राजपथ - जनपथ
सत्ता के भ्रष्टाचार को देखें तो वह धर्म और जाति से परे का दिखता है। भ्रष्ट लोगों में भला किस जाति के लोग नहीं दिखते! जिन दलित-आदिवासी अफसरों के भ्रष्टाचार की कहानियां सामने आती हैं, उन्हें सुनकर ऊंची कही जाने वाली जातियों के लोगों के मन में हिकारत जागती है कि जिस जात का है उसकी वजह से हजार-पांच सौ रूपए भी रिश्वत ले लेता है। अपने को ऊंचा मानने वाली जाति का यह अहंकार रहता है कि वह कम रिश्वत लेने वालों को कम सामाजिक समझ रखने वाले मूर्ख भी मान लेता है। छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों में जैसे-जैसे भ्रष्टाचार सामने आए हैं, उनके पीछे के नेता और अफसर सभी जातियों के हैं, और उससे यह जाहिर होता है कि खानपान चाहे अलग हो, धार्मिक-सामाजिक रीति-रिवाज चाहे अलग हो, बोली अलग हो, लेकिन रूपए को लेकर नीयत कमोबेश एक सरीखी रहती है, और उसमें कोई जाति-धर्म आड़े नहीं आते। इससे लगता है कि रूपए सबसे अधिक धर्मनिरपेक्ष और जातिविहीन होते हैं, जिनसे किसी को परहेज नहीं होता। अब यहां पर एक-एक नेता-अफसर की जात गिनाकर, धर्म गिनाकर भ्रष्टाचार गिनाना जरूरी नहीं है क्योंकि खबरों को देखें तो यह समझ आ जाएगा कि कौन-कौन से ईश्वर, किस-किस जाति के भगवान अपने किन-किन भ्रष्ट लोगों को देखकर खुश हो रहे होंगे। यह बात तो जाहिर है ही कि ईश्वर को सबसे अधिक चढ़ावा सबसे अधिक भ्रष्ट से ही मिलता है जिसे अपने पापों का प्रायश्चित भी करना होता है, और आगे के लिए अधिक कमाई का आशीर्वाद भी लगता है। ऐसे में हर देश-प्रदेश से आए हुए, हर जाति-धर्म के अफसरों के बीच यह एक अनोखी एकता है जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत को एक बनाती है!