पर यह अकेले अपने देश में नहीं होता, विदेशों में भी हिंदी के साथ ऐसा ही सलूक हो रहा है। भारतीय मूल के एक अमेरिकी वरुण राम गणेश की एक पोस्ट से इसका थोड़ा अंदाजा मिलता है। वे कहते हैं-बहुत से भारतीय मित्र अमेरिका में नौकरी के बाजार में प्रवेश कर रहे हैं, अन्य चीजों के अलावा नौकरी बदल रहे हैं। बुरे प्रबंधकों और कंपनियों से बचने के लिए मेरे पास सबसे बड़ी सलाह है: एक ऐसे प्रबंधक को चुनें जो पूरी तरह से अंग्रेजी में बात करता हो। साक्षात्कार के दौरान, इस बात पर ध्यान दें कि आपका भावी बॉस कैसे बात कर रहा है। यदि आप एक हिंदी शब्द या हिंदी वाक्य (अक्सर अन्य सहकर्मियों से) देखते हैं, तो कॉल के बाद विनम्रतापूर्वक नौकरी करने से मना कर दें। यह इसके लायक नहीं होगा। यदि कोई प्रबंधक अंग्रेजी नहीं जानता है और केवल हिंदी या क्षेत्रीय भाषाएं जानता है, तो यह बिल्कुल ठीक है। लेकिन अगर आपको कोई भाषा मिक्सर मिलता है, तो आपका जीवन भयानक हो जाएगा और आपको अपने फैसले पर पछतावा होगा।

बात अमेरिका में रहने वाले भारतीयों की हो रही है, मगर, ऐसा लगता है कि अपने देश के ही किसी दफ्तर की है। सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर इस पोस्ट को सवा लाख से ज्यादा लोग दो दिन के भीतर ही देख चुके हैं। ज्यादातर लोगों ने इस राय की आलोचना की है। वे कहते हैं कि इसका मतलब यह है कि आप समाज के 90 प्रतिशत लोगों से कटे हुए हैं। एक ने लिखा 90 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय दुनिया में कहीं भी रहें, भाषाओं का मिश्रण करना, आम लक्षण है।

फूल तो बरस रहे, सुरक्षा कहां है?

हाजीपुर में बीती रात 9 कांवडिय़ों की मौत हो गई। जानकारी के अनुसार, ये सभी एक ट्रैक्टर पर डीजे लेकर सवार थे और यह साउंड सिस्टम ऊपर से गुजर रहे हाईटेंशन तार से टकरा गया। मेरठ में पिछले जुलाई महीने में करंट लगने की ऐसी ही दुर्घटना में 5 लोगों की मौत हो गई थी। मध्यप्रदेश, बिहार, यूपी और राजस्थान में सडक़ दुर्घटनाओं में भी कांवडिय़ों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।

यह तस्वीर कबीरधाम जिले के पंडरिया ब्लॉक के ग्राम गोपालपुर की है, जहां नदी पर पुल नहीं होने के कारण सैकड़ों कांवडिय़े अमरकंटक से जल लेकर कवर्धा के बूढ़ा देव में जल चढ़ाने के लिए उफनती नदी को पैदल पार करने का खतरा मोल ले रहे हैं। हाल ही में, मुंगेली जिला प्रशासन ने पं. प्रदीप मिश्रा के सत्संग कार्यक्रम को मंजूरी देने से इंकार कर दिया था, जो एक महत्वपूर्ण निर्णय था।

छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में कांवड़ यात्रियों पर फूल बरसाये जा रहे हैं। इसका मतलब यही है कि सरकार उनका ख्याल करती है। उनकी यात्रा बिना व्यवधान पूरी हो, यह संदेश मिलता है। वाकई ऐसा है तो क्या बिना किसी हादसे का इंतजार किए, कांवडिय़ों की सुरक्षा और निर्विघ्न यात्रा के लिए क्या कोई एडवाइजरी जारी की जाएगी?

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