राजपथ - जनपथ
कुंडली मारकर बैठे...
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के म्युनिसिपल की खबर है कि नए कमिश्नर मयंक चतुर्वेदी ने महिला पार्षदों के पतियों से बात करने से इंकार कर दिया है। उनके साथ मुलाकात के दौरान एक पार्टी के पार्षद दल में महिला पार्षदों के पति भी थे, और वे आदतन बातचीत में दखल भी दे रहे थे। उनका परिचय पाने के बाद कमिश्नर ने उनसे बात करने से इंकार कर दिया।
पूरे हिन्दुस्तान में अधिकतर जगहों पर पार्षद पति, पंच-सरपंच पति, विधायक या जिला पंचायत अध्यक्ष पति, या सांसद पति तक का राज चलता है। जिन पुरूषों में महिला आरक्षण की वजह से वार्ड या पंचायत छूट जाने का डर रहता है, वे भी अपनी पत्नियों के नाम हलफनामे से बदलकर उनके नाम के साथ अपना नाम जुड़वा लेते हैं, और मानो उनकी छत्रछाया में पत्नियां काम करती हैं, अंगूठा लगाती हैं। मजाक-मजाक में लोग पंच-पति को पाप और सरपंच-पति को सांप भी कहते हैं, क्योंकि वे छूट गई कुर्सी पर बीवी को बिठाकर उस पर सांप की तरह कुंडली मारकर बैठ जाते हैं।
रायपुर म्युनिसिपल कमिश्नर एक नौजवान अफसर हैं, और उन्होंने यह ठीक फैसला लिया है। आज तो हाल यह है कि महिला पार्षदों की तरफ से उनके पति ही म्युनिसिपल के अफसरों को हुक्म देते रहते हैं, देखें अब तस्वीर कितनी बदलती है।
रोहिंग्या मुसलमानों की धमकी?
सरगुजा के मैनपाट में 1962 से बसे तिब्बती शरणार्थियों को प्रदेश के हर हिस्से में जाना जाता है। मैनपाट की खूबसूरत प्राकृतिक छटा के अलावा पर्यटकों को यहां के शरणार्थी तिब्बतियों की विशिष्ट जीवन शैली आकर्षित करती है। छत्तीसगढ़ में वे रच बस गए हैं। हर बड़े शहर में ऊनी कपड़ों का बाजार ठंड के दिनों में लगाते हैं। उन्होंने खेती के नए-नए प्रयोग मैनपाट में किए, जिसका लाभ स्थानीय किसानों को भी मिलता है। पिछले दिनों उनके बीच दहशत फैलाने की कोशिश की गई। उनके कैंप के गेट पर किसी ने चेतावनी भरा परचा चिपका दिया, जिसमें कहा गया कि संभल कर रहें अन्यथा अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें। धमकी देने वाले ने खुद को रोहिंग्या मुसलमान बताया है। इस परचे के जरिये यह बताने की कोशिश हुई है कि सरगुजा में रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी है। कुछ समय पहले अंबिकापुर में रोहिंग्या लोगों की मौजूदगी का आरोप लगाया गया था, जिसकी प्रशासन ने जांच कराई थी। कोई नहीं मिला था। क्या तब प्रशासन ढूंढ नहीं पाया और वे अब मैनपाट तक पहुंच गये? या फिर उनके नाम पर कोई और शरारत कर रहा है? पुलिस और प्रशासन इस परचे की वास्तविकता को सामने लाकर लोगों के मन में उपजे सवालों को सुलझा सकता है। वरना इस तरह का मामला आने वाले चुनाव में किसी को फायदा पहुंचा सकता है, तो किसी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
पेड़ों को बचाने का मंत्र..
हसदेव अरण्य के पेड़ों को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ में अलग-अलग स्तर पर सामूहिक जमावड़े के साथ आंदोलन तो हो ही रहे हैं, व्यक्तिगत स्तर पर भी लोग इस मुहिम में योगदान कर रहे हैं। ऐसे ही एक प्रयास की झलक मिल रही है शादी के इस निमंत्रण पत्र में। यह छत्तीसगढ़ी में दिया गया न्यौता तो है ही, साथ ही मंत्र की जगह पर घने वृक्ष की तस्वीर के नीचे लिखा है- एक पेड़ जिनगी भर... हैशटैग हसदेव। वर डॉ. वैभव को मालूम है कि जीवन का मंगल इसी मंत्र से होना है।
सरकारी खरीद से बिदके उत्पादक
किसानों ने सहकारी समितियों के बजाय व्यापारियों को अपना मक्का बेचना शुरू कर दिया है। व्यापारियों की खरीद कीमत में ज्यादा फर्क नहीं है, पर सरकारी खरीद में कई पेंच हैं। अपनी खेती के रकबे का पंजीयन पटवारी से सत्यापन लेकर कराओ, ऋण पुस्तिका दिखाओ। नमी 14 प्रतिशत से ज्यादा हो तो सोसाइटी में खरीदी होगी नहीं, खरीदी के बाद पैसे के लिए फिर बैंक का चक्कर लगाओ। सरकारी खरीद केवल 10 क्विंटल की लिमिट में ही तय दिनों के लिए होगी, जबकि व्यापारी नगद देते हैं और साल भर खरीदते हैं। अब स्थिति यह है कि कांकेर, दंतेवाड़ा आदि जिलों के जिन 23 से ज्यादा पंजीकृत किसानों का मोह टूटा है, उनसे समिति प्रबंधक अपील कर रहे हैं कि सोसाइटी में मक्का लाएं, यहां पूरी व्यवस्था की गई है।
अभी बीते महीने तेंदूपत्ता संग्राहकों ने भी कहा कि वनोपज संघ की दर 4 हजार रुपये मानक बोरा है, जबकि दूसरे राज्यों के व्यापारी 11 हजार रुपये में खरीदने के लिए तैयार हैं। संग्राहक कहते हैं कि हमारी मेहनत पर वनोपज संघ सिर्फ मध्यस्थता करता है, तब इतना फर्क क्यों? वनोपज संघ कह रहा है कि हम तेंदूपत्ता संग्राहकों को पूरा पैसा देते हैं, व्यापारियों से बेचकर वे धोखा खा सकते हैं। फिर बीमा और लाभांश भी संग्राहकों को मिलता है। संग्राहक कह रहे हैं कि अच्छी कीमत हमें मिलेगी तो बीमा भी हम करा लेंगे, लाभांश की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। तेंदूपत्ता संग्राहकों को कानूनी कार्रवाई की चेतावनी भी दी जा रही है। सरकार ने जिन वन उत्पादों को समर्थन मूल्य पर खरीदने का निर्णय लिया है, वे उत्पाद व्यापारी वनों से सीधे नहीं उठा सकते। उन्हें परमिट ही नहीं मिलेगी। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ में धान ही है, जिसे लोग सरकार को बेचने के लिए ज्यादा उगा रहे हैं। जो दूसरी उपज ले रहे हैं उनकी चिंताओं की तरफ भी ध्यान दिया जाए तो जो बोझ धान खरीदी के कारण सरकार पर पड़ता है वह कम हो सकता है।
जिसे चाहोगे वही मिलेगी
जिन लोगों को हिन्दुस्तान की प्राचीन विद्याओं पर बड़ा भरोसा है, उन्हें वशीकरण कही जाने वाली इस विद्या के बारे में भी सोचना चाहिए। वशीकरण बतलाता है कि किस तरह जिस युवती को बस में करना हो, उसका पुतला बनाकर क्या-क्या किया जाए, तो वह प्यार भी देगी, और शादी भी करेगी। यह पूरा मंत्र और इससे जुड़ी विधि इतनी आसान है कि खूबसूरत लड़कियों को इसके चलते हजार-हजार लोगों से शादी करनी पड़ेगी। पढ़ें और मजा लें।
किसके खिलाफ रिपोर्ट लिखते..
जांजगीर जिला प्रशासन ने उन तीन पटवारियों को सस्पेंड किया है जो एक महिला के घर संदिग्ध हालत में पाए गये थे। ग्रामीणों ने तीनों पटवारियों के परिवार वालों ने भी खूब खबर तो ली ही, पटवारी संघ ने भी उनको अपने संगठन से निकाल दिया है। पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। कोतवाली थाने में जब एक की पत्नी शिकायत लेकर पहुंची तो पुलिस ने कहा किसके खिलाफ शिकायत लिखें? उस महिला के खिलाफ नहीं लिख सकते। सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं जानते हैं क्या? हमारी दखलंदाजी का मामला नहीं है। पति की हरकत से आप विचलित हैं तो आप उनके खिलाफ जरूर कोर्ट जा सकते हैं।
इस दावे का भी जवाब नहीं...
सरगुजा जिला मुख्यालय में रेलवे स्टेशन जाने के रास्ते पर राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड का एक बड़ा सा साइन बोर्ड आजकल दिखाई दे रहा है। पर पहले कभी बताया नहीं। आज जब परसा की नई खदान के खिलाफ आंदोलन चल रहा है तब राज खोला जा रहा है। छत्तीसगढ़ में कितने पौधे लगे, कितना जंगल उजड़ गया यह छत्तीसगढ़ के लोगों को राजस्थान की कंपनी आकर बता रही है।
एक पेड़ का महत्व तुम क्या जानो...
इंटरनेट पर पेड़ों की अहमियत को बताने के लिए कुछ तस्वीरें चारों तरफ घूमती हैं, जिनमें से एक पेड़ के नीचे सैकड़ों लोग इक_ा हैं। एक दूसरी तस्वीर है जिसमें चारों तरफ पेड़ कट गए हैं, और अकेले बचे पेड़ के सामने कुत्ते लंबी कतार में लगे हुए हैं ताकि बारी-बारी से उस पर पेशाब कर सकें। इस तरह की कुछ तस्वीरें बरसों से पेड़ों का महत्व बताने के लिए प्रचलन में हैं। लेकिन अभी छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र के ग्राम बासेन की एक तस्वीर आई है जिसमें वहां पहुंचने वाले पंचायत मंत्री टी.एस. सिंहदेव से मिलने के लिए लोग हेलीपैड के पास एक पेड़ के नीचे इक_ा हैं क्योंकि वहां छाया के लिए वही एक पेड़ नसीब है। इस जंगल के पेड़ कोयला खदान के लिए लाखों की संख्या में कटने जा रहे हैं, और एक-एक पेड़ का महत्व इस तस्वीर से साफ होता है। आंदोलन से आए हुए एक वीडियो से निकाली गई यह तस्वीर।
मन की बात भारी पड़ गई
आप वीडियो कॉन्फ्रेंस में बैठे हैं, तो सबसे पहली सावधानी यह बरतें कि आपके मोबाइल-डेस्कटॉप या लैपटॉप पर माईक बंद हो, वरना आपके मन की बात आम लोगों तक पहुंच जाएगी, और हो सकता है कि इससे आपको नुकसान भी उठाना पड़े।
कुछ इसी तरह की बातें एक उच्च स्तरीय बैठक में हुई, और मन की बात सुनते ही आला अफसर का पारा गरम हो गया। हुआ यंू कि सरकार के एक सीनियर अफसर गोधन न्याय योजना की वीडियो कॉन्फ्रेंस से समीक्षा कर रहे थे। यह योजना भूपेश सरकार की प्रिय, और महत्वाकांक्षी है। कॉन्फ्रेंस में सारे जिला पंचायत सीईओ जुड़े हुए थे।
बड़े अफसर योजना में खामियों पर रह-रह कर सीईओ पर बरस रहे थे। आला अफसर के सामने सीईओ की जुबान नहीं खुल रही थी। माईक चालू था, और एक सीईओ साथ बैठे सहयोगी से आपसी चर्चा में यह कहते सुने गए कि साला, बात तो सुनता ही नहीं, और बेवजह डांटते रहता है। फिर क्या था मन की बात अफसर तक पहुंच गई। इसके बाद अफसर ने घंटे भर तक सारे सीईओ को जमकर सुनाया। कुल मिलाकर समीक्षा पर मन की बात भारी पड़ गई।
मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है
हरियाणा के राज्यसभा चुनाव में खरीद-फरोख्त की आशंका के चलते कांग्रेस ने एहतियात बरतते हुए अपने विधायकों को नवा रायपुर के एक महंगे रिसॉर्ट में ठहराया है। कांग्रेस अपने राज्यसभा प्रत्याशी अजय माकन की जीत किसी तरह सुनिश्चित चाहती है। हाल यह है कि विधायकों को अपने परिजनों से भी बात करने की अनुमति नहीं दी गई है। ये विधायक कड़ी निगरानी में है। मगर चर्चा है कि माकन के प्रतिद्वंदी प्रत्याशी कार्तिकेय शर्मा किसी तरह विधायकों तक संपर्क की कोशिश में हैं। कार्तिकेय कई कंपनियों के मालिक हैं, और वो एक टीवी चैनल के कर्ता-धर्ता भी हैं।
सुनते हैं कि कार्तिकेय ने छत्तीसगढ़ में अपने टीवी चैनल में काम कर चुके लोगों के जरिए भी विधायकों तक पहुंच बनाने की कोशिश की। इन लोगों ने कार्तिकेय को साफ तौर पर बता दिया कि पूरे रिसॉर्ट पर कड़ा पहरा है। सरकार के दो मंत्रियों समेत कुल चार लोगों को ही उनसे बात करने की अनुमति है। मीडिया तो 2 किमी आसपास भी नहीं जा पा रहा है। ऐसे में किसी से संपर्क होना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। कार्तिकेय को उन चार लोगों के नाम बता दिए गए, जो कि विधायकों के संपर्क में हैं। अब ये लोग कार्तिकेय से बात भी करेंगे, यह सोचना भी व्यर्थ है।
गोदना का क्रेज...
गोदना का छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में पुराने दौर से चलन है। शिवरीनारायण अंचल में रामनामी संप्रदाय है, जिनमें पूरे शरीर में राम का नाम गुदवाने की परंपरा है। अनेक समुदाय हैं जो बचपन में ही अपने बच्चों को गोदना गुदवाते हैं। वे कहते हैं कि यदि गोदना गुदवाने की सुई का दर्द बच्चे ने सह लिया तो आगे चलकर हिम्मती बनेगा, हर तकलीफ को झेल पाने वाला। नई पीढ़ी के शहरों, महानगरों के युवाओं में भी गोदना प्रचलन में है, पर उसे टैटू के नाम से जाना जाता है। दोनों में एक बड़ा फर्क यह है कि गोदना कभी मिटाए नहीं मिटता। शरीर ने साथ छोड़ा तो कपड़े, गहने अलग हो जाएंगे, पर गोदना उसके साथ ही जाएगा। दूसरी तरफ टैटू में दूसरे केमिकल कुछ ऐसे मिलाए जाते हैं कि उन्हें पसंद नहीं आने पर बाद में मिटाया जा सकता है। यह तस्वीर बस्तर की बादल अकादमी की है, जहां युवा न केवल गोदना गुदवा रहे हैं, बल्कि इनमें से कई युवा इस कला को सीख भी रहे हैं।
दानीदाता से लोग लुटे...
ऑनलाइन एप से होने वाली ठगी का कोई ओर-छोर नहीं है। लोगों के हाथ में डेटा के साथ मोबाइल फोन क्या आया, धोखाधड़ी के शिकार होते जा रहे हैं। पर ऐसी सामूहिक ठगी शायद पहले नहीं हुई हो, जैसी सरगुजा जिले के भटगांव में हुई है। करीब 6-7 सौ लोगों ने दानीदाता एप डाउनलोड किया। कम से कम 500 रुपये का निवेश। फुटबाल में बेटिंग खेलने का मौका मिलता था। एक दिन में अधिकतम तीन बार। इसके बाद 0.75 प्रतिशत रकम जमा की गई राशि के लाभ के रूप में खाते में जमा हो रही थी। जितना ज्यादा निवेश, उतना ज्यादा फायदा। कई लोगों ने 2 लाख और उससे ज्यादा भी लगाए। 6 माह तक ऐप ठीक-ठाक चला। अब यह बंद हो चुका है, गूगल प्ले स्टोर से भी गायब है। अकेले भटगांव में कहा जा रहा है कि लोगों के एक करोड़ रुपये से ज्यादा डूब गए। बाकी जगहों से जानकारी जुटाई जाए तो यह रकम कहां पहुंचेगी, अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। गूगल सिर्फ वेरिफाइड एप अपने प्ले स्टोर पर डालने का दावा करता है। फिर ऐसी धोखाधड़ी करने वाले एप की उसने पुष्टि क्यों नहीं की, लोग जानना चाहते हैं। साइबर क्राइम से निपटने में अपनी जांच एजेंसियां भी बहुत एक्सपर्ट नहीं। सरकार ने ऐसे एप पर निगरानी के लिए कोई तंत्र भी नहीं बनाया है। चिटफंड कंपनियों के जरिये ठगी का तरीका पुराना हो गया, यह नई तकनीक से की जाने वाली ठगी है।
यह तो हद हो गई...
जंगल अफसर वन्यजीवों की हिफाजत को लेकर कितने सजग हैं यह कोरिया जिले के हाल ही में बने गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व में हुई टाइगर की मौत से पता चलता है। मौत के अगले दिन बड़े अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे और घोषणा कर दी कि टाइग्रेस (बाघिन) की मौत हुई है। उन्हें पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि यह मादा नहीं, नर बाघ है। यह ठीक है कि शहरी इलाकों से लोग जंगल में मौज-मस्ती के लिए जाते हैं और शराबखोरी भी कई लोग करते हैं। पर टाइगर रिजर्व और बायोस्फेयर के नाम पर नागरिकों को आने-जाने पर जो पाबंदी लगा दी जाती है उनका फायदा वन अधिकारी उठाते हैं। जंगल में बसे गांवों के लोग ज्यादातर उनसे भयभीत रहते हैं क्योंकि बीच-बीच में उनको इनसे ही रोजगार मिलता है। जंगल के भीतर क्या हो रहा है यह बाहरी दुनिया को पता ही नहीं चलता। कैम्पा और दूसरे मदों से जंगल में करोड़ों रुपये पहुंच रहे हैं। जीपीएम जिले के मरवाही वन मंडल में सात करोड़ रुपये के काम हुए नहीं और अधिकारियों ने रकम दबा दी। इसमें तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ निपट गए, डीएफओ पर एक्शन हुआ। विधानसभा में भी यह मामला उठा था। सुनने में आ रहा है कि गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व में भी ऐसा ही खेल चल रहा है। राजधानी में बैठे अफसरों की मेहरबानी से यहां कैंपा मद में खूब पैसे आ रहे हैं। टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर राजधानी में बैठे एक सीनियर ऑफिसर के करीबी हैं, इसलिये ऐसा मुमकिन हो रहा है। घने जंगलों के भीतर चौड़ी सडक़ें और पुल-पुलियों का निर्माण कराया जा रहा है, जो जानवरों की स्वछन्द आवाजाही पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है। इन निर्माण कार्यों की गुणवत्ता भी देखने वाला कोई नहीं है। जीपीएम जिले का मामला कोरिया जिले के ही संसदीय सचिव गुलाब कमरो ने विधानसभा में उठाया था, पर पता नहीं अपने खुद के जिले में हो रही गड़बड़ी की तरफ उनका ध्यान क्यों नहीं है? जिस रेंजर के इलाके में घटना हुई है वे तीन बार अपना तबादला रुकवाकर यहीं डटे हैं। विभाग में कई डिप्टी रेंजर अधिकारियों और नेताओं की उदारता के चलते रेंजर के प्रभार में हैं। ये भी उनमें से एक हैं। पहले इन अफसरों को नर-मादा पहचानने की ट्रेनिंग देनी चाहिए, उसके बाद उन्हें जंगल भेजना चाहिए।
झरने की ताकत
एक ओर बिजली के लिए देशभर में कोयले का संकट बना हुआ है और इसके लिए उद्योगपति घने जंगलों को भी उजाडऩे पर आमादा हैं, वहीं दूसरी ओर रायगढ़ के धरमजयगढ़ इलाके में अलग हटकर काम हुआ है। बेलसिंगा और माली कछार उरांव जनजाति बाहुल्य गांव हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहां तार खींचकर बिजली नहीं पहुंचाई जा सकी, पर विकल्प के रूप में सौर ऊर्जा की सुविधा भी अब तक नहीं मिल पाई। अब यहां सामाजिक विज्ञानी प्रो. डीएस मालिया ने प्राकृतिक झरने से टर्बाइन चलाकर बिजली पैदा कर दी है। जैसा उनका दावा है, दोनों गांवों के 26 घरों में पांच-पांच बल्ब इस बिजली से जलेंगे। आंगनबाड़ी और स्कूल भी बिजली से रोशन होंगे। यही नहीं रायगढ़ जिले के दो और गांवों में बहुत जल्दी यह प्रयोग शुरू किया जाएगा। जंगल को बचाये रखकर प्रकृति में उपलब्ध साधनों से ही गांव के विकास का यह सटीक उदाहरण है। हैरानी की बात है कि पिछले 20 साल से प्रो. वालिया इस आइडिया को मूर्त रूप देना चाहते थे, पर बजट के अभाव में काम रुका था। शासन ने शायद इस नये प्रयोग को अहमियत नहीं दी, वरना ग्रामीण विकास के मद में कई तरह के फंड होते हैं, जिससे यह काम पहले पूरा हो सकता था।
तो इसलिये बंधे हैं हाथ...
जो हसदेव अरण्य को बचाने के लिए चल रहे आंदोलन को देखने के लिए नहीं पहुंच सके हैं, यह तस्वीर देख सकते हैं। एक तरफ वन कर्मचारी मजदूरों को गाडिय़ों में भरकर पेड़ों को काटने के लिए पहुंचे हैं, दूसरी ओर पेड़ों को काटने से रोकने के लिए प्रभावित आदिवासी ढाल बनकर खड़े हैं।
इस साग का नाम तो जानते ही होंगे आप...
छत्तीसगढ़ में अनूठे फलों की भरमार है। इनमें से एक है बड़हल या बड़हर। इसका अंग्रेजी नाम है-आर्टोकार्पस लैकूचा। इसे मंकी फ्रूट भी कहते हैं। इन दिनों बाजार में यह फल बहुत आ रहा है। फल से कटहल की तरह सब्जी बनती है, इसके फूलों से भी कोफ्ता आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाया जा सकता है। इसकी लकडिय़ां भी कीमती हैं। पारंपरिक वाद्य यंत्र बनाने में इसकी डालियों और तने का इस्तेमाल किया जाता है।
बस्तर की जागरूकता!
जिन लोगों को यह लगता है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में लोग कम पढ़े-लिखे हैं, उन्हें यह देखकर हैरानी हो सकती है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गांव-गांव के दौरों में लोगों की जागरूकता किस तरह सामने आती है। अभी उन्होंने खाद की कमी सामने आने पर एक गांव की सभा में लोगों को बताया कि यह खाद केन्द्र सरकार देती है, और उसके पास भी यह दूसरे देशों से आती है। ऐसे में आज जब जंग चल रही है, तो खाद की कमी हो गई है। इसके साथ ही उन्होंने सभा में मौजूद लोगों की भारी भीड़ से सवाल किया कि क्या उन्हें मालूम है कि रूस ने किस देश पर हमला किया है, तो इसके जवाब में एक साथ दर्जनों लोगों ने यूक्रेन का नाम लिया! बस्तर के जंगलों के बीच बसे हुए लोगों की यह जानकारी बताती है कि वे न केवल देश-प्रदेश, बल्कि दुनिया की भी खबर रखते हैं, और मुख्यमंत्री के सवाल के जवाब में तुरंत तैयार भी रहते हैं।
मनरेगा सहायकों की हड़ताल
बीते 2 महीने से ज्यादा हड़ताल पर चल रहे मनरेगा कर्मचारियों का विवाद कसैला सा हो गया है। सीएम ने इनका वेतन लगभग दोगुना करने की घोषणा कर दी है। 5 या 6 हजार रुपये की जगह अब उनको 9000 से अधिक मिलेंगे। चुनावी घोषणा इन्हें नियमित करने की थी, अभी संविदा पर हैं। शायद वित्तीय असंतुलन की वजह से मांग पूरी नहीं की जा रही है। अब आवेश में आकर जिन 12000 कर्मचारियों को उनके नेताओं ने इस्तीफा दिलवाया है क्या वे नया रोजगार पा सकेंगे जिसमें उन्हें 9, 10 हजार रुपये मिले। सरकार ने नई भर्ती की चेतावनी भी दे दी है। पूरी परिस्थिति संवाद हीनता की वजह से बिगड़ी ऐसा लगता है। रोजगार सहायकों की नौकरी का छिन जाना उनके और उनके परिवार के लिए फायदेमंद बिल्कुल नहीं है। शायद सरकार भी एक साथ इतने लोगों को बाहर करने के बारे में न सोचे। कायदे से सुलह का कोई रास्ता निकाला जाए जिससे उनकी नौकरी बची रहे।
प्लास्टिक बैन सफल होगा?
प्रदेश में 1 जून से सिंगल यूज़ प्लास्टिक बैग पर रोक लगाने की घोषणा की गई थी। अब इसकी तारीख 1 जुलाई कर दी गई है। इस नियम के मुताबिक प्लास्टिक स्टिक, थर्माकोल, डिस्पोजल, चम्मच, थैली आदि यदि 100 माइक्रोन से कम मोटाई है तो बाजार में नहीं दिखेंगे। बैन पहले भी लगे पर, इस बार केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार लागू किया जा रहा है। दूसरे कुछ राज्यों में जैसे राजस्थान, झारखंड, दिल्ली में पर्यावरण फ्रेंडली बैग बाजार में आ चुके हैं पर छत्तीसगढ़ में यह अभी दिखाई नहीं दे रहा है। जब तक प्लास्टिक बैग का विकल्प नहीं मिलेगा यह नियम कैसे लागू होगा, कितना हो सकेगा, सवाल बना हुआ है।
गैस का विध्वंस करने वाली तेलीबांधा रायपुर की एक दुकान। बोलचाल में कहें तो यहां हवाबाण हरडे मिलता है।
कार्तिकेय के डर से, दिलीप के होटल में!
राज्यसभा चुनाव में विधायक और सांसद वोटों की खरीद-फरोख्त कोई नई बात नहीं है, और आज तो हिन्दुस्तान में संसदीय मंडी चकलाघर की तरह चलती है। चकलाघर कहना भी कुछ ज्यादती होगी क्योंकि वहां पर तो महिला सिर्फ अपना खुद का बदन बेचती है, जब सांसद और विधायक अपने को बेचते हैं, तो वे उन्हें चुनने वाली जनता का विश्वास बेचते हैं, अपनी पार्टी के प्रति वफादारी बेचते हैं, और अपना ईमान बेचते हैं, जो कि देह बेचने के मुकाबले बहुत ही घटिया काम है।
अब आज पार्टियों की हालत यह हो गई है कि अपने लोगों को ऐसा घटिया काम करने से रोकने के लिए उन्हें दूसरे प्रदेशों में ले जाकर अपनी सरकार और अपनी पार्टी की निगरानी में ठहराना पड़ता है, और उन्हें सात सितारा ऐशोआराम देना पड़ता है। हरियाणा से कांग्रेस के 28 विधायकों को लाकर इसी वजह से छत्तीसगढ़ के रायपुर में सबसे महंगे होटल में ठहराया गया है, और कांग्रेस की सरकार होने से उसे सरकारी निगरानी से घेर दिया गया है। दिलचस्प बात यह है कि यह होटल दिलीप रे नाम के एक भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री का है। ओडिशा के दिलीप रे ने 2002 में वोटों को खरीदकर राज्यसभा की सदस्यता खरीदी थी। आज संयोग ऐसा है कि वैसे भूतपूर्व सांसद की वर्तमान होटल में भावी वोटरों को ठहराकर उनकी खातिरदारी की जा रही है। एक समय उत्तर भारत के एक राज्य के बारे में सुना जाता था कि वहां बंदूक की नोंक पर शादी के लायक लडक़े को उठाकर बंदूकों के घेरे में अपनी लडक़ी से उसकी शादी करवा दी जाती थी। आज उसी तरह नोटों के घेरे में विधायकों को उठाकर अपना सांसद बनवाया जाता है।
लेकिन इसके अलावा भी एक दिलचस्प संयोग हरियाणा के इस चुनाव से रायपुर का जुड़ा हुआ है। जिस निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा को लेकर कांग्रेस को यह आशंका है कि वह कांग्रेस विधायकों को खरीद सकता है, वह भी रायपुर में कारोबार कर चुके विनोद शर्मा का बेटा है, और उनका भी रायपुर में पिकैडली होटल है। मतलब यह कि पिकैडली के लिए वोट करने का खतरा रखने वाले विधायकों को मेफेयर लेक रिसॉर्ट में ठहराया गया है। कार्तिकेय शर्मा का परिचय लिखता है कि वे पिकैडली ग्रुप के एमडी हैं। वे और भी कई कंपनियों के मालिक हैं, और उनके पिता का मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों में शराब का बड़ा कारोबार रहा है। अब जाहिर है कि इतने ताकतवर के हाथ बिकने से बचने के लिए हरियाणा के कांग्रेस विधायकों को छत्तीसगढ़ की हिफाजत में रखा गया है, यह एक और बात है कि इसी तरह सांसद और केन्द्रीय मंत्री बने दिलीप रे की होटल में रखा गया है।
संबंध अच्छे रखने का नतीजा
छत्तीसगढ़ में आयकर अपीलीय अधिकरण का नया दफ्तर खुला, तो व्यापारी वर्ग को काफी राहत मिली। अधिकरण का स्थाई दफ्तर खुलवाने के लिए सांसद सुनील सोनी ने काफी मेहनत की थी। खुद केन्द्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने मंच से कहा कि सोनीजी लगातार इसके लिए प्रयासरत थे, और उनके विशेष आग्रह पर ही वो उद्घाटन के लिए यहां आए हैं अन्यथा दिल्ली से ही वर्चुअल उद्घाटन की सोच रहे थे।
अधिकरण की स्थापना चेम्बर की पुरानी मांग रही है। पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र बरलोटा इस सिलसिले में सुनील सोनी के साथ पहले भी कई बार दिल्ली जाकर केन्द्र सरकार के प्रमुख नेताओं से मिल चुके हैं। अधिकरण के उद्घाटन के मौके पर केंद्रीय राज्य मंत्री एसपीएस बघेल भी मौजूद थे। बघेल की सुनील सोनी से अच्छी मित्रता है।
बघेल, यूपी चुनाव में अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे, तो सुनील सोनी उनके प्रचार के लिए हफ्तेभर वहां डटे रहे। बघेल यहां उद्घाटन के लिए आए, तो सुनील सोनी के लिए आगरा का पेठा लेकर आए थे। केन्द्र हो या राज्य, जिस नेता के मंत्रियों से अच्छे रिश्ते होते हैं, वो सरकारी काम जल्द करवा पाने में सफल होते हैं।
भरोसा हो तो ऐसा हो...
कांग्रेस में राज्यसभा टिकट के लिए भारी खींचतान थी। आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद जैसे कई दिग्गज प्रत्याशी बनने से वंचित रह गए, लेकिन एक व्यक्ति को राज्यसभा में जाने का पूरा भरोसा था, वो थे राजीव शुक्ला। शुक्लाजी ने तो शपथ पत्र के साथ संपत्ति विवरण, और अन्य जरूरी कागजात 26 मई को ही दिल्ली में तैयार करवा लिए थे। जबकि एआईसीसी ने प्रत्याशी की घोषणा 30 तारीख को की थी।
दूसरी तरफ, एक अन्य श्रीमती रंजीत रंजन को अपने नाम की घोषणा के बाद नामांकन दाखिले के लिए जरूरी शपथ पत्र और अन्य कागजात तैयार करवाने के लिए पीसीसी की मदद लेनी पड़ी, और अधिवक्ता फैसल रिजवी ने नामांकन दाखिले के कुछ घंटे पहले कागजात तैयार करवाए। तब कहीं जाकर रंजीत रंजन ने राजीव शुक्ला के साथ नामांकन दाखिल किया।
नींद से जगा देने वाली सेवा...
देर रात आपको दुर्ग में उतरना है। मगर नींद ऐसी आई कि आप गोंदिया पहुंच गए। आप चाहें तो अब ऐसा नहीं होगा। रेलवे ने एक नई सुविधा शुरू कर दी है। आपको आपके स्टेशन से 10 मिनट पहले जगा दिया जाएगा। आपके मोबाइल फोन पर घंटी तो बजेगी ही, पर बोगी में जो अटेंडेंट काम कर रहे हैं वह आपको हिला-हिला कर जगा भी देंगे। एक नया विकल्प दिया गया है। रात में अगर आप चल रहे हैं और आपको अपने स्टेशन पर उतरना हो तो सिर्फ 3 रुपये खर्च करके आप सही जगह पर उतर सकते हैं। रेलवे ने अपनी हिम्मत नहीं छोड़ी है। लोग बहुत से पैसेंजर ट्रेनों को बंद करने से नाराज चल रहे हैं मगर वह नए-नए प्रयोग करके अपनी प्रासंगिकता को बता रहा है।
इतना भी सीधा-सरल होना ठीक नहीं...
मुख्यमंत्री बनने की इच्छा रखने वाले बाबा साहब जब कुर्सी मिलेगी तो अफसरों पर लगाम लगा पाएंगे या नहीं यह एक बड़ा सवाल है। उनके अपने ही विभागों में धूल उड़ा रहे अफसरों पर कार्रवाई करने से वे चूक रहे हैं। कल के बिलासपुर की मीटिंग को लीजिए। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक सारे सबूतों के साथ विकास कार्यों की समीक्षा बैठक में पहुंचे। उन्होंने मांग रखी अफसरों को सस्पेंड करो। बाबा जी बोले जांच कराएंगे। कौशिक मूठा टेबल पर ठोकते हुए बाहर निकल गए। कहा कि इस तरह की फालतू समीक्षा बैठक मैं मुझे नहीं रहना।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पहले से पता होगा कि पटवारी से लेकर के डिप्टी कलेक्टर तक खूब खा रहे हैं। पर जहां भी दौरे पर जा रहे हैं शिकायत मिलने पर तुरंत अफसरों को और कर्मचारियों को सस्पेंड कर रहे हैं। यह फर्क समझ में आता है।
आपको याद होगा कि बीते मार्च में सत्र के दौरान स्पीकर डॉ चरणदास महंत ने विधानसभा में सिंहदेव को उकसाया था, तब जाकर उन्होंने वन और पंचायत विभाग के 15 कर्मचारियों को सस्पेंड करने की घोषणा की थी। डॉ महंत नहीं बोलते तो सब आज तक खेल खा रहे होते। तो बाबा जी भ्रष्ट लोगों के खिलाफ इतनी भी दरियादिली ठीक नहीं है।
अंबिकापुर रेल लाइन, अपना दल का साथ
सरगुजा के कुछ भाजपा नेताओं की इलाके में रेल सुविधाएं बढ़ाने की मुहिम अब धीरे-धीरे रंग ला रही है। ये नेता अंबिकापुर से रेणुकूट (यूपी) तक 106 किमी रेल लाइन बिछाने के लिए अभियान चला रहे हैं। स्थानीय सांसद, और केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह भी अब इस मुहिम से जुड़ चुकी हैं। यही नहीं, अंबिकापुर से रेल लाइन आगे बढ़ाने के प्रस्ताव को पड़ोसी राज्य यूपी के अपना दल (एस) का भी समर्थन मिल गया है।
अपना दल (एस) एनडीए का सहयोगी दल है। रेणुकूट , जो कि यूपी के सोनभद्र जिला का हिस्सा है, वहां के अपना दल(एस) के सांसद पकौड़ी लाल कोल ने अंबिकापुर से रेणुकूट को जोडऩे के लिए केन्द्रीय रेल मंत्री से मिलने साथ जाने के लिए तैयार बैठे हैं। बताते हैं कि अंबिकापुर से रेणुकूट तक रेल लाइन बिछाने के लिए तीन बार सर्वे भी हो चुका है। इस बीच में 11 छोटे-बड़े स्टेशन भी बनेंगे।
भाजपा नेता यह भी चाहते हैं कि अंबिकापुर से कोरबा तक 145 किमी रेल लाइन को जोड़ा जाए। यह भी सर्वे हो चुका है। केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव तक सारे प्रस्तावों को भेजा भी जा चुका है। रेल मंत्रालय इन प्रस्तावों को सहमति दे देता है, तो अंबिकापुर से दिल्ली 15 घंटे में और रायपुर तक का सफर 6 घंटे में पूरा हो जाएगा। भाजपा की मुहिम को एक और सहयोगी दल का साथ मिलने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि रेल मंत्रालय आदिवासी इलाके में रेल सुविधाएं बढ़ाने के लिए सहमत हो जाएगा। फिलहाल तो नेता रेल मंत्रालय के रूख का इंतजार कर रहे हैं।
भाजपा में अब यह शोर भी
भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय को बदले जाने का शोर अभी थमा नहीं है कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को बदले जाने की चर्चा शुरू हो गई है। यह तर्क दिया जा रहा है कि साय को हटाने से आदिवासी समाज में गलत संदेश जाएगा। अलबत्ता, कौशिक की जगह अजय चंद्राकर, या फिर नारायण चंदेल को लाने से कोई नुकसान नहीं होगा। मगर वाकई ऐसा होगा, यह तो तय नहीं है, लेकिन जो भी प्रदेश के नेता दिल्ली से लौटते हैं वो बदलाव की तरफ इशारा जरूर करते हैं। कुछ का दावा है कि अगले एक पखवाड़े के भीतर प्रदेश भाजपा में बड़ा बदलाव जरूर होगा। देखना है कि आगे क्या होता है।
कृपा कहां पहुंच रही है?
लोगों को अपने टेलीफोन नंबरों पर तरह-तरह के सरकारी फायदे मिलने की खबर मिलते रहती है। इस अखबार के एक नंबर पर मध्यप्रदेश के रियायती सरकारी राशन जारी होने का एसएमएस आते ही रहता है। अब इसी नंबर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से भेजा यह एसएमएस मिला है कि पीएम किसान योजना की दो हजार रूपए की किस्त इस नंबर के बैंक खाते में भेज दी गई है।
अब सवाल यह उठता है कि इस नंबर के मालिक का इन रियायती योजनाओं से जब कोई भी लेना-देना नहीं है, तो यह किसे जा रही रियायत की सूचना है? या तो इसकी वजह से रियायत पाने वाले नामों में एक नाम जबर्दस्ती जुड़ रहा है, या फिर किसी और रियायत पाने वाले की जगह यह संदेश किसी और को जा रहा है? अब जब आधार कार्ड से सारी रियायती योजनाएं जुड़ गई हैं, बैंक खाते जुड़ गए हैं, तब भी ऐसी गड़बड़ी क्यों हो रही है? क्या इस अखबार के टेलीफोन नंबर से कहीं कोई बैंक खाता भी खोल लिया गया है?
निर्मल बाबा कहे जाने वाले एक विवादास्पद गुरू की जुबान में कहें, तो यह कृपा पहुंच कहां रही है?
बूस्टर डोज को लेकर उदासीनता
दिल्ली में बीते कुछ दिनों से लगातार कोविड पॉजिटिव मरीज बढ़ रहे हैं। कल 500 से ज्यादा केस आए। जांच के अनुपात में पॉजिटिव दर 6 प्रतिशत पाई गई। मुंबई में 711 नए केस मिले। दोनों जगहों पर मिले केस अप्रैल के मुकाबले दुगने हैं। छत्तीसगढ़ की स्थिति इस लिहाज से संतोषजनक है कि यहां पॉजिटिव केस की दर अभी एक प्रतिशत से भी कम है। कल रात की तस्वीर के अनुसार पूरे प्रदेश में केवल 15 मामले आए। 22 जिलों से कोई केस नहीं हैं। यही वे आंकड़े हैं जिसे लेकर लोग ही नहीं, सरकार भी निश्चिंत दिख रही है। ऐसा नहीं होता तो बूस्टर डोज की लगने की रफ्तार पर वह चिंतित जरूर होती। 18 प्लस के एक करोड़ 71 लाख लोगों को बूस्टर लगाने का वक्त आ चुका है जबकि केवल 9000 लोगों को अब तक लगा है। 60 वर्ष से अधिक 32 लाख 42 हजार लोगों को बूस्टर लगना है पर अब तक 5 लाख से कुछ ज्यादा लोगों को ही लग सका है।
डॉक्टरों का कहना है कि 9 महीने के बाद वैक्सीन की एंटीबॉडी खत्म हो जाती है। इसलिए बूस्टर डोज लगाना जरूरी है। निजी अस्पतालों को फिक्स 382 रुपए लेकर डोज लगाना है लेकिन ज्यादातर अस्पताल संचालक रुचि नहीं ले रहे हैं और सरकार इन पर दबाव भी नहीं बना पा रही है।
पहले दो दौर के कोविड-19 प्रकोप में यह देखा गया है दिल्ली और महाराष्ट्र के बाद इसका प्रसार छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हुआ है। बूस्टर डोज लगाने के लिए अभी ठीक वक्त है पर इस पर कोई जोर दे नहीं रहा है।
खुश करने वाले ये आंकड़े
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग आफ इंडियन इकॉनामी ने बेरोजगारी पर जो ताजा रिपोर्ट जारी की है वह छत्तीसगढ़ सरकार को खुश करने वाली हो सकती है पर प्रदेश के युवाओं को भी ऐसा ही महसूस हो रहा होगा, इसमें संदेह है। छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी की दर?? 0.7 प्रतिशत बताई गई है, जो देशभर में सबसे कम है। अप्रैल में भी यह दर 0.6 प्रतिशत बताई गई थी।
इन आंकड़ों में यह नहीं बताया जाता कि रोजगार पाने वाले आखिर कौन सा धंधा कर रहे हैं और कितनी कमाई होती है। सीएमआईई की गणना के तरीके पर कई अर्थशास्त्री अपनी असहमति जता चुके हैं। जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिजीत राय चौधरी का कहना है शहरी और ग्रामीण इलाकों से 44 हजार परिवारों के बीच देश में सर्वेक्षण करवाया जाता है। यदि कोई कहता है कि वह फेरी लगाता है या कूड़ा बीनता है तो उसे भी रोजगार में लगा मान लिया जाता है। जबकि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक सिर्फ सम्मानजनक काम करने वालों को ही रोजगार वाला माना जाना चाहिए। सम्मानजनक की परिभाषा है कि कोई उत्पादक कार्य किया जाए, समुचित आय मिले, कार्यस्थल पर सुरक्षा हो, परिवार के लिए सामाजिक संरक्षण और व्यक्तिगत विकास की संभावना हो।
अर्थशास्त्रियों के विश्लेषण से ऐसा लगता है कि घरेलू महिलाओं को भी रोजगारशुदा मान लिया गया होगा। वह घर में कितने सारे काम करती ही हैं। अपने राज्य में नई सरकार बनने के बाद गांव में गोबर बीनने का काम बड़े पैमाने पर हो रहा है। प्रधानमंत्री जब कहते हैं कि पकौड़ा तलकर बेचना भी एक रोजगार है तो गोबर बीनने को क्यों रोजगार में नहीं गिना चाहिए। जमीनी हकीकत चाहे जो भी हो आंकड़े तो खुश करने वाले हैं, इसलिए खुशी मना लेनी चाहिए।
बाजार के लिए एक नया शब्द
दिलचस्प हालात नए-नए दिलचस्प शब्द भी पैदा करते हैं। बढ़ती हुई महंगाई को लेकर अंग्रेजी में इन्फ्लेशन शब्द का इस्तेमाल होता है, अब उससे मिलता जुलता एक नया शब्द श्रिंकफ्लेशन आया है इसका मतलब है कि चीजों के दाम तो उतने ही रखे गए हैं लेकिन उनका आकार छोटा हो गया है ! लोगों को आम तौर पर घटते हुए आकार या वजन का अंदाज नहीं लगता है और लोग पिछली बार खरीदे गए उस सामान से इस बार खरीदे जा रहे सामान का दाम बराबर देखकर तसल्ली पा लेते हैं कि दाम नहीं बढ़ा है, जबकि दाम उतना ही रख कर सामान की मात्रा कम कर दी गई है। ऐसी घटती हुई मात्रा के लिए यह नया शब्द श्रिंकफ्लेशन बना है।
मुकदमों की लाइव स्ट्रीमिंग
हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रविवार के दिन और कुछ छुट्टियों में कई अर्जेंट मामलों की सुनवाई की। शाम हो जाने के बाद भी हुई। यह इसलिये आसान हो सका क्योंकि कोविड काल के बाद डिजिटल तकनीक पर हाईकोर्ट में काफी काम हुआ। इन अर्जेंट हियरिंग में मामले वीडियो कांफ्रेंस से सुने गए। पक्षकार, वकील किसी भी को भी जज के सामने फिजिकली मौजूद रहने की जरूरत नहीं थी।
हाईकोर्ट में डिजिटल तकनीक पर पहले से काम चल रहे हैं। आज से सात-आठ साल पहले सीजीएमसी को जवाब दाखिल करने के लिए सबसे पहली ई नोटिस जारी की गई थी। अब यहां के लिए गेट पास भी ऑनलाइन ही बन जाता है। पहले कतार में लगना पड़ता था।
जब कोरोना के कारण अदालतों को भी बंद करना पड़ा था, तब हाईकोर्ट की आईटी टीम ने जून 2020 में एक सॉफ्टवेयर तैयार किया जिसके बाद ई फाइलिंग की सुविधा शुरू हो गई। इसमें किसी भी पक्षकार या उसके वकील को केस दायर करने के लिए कोर्ट आने की जरूरत नहीं पड़ती है। कोविड के दौर में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड 13 हजार से अधिक मुकदमों का निपटारा किया। अभियान चलाकर बहुत से पुराने मामलों का भी निराकरण किया गया।
इधर अब कई राज्यों में हाईकोर्ट ने तकनीक का इस्तेमाल और आगे जाकर करना शुरू किया है। गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक, झारखंड, बिहार और मध्यप्रदेश में हाईकोर्ट के चुनिंदा कार्रवाई की यूट्यूब पर लाइव स्ट्रीमिंग की जा रही है। गुजरात लाइव हाईकोर्ट के तो 90 हजार सब्सक्राइबर हैं और रोजाना औसतन 1500 लोग इसे देख रहे हैं। अन्य राज्यों के भी हाईकोर्ट की कार्रवाई देखने वालों की संख्या हजारों में है। इसे देखकर उत्साहित सुप्रीम कोर्ट की ई कमेटी लाइव स्ट्रीम के लिए काम शुरू कर चुकी है। जल्दी सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई भी लाइव हो सकती है।
छत्तीसगढ़ के पड़ोस के तीन राज्य, मध्यप्रदेश, बिहार और झारखंड के यू-ट्यूब चैनल आ चुके हैं। इस सूची में फिलहाल हमारा राज्य नहीं है। देखा जाए तो बस्तर से लेकर सरगुजा तक फैले इस राज्य के सब लोगों के लिए हाईकोर्ट तक पहुंचना आसान नहीं है। वे अपने मुकदमों की सुनवाई को प्रत्यक्ष देखना चाहते हैं। वकालत की पढ़ाई कर रहे छात्र, न्यायिक सेवा की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे युवा और प्रैक्टिस में नए उतरने वाले अधिवक्ताओं के लिए यह काफी फायदेमंद हो सकता है। हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट की तैयारी को देखकर छत्तीसगढ़ में भी इस पर आने वाले दिनों में काम शुरू हो। वैसे हाईकोर्ट और स्टेट लीगल सर्विस के कई समारोहों की यूट्यूब पर पहले लाइव स्ट्रीमिंग की जा चुकी है।
हसदेव पर सरगुजा कांग्रेस
यह बात मालूम होते हुए भी कि हसदेव अरण्य में परसा कोल ब्लॉक के लिए प्रदेश की सरकार ने ही वन अनुमति प्रदान की है, सरगुजा के कांग्रेस नेता जो अलग-अलग पदों पर बैठे हुए हैं, विरोध पर उतर आए हैं। जिला पंचायत उपाध्यक्ष आदित्येश्वर शरण सिंहदेव ने फिर कलेक्टर को पत्र लिखकर मांग की है कि दुबारा ग्राम सभा बुलाएं ताकि साफ हो जाए कि लोग कोयला खदान चाहते हैं या नहीं। जिला पंचायत अध्यक्ष की ओर से पहले ही यही मांग की जा चुकी है। अब जिला कांग्रेस कमेटी ने बकायदा बैठक लेकर कहा है कि स्थानीय लोगों की सहमति के बिना एक पेड़ नहीं कटने देंगे। औषधीय पादप बोर्ड के अध्यक्ष बालकृष्ण पाठक ने तो इस बैठक में राहुल गांधी की पदयात्रा के दौरान किए गए वादे को भी याद दिलाया। महापौर डॉ. अजय तिर्की ने भी विरोध को आवाज दे दी है। सरकार में मंत्री टीएस सिंहदेव भी फिर से ग्रामसभा बुलाने की मांग कर रहे हैं। अपनी ही सरकार के फैसले को रद्द कराने में कांग्रेस नेता सफल हों या न हों पर स्थानीय लोगों का साथ देना उनके लिए फायदेमंद रहेगा। भाजपा की बात अलग है। उसने कोई कमिटमेंट हसदेव के लोगों से नहीं किया था। इसीलिये उन्होंने इस बारे अब तक खामोश रहना ही तय कर रखा है। यदि वह राज्य सरकार की मंजूरी पर सवाल उठाएगी तब भी ऊंगली उनकी अपनी केंद्र की सरकार पर उठेगी, क्योंकि पहले फैसला तो वहीं हुआ।
दरभा की एक नई पहचान...
दरभा घाटी का नाम सुनते ही 25 मई 2013 के नक्सली हमले की तस्वीर मष्तिष्क में खिंच जाती है। पर इस इलाके की एक दूसरी पहचान बड़ी तेजी से बन रही है। यहां उगाई जा रही कॉफी न केवल बस्तर में लोकप्रिय हो रही है बल्कि इसकी मांग अपने विशिष्ट स्वाद के कारण राजधानी रायपुर व राज्य के दूसरे हिस्सों में है। जगदलपुर के दलपत सागर स्थित चाय कॉफी की दुकानों में सबसे ज्यादा डिमांड दरभा के कॉफी की ही है।
नजर कोयले पर या कोरबा पर?
आईएएस की नौकरी छोडक़र राजनीति में आए ओपी चौधरी सोशल मीडिया में काफी सक्रिय हैं। उन्होंने पिछले दिनों ट्वीटर पर कथित अवैध कोयला खनन का वीडियो क्या शेयर किया, पुलिस महकमा टूट पड़ा। और वीडियो शेयर होने के एक घंटे के भीतर जांच बिठा दी। जिस वीडियो को कोरबा के कोयला खदान का बताकर सोशल मीडिया में फैलाया गया था। वह धनबाद के किसी खदान का होना बताया जा रहा है। क्योंकि कोरबा में तो ओपन कास्ट माइनिंग होती ही नहीं है।
सर्वविदित है कि एसईसीएल की खदानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआईएसएफ की होती है, लेकिन उनके अधिकार क्षेत्र में राज्य पुलिस द्वारा जांच कमेटी बनाना भी चौंकाने वाला कदम है। पुलिस इतनी हड़बड़ी में थी कि वीडियो की सत्यता की भी पड़ताल नहीं करवाई। ऐसे में कोयला-खनन आदि में पुलिस को लेकर पुलिस की अतिरिक्त सतर्कता पर काफी बातें हो रही है। चाहे कुछ भी हो, ओपी चौधरी ने एक वीडियो के जरिए पूरा माहौल बना दिया। बताते हैं कि खरसिया में बुरी हार के बाद चौधरी कोरबा इलाके में ज्यादा सक्रिय हैं, और उनकी नजर कोरबा लोकसभा सीट पर भी है। ऐसे में एक वीडियो शेयर कर ओपी चौधरी लोगों की जुबान में आ ही गए।
एक कॉलेज से दूसरी पीढ़ी
रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज (अब एनआईटी) एक बार फिर सुर्खियों में हैं। यहां के 5 पूर्व विद्यार्थियों ने यूपीएससी में अपना परचम लहराया है। एनआईटी से मेकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक अक्षय पिल्ले ने यूपीएससी परीक्षा में 51वीं रैंक हासिल की। खास बात यह है कि उनके पिता डीजी (जेल) संजय पिल्ले ने भी रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग से डिग्री हासिल की थी, और आईपीएस बने। अक्षय का रैंक अच्छा होने के कारण आईएएस में आने का मौका मिल सकता है।
अक्षय की तरह ही यूपीएससी में 102 रैंक वाले धमतरी के प्रखर चंद्राकर ने भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री रायपुर एनआईटी से हासिल की। उनके अलावा यूपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल करने वाले मंयक दुबे, अभिषेक अग्रवाल, और पूजा साहू ने भी एनआईटी रायपुर से ही डिग्री हासिल की है। वैसे भी रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज का स्थापना के बाद से यहां के विद्यार्थियों ने देश-विदेश में नाम कमाया और देश-प्रदेश में ऊंचे-ऊंचे पदों पर हैं।
प्रदर्शन टाल देने की समझदारी
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आमंत्रित नहीं करने का एनएसयूआई ने भारी विरोध किया। समारोह संपन्न होते तक विवाद जारी था। मंच पर उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल की कुर्सी लगी थी, पर वह खाली थी। बाद में उन्होंने कार्यक्रम में नहीं पहुंचने की वजह तो जरूरी व्यस्तता बताई पर लोग समझ रहे थे कि सीएम को नहीं बुलाने के विरोध में उन्होंने नहीं जाने का निर्णय लिया। विश्वविद्यालय प्रशासन की सफाई है कि सीएम को हम बुलाना चाहते थे, समय नहीं मिला। हो सकता है कि बात इतनी सी ही हो, पर एनएसयूआई ने तय किया था कि दीक्षांत समारोह के दौरान प्रदर्शन किया जाएगा। राज्यपाल की मौजूदगी में हंगामा होने की आशंका को देखते हुए कार्यक्रम स्थल पर पुलिस बल भी ज्यादा तैनात कर दी गई थी। पर ऐन वक्त पर छात्र नेताओं ने यह फैसला रद्द कर दिया और समारोह शांतिपूर्वक निपट गया।
एनएसयूआई ने कदम पीछे क्यों हटाए? दरअसल, उन्हें लगा प्रदर्शन करने से कुलाधिपति और कुलपति को उनके विरोध का तो पता चल जाएगा, पर इस बहाने कार्यक्रम को स्थगित किया गया तो क्या होगा? प्रतिभावान छात्र जो लंबे समय से मंच पर खड़े होकर विशिष्ट हाथों से मेडल और डिग्री पाने की प्रतीक्षा करते हैं, उनको मायूसी होगी। छात्रों का संगठन है और इन छात्रों को उनके ही आंदोलन से नुकसान हो जाएगा। फिर तो निर्विघ्न मेडल, डिग्री भी बंट गई और राज्यपाल के कार्यक्रम की गरिमा का ख्याल भी रख लिया गया।
पेड़ों की मां कब तक खैर मनाएगी!
कई बरस पहले जब हिन्दुस्तान में कम्प्यूटरों का चलन बढ़ा, तो ऐसा लगा कि कागजों का इस्तेमाल घटेगा। सरकारी कामकाज के कम्प्यूटरीकरण के साथ उसकी लागत को सही ठहराने के लिए यह बात गिनाई भी गई कि इससे कागज बचेगा, और पेड़ों का कटना भी बचेगा। लेकिन कागज के दाम आज आसमान पर पहुंचे हुए हैं, पेड़ों का कटना थमा नहीं है, तो फिर कम्प्यूटरों का क्या असर हुआ? दरअसल पहले टाईपराइटर रहते थे जिन पर कागज और कार्बन पेपर लगाकर दो या तीन कॉपियां एक साथ टाईप हो पाती थीं। टाइपिंग का यह काम मुश्किल भी रहता था, और एक बार टाईप हो चुके कागज पर सफेदा लगाकर कोई मामूली सुधार तो हो सकता था, अधिक सुधार की गुंजाइश नहीं रहती थी।
अब कम्प्यूटरों के आने से उस पर टाईप करना आसान हो गया, साथ के प्रिंटर से प्रिंट निकालना आसान हो गया, और टाईप किए हुए में फेरबदल करके दुबारा प्रिंट करना भी आसान हो गया है। नतीजा यह है कि पहले टाईपराइटर से जहां सोच-समझकर एक-दो पन्ने ही निकलते थे, अब कम्प्यूटर-प्रिंटर से मिनट भर में दर्जनों पेज प्रिंट होकर निकल जाते हैं। अधिकतर हिन्दुस्तान लोग अपने मातहत लोगों से कम्प्यूटरों पर काम करवाते हैं, और फिर गलतियां जांचने के लिए उसका प्रिंट निकलवाकर उस पर सुधार करते हैं, और फिर दुबारा प्रिंट निकलता है। नतीजा यह है कि कागज की खपत घटने का कोई आसार नहीं है, और पेड़ों की मां कब तक खैर मनाएगी!
सहारा के निवेशकों की थोड़ी उम्मीद
एक समय का जब सहारा इंडिया और सहारा क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड में निवेश करना काफी सुरक्षित माना जाता था। इसे फरार हो चुकी दूसरी चिटफंड कंपनियों के साथ नहीं गिना गया। पर बीते कुछ सालों से इसमें करोड़ों रुपये निवेशकों के फंसे हैं। हजारों लोग कंपनियों के ब्रांच का चक्कर लगा रहे हैं। कई जिलों में प्रदर्शन हो चुका है। चिटफंड कंपनियों की तरह इनके अधिकांश दफ्तरों में ताला नहीं लगा है। ब्रांच में मैनेजर आदि बैठ रहे हैं। कई जिलों में इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गई है। राजनांदगांव में प्रदर्शन के बाद निवेशकों ने 6 माह पहले अमानत में खयानत की धारा 409 के तहत अपराध दर्ज कराया। पर इससे रकम तो नहीं मिलने वाली थी। प्रशासन ने दबाव बनाया तो सहारा कंपनी ने कलेक्टोरेट के खाते में 15 करोड़ रुपये जमा करा दिए। पर निवेशकों की डूबी रकम ब्याज सहित इससे कहीं ज्यादा है। यह तब है जब सहारा कंपनी बार-बार बड़े- बड़े विज्ञापन देकर आश्वस्त करती है कि वह निवेशकों की पाई-पाई लौटाएगी। अब जिला प्रशासन ने रास्ता निकाला है कि पहले सबको मूल धन दे दिया जाए। उसके बाद भी राशि बच जाएगी तो उसे भी बराबर अनुपात से बांट दिया जाएगा। हालांकि अब भी कई निवेशक अड़े हैं कि वे लेंगे तो परिपक्वता राशि के साथ पूरी रकम, वरना नहीं लेंगे। सच है ये दिन तो देखने के लिए तो उन्होंने वर्षों से पैसे नहीं लगाए गए थे। पर प्रशासन के पास इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं है। दूसरे जिलों में भी ऐसा हो सकता है कि निवेशकों को रकम लौटाने के लिए प्रशासन मध्यस्थता करे। रायगढ़ में एफआईआर दर्ज होने के बाद अभी पिछले हफ्ते अपर कलेक्टर ने सहारा इंडिया के प्रतिनिधियों को निवेशकों की रकम लौटाने के लिए पत्र लिखा है। उम्मीद है राजनांदगांव की तरह वहां भी पैसे जमा कराने में प्रशासन को सफलता मिले। अन्य चिटफंड कंपनियों की संपत्ति बेचकर जुटाई जा रही और बहुत कम लोगों को मिल रही थोड़ी-थोड़ी रकम के मुकाबले सहारा से वसूली का प्रतिशत अच्छा होगा।
अबूझमाड़ से गिनीज बुक के लिए दौड़..
धुर नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले के 12 साल के राकेश की सफलता मामूली नहीं है। उसने छत्तीसगढ़ स्पेशल टॉस्क के जवानों से प्रशिक्षण लेकर महाराष्ट्र में राष्ट्रीय जूनियर मलखंड प्रतियोगिता में केवल खिताब जीता बल्कि पिछले रिकॉर्ड भी तोड़े। मलखंड पर राकेश ने इस खिताबी प्रदर्शन में 1 मिनट 30 सेकेंड तक हैंड स्टैंड रखा, जो विश्व स्तर पर अब तक सर्वश्रेष्ठ है। इसके पहले का रिकॉर्ड केवल 30 सेकेंड का रहा है। राकेश को अपने परिवार के साथ नक्सलियों की धमकी के कारण गांव छोडक़र नारायणपुर के पास एक दूसरे गांव में आना पड़ा था। शायद वह गांव नहीं छोड़ता तो इस शानदार कामयाबी से महरूम रह जाता। अब उसके प्रशिक्षकों ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में संपर्क किया है। वहां से मान लिया गया है कि यह रिकॉर्ड गिनीज बुक में आना चाहिए। पर इसके लिए 80 हजार रुपये का खर्च भी बता दिया गया है। राकेश की पहुंच से यह रकम बाहर है। सीएम तक बात पहुंची है, नारायणपुर कलेक्टर को उन्होंने निर्देश दिया है कि राकेश का नाम दर्ज कराने के लिए जरूरी व्यवस्था करें। ([email protected])
चलो सबसे एक सा बर्ताव हुआ..
छत्तीसगढ़ से राज्यसभा की दावेदारी कर रहे स्थानीय कांग्रेस नेताओं को निराशा हाथ लगी। दो सीटों में से कम से कम एक में तो राज्य से किसी को मौका मिलने की उन्हें उम्मीद थी। पर, अच्छा हुआ। न? रहेगी बांस, ना बजेगी बांसुरी। कोई एक नाम तय कर दिया जाता तो बाकी दर्जन भर दावेदार नाराज हो जाते।
अब कांग्रेस से फूलोदेवी नेताम और भाजपा से सरोज पांडे का ही राज्यसभा में छत्तीसगढ़ से प्रतिनिधित्व है। कांग्रेस से केटीएस तुलसी पहले से हैं। अब राजीव शुक्ला और रंजीत रंजन भी पहुंच जायेंगे। तुलसी ने राज्यसभा सदस्य बनाने के बाद छत्तीसगढ़ के मामलों में कितनी रुचि ली, कितनी बार यहां आए, इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि दोनों नए सदस्य कितना वक्त निकालेंगे।
इस बार राज्यसभा चुनाव में भाजपा के लिए छत्तीसगढ़ से कोई मौका था ही नहीं। पर कांग्रेस को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस बारे में सोचने का मौका था। एक सीनियर कांग्रेस लीडर का कहना है कि क्या करें, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ही तो अपने पास रह गए हैं। दिल्ली में पकड़ रखने वालों का दबाव बहुत था। उनके लिए और किस प्रदेश से सीट लाते।
ऐसे मौके पर आम आदमी पार्टी के नेता अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। उन्हें अब कहने का मौका मिल गया है कि एक कांग्रेस है जो छत्तीसगढ़ में दिल्ली, यूपी और बिहार के नेताओं को शिफ्ट करती है और एक हम हैं जो दूसरे राज्य के कोटे से छत्तीसगढ़ के लोगों को भेजते हैं। छत्तीसगढ़ के रहने वाले संदीप पाठक को पंजाब द्मशह्लद्ग ह्यद्ग राज्यसभा सदस्य बनाया गया है।
आप पार्टी के पास अगले चुनाव में भुनाने के लिए एक यह भी मुद्दा आ गया है।
स्कूलों पर केंद्र की रिपोर्ट..
शिक्षा विभाग के नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2021 की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में स्कूली शिक्षा के स्तर में भारी गिरावट दर्शाई गई है। तीसरी से लेकर 10वीं तक के बच्चों की पढ़ाई का स्तर पूरे देश में 30वें नंबर पर है। कोरोना के चलते पढ़ाई तो सभी राज्यों में पिछड़ी लेकिन छत्तीसगढ़ ही निचले पायदान पर क्यों है? खासकर इस दौरान स्कूल बंद होने के विकल्प में बहुत से नए प्रयोग किए गए थे। मोहल्ला स्कूल, पढ़ाई तुहर द्वार, ब्लूटूथ के जरिए पढ़ाई और जहां नेटवर्क था वहां ऑनलाइन पढ़ाई हो रही थी। तो क्या जिन शिक्षकों पर वैकल्पिक कार्यक्रम चलाने की जिम्मेदारी थी, उन्होंने ठीक से काम नहीं किया? शिक्षक संगठनों का कुछ दूसरा ही कहना है। वे सरकार और शिक्षा विभाग पर ही इसका ठीकरा फोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि साल के 365 दिन में उनसे 366 तरह की जानकारी मांगी जाती है।
अधिकारियों ने स्कूलों को प्रयोगशाला बना दिया है। शिक्षकों का समय कागज, कंप्यूटर और व्हाट्सएप पर जानकारी भेजने में ही खप जाता है और वे पढ़ाने पर कम समय दे पाते हैं। ऊपर से मध्यान्ह भोजन की जिम्मेदारी, कभी साइकिल वितरण तो कभी जाति निवास प्रमाण पत्र जैसे ढेरों काम उनके सिर पर हैं।
इस स्थिति के लिए अधिकारी जिम्मेदार हैं या शिक्षक इस पर बहस जरूर होनी चाहिए। पर इस सर्वे रिपोर्ट पर कोई चिंतित दिख रहा हो और शिक्षा के माहौल में आमूलचूल बदलाव के लिए बेचैनी हो, यह दिखाई नहीं देता। आतमंड स्कूलों में प्रवेश के लिए मारामारी बिना वजह नहीं है।
नवतपा में नंगे पांव...
बच्चे को गोद में लटकाकर नंगे पांव चल रही इस आदिवासी मां को देखकर हम-आप चकित हो सकते हैं, पर वे अभ्यस्त होते हैं। महिला ने अपने दाहिने हाथ में क्या पकड़ रखा है?, बेल फल हैं। जंगल के इसी रास्ते में चलते-चलते कहीं गिरा हुआ मिला होगा, या फिर उसने खुद ही तोड़ लिया हो। क्या इसे और उस गोद में सुरक्षित शिशु को लू लग सकती है? ([email protected])
पेसा कानून की ताकत को लेकर जिज्ञासा
पंचायत एक्सटेंशन ऑफ शेल्ड्यूल्ड एरिया (पेसा) एक्ट राज्य बनने के बाद से ही छत्तीसगढ़ में लागू है। पर इसे कानून का रूप देने के लिये नियमों का बनाया जाना जरूरी था। 22वें साल में अब यह तैयार है और केबिनेट की अगली बैठक में इस पर प्रस्ताव लाये जाने की घोषणा मुख्यमंत्री ने कर दी है। इसे बनाने के लिए आदिवासी संगठनों, समितियों, जनप्रतिनिधियों से बातचीत की एक लंबी प्रक्रिया चली थी।
कांग्रेस का सीधा आरोप है कि अपने 15 सालों के कार्यकाल में भाजपा ने इसके नियम नहीं बनाये, क्योंकि वह आदिवासियों को अधिकार नहीं देना चाहती थी। अब कांग्रेस अपना चुनावी वादा पूरा करने जा रही है। दावा है कि नये कानून से आदिवासी इलाकों के रहने वालों को अधिक मजबूत और अधिकार संपन्न बनाया जा सकेगा।
अभी स्थिति यह है कि अलग-अलग सवालों को लेकर आदिवासियों का सरकार के साथ संघर्ष चल रहा है, आंदोलन हो रहे हैं। बस्तर में निर्दोषों की फायरिंग से मौत और फोर्स की कैंप के खिलाफ लंबा आंदोलन हो रहा है, तो सरगुजा के हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक आवंटन का विरोध प्रदर्शन लंबा खिंचता जा रहा है। जशपुर में नए आ रहे उद्योगों के विरोध में प्रदर्शन हो चुका है।
इन सवालों से बचने का एक रास्ता सरकार के पास हमेशा रहता है कि आंदोलन करने वालों को पूरे समुदाय का समर्थन नहीं है। अधिकारी कहते हैं कि बहुत से लोग खदान खुलते हुए भी देखना चाहते हैं, कुछ लोगों को फोर्स के कैंप से कोई दिक्कत नहीं और जशपुर जैसे इलाकों में भी लोग उद्योगों की स्थापना चाहते हैं, ताकि पढ़े-लिखे प्रशिक्षित नौजवानों को रोजगार मिले।
पेसा कानून का स्वरूप कैसा है यह अभी सामने नहीं आया है। पर यह संभावना है कि इस कानून के अंतर्गत बनने वाली समितियों के अधिकार मौजूदा ग्राम पंचायतों, सभाओं से कहीं अधिक होंगे। उनके प्रस्ताव अधिकारिक भी होंगे। सरकार को निर्णय लेने में आसानी होगी कि वास्तव में स्थानीय निवासी क्या चाहते हैं।
इधर आदिवासी समाज और उनके अधिकारों की लड़ाई लडऩे वाले संगठनों को पेसा कानून के नियमों के उजागर होने की बड़ी प्रतीक्षा है। उनका कहना है कि ग्राम सभाओं के पास पहले से ही काफी अधिकार हैं, पर वही होता है जो सरकार या उनके लाइवलीहुड में हस्तक्षेप करने वाले उद्योगपति चाहते हैं। क्या पेसा कानून की नियमावली बनाते समय इस बात पर गौर किया गया है? या फिर कोई सुराख छोड़ दी गई है?
बिन मांगे कर्ज!
लगातार बढ़ती जा रही साइबर ठगी के इस दौर में कर्ज की अर्जी बिना भी कर्ज मंजूर हो जाने के ऐसे संदेश आते रहते हैं जिनमें किसी वेबसाइट का एक लिंक भी दिया रहता है। अब ऐसे लिंक पर जाने का क्या नतीजा होगा, यह तो पता नहीं, क्योंकि समझदारी इसी में है कि ऐसे लिंक क्लिक न किए जाएं। लेकिन आज जब लोग बहुत बुरे हाल से गुजर रहे हैं, तो तीन लाख रूपए मिलने की एक संभावना उन्हें जाल में फंसाने की ताकत तो रखती है।
गांवों का दर्जा वापस करेगी सरकार?
सामान्य क्षेत्रों में ही यदि किसी ग्राम पंचायत को नगर पंचायत का दर्जा दे दिया जाता है तो कई सुविधाओं से उन्हें वंचित होना पड़ जाता है। विकास और रोजगार के लिए केंद्र राज्य से मिलने वाले फंड में बड़ा अंतर आ आता है। नागरिकों की सुविधाएं बढ़े न बढ़े, टैक्स जरूर बढ़ जाता है। पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत का दर्जा देने का विषय विवादों में रहा है। इसे लेकर लोग कोर्ट भी गए हैं। राज्यपाल अनुसुईया उइके भी इसके विरोध में हैं। उनके पास प्रभावित लोगों ने शिकायतें भी की हैं। एक बार फिर उन्होंने सरकार से कहा है कि प्रेमनगर (सरगुजा), नरहरपुर (कांकेर), दोरनापाल (सुकमा) और बस्तर को दुबारा ग्राम पंचायत बनाने के बारे में वहां के लोगों की मांग के अनुरूप विचार करें। सरकार के पास अपना तर्क है कि एक निश्चित जनसंख्या होने के बाद ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत का दर्जा दिया जाता है। पर अनुसूचित क्षेत्र के लोगों का कहना है कि यह नियम उन पर लागू नहीं होता। देखना है कि राज्यपाल द्वारा दुबारा ध्यान दिलाये जाने के बाद सरकार पीछे लौटती है या नहीं?
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मतलब सत्ता के खिलाफ नहीं थे 2018 के वोट?
पार्टी प्रदेश कार्यसमिति के समापन मौके पर डॉ. रमन सिंह ने अपने भाषण में बताया कि अगला चुनाव जीतना पार्टी के लिए आसान क्यों नहीं है। उन्होंने कहा कि सन् 2003 से लेकर 2013 तक के चुनावों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने जो वोट काटे थे, उसका फायदा भाजपा को मिला। अब 2023 के चुनाव में ऐसा नहीं है। छोटे दलों की स्थिति खराब है और कांग्रेस भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होना है।
डॉ. रमन सिंह की बातों को हमेशा गंभीरता से लिया जाता है। जब उन्होंने रायगढ़ में कार्यकर्ताओं से कहा था कि एक साल तक कमीशनखोरी बंद कर दें तो सत्ता से भाजपा को 30 साल तक कोई नहीं हिला सकता। उसे भी लोगों ने गंभीरता से लिया। पर पार्टी के लोगों ने इस पर अमल कितना किया, इसका पता नहीं।
तीसरी पार्टियों की मौजूदगी से भाजपा को फायदा मिलने की उनकी बात से पार्टी के कुछ कार्यकर्ता नाराज जरूर लग रहे हैं। उनका कहना है कि यदि कांग्रेस के वोट काटने वाले दलों के कारण भाजपा जीत रही थी तो फिर हम जो गांव-गांव, बूथ-बूथ जाकर पसीना बहाया करते हैं, उसका कोई असर था भी कि नहीं?
वैसे डॉ. सिंह का बयान भ्रम पैदा करने वाला है। सन् 2018 में कांग्रेस को ऐतिहासिक जीत मिली। 2018 चुनाव में बहुजन समाज पार्टी मौजूद थी, एक सीट भी मिली और कुछ सीटों पर दूसरे तीसरे स्थान पर रही। स्व. अजीत जोगी की बहू ऋचा को तो बहुत कम वोटों से अकलतरा से पराजय मिली। इसी चुनाव में जोगी की टीम पूरी ताकत से उतरी थी। उसने 72 सीट पार करने का नारा दिया था, उनके पांच विधायक भी चुनकर पहुंचे। इसके पहले छत्तीसगढ़ में किसी एक क्षेत्रीय दल को इतनी सीटें नहीं मिलीं। फिर ऐसा कहना ठीक नहीं है कि कांग्रेस के वोटों के बंटवारे के कारण भाजपा को जीत मिलती रही।
सन् 2018 में भाजपा की बुरी तरह हार का बड़ा कारण लोग सत्ता विरोधी माहौल को मानते हैं। नेतृत्व डॉक्टर साहब ही संभाल रहे थे। इस संदर्भ में भी उनके कथन को तौला जाना चाहिए।
ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि सन् 2023 के चुनाव में तीसरे दलों का असर बिल्कुल नहीं रहेगा। अभी साल भर से ज्यादा का वक्त बचा है। लोग अंगड़ाई ले रहे हैं। आम आदमी पार्टी सन् 2028 में सत्ता हासिल करने की तैयारी करते तो दिख ही रही है। 2023 में इसके लिए मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना उसका लक्ष्य है। गोंडवाना, बसपा और जोगी की पार्टी का भी प्रभाव पूरी तरह खत्म हो चुका और वे वोटों का गणित नहीं बदल सकते, यह मानना कठिन है।
मोहब्बत जिंदाबाद..
गावों में वैज्ञानिक सोच और प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देने के लिए बहुत से कानून बने हैं। शिक्षा के प्रसार ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई है। मगर, बहुत से गांव ऐसे हैं जहां पर अभी भी ताकतवर लोगों ने अपने बनाये कानूनों से समाज को जकड़ रखा है। इसके खिलाफ आवाज कहीं-कहीं युवा उठा रहे हैं जिसका नतीजा भी सकारात्मक निकल आता है।
दुर्ग जिले के अकोली गांव में ऐसा ही अजीबोगरीब कानून चल रहा था। दूसरी जाति की लडक़ी से प्रेम विवाह करने पर कड़ी सजा थी। एक सियान समिति बनाई गई थी, जो अपनी जाति से बाहर शादी करने वालों पर 50 हजार रुपए तक का जुर्माना कर सकता था। ऐसी शादी में शामिल होने वाले लोगों पर भी दंड लगाया जाता था और विवाह करने वाले युवक को गांव में भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता था। बीते हफ्ते इस कठोर नियम कानून के बारे में दुर्ग कलेक्टर को पता चला। कुछ युवाओं ने इसकी शिकायत उनसे की थी। धमधा के एसडीएम ने समिति के लोगों को बुलाया और समझाया। कानूनी प्रावधान और उसके परिणामों के प्रति आगाह किया। नतीजा यह निकला कि सियान समिति अब भंग हो गई है। गांव में अच्छे माहौल में एक बैठक रखी गई और तय किया गया कि अंतरजातीय विवाह करने पर अब कोई दंड वसूल नहीं किया जाएगा, बल्कि ऐसा कोई करना चाहता है तो उसे प्रोत्साहित भी किया जाएगा।
महिला अफसर की आलोचना और प्रशंसा
मैनपाट में शिक्षकों के साथ बैठक के दौरान अपर कलेक्टर तनूजा सलाम तमतमा गई थी। एक वायरल वीडियो क्लिपिंग को सच माना जाए तो उन्होंने प्रिसिंपल को गालियां भी दीं। शिक्षक बिरादरी उनके अशिष्ट बर्ताव से नाराज है। संगठन ने उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रखी है। इसी मैडम का एक दूसरा चेहरा अंबिकापुर में दिखा। जो तमतमाया नहीं था, भावुक था।
सीतापुर से आई एक दिव्यांग युवती सडक़ किनारे बैठी हुई थी। नजर पड़ी तो उन्होंने गाड़ी रुकवाई। युवती ने बताया कि वह रोजगार कार्यालय में पंजीयन कराने आई है, पर कार्यालय मिल नहीं रहा, काफी देर से भटक रही है। कैसे जाऊं यह भी समझ नहीं आ रहा। अपर कलेक्टर ने अपनी कार छोड़ दी और मातहतों से कहा कि इसे रोजगार कार्यालय ले जाओ, पंजीयन में मदद करो और उसके बाद बस स्टैंड पहुंचा दो ताकि सीतापुर वाली बस में बैठकर घर जा सके। उसे ट्राइसाइकिल भी दिलाई जा रही है। दोनों घटनाओं में एक बात समान है, अपने ओहदे का इस्तेमाल करने का तरीका कैसा है। एक ओर उनकी आलोचना हो रही हो तो दूसरी तरफ तारीफ भी मिल रही है।
चांसलर अगर सीएम बन जाएं तो?
छत्तीसगढ़ में भी दूसरे प्रदेशों की तरह चांसलर या कुलाधिपति का पद राज्यपाल के पास है। इसके चलते कई बार विश्वविद्यालय से संबंधित मुद्दों पर राज्यपाल के साथ सरकार की ठन जाती है। प्राय: तब, जब सरकार के फैसलों की फाइल राजभवन में रुक जाती है। मंत्री रविंद्र चौबे और मो. अकबर कल ही विश्वविद्यालय से संबंधित फाइलों को आगे बढ़ाने का अनुरोध लेकर राज्यपाल से मिले। इनमें निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति से जुड़ी एक फाइल है। रायपुर और नये बने पाटन के कृषि विश्वविद्यालयों के बीच संपत्ति के बंटवारे का मामला भी है। राज्यपाल ने विधानसभा से पास दो विश्वविद्यालयों के नाम बदलने की काफी दिन पुरानी फाइलों को अब तक मंजूरी नहीं दी है। हाल में कुलपतियों की नियुक्ति में स्थानीय प्रतिभाओं को मौका नहीं देने की बात को लेकर सरकार और राज्यपाल सचिवालय के बीच विवाद की स्थिति बन गई थी। राजभवन की ओर से आंकड़े देकर बताये गए कि अधिकांश विश्वविद्यालयों में स्थानीय की ही नियुक्ति की गई है।
फिर भी सरकार के हाथ विश्वविद्यालयों के मामले में बंधे होते हैं और राज्यपाल की शक्तियां अधिक होती हैं। केंद्र और राज्य में एक दल की सरकार हो, तब तो सब ठीक चलता है, पर यदि ऐसा न हो तो टकराव की स्थिति बनती रहती है।
इधर, पश्चिम बंगाल में ममता सरकार की केबिनेट ने फैसला लिया है कि अब राज्य के विश्वविद्यालय के चांसलर पद पर मुख्यमंत्री होंगीं। इसके लिए केंद्र का उदाहरण दिया गया है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के चांसलर प्रधानमंत्री होते हैं। ममता सरकार के शिक्षा मंत्री का आरोप है कि राज्यपाल जगदीश धनकड़ के पास विश्वविद्यालयों से संबंधित फाइलें रुक जाती हैं, वे निर्णय नहीं लेते। तमिलनाडु में भी इसी तरह की समस्या थी, वहां विधानसभा में बिल पेश करके कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल से छीन लिया गया। पश्चिम बंगाल में केबिनेट ने जो प्रस्ताव पास किया है, वह विधानसभा में आएगा। विधानसभा के बाद हस्ताक्षर के लिए प्रस्ताव उन्हीं राज्यपाल के पास जाएगा, जिनका अधिकार कम किया जाना है। ये फाइल भी दूसरी फाइलों की तरह रोक दी गई तो? शायद इसीलिए छत्तीसगढ़ सरकार का विधेयक राष्ट्रपति के पास विचाराधीन है।
असमंजस में राहुल गांधी...
हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक में राजस्थान बिजली बोर्ड को खनन की मंजूरी देने का सवाल कैंब्रिज यूनियवर्सिटी के छात्र उठाएंगे, इसका अंदाजा संभवत: राहुल गांधी को नहीं रहा होगा। एक के बाद एक किए गए प्रतिप्रश्न के चलते उन्होंने दो तीन खास बातें कही- मैं खुद खनन के खिलाफ हूं, आंदोलन जायज है। मैं और मेरी पार्टी इस बारे में विचार कर रहे हैं, जिसका कुछ हफ्तों में नतीजा नजर आएगा।
राजस्थान बिजली बोर्ड और एमडीओ हासिल करने वाली कंपनी अदानी ग्रुप ने भले ही कहा है कि कुछ मु_ी भर लोग खनन का विरोध कर रहे हैं, लेकिन राहुल की प्रतिक्रिया और बिजली बोर्ड के अधिकारियों का आंदोलन जल्दी खत्म कराने के लिए दबाव बनाने से कुछ अलग ही ध्वनि निकलती है।
आंदोलनकारियों को लगता है कि खनन का काम तभी तक बंद है, जब तक वे आंदोलन पर हैं। जिस दिन ढीले पड़े, पेड़ों की कटाई और और कोयले की खुदाई शुरू हो जाएगी। लोगों के मन में सवाल है कि कुछ हफ्तों की मियाद राहुल गांधी ने इस सवाल को टालने के लिए मांगी, या सचमुच फैसला बदलने के लिए? अब जबकि छत्तीसगढ़ सरकार वन अनुमति दे चुकी है, क्या राहुल गांधी या उनकी पार्टी की ओर से छत्तीसगढ़ को फैसला बदलने के लिए कहा जाएगा?
रावण के नाम टी स्टाल
अपने देश में राम से जुड़ी आस्था है तो रावण का लोहा मानने वाले भी कम नहीं। अब महासमुंद जाने के रास्ते में लगी एक टी-स्टाल को ही देखिये। दुकान ही उनके नाम पर रख लिया गया है..।
छत्तीसगढ़ को लेकर रेलवे की बेरूखी
बिहार के लखीसराय में एक्सप्रेस ट्रेनों को नहीं रोकने के चलते कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा था। यहां सैकड़ों लोग रसगुल्ले के व्यवसाय से जुड़े हैं। बहुत सी ट्रेनों के बंद कर देने और चल रही ट्रेनों को स्टापेज नहीं देने से उनका धंधा चौपट हो रहा है। नाराज व्यापारियों ने रेल मार्ग जाम कर दिया। आखिरकार कुछ एक्सप्रेस ट्रेनों को स्टापेज देने का आश्वासन मिलने के बाद कल 24 घंटे बाद लोग पटरी से हटे। इसके पहले ओडिशा के दो शहरों बामड़ा और ब्रजराजनगर में भी इसी तरह के आंदोलन के बाद लोकल व एक्सप्रेस ट्रेनों के स्टापेज को लेकर ढील दी गई।
छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ भाजपा के सांसद 9 हैं, पर वे केंद्र के सामने असरदार ढंग से मांग को नहीं रख रहे हैं। वे जनता की तकलीफ को उठाने में भी अनुशासन भंग हो जाने का खतरा महसूस कर रहे होंगे। कांग्रेस के नेताओं की बात सुनी नहीं जा रही है। करगीरोड कोटा में ट्रेनों के स्टापेज की मांग पर कुछ घंटों के लिए लोग पटरी पर बैठे थे, पर उनकी मांग तो पूरी हुई नहीं ऊपर से केस दर्ज हो गया। कांग्रेस नेताओं के यहां तक कि मुख्यमंत्री सचिवालय के पत्रों को भी रेलवे के अधिकारी महत्व नहीं दे रहे हैं। शायद रेलवे को यह अंदाजा है कि राज्य के लोग सहनशील होते हैं। पर, शायद उन्हें यह भी मालूम होगा कि इसी छत्तीसगढ़ में बड़ी लड़ाई लडक़र रेलवे का जोनल मुख्यालय भी लाया गया था।
वर्मी कंपोस्ट जबरन थमाने का मतलब?
सहकारी समितियों में इन दिनों रासायनिक खाद के लिए किसान चक्कर लगा रहे हैं। उन्हें नगद ऋण देने के लिए जरूरी कर दिया गया है कि प्रति एकड़ के हिसाब से एक किलो वर्मी कंपोस्ट भी खरीदें। मगर इससे किसान नाराज हो रहे हैं। यह तो अच्छी बात है कि जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए। रासायनिक खाद से होने वाला नुकसान भी उनको समझ आता है, फिर विरोध क्यों? दरअसल, वर्मी कंपोस्ट के नाम पर उनको जो खाद दिया जा रहा है, वह सुखाया गया गोबर है। कई बार तो उसमें से कंकड़ मिट्टी भी निकल रही है। सवाल यह भी है कि क्वालिटी का कोई प्रोडक्ट हो तो उसे बेचने के लिए जबरदस्ती क्यों की जाए? लोग खुद ही आगे आकर खरीदना पसंद करेंगे। वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की भी एक प्रक्रिया होती है। गोबर के ढेर को केंचुये के ढेर में बंद कर जूट आदि की बोरी या टब में रखने के कई दिन बाद वर्मी कंपोस्ट तैयार होता है।
इस तरह से जबरदस्ती क्वालिटी परखे बिना वर्मी कंपोस्ट थमाने से तो अधिकारी अपना टारगेट पूरा कर लेंगे पर किसानों में वर्मी कंपोस्ट और जैविक खेती को लेकर अरुचि पैदा होने का खतरा भी है।
कौन नहीं चाहते ?
भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की अटकलों को पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने यह कहकर हवा दे दी कि कौन प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनना चाहता? कई ने तो सूट भी सिलवा लिए हैं।
रमन सिंह गलत नहीं कह रहे थे। पिछले दिनों एक शादी समारोह में शामिल होने दिल्ली गए पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय, शिवरतन शर्मा, नारायण चंदेल और बृजमोहन अग्रवाल एक फेमस टेलर्स के यहां पहुंचे, और सूट का नाप दिया। इसकी तस्वीर वायरल हुई है। खास बात यह है कि इन चारों का प्रदेश अध्यक्ष का दावेदार माना जाता है। अब नया सूट सिलवा रहे हैं तो कोई बात तो होगी ही।
काहे के विधायक
आत्मानंद स्कूलों में एडमिशन के लिए मारामारी है। यहां एडमिशन लॉटरी सिस्टम से हो रहा है। बावजूद इसके एडमिशन के लिए सिफारिश करवाने लोग मंत्री-विधायकों के पास पहुंच रहे हैं। रायपुर के एक विधायक तो सिफारिश के लिए आए लोगों से काफी परेशान हैं।
विधायक लोगों को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि आत्मानंद अंग्रेजी स्कूलों में सिफारिश से एडमिशन नहीं मिलता है। एडमिशन के लिए नियम तय है, लेकिन लोग मानने के लिए तैयार नहीं है। कुछ लोग तो यह कहते हुए विधायक पर गुस्सा निकाल रहे हैं कि एक एडमिशन नहीं करा सकते, तो काहे के विधायक हैं...। एक-दो लोग तो चुनाव के वक्त देख लेने की धमकी देते निकल गए।
एक-दो विधायक चाहते हैं कि केंद्रीय विद्यालयों में एडमिशन के लिए सांसदों का कोटा तय है, उसी तरह आत्मानंद स्कूलों में भी एडमिशन के लिए विधायकों का कोटा तय होना चाहिए। दूसरी तरफ, इस शैक्षणिक सत्र से सांसदों ने भी खुद होकर अपना कोटा वापस कर दिया है। क्योंकि वो 10 विद्यार्थियों का ही एडमिशन करा सकते थे, लेकिन आवेदन सैकड़ों की संख्या में आता था। लोगों की नाराजगी झेलने के बजाए सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष से मिलकर अपना कोटा खत्म करा लिया।
हटाने का राज कुछ और
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. गिरीशचंद पाण्डेय की प्रतिनियुक्ति खत्म कर वापस रायपुर साइंस कॉलेज में भेज दिया गया। कहा जा रहा है कि मुआवजा प्रकरण में रविवि की संपत्तियों की कुर्की संबंधी विवाद को ठीक से हैंडल नहीं करने की वजह से गिरीशकांत को हटाया गया। मगर असल वजह कुछ और है।
संपत्ति कुर्क होने के लिए रविवि प्रशासन नहीं बल्कि जिला और राज्य सरकार की जिम्मेदारी ज्यादा थी। क्योंकि मुआवजा विवाद निपटाने की जिम्मेदारी इन दोनों पर रही है। चर्चा है कि हाईकोर्ट में शासन अपना पक्ष सही ढंग से रख नहीं पाया। इससे परे गिरीशकांत को हटाने के लिए कांग्रेस के एक सीनियर विधायक लगे थे। पहले विधायक महोदय की सिफारिश पर ही गिरीशकांत की रविवि में पोस्टिंग हुई थी। और बाद में रविवि प्रशासन के खिलाफ अलग-अलग तरह की शिकायतें आई, तो विधायक ही उन्हें हटाने के लिए दबाव बनाया। फिर क्या था विधायक की सिफारिश मान ली गई।
राशन कार्ड का चुनावी कनेक्शन
उत्तरप्रदेश में इन दिनों फर्जी राशन कार्डों का पता लगाने और उनको निरस्त करने का अभियान चल रहा है। 8 लाख से ज्यादा कार्ड मई माह में निरस्त कर दिए गए। अब लोगों से कहा गया है कि यदि आपने गलती से जान-बूझकर अपात्र होते हुए भी कार्ड बनवा लिया है, तो उसे सरेंडर कर दें। वहां संबंधित दफ्तरों में कार्ड वापस करने के लिए लाइन लगी है। यूपी में कहा जा रहा है कि मोहल्ले के नेताओं की सिफारिश पर अफसरों ने पहले बिना जांच मनमाने तरीके से कार्ड बना दिए, अब चुनाव खत्म हो चुका तो फर्जीवाड़े की बात उठ रही है।
छत्तीसगढ़ में भी ऐसा कुछ हो चुका है। सन 2013 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बड़ी संख्या में राशन कार्ड बनाए गए। तब कुल राशन कार्डों की संख्या 72 लाख पहुंच गई थी। तकरीबन आधी आबादी राशन कार्ड से लाभ पाने के दायरे में आ गई थी। चुनाव खत्म होने के बाद इनमें से 9 लाख कार्ड निरस्त कर दिए गए। सामान्य वर्ग को भी राशन देना बंद कर दिया गया। फर्जी राशनकार्डों के तार फिर नान घोटाले से भी जुड़े। एक प्रमुख आरोपी शिवशंकर भट्ट ने करीब तीन साल पहले कोर्ट में शपथ पत्र देकर कहा कि सन् 2013 में तत्कालीन सीएम और खाद्य मंत्री के दबाव में करीब 21 लाख फर्जी कार्ड बनाए गए। इससे सरकार को हर साल करीब 3 हजार करोड़ का नुकसान पहुंचा। सरकार कांग्रेस की आई, तब ईओडब्ल्यू ने फर्जी राशन कार्ड मामले में एक एफआईआर दर्ज की। उसकी जांच में कहा गया कि सन् 2013 से 16 के बीच 11 लाख निरस्त राशन कार्डों के नाम पर अनाज का उठाव हुआ। इससे सरकार को 2700 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ। कुल बोगस राशनकार्ड ईओडब्ल्यू के अनुमान में 14 लाख से अधिक थे।
कांग्रेस सरकार बनने के बाद नए सिरे से कार्ड बनाए गए। इसमें सामान्य परिवारों को भी राशन लेने की पात्रता मिल गई। ऐसी चुनावी घोषणा भी थी। नई सूची भी छोटी नहीं बनी। करीब 65 लाख कार्ड बनाए गए हैं। इनमें 6.50 लाख सामान्य श्रेणी के परिवार हैं। जब 2015 में फर्जी राशन कार्ड निरस्त किए गए थे तब सामान्य श्रेणी के कार्ड करीब 3 लाख थे। अब दोगुने से अधिक हैं।
कांग्रेस सरकार के दौर में बने सभी राशन कार्ड सही ही हों, यह भी जरूरी नहीं है। बीते साल मार्च माह में वन नेशन वन कार्ड स्कीम से जोडऩे के लिए जब इन कार्डों की छानबीन की जा रही थी। उसमें पता चला के 25 लाख से ज्यादा राशन कार्डों में आधार नंबर गलत लिखा गया है। हो सकता है इनमें से कुछ ने गलती कर दी हो, पर ऐसे भी थे जिन्होंने दो-दो कार्ड बनवा लिए। ऐसे कार्ड कुछ निरस्त भी किए गए, पर ज्यादातर लोगों को त्रुटि सुधारने का मौका दिया गया। दरअसल, सरपंच, पंच, पार्षद हर कोई चाहता है कि उसके इलाके में ज्यादा से ज्यादा कार्ड बनें। समर्थक बनाकर रखने का यह एक आसान सा मौका होता है। शायद ही कोई एक बार कार्ड बनवा लेने के बाद उसे सरेंडर करता होगा। फर्जी राशन कार्ड में जेल तक की सजा है। यूपी में इस प्रावधान का इस्तेमाल करने की चेतावनी भी दे दी गई है। अपने यहां कह तो रहे हैं कि लोगों के पास पैसा पहले से अधिक आ रहा है, पर कार्ड की संख्या नहीं घट रही है।
और यहां 5 रुपये किलो गोबर
कुछ दिन पहले बीजापुर जिले के एक किसान मंटू राम कश्यप की खबर आई थी जिसमें उसने बताया था कि वह और उसकी पत्नी रात में बारी-बारी गोबर की चौकीदारी करते हैं। वजह क्योंकि यह गौठानों में बिक रहा है। गोबर से छत्तीसगढ़ में तरह-तरह के प्रयोग हो रहे हैं। वर्मी कंपोस्ट, दीए, गो कास्ट, गैस, बिजली आदि। जलवायु परिवर्तन के संकट से गुजर रहे लोगों को गोबर से पोते हुए दीवार जरूर याद आते होंगे जो अभी भी गांवों में देखने को मिल जाता है। बाजार में केमिकल युक्त पेंट और कंक्रीट की दीवार घरों का तापमान बढ़ाती है। ऐसे में ओडिशा में किया जा रहा एक प्रयोग छत्तीसगढ़ के लिए भी काम का है। यहां 33 वर्षीय महिला उद्यमी दुर्गा प्रियदर्शनी ने गोबर का पेंट बनाने का बिजनेस शुरू किया है। लोग इस इको फ्रेंडली पेंट को खूब पसंद कर रहे हैं। बिहार, राजस्थान और 1-2 अन्य राज्यों में गोबर से बना पेंट लोकप्रिय हो रहा है। छत्तीसगढ़ जहां सबसे पहले गोबर की खरीदी शुरू हुई है और तरह-तरह से गोबर के इस्तेमाल के बारे में विचार किया जा रहा है, पेंट बनाने का आईडिया भी काम आ सकता है। ऐसा हुआ तो सरकारी खरीद पर निर्भरता भी घट सकती है, क्योंकि उद्यमी प्रियदर्शिनी 5 रुपये किलो में गोबर खरीदती हैं।
किस बात को लेकर जश्न?
जब पेट्रोल डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे थे तब बीजेपी नेताओं की तरफ से बयान आता था यह तो वैश्विक मार है। 2 दिन पहले वित्त मंत्री ने एक्साइज ड्यूटी घटाने की घोषणा की और पेट्रोल-डीजल के दाम कुछ गिर गए। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने इसे हाथों हाथ लिया। रायपुर-बिलासपुर और दूसरे जिलों में युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने पेट्रोल पंप में मिठाइयां बांटी और इसे बड़ी राहत बताया। अब लोगों से कोई पूछे इस कटौती से वे कितनी राहत महसूस कर रहे हैं क्योंकि दाम अब भी सौ रुपए से ऊपर ही चल रहा है।
जनहित के नाम पर..
इसे अवैध वसूली कहें या सडक़ सुरक्षा के लिए जनहित में लिया गया चंदा? रायगढ़ के एक नागरिक ने इसे सोशल मीडिया पर डालकर सवाल पूछा है कि इस तरह से राशि वसूल करने के लिए क्या परिवहन मंत्रालय ने किसी को अधिकृत किया है? ट्रकों से फिक्स 250 रुपये लिए जा रहे हैं और यातायात सुरक्षा पर खर्च करने का नाम दिया जा रहा है। रसीद की वैधता दो माह बताई गई है। स्वच्छ भारत का स्लोगन भी है, यातायात नियमों का पालन करने की नसीहत भी। पावती पर रोड सेफ्टी रिफ्लेक्टिव इंटरप्राइजेज लिखा है। रोड सेफ्टी रिफ्लेक्टिव तो अमूमन सभी जानते हैं जो रात के अंधेरे में चमकने वाला उपकरण होता है। पर यह इंटरप्राइजेज क्या है, लोग पता करने की कोशिश कर रहे हैं। ([email protected])
रमन सिंह तो रमन सिंह हैं...
भाजपा में रमन सिंह के विरोधी नेता लामबंद हो रहे हैं। चर्चा है कि राजनांदगांव के दो सीनियर नेता पिछले दिनों पड़ोसी राज्य के राज्यपाल से मिलने पहुंचे। उन्हें प्रदेश भाजपा संगठन के क्रियाकलापों की जानकारी देकर रमन सिंह की शिकायत भी की।
राज्यपाल ने उन्हें आश्वस्त किया, और कहा बताते हैं कि जल्द ही प्रदेश भाजपा में बदलाव होगा। रमन सिंह को कुछ और जिम्मेदारी दी जाएगी। यानी वो प्रदेश की राजनीति से दूर रहेंगे। यह सुनकर रमन विरोधियों में खुश होना स्वाभाविक था। मगर उनकी खुशी ज्यादा दिन नहीं रह पाई।
कुछ दिन बाद रमन विरोधी नेताओं को पता चला कि राजस्थान में पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं की बैठक में सिर्फ रमन सिंह ही आमंत्रित थे। वैसे प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय और पवन साय भी थे, लेकिन पूछपरख सिर्फ रमन सिंह की ही हो रही थी। ऐसे में अब तो उन्हें राज्यपाल की बातों पर ही संदेह होने लगा है।
एक जिले के इतने रिकॉर्ड!
छत्तीसगढ़ का एक जिला कोरबा देश में सबसे अधिक कोयला उगलने वाला जिला है। देश का 16 फीसदी कोयला इस एक जिले से निकलता है, और यह अकेला जिला पूरे झारखंड से अधिक कोयला देने वाला है। जाहिर है कि यहां पर सरकार से लेकर कारोबार, और पुलिस-प्रशासन से लेकर माफिया तक का ओवरलोड है। इस एक जिले में एक नंबर, दो नंबर से लेकर दस नंबर तक के कारोबार चलते हैं, और इन पर एकाधिकार के लिए ताकतवर तबकों में लगातार रस्साकशी चलती ही रहती है। जब एकाधिकार नहीं हो पाता है तो धंधे में बड़ा या छोटा हिस्सा पाने का गलाकाट मुकाबला भी चलता है। यहां तैनाती पाने वाले अफसरों को ताकतवर हलकों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए तनी हुई रस्सी पर चलना सीखना पड़ता है।
हाल के हफ्तों में कोरबा ने अभूतपूर्व और अप्रत्याशित खींचतान देखी है। कोई मौजूदा अफसर अपने पिछले अफसर की कब्र खोदने में ओवरटाइम करते दिख रहे हैं, तो कोई पिछले अफसर आज के अफसर की कुर्सी के पाये को आरी से काटने में लगे हैं। फिर मौजूदा अफसरों के बीच तलवारें खिंची हुई हैं, और कोरबा की तासीर यह भी है कि वहां स्थानीय ताकतवर मंत्री जयसिंह अग्रवाल राजनीति और सरकार की बिसात पर घोड़े की तरह ढाई घर चलते हैं। नतीजा यह है कि पिछले तीन में से दो कलेक्टरों के खिलाफ वे मंत्री रहते हुए सार्वजनिक मोर्चा खोल चुके हैं। उनके अलावा वहां रह चुके अफसर, वहां जाना चाह रहे अफसर, वहां से बाहर बैठे बड़े अफसर, सभी शतरंज की तरह प्यादों को सामने रखकर शह और मात देने के खेल में लग गए हैं। सरकारी आंकड़े तो महज कोयला उत्पादन में कोरबा को देश का अव्वल जिला बताते हैं, लेकिन जानकार यह मानते हैं कि यह माफिया अंदाज के जुर्म में भी देश में नहीं तो कम से कम प्रदेश में तो अव्वल है ही। कोरबा का आज का प्रशासन यह भी बताता है कि किसी शरीफ और सीधे अफसर के कॅरियर को खत्म करने के लिए उसे कोरबा भेजा जाना काफी होगा।
अब यह भी सुनाई पड़ रहा है कि प्रदेश से बिदा हो चुके कुछ चर्चित अफसरों की दिलचस्पी भी कोरबा के इस गैंगवॉर में इसलिए हो गई है कि उसमें कुछ केन्द्रीय जांच एजेंसियों के दखल की गुंजाइश निकाली जा सकती है। यह जिला आज जितने किस्म के खून-खराबे देख रहा है, वह आमतौर पर गंदी मानी जाने वाली राजनीति को भी तुलना में बड़ी साफ-सुथरी साबित कर रहा है।
कब तक चलेगी यह हड़ताल?
बीते 14 मई को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत काम करने वाले रोजगार सहायकों का वेतन मुख्यमंत्री ने कलेक्टर दर पर देने की घोषणा की। इसके बाद उनका मानदेय 5000 रुपए से बढक़र 9540 रुपए हो गया है। सेवा शर्तों में बदलाव के लिए एक राज्य स्तरीय समिति भी बनाने की घोषणा की भी गई। सरकार को उम्मीद थी इसके बाद रोजगार सहायक अपना आंदोलन स्थगित कर देंगे, मगर ऐसा हुआ नहीं। प्रदेश के तकरीबन 15 हजार रोजगार सहायक बीते 4 अप्रैल से हड़ताल पर हैं। उनकी मांग चुनाव में की गई घोषणा को लागू करने की है। उन्हें नियमित शासकीय सेवक का दर्जा चाहिए।
अपनी मांग की तरफ ध्यान खींचने के लिए मनरेगा कर्मचारी मुंडन भी करा चुके हैं और एक लंबी पैदल तिरंगा यात्रा, दांडी यात्रा भी उन्होंने निकाली है। अब इस हड़ताल को लगभग 50 दिन हो चुके हैं। हड़ताल की वजह से गांवों में मनरेगा के काम ठप हैं। न केवल पंचायतों के जरिए बल्कि वन विभाग, उद्यानिकी, कृषि, पशुपालन विभाग आदि पर भी मनरेगा के मद से काम कराये जाते हैं। प्रदेश में पिछले साल जब हड़ताल नहीं थी तब अप्रैल और मई के दो महीनों में करीब चार करोड़ 81 लाख 58097 मजदूरी दिवस का काम हुआ था। सरकार ने अपनी पीठ थपथपाई थी कि कोरोना संक्रमण के दौरान मजदूरों को यूपीए सरकार के समय से लागू की गई मनरेगा योजना से सर्वाधिक काम गांवों में मिले। अब इस साल का आंकड़ा देखें तो इन्हीं 2 महीनों में जब हड़ताल चल रही है केवल 2 लाख 95 हजार 560 दिन का काम मिला। यह पिछले साल के मुकाबले करीब 5 या 6 प्रतिशत ही है। रोजगार सहायकों की जगह दूसरे विभागों से कर्मचारी लगाने की कोशिश विफल हो गई। कुछ दिनों बाद मानसून आ जाएगा। मनरेगा से मिले पैसे बचाकर मजदूर किसान खेती में भी लगाते थे। बारिश में मनरेगा का काम बंद भी हो जाता है।
रोजगार सहायक अभी सरकार की ओर से दी गई दुगने वेतन की राहत को मंजूर कर बचे हुए दिनों में मनरेगा के काम को रफ्तार दे सकते हैं, पर शायद उनसे समझौता करने के लिए सरकार की तरफ से भी कोई पहल नहीं हो रही है।
बाबा का जलवा बदस्तूर....
स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव के समर्थक भले ही उनके मुख्यमंत्री नहीं बन पाने के कारण मायूस हों, पर उनकी आस्था में कोई कमी नहीं आई है। रायगढ़ में उनके प्रवास के दौरान दो समर्थकों के बीच जमकर हुई मारपीट इसका एक नमूना है। बताया जा रहा है कि स्वागत और अगवानी के लिए मौका नहीं मिलने के नाम पर यह वारदात हुई। इसका वीडियो भी वायरल हो गया। सिंहदेव सोमवार को भी रायगढ़ में हैं, समर्थकों को अभी भी साबित करने का मौका है कि उनमें से कौन मंत्री जी के ज्यादा करीब हैं।
उज्ज्वला सिलेंडर में राहत का मतलब
केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल में थोड़ी राहत देने के बाद उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर लेने वाले परिवारों को 200 रुपये की रियायत देने की घोषणा की है। इसका मतलब यह है की 1092 रुपये में मिलने वाला सिलेंडर गरीब परिवार तकरीबन 900 रुपये में खरीद सकेंगे।
यह बताना जरूरी है कि जब 500-600 रूपये में यही गैस सिलेंडर मिलता था तब भी उज्ज्वला योजना से रिफलिंग कराने वालों की संख्या 35 प्रतिशत से ऊपर नहीं जा पाई थी। इनके नाम पर सिलेंडर निकलते थे और व्यावसायिक इस्तेमाल में खपते थे। अब 900 में कितने उज्ज्वला श्रेणी के गरीब रिफीलिंग करा पाएंगे और कितनी बार करा पाएंगे सवाल बना हुआ है। एक साल में इन्हें 12 सिलेंडर पर छूट मिलनी है। इस राहत से उनको कितनी खुशी होगी यह तो पता नहीं, लेकिन गैस एजेंसी वाले जरूर प्रसन्न हैं।
पत्थरों पर नक्काशी
शेर, बाघ, नदी, पहाड़, जंगल, झरने अमूमन ड्राइंग शीट पर उकेरे जाते हैं, मगर सरगुजा की दीप्ति वर्मा ने पत्थरों को अपनी ड्राइंग शीट बना ली है। दीप्ति ने एक से एक तस्वीरें पत्थरों पर बनाई है। सरगुजा के सरकारी दफ्तरों के अलावा रायपुर के वन विभाग के कार्यालयों में उनकी पेंटिंग सुसज्जित है।
अपना कानूनी अधिकार जानते हैं आप?
किसी 20-22 साल के लडक़े ने 16-17 साल की लडक़ी को भगा लिया तो उसके खिलाफ पोक्सो एक्ट लगेगा और 10 साल तक की सजा हो जाएगी। जब ऐसी घटनाओं को हम-आप सुनते हैं तो ख्याल आता है कि हद है! कानून का लडक़े को पता नहीं।
पर हम, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली की आपूर्ति और नगर निकायों की सेवा से परेशान रहते हैं उनके पास भी कानूनी अधिकार है। यह जागरूक कहे जाने वाले लोगों को भी मालूम नहीं है। तीन दिन पहले हाईकोर्ट से एक महत्वपूर्ण फैसला आया, जिसमें 9 साल से किसी अपराध में कैद तीन आदिवासी रिहा कर दिए। वे जमानत पाने के हकदार थे। जमानत मिल भी गई, मगर उसमें रुपए जमा करने की बंदिश थी। कैद आदिवासी अपने परिवार के संपर्क में नहीं थे। जमानत की रकम जमा करने की हैसियत गरीबी के कारण उनकी खुद की भी नहीं थी। हाईकोर्ट ने पर्सनल बांड पर रिहा करने का आदेश दिया। पर्सनल बांड का मतलब यह है कि कोई रकम नहीं जमा करनी थी। खुद ईमानदार है और कानून को मानता है इसकी गारंटी लिखकर देनी थी। पता नहीं इस कानूनी अधिकार के बारे में अनभिज्ञ कितने ही लोग आज जेल में होंगे।
जब इस प्रकरण को लेकर विधि विभाग के अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कानून की गहराइयों तक जाने की पढ़े-लिखे लोग भी कोशिश कहां करते हैं? हर एक आदमी को संविधान और कानून में मिले अधिकार को जानने-समझने, पढऩे का वक्त निकालना चाहिए। यदि किसी स्कूल ने बिना वजह यूनिफॉर्म बदलने का आदेश निकाल दिया, किसी खास दुकान से किताबें और यूनिफार्म खरीदने का आदेश दे दिया, आप नियमित रूप से बिजली बिल पटाते हैं लेकिन आपके यहां बिजली निर्बाध नहीं आती, सरकारी या निजी अस्पताल आपकी सेहत के साथ खिलवाड़ करते हुए भारी भरकम बिल देते हैं, आप प्रॉपर्टी टैक्स, प्रकाश कर, सफाई कर नियमित रूप से जमा कर रहे हैं और आपके घर के सामने की नाली जाम है, गंदगी फैली हुई है सडक़ पर, तब भी आपके पास कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है। इसके लिए बनी है एक जन उपयोगी अदालत। यहां आप सादे कागज पर आवेदन दे सकते हैं। आदेश जारी होगा। आदेश का पालन नहीं करने पर 2 साल की सजा भी संबंधित अधिकारी को हो सकती है। ये अदालतें अभी प्रदेश के 16 जिलों में चल रही हैं। जिन जिलों में नहीं है वहां पर भी सीधे जिला कोर्ट में आवेदन किया जा सकता है। विधि विभाग के इस अधिकारी का कहना है कि इन अदालतों में मुकदमों की संख्या बहुत कम है। इसलिए, क्योंकि लोगों को अपने अधिकारों का पता ही नहीं है। और मुकदमे कम होने के कारण फैसले भी जल्दी हो जाते हैं।
पेट्रोल-डीजल के दाम गिरने की खुशी
सन् 1984 में राजेश खन्ना, शबाना आज़मी, शत्रुघ्न सिन्हा, जावेद खान आदि से अभिनीत एक फिल्म आई थी। फिल्म का एक दृश्य था जिसमें एमएलए राजेश खन्ना अपने पीए से कह रहे हैं कि 5 रुपये महंगा अनाज बेचने से पब्लिक को समस्या हो रही है तो कीमत दो रुपए कम कर दो। जनता खुश हो जाएगी।
केंद्र सरकार ने महंगाई से कराह रही जनता के लिए सांस लेने की थोड़ी सी जगह दे दी है। पेट्रोल पर 8 और डीजल पर 6 रुपये उत्पाद शुल्क घटा दिया गया। रायपुर में कल 111.47 रुपए का पेट्रोल आज 102.45 रुपए का हो गया। भरी गर्मी में ठंडक का एहसास हो रहा है। यह नहीं सोचने का कि इसका दाम बीते साल तक 65-70 रुपये के बीच था।
कहानी बदलाव की...
हसदेव अरण्य में आवंटित परसा कोल ब्लॉक के खिलाफ जगह-जगह हो रहे आंदोलनों की कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की तरफ से भले ही कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही हो, अदानी समूह का सोशल मीडिया तंत्र सक्रिय हो गया है। उसने ट्विटर और दूसरे प्लेटफार्म पर एक शॉर्ट वीडियो डालकर हसदेव अरण्य में कोयला खदानों के आवंटन को बदलाव की कहानी- बताया है। सवा मिनट के इस वीडियो में कहा गया है कि परसा और हसदेव की प्रगति की नई सुबह की अनदेखी नहीं की जा सकती। अच्छी सडक़ें, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और आत्मनिर्भर महिलाएं। रोजगार और विकास इस भूमि की पहचान बन चुकी है। अदानी ऑनलाइन हैंडल पर मधुर पार्श्व संगीत के साथ डाले गए इस प्रमोटेड वीडियो की प्रशंसा में कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखती। लोगों ने वीडियो के दावों को सिरे से खारिज कर दिया है। एक ने लिखा है, क्षेत्र के लोग 40 दिन से आंदोलन कर रहे हैं। लोगों के दुख को आप विकास बता रहे हैं? एक ने लिखा है- इससे आपका घर पैसों से भरेगा और नेता चुनाव लडेंगे। एक और ने कहा कि- भारी जन विरोध के बीच इस तरह के वीडियो का कोई अर्थ नहीं। और एक- प्रकृति से खिलवाड़ को छत्तीसगढ़ की जनता नहीं सहेगी।
एक यूजर ने तो आरोप लगाया है कि इस पोस्ट की रिप्लाई छिपाई जा रही है। उसने इसके सबूत में वे स्क्रीनशॉट भी डाल दिए हैं, जो हटा दिए गए हैं।
सरकार के एकाधिकार को चुनौती
राजधानी रायपुर के पास तिल्दा और धरसीवां के बीच एक दीवार पर यह लिखा दिखा है- हमारे गांव में पंच-सरपंच द्वारा दारू-गांजा बिकवाया जा रहा है। अब आज अगर पूरे प्रदेश में गांजे को पकडऩे का काम सरकार कर रही है, और दारू को बेचने का काम भी सरकार कर रही है, तो ऐसे में पंच-सरपंच अगर सरकार के एकाधिकार को चुनौती दे रहे हैं, तो यह पंचायती राज व्यवस्था की कामयाबी भी दिख रही है!
नाम के साथ शी और हर भी
इन दिनों जब देशों और संस्कृतियों के आरपार लोगों का काम चलता है, तो विदेशी नामों को देखकर यह अंदाज कभी-कभी नहीं भी लगता कि नाम किसी लडक़े का है, लडक़ी का है, या किसी और जेंडर का है। ऐसे में एक नया चलन सामने आया है जिसमें लोग अपने नाम के साथ यह खुलासा भी कर दे रहे हैं कि उनके लिए कौन से सर्वनामों का उपयोग हो। अभी मिले एक ई-मेल में नाम के साथ यह लिखा हुआ था कि उसके लिए शी, और हर प्रोनाउन इस्तेमाल किए जाएं। बहुत से लोगों के लिए यह भी एक दिलचस्पी की बात होगी कि फ्रांस में अभी फ्रेंच जुबान में लडक़े और लडक़ी के लिए, ही या शी के लिए, या किसी और जेंडर के लिए, एक नया शब्द शुरू किया गया है जो कि लोगों के जिक्र को जेंडर-पहचान से मुक्त रखता है।
पंडो प्रसूता और नवजात की मौत
सरकारी तंत्र का सामना करने से किसी आम आदिवासी परिवार को इतनी भी घबराहट हो सकती है कि वह अपने लिए तय सेवाओं को हासिल करने के लिए किसी से उलझने या गिड़गिड़ाने की जगह खामोशी के साथ अपना बड़े से बड़ा नुकसान भी उठा ले। पर ऐसे मामले प्रशासन के लिए शर्मिंदा करने वाले जरूर होते हैं।
सरगुजा संभाग के प्रतापपुर ब्लॉक की एक महिला को प्रसव के लिए अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय लाकर भर्ती कराया गया। महिला के शरीर में सिर्फ तीन ग्राम हीमोग्लोबिन था। प्रसव के बाद बेहद कमजोर पैदा हुए नवजात की मौत हो गई। इलाज कर रहे डॉक्टरों ने महिला को बचाने के लिए परिजनों को 5 यूनिट ब्लड की व्यवस्था करने कहा। परिजनों ने किसी तरह एक यूनिट की व्यवस्था कर ली। पर, चार यूनिट ब्लड और लाने कहा गया। उनक़ा मन किस बोझ से गुजरा होगा, समझा जा सकता है, क्योंकि इसके बाद बिना किसी से कुछ फरियाद किए या मदद मांगे परिवार के लोग गंभीर रूप से बीमार महिला को उसी हालत में वापस घर लेकर लौट गए। अगले दिन नवजात की वह मां भी चल बसी।
हाल ही में सरगुजा संभाग के बलरामपुर जिले में एक के बाद एक 15 पंडो आदिवासियों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटी थी। वहां कैंप लगाकर इलाज शुरू किया गया तो पाया गया कि अधिकांश लोगों में खून की कमी है। उस वक्त दवाएं दी गईं, कुछ को अस्पताल लाकर दाखिल कराया गया। पर अब स्वास्थ्य और महिला बाल विकास विभाग का काम फिर अपने पुराने ढर्रे पर लौट आया है। गर्भावस्था के दौरान महिला को विटामिन और पौष्टिक आहार क्यों नहीं मिला? उसकी सेहत पर नियमित नजर रखी जाती तो ऐन डिलीवरी के वक्त हीमोग्लोबिन का स्तर 3 क्यों मिलता? पंडो जनजाति राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाते हैं। उनकी आबादी बेहद सिमट चुकी है और लगातार कम होती जा रही है। मेडिकल कॉलेज के स्टाफ और डॉक्टरों ने क्यों नहीं सोचा कि किसी तरह प्रसव के लिए अस्पताल लाने की हिम्मत करने वाले इस महिला के परिजन शहर आकर पांच यूनिट खून कहां से लायेंगे? हर मेडिकल कॉलेज में स्वयंसेवियों की भी सेवाएं सरकार लेती है। उसका भुगतान भी किया जाता है। क्यों उनसे मदद नहीं ली गई? इस बदहाल स्वास्थ्य सेवा वाले सरगुजा संभाग से तो स्वास्थ्य मंत्री भी आते हैं, पर विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों को इसकी कोई परवाह नहीं है।
चूड़ी उतारने और पहनाने का यहां रिवाज
महाराष्ट्र सरकार ने कोल्हापुर जिले के हेरवाड ग्राम पंचायत के फैसले को नजीर मानते हुए पूरे प्रदेश में विधवा के साथ जुड़ी उस प्रथा को समाप्त करने का निर्णय लिया है, जिसमें उन्हें चूड़ी तोडऩे, सिंदूर पोंछने, मंगल सूत्र निकालने और सफेद साड़ी पहनने की बाध्यता रही है। अभी इसके लिए कोई सजा तय नहीं की गई है, लेकिन लोगों में जागरूकता लाई जाएगी।
छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में खासकर गैर आदिवासी समुदायों में यह रिवाज बना हुआ है। पति की मौत के बाद विधवा महिलाओं को सबके सामने यह रस्म निभानी पड़ती है। दस दिन तक उसे लंबी कतार में लगकर तालाब जाना होता है। बहुत से गावों में अब तालाब नहीं हैं। हैं भी तो प्रदूषित। पर उन्हें प्रथा का पालन करना पड़ता है। कांक्रीट की सडक़ से गुजरते महिला-पुरुषों के कारण कई बार यातायात भी बाधित होता है।
इधर समाज की कमान युवाओं के हाथ में आने के बाद कई प्रथाओं के खिलाफ उनकी आवाज बुलंद हो रही है। छत्तीसगढ़ के बहुत से सामाजिक बैठकों में मृत्यु भोज की प्रथा को बंद करने का निर्णय लिया जा चुका है। कुछ ने तय कर लिया है कि किसी तरह का शाही पकवान मृत्यु भोज में नहीं बनेगा, सिर्फ सादा खाना दिया जा सकेगा। किसी समाज ने मेहमानों की संख्या सीमित कर दी है। इस खर्चीले कार्यक्रम को कई परिवार परिस्थितियां विषम होने के बावजूद कर्ज लेकर रखते हैं।
करीब तीन साल पहले रायपुर में सोनकर समाज ने फैसला लिया था, कि विधवा की चूड़ी तोडऩे, सिंदूर मिटाने जैसी प्रथा अब तालाब में या किसी सार्वजनिक जगह पर नहीं पूरी की जाएगी। वह तालाब में नहाने के लिए भी नहीं जाएगी। पति की मौत से दुखी महिला के साथ इस तरह का व्यवहार गलत माना गया। हालांकि प्रथाओं को खत्म नहीं किया गया, बल्कि घर पर ही पूरा करने का निर्णय लिया गया। अभी यह ठीक पता नहीं कि समाज के इस फैसले का पालन तीन साल बाद कितना पालन हो रहा है।
छत्तीसगढ़ में कई समाज ऐसे हैं, जो युवा विवाहित सदस्य की मौत के बाद महिला को वापस मायके नहीं भेजते, बल्कि अविवाहित मृतक का भाई है तो उसके साथ विवाह करा देते हैं। कई ऐसे भी उदाहरण आते हैं, जब घर का कोई सदस्य विवाह योग्य नहीं मिलता तो करीबी रिश्तेदारों से संपर्क करते हैं। ऐसी दुबारा होने वाली शादी सादगी से होती है, जिसे चूड़ी पहनाने का रिवाज भी कहते हैं।
छत्तीसगढ़ ही देश के कई आदिवासी अंचलों में लडक़ा-लडक़ी एक दूसरे से मिल जुलकर, नाच गाकर खुद ही अपनी पसंद परिवार वालों को बता देते हैं। कई बार परिवार वाले नहीं मानते तो भाग जाते हैं और फिर लौटकर दंड देकर बिरादरी में शामिल हो जाते हैं।
सामाजिक प्रथाओं में सुधार की कई गुंजाइश हैं, कुछ को बंद करने की तो कुछ को प्रोत्साहित करने की- जैसे विधवा विवाह की। अपने यहां प्राय: सरकारों ने इस दिशा में नहीं सोचा। सामाजिक बैठकों के फैसलों और प्रथाओं पर कोई हस्तक्षेप किया नहीं जाता। पर महाराष्ट्र सरकार के प्रगतिशील फैसले के बाद शायद छत्तीसगढ़ में भी आगे कोई पहल हो।
बैलाडीला कान फेस्टिवल में
छत्तीसगढ़ी में बड़ी संख्या में फिल्म बनने के बावजूद समीक्षकों का मानना है कि ज्यादातर स्तरीय नहीं होती। बॉलीवुड की खराब नकल होती हैं। पर धीरे ही सही, नये प्रयोग हो रहे हैं। पिछले साल संजीव बख्शी की कहानी पर आधारित मनोज वर्मा की फिल्म भूलन द मेज को क्षेत्रीय श्रेणी में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। अब एक और उपलब्धि से बेहतर क्रियेटिविटी जारी रहने की उम्मीद जागी है। छत्तीसगढ़ी-हिंदी में बनी डेढ़ घंटे की फिल्म- बैलाडीला को कान फेस्टिवल के लिए चुना गया है। पूरे भारत से इस फेस्टिवल में केवल पांच फिल्मों को इंट्री मिली है, इनमें एक छत्तीसगढ़ में बनी फिल्म का होना मायने रखता है। फिल्म के निर्माता निर्देशक बिलासपुर जिले के एक छोटे से स्टेशन टेंगनमाड़ा के युवा शैलेंद्र साहू हैं। बड़ी बात यह भी है कि उन्होंने फिल्म के लिए बजट का इंतजाम क्राउड फंडिंग से किया है।
प्रीतिभोज में रक्तदान
विवाह समारोह के बाद प्रीतिभोज वैसे तो खाने-पीने और नाचने-गाने के लिए रखे जाते हैं, पर इससे अलग हटकर कुछ किया जाए तो बात अलग हो जाती है। बसना इलाके के एक गांव जोगीपाली में गणेश नायक ने अपने विवाह के प्रीतिभोज में रक्तदान के लिए भी काउंटर लगा दिया। किसी पर दबाव नहीं था कि वे प्रीतिभोज में आए हैं तो रक्तदान भी करें, स्वैच्छिक था। फिर भी 50 से अधिक मेहमान ऐसे थे जिन्होंने रक्तदान किया। गणेश पहले से ही रक्तदान के कैंपेन से जुड़े हुए हैं, मगर अपनी शादी के समारोह में किए गए उसके इस अनूठे प्रयोग के चलते लोगों में जागरूकता आई।
जिंदगी की गंदगी सोच में भी...
हिन्दुस्तान में, खासकर उत्तर भारत और मध्यप्रदेश सरीखे इलाकों में लोगों को सार्वजनिक जगहों पर थूकने से रोकना नामुमकिन है। कई इमारतों में देवी-देवताओं की तस्वीरों वाले टाईल्स सीढिय़ों के कोनों पर लगाकर लोगों को रोकने की कोशिश होती है, लेकिन यह भी सोचने की जरूरत है कि जिन धर्मों के लोगों को आज घेरकर मारा जा रहा है, वे लोग हिन्दू देवी-देवताओं के प्रति सम्मान दिखाएं तो क्यों दिखाएं?। इस अखबार के एक पाठक ने शहर की एक फोटो भेजी है जिसमें भारत सरकार की एक मुहिम के तहत किए जा रहे स्वच्छ सर्वेक्षण पर ही किसी ने थूक मारा है। इस देश के लोग सामूहिक तौर पर तो किसी सफाई के हकदार नहीं हैं, और जिंदगी की यह गंदगी धीरे-धीरे लोगों की सोच में भी आती जाती है।
ये नेता, ये अधिकारी
बीते साल दिसंबर महीने में मुंगेली जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी आईएएस रोहित व्यास के साथ बसपा से चुनकर आई सदस्य लैला ननकू भिखारी का विवाद हुआ था। एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें सदस्य आईएएस को चप्पल दिखाती हुई नजर आ रही हैं। आईएएस के खिलाफ लैला ननकू ने जातिगत टिप्पणी करने का आरोप लगाया था। जिला पंचायत के कई सदस्यों ने उनका साथ दिया और प्रदर्शन भी किया। इधर व्यास के पक्ष में अधिकारी-कर्मचारियों ने भी काम बंद कर दिया था। घटना के 15 दिन बाद आईएएस व्यास का बस्तर इसी पद पर स्थानांतरण कर दिया गया। वैसे इनको यहां लगभग 2 साल हो चुके थे। पर तबादला नहीं होता तो शायद खींचतान मची रहती।
इस घटना के कुछ दिन पहले दिसंबर महीने में लोरमी नगर पंचायत का अतिक्रमण हटवाने के लिए एसडीएम मेनका प्रधान पहुंची तब आरोप है कि भाजपा के एक नेता अशोक जायसवाल ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया। इसका भी वीडियो वायरल हुआ था।
अब ताजा मामला लीजिए। डिप्टी कलेक्टर अनुराधा अग्रवाल के खिलाफ कांग्रेस नेत्री और जनपद पंचायत लोरमी की उपाध्यक्ष खुशबू वैष्णव ने मोर्चा खोला है। एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें कहा जा रहा है डिप्टी कलेक्टर ने राशन कार्ड बनाने के आवेदनों को लेकर आई कांग्रेस नेत्री से घूस की मांग कर रही है। मामला ज्यादा संगीन हो जाता यदि डिप्टी कलेक्टर घूस की रकम बता रही होती या लेते हुए वीडियो में कैद हो जाती। फिर भी जैसा कि कलेक्टर ने बताया है उनको जांच का सामना करना पड़ेगा। एक हद तक यह घटना उनके कैरियर पर भी असर डाल सकता है। सबक यही है कि मुंगेली में काम करने वाले अधिकारियों को संभल-संभल कर चलना चाहिए।
दोना पत्तल विकल्प बन सकेंगे?
छत्तीसगढ़ सरकार ने एक जुलाई से सिंगल यूज़ प्लास्टिक कैरी बैग को प्रतिबंधित करने का संकल्प लिया है। यह घोषणा पहली बार नहीं की गई है बल्कि समय-समय पर ऐसे आदेश निकलते रहे हैं। फरवरी महीने में भी सिंगल यूज़ प्लास्टिक कैरी बैग पर पाबंदी लगाने की बात कहीं गई थी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश पर इस बार केंद्र सरकार से गाइडलाइन मिली है। पूरे देश में 30 जून तक सिंगल यूज प्लास्टिक कैरी बैग का स्टॉक समाप्त करने के लिए कहा गया है। छत्तीसगढ़ में भी पहले से एक्ट बना हुआ है पर इसे लागू करने के लिए नगरीय निकाय के अधिकारी अचानक कभी-कभी जाग जाते हैं और दुकानों सब्जी बाजारों में छापेमारी करते हैं। आमतौर पर प्लास्टिक कैरी बैग बनाने वाले उद्योगों को छोड़ दिया जाता है और कार्रवाई व्यापारियों पर की जाती है।
इस बार ऐसा लगता है कि अफसरों ने कुछ ठोस करने की ठानी है। विकल्प की तकनीकी जानकारी लेने दूसरे राज्यों का दौरा करने का भी कार्यक्रम बन रहा है। इधर नॉन वोवन कैरी बैग दुकानदारों ने भी रखना शुरू किया है, जो फैब्रिक से बनता है। पर अब भी प्लास्टिक बैग ही चलन में है।
राजस्थान में बायोडिग्रेडेबल पारदर्शी कैरी बैग का इस्तेमाल कुछ नगर निगमों में शुरू किया गया है। एक अमेरिकी फर्म जीएक्सटी ग्रीन- दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना और झारखंड राज्य में अपनी निर्माण इकाई शुरू कर चुकी है।
छत्तीसगढ़ में प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल करने पर रोक लगाने की तैयारी कुछ पीछे चल रही है। अधिकारी दोना पत्तल को भी विकल्प के रूप में देख रहे हैं। शादी ब्याह में अब प्लास्टिक कप और गिलास का खूब इस्तेमाल हो रहा है। दोना पत्तल का इस्तेमाल यहां तो हो ही सकता है।
जनता की जरूरतों से कटी सरकार
सरकार में बैठे फैसला लेने वाले लोग जब जमीन से पूरी तरह कट जाते हैं, तो उसका नुकसान सत्तारूढ़ पार्टी को झेलना पड़ता है, और चूंकि हर कुछ महीनों में तो चुनाव होते नहीं हैं, इसलिए अगले किसी चुनाव में ही जनता का दर्द पोलिंग बूथ पर निकलता है।
अब अभी छत्तीसगढ़ में एक मई से पन्द्रह जून तक स्कूलों की छुट्टी चल रही है। सोलह जून से स्कूलें शुरू होंगी, और पन्द्रह जून से कॉलेजों की छुट्टी शुरू होगी। जिन परिवारों में स्कूल और कॉलेज दोनों में पढऩे वाले बच्चे हैं, वे परिवार बच्चों को लेकर कहीं छुट्टी मनाने न चले जाएं, इस नीयत से ये छुट्टियां तय की गई लगती हैं। क्या सरकार के ही एक विभाग को यह नहीं मालूम रहता कि उसका दूसरा विभाग कब छुट्टियां घोषित कर रहा है, या कर चुका है? स्कूल और कॉलेज में पढ़ाने वाले लोग भी दसियों हजार हैं, और वे लोग अगर अपनी छुट्टी के साथ अपने पढऩे वाले बच्चों की छुट्टी जोडक़र देखें, तो भी उन लोगों का कहीं निकलना मुश्किल है।
स्कूल-कॉलेज के दाखिले अप्रैल-मई में खत्म हो चुके रहते हैं, और सरकार जून, जुलाई, अगस्त में तबादले करती रहती है। सरकार मानो यह मानकर चलती है कि सरकारी अधिकारी-कर्मचारी अपने बच्चों का दो-दो शहरों में दाखिला करवा सकते हैं, दो तरह की यूनिफॉर्म बनवा सकते हैं, दो तरह की किताबें खरीद सकते हैं। जब पढ़ाई का सत्र चलते रहता है, तब तबादले होते हैं, और लोग दो-दो शहरों में घर रखने को मजबूर हो जाते हैं। इन दो-तीन बुनियादी बातों को सोचने की फुर्सत भी सरकार को नहीं रहती है, क्योंकि सरकार की किसी के प्रति जवाबदेही नहीं रहती है। सत्तारूढ़ संगठन को ताकत के दूसरे इस्तेमाल से फुर्सत नहीं रहती कि वह जनभावनाओं की फिक्र कर सके।
सत्तर हजार या पाँच हजार?
भाजपा का जेल भरो आंदोलन अपेक्षाकृत कमजोर रहा। पुलिस प्रशासन ने ऐसी चाल चली कि भाजपा नेताओं को प्रदर्शन करना भारी पड़ गया। हुआ यूं कि आंदोलन की घोषणा होते ही पुलिस ने भाजपाईयों को रोकने के लिए अलग तरह की रणनीति पर काम किया। जगह-जगह बेरिकेड्स लगाए गए।
रायपुर शहर में 4 प्रमुख जगहों से भाजपा का आंदोलन शुरू होना था। आंदोलन स्थल कालीबाड़ी, आजाद चौक, तेलीबांधा, और फाफाडीह चौक के पास बेरीकेड्स लगा दिए गए थे। भाजपाईयों को उम्मीद थी कि पुलिस आंदोलन स्थल से ही गिरफ्तार कर ले जाएगी। मगर भाजपाईयों के आने से पहले ही बेरिकेड्स हटा दिए गए। इसके बाद पुलिस ने भीषण गर्मी में कार्यकर्ताओं को सेंट्रल जेल तक पैदल चलनेे के लिए मजबूर कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि गर्मी से बेहाल कई भाजपा कार्यकर्ता रास्ते से ही वापस हो गए। गिनती के लोग ही जेल तक पहुंच पाए, और अपनी गिरफ्तारी दी।
कुछ ने तो पुलिस गाड़ी पर चढकऱ फोटो खिंचवाया, और फिर भीड़ से गायब हो गए। सुनते हैं कि जो लोग किसी तरह जेल पहुंच गए थे, वो बाद में डिहाईडे्रशन की चपेट में आ गए। कुल मिलाकर रायपुर में जेल भरो आंदोलन कार्यकर्ताओं के लिए तकलीफ़देह रहा। वैसे तो भाजपा ने प्रदेश भर से 70 हजार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का दावा किया है, लेकिन कांग्रेेस ने जिलेवार सूची जारी कर बता दिया कि 5 हजार से ज्यादा लोग नहीं जुट पाए थे। भाजपा के सह प्रभारी नितिन नबीन ने पार्टी नेताओं से कहा था कि जब तक बेरिकेड्स टूट नहीं जाते, और 2-4 लोग घायल नहीं हो जाते, आंदोलन को सफल नहीं माना जाता है। मगर तेज गर्मी के चलते ऐसी नौबत नहीं आ पाई।
दिल्ली जाएँगे ?
आईएएस के 89, और 90 बैच के अफसरों के सचिव पद के लिए इम्पैनल करने के प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है। कहा जा रहा है कि दोनों बैच के सचिव, और समकक्ष पद के लिए जून माह में इम्पैनल होगा, और सूची जारी होगी। यह तय है कि 89 बैच के अफसर, और सीएस अमिताभ जैन का सचिव पद के लिए इम्पैनल हो जाएगा। वजह यह है कि अमिताभ केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव के पद पर 7 साल काम कर चुके हैं। ऐसे में अमिताभ के पास केंद्र सरकार में जाने का विकल्प रहेगा। अमिताभ जैन का वर्ष-2025 में रिटायरमेंट में हैं। यानी अमिताभ के पास 3 साल बाकी है। कुल मिलाकर अमिताभ के पास केंद्र सरकार में भी काम करने का भरपूर समय है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि अमिताभ विधानसभा चुनाव निपटाकर केंद्र की ओर रूख कर सकते हैं।
फिर किसने मारा था मीना खलको को?
बलरामपुर के लोंगरटोला, चांदो की 16 साल की मीना खलको की 11 साल पहले कथित रूप से पुलिस की गोली से मौत हुई थी। उसे नक्सली बताकर मारा गया था। ग्रामीणों का कहना था कि मीना का नक्सलियों से कोई संबंध नहीं था। पुलिस ने उसकी हत्या की है। अपराध अनुसंधान विभाग ने सन् 2017 में चांदो के थाना प्रभारी निकोदिन खेस को गिरफ्तार किया था। बाद में दो और पुलिसकर्मी गिरफ्तार किए गए। मुठभेड़ के दौरान 25 पुलिसकर्मियों के मोजूद होने की बात आई थी। कांग्रेस ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। तब भाजपा सरकार ने सेवानिवृत्त जिला जज अनीता झा को न्यायिक जांच की जिम्मेदारी दी। उनकी जांच रिपोर्ट में कहा गया कि मीना खलको की मौत पुलिस की गोली से हुई। आयोग ने सरकार से पूरे मामले की फिर से जांच कराने की सिफारिश की थी।
अब रायपुर की अदालत में सबूतों के अभाव में हत्या के आरोपी तीनों पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया है।
यह तो सच है कि मीना खलको मारी गई। पर कोर्ट के फैसले के बाद यह सवाल अनुत्तरित है कि उसकी हत्या कैसे हुई और किसने की। क्या इस फैसले के खिलाफ सरकार अपील में जाएगी?
इंडियन ऑयल की वाल पेंटिंग
एक रिपोर्ट आई है कि तेल कंपनियां भरपूर मुनाफा कमा रही हैं। सबसे बड़ी कंपनी इंडियन ऑयल है, जिसने बीते वित्तीय वर्ष में 24 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का लाभ अर्जित किया। पिछले सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं। अब ये कमाई कैसे हुई, हमारे आपके जेब को तो पता है ही। इधऱ, रायपुर मंडल के दफ्तर में इंडियन ऑयल ने भित्ति चित्र उकेरे हैं। इसे छत्तीसगढ़ की संस्कृति और कला के संरक्षण की दिशा में किया गया प्रयास बताया गया है।
यह क्या हो गया है?
जिन लोगों को अपने देश-प्रदेश पर अधिक गर्व रहता है उन्हें अपने इलाके में होने वाली शर्मनाक वारदातों पर अधिक गौर फरमाना चाहिए। अब जो लोग छत्तिसगढिय़ा सबले बढिय़ा बोलते हुए थकते नहीं हैं, उन्हें अभी बेमेतरा के पास हुए एक सडक़ हादसे की खबर देखनी चाहिए। सीमेंट लदे ट्रक और प्याज से लदी एक गाड़ी में टक्कर हो गई। प्याज वाली गाड़ी का ड्राइवर गाड़ी में ही फंसकर मर गया, और उसकी लाश गाड़ी से लटकी हुई थी। लेकिन आसपास के गांवों के लोग इक_ा हुए, और बिखरे हुए प्याज को लूटने के साथ-साथ गाड़ी पर बचे हुए प्याज को भी लूटने में जुट गए। ड्राइवर की लाश फंसी रही, और आसपास से लोग प्याज ले-लेकर जाते रहे। जिन लोगों को छत्तीसगढ़ की संस्कृति पर अधिक गर्व है उन्हें इस घटना को कुछ अधिक गंभीरता से देखना चाहिए, और आत्ममंथन करना चाहिए कि सबसे बढिय़ा इंसान को यह क्या हो गया है?
मानसून की तैयारी
मिट्टी की दीवार और खपरैल छत। गर्मी के दिनों में कंक्रीट की छत, दीवारें खूब तपती हैं, पर मिट्टी के घरों में तापमान सामान्य सा रहता है। बस बारिश से पहले इसकी मरम्मत जरूरी हो जाती है। बंदरों की धमाचौकड़ी के कारण। यह तस्वीर कोटा इलाके के एक गांव की है।
लेमरू रिजर्व बन चुका होता तो?
कोई दिन शायद ही गुजरता है जब मनुष्य और हाथी के बीच द्वंद की खबर छत्तीसगढ़ से नहीं मिलती हो। हसदेव अरण्य में कॉल ब्लॉक के आवंटन और पेड़ों की कटाई के खिलाफ याचिकाकर्ता मुकदमा हार चुके हैं। इस फैसले में पेसा कानून को जनहित में शिथिल करने को भी जायज ठहराया गया है, जिसके तहत आदिवासियों को अपने इलाके में किसी भी तरह की नई गतिविधि को मंजूरी देने का अधिकार मिला हुआ है। जानकार कहते हैं कि इस फैसले के बाद अब बाकी प्रस्तावित कोयला खदानों को मंजूरी देने का रास्ता भी खुल गया है। यह वही क्षेत्र है जहां एलीफेंट रिजर्व एरिया बनाने की बात है। खदान के धमाकों और भारी भरकम गाडिय़ों की आवाजाही के बीच एलिफेंट रिजर्व कैसे बनाया जाएगा और बन भी गया तो क्या हाथियों को वहां रोका जा सकेगा? यह दिलचस्प है कि इस इलाके के लेमरू में एलीफेंट रिजर्व बनाने की बात करीब 15 साल से हो रही है पर सरकार ने कदम नहीं बढ़ाया और गजब की फुर्ती के साथ परसा कोल ब्लॉक के लिए जैसे ही मंजूरी मिली पेड़ कटने शुरू हो गए। यह बताता है कि सरकारी काम और निजी काम के बीच स्पीड में कितना फर्क होता है। यदि एलीफेंट रिजर्व बन चुका होता तो शायद हसदेव अरण्य को बचाने के लिए इतनी लड़ाई नहीं लडऩी पड़ती।
इसे हटाना ठीक नहीं दूसरे एटीएम जाएं
एक एटीएम मशीन में कार्ड लगाने की जगह पर एक मेंढक इतनी अच्छी तरह बस गया है कि उसे हटाने के बजाय दूसरी जगह से पैसे निकाल लेना बेहतर लगे। भिलाई के रिसाली इलाके में यह फोटो पुरूषोत्तम ठाकुर ने ली है।