विचार / लेख

खेल में दोस्ती का पैगाम
09-Aug-2024 4:11 PM
खेल में दोस्ती का पैगाम

-डॉ. अनिल कुमार मिश्र

पेरिस ओलंपिक में चल रही विभिन्न प्रतियोगिताओं में हर रोज नई खबरें आ रही है। कुछ जो निराश करती हैं और कुछ ऐसी भी जो सुकूनदेह के साथ साथ अथक मेहनत, लगन और दोस्ती की मिसाल बन जाती हैं। कुश्ती के अखाड़े से विनेश फोगाट की दुखदायी विदाई ने जहाँ मायूस किया तो नीरज चोपड़ा के रजत पदक ने देश भर में खुशी की लहर पैदा की है।   

हालांकि, भाला फेंक/जेवलिन थ्रो प्रतियोगिता में पाकिस्तान के एथलीट अरशद नदीम ने इस बार विश्व रिकॉर्ड तोड़ दिया। 92.97 मीटर भला फेंकने के बाद उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया। वहीं नीरज चोपड़ा भाला फेंक में 89.45 मीटर की दूरी तय करने के बाद सिल्वर के दावेदार बने। नीरज चोपड़ा टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक लाये थे। इस बार वे स्वर्ण से भले ही चूक गये लेकिन उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी अरशद नदीम की मेहनत और जज़्बे के लिए दिल खोलकर सराहना की।

नीरज चोपड़ा के प्रदर्शन के बाद उनकी माँ का एक बयान दुनिया भर की मीडिया में सुर्खियाँ बटोर रहा है। नीरज की माँ ने कहा कि जिसने स्वर्ण पदक जीता है वह भी अपना ही लडक़ा है। उन्होंने यह बयान पाकिस्तान के अरशद नदीम के स्वर्ण पदक जीतने पर दिया। नीरज चोपड़ा की माँ का यह बयान भारत के अधिकतर युद्धोन्मादी मीडिया घरानों को रास नहीं आएगा। न ही उन राजनेताओं को जो भारत और पाकिस्तान के बीच हमेशा दुश्मनी की संगीन तलवारें भांजते रहते हैं।

अधिकतर मीडिया घरानों के व्यवसायिक मोडल्स के लिए को यह बयान इसलिए भी असुविधाजनक है क्योंकि यह नकली राष्ट्रवाद के आख्यान और उसकी सीमाओं का एक प्रति-संसार रचता है। यह कोई छिपा हुआ तथ्य नहीं है कि मौजूदा मुख्यधारा मीडिया के अधिकतर एंकर्स बंटवारे और नफरत की जिस राजनीति को बढ़-चढक़र प्रोत्साहित करते हैं, उनके लिए ऐसे किसी बयान को स्वीकार करना खासा चुनौतीपूर्ण है। खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के 24*7 चलने वाले खबरिया चैनल जो रात के 8-10 के बीच प्राइम समय में लगातार ऐसे विचारों को प्रश्रय देते हैं जिससे विविध धर्मों और समाजों के बीच आपसी विभाजन और गलतफहमी और ज़्यादा बढ़ती है। मतों का ध्रुवीकरण होता है। आपसी बैर-भाव मज़बूत होता है। नीरज चोपड़ा की माँ का बयान अधिकतर मीडिया मालिकों के मुनाफे के गणित के हिसाब से एक घाटे का सौदा है, क्यूंकि इससे सनसनी पैदा नहीं होती, उत्तेजना पैदा नहीं होती है। 

बावजूद इसके, नीरज चोपड़ा की माँ का बयान उन लोगों को जरूर राहत दे रहा है जो भारत और पाकिस्तान के साझा इतिहास, साझी संस्कृति और साझी विरासत को रेखांकित करते हुए दोनों देशों के बीच अमन-चैन और दोस्ती के प्रगाढ़ रिश्तों की हिमायत करते हैं। ऐसे लोग सरहद के दोनों तरफ हैं। भले ही वो अपने-अपने मुल्क में अल्पसंख्यक हैं। ऐसे लोग सामान्यत: कोई मजबूत या निर्णायक स्वर नहीं हैं। वे हाशिये के लोग कहे जा सकते हैं। ये लोग दुश्मनी की भावना के बजाय सह-अस्तित्व और आपसी समझदारी के साथ साथ साझेदारी की जरूरत पर भी बल देते हैं। ये चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच बेहतर संवाद हो। आपसी सलाहियत हो। समझदारी हो। साथ ही, संवाद के माध्यम से सभी द्विपक्षीय समस्याओं का समाधान निकाला जाए।

दक्षिण एशिया के एक साझे भविष्य के लिहाज़ से अरशद नदीम और नीरज चोपड़ा के बीच मैदान में एक दूसरे के प्रति जो परस्पर सद्भावना दिखी वो भी साझे इतिहास और विरासत के पहलू की तरफ़ एक अहम इशारा करती है। वरना, क्रिकेट जैसे खेल में आज से 20-25 साल पहले से लेकर अब तक जिस तरह की भाषा और विचार सरणी का प्रयोग होता था वह दोनों देशों के बीच आपसी कलह और दुश्मनाना रवैये को बढ़ाती और मजबूत ही करती थी।

पाकिस्तान के एथलीट अरशद नदीम और भारत के एथलीट नीरज चोपड़ा की पेरिस ओलंपिक में सफलताओं और उसके बाद नीरज की माँ के सद्भावनापूर्ण बयान के आलोक में चीजों को देखने पर यह बात साफ हो जाती है कि इसमें सरहद के दोनों पार बसे पंजाब के बीच जो ऐतिहासिक साझापन है, वह समूचे दक्षिण एशिया की एकता के लिये एक नई शुरुआत का बिंदु हो सकती है। बशर्ते कि बतौर राष्ट्र हम अपने इतिहास से सबक लेने की समझदारी और संवेदना रखते हों।

पंजाब की धरती हमेशा से मोहब्बत और भाईचारे के पैगाम के साथ रही। सरहद के दोनों तरफ के पंजाब की मिट्टी एक जैसी है। वहां का भूगोल, खानपान और संस्कृति में साझेपन की कई रवायतें हैं, जो आपसी मेलजोल की भावना को पुष्ट करती हैं। 1965 की जंग के पहले तक अमृतसर और लाहौर के बीच आवाजाही बहुत आसान थी। अमृतसर के प्राध्यापक लाहौर के विश्वविद्यालय या कॉलेज में परीक्षा लेने या कॉपी जांचने सुबह जाते थे और शाम को वापस आ जाते थे। पंजाब के अधिकतर लोगों के लिए बंटवारा कभी मनोवैज्ञानिक दूरी की वजह नहीं बन सका।

एक अन्य तथ्य यह है कि समाजशास्त्र और राजनीति शास्त्र के लगभग सभी चिंतक इस बात से एकमत होते हैं कि आधुनिक राष्ट्र-राज्य आमतौर पर एक काल्पनिक सामुदायिक विभाजन और उनके कठोर वर्गीकरण की उपज हैं। अगर कोई चीज शाश्वत तौर पर लोगों को आकर्षित करती है तो वह है आपसी सहयोग और परस्पर भाईचारे/बहनापे की भावना। इसी में समूची मनुष्य सभ्यता का भविष्य संरक्षित है। युद्ध, नफरत और कलह ये सब मु_ी भर लोगों के विशेषाधिकार और सतत मुनाफे की व्यवस्था को टिकाये रखने के औजार होते हैं।

यह मनुष्य सभ्यता की साझी विडंबना है कि आधुनिक खेलों के मैदान इन्हीं प्रतिस्पर्धी राष्ट्रवाद के अदृश्य सूत्रों के लिये जोर-आजमाइश की जगह बन गये हैं। अरशद नदीम और नीरज चोपड़ा जैसे एथलीट्स कई बार सामान्य मानवीय गरिमा के व्यवहार से काल्पनिक डर की बुनियाद पर टिकी नफरत और युद्धोन्माद की समूची परियोजना की हकीकत उघाड़ कर रख देते हैं।

नीरज चोपड़ा की माँ के विचार कि जिसने स्वर्ण हासिल किया है वो भी अपना ही लडक़ा है, भारत और पाकिस्तान के नागरिकों के बीच परस्पर आवाजाही, दोस्ती और सद्भावना की अनिवार्यता पर जोर देते हैं। नीरज चोपड़ा की माँ जैसे लोगों की पवित्र और निश्छल आवाज क्या भारत और पाकिस्तान के सियासतदानों और राष्ट्र के कर्णधारों की चेतना जगाने के लिए  पर्याप्त होगी? या दोनों देशों के राजनेता ऐसी स्वस्थचित्त आवाजों को अनसुना करने के लिए अभिशप्त हैं?

(लेखक हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय, जयपुर में सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने वर्धा के महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से भारत-पाकिस्तान रिश्तों में मीडिया की भूमिका के बारे में पीएचडी की है। ये लेखक के ये अपने विचार हैं।)

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