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बदले सियासी समीकरण में लाल किले से पीएम नरेंद्र मोदी के भाषण के मायने
16-Aug-2024 4:04 PM
बदले सियासी समीकरण में लाल किले से पीएम नरेंद्र मोदी के भाषण के मायने

-चंदन कुमार जजवाड़े

भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को एक बार फिर से लाल कि़ले से देश को संबोधित किया।

इस साल उनका भाषण नए राजनीतिक माहौल में था। साल 2014 के बाद यह पहला मौक़ा है जब बीजेपी के पास अपना बहुमत नहीं हैं और केंद्र सरकार सहयोगी दलों के समर्थन पर टिकी है।

मोदी के भाषण में इस बात पर भी लोगों की नजऱ थी कि वो क्या बोलते हैं और क्या उनके भाषण में सहयोगी दलों के भरोसे प्रधानमंत्री बनने का दबाव नजऱ आता है।

लाल कि़ले पर झंडा फहराने के बाद पीएम मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत में ही देश के सैनिकों, किसानों और युवाओं को सलाम किया।

‘अपना नियंत्रण दिखाने की कोशिश’

पीएम मोदी ने कहा, ‘जब हम 40 करोड़ थे, तब हमने सफलतापूर्वक आज़ादी का सपना देखा। आज तो हम 140 करोड़ हैं। एक साथ मिलकर हम किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं।’

उन्होंने कहा, ‘आज़ादी के दीवानों ने हमें स्वतंत्रता की सांस लेने का सौभाग्य दिया है। ये देश उनका कजऱ्दार है। ऐसे हर महापुरुष के प्रति हम अपना श्रद्धाभाव व्यक्त करते हैं।’

मोदी ने अपने कऱीब 100 मिनट लंबे भाषण में महिला सुरक्षा का मुद्दा भी उठाया और युवाओं के लिए रोजग़ार के नए मौक़े देने का दावा भी किया।

लेकिन इन तमाम मुद्दों के बीच क्या प्रधानमंत्री के भाषण में '240 सीटों की बीजेपी' और सहयोगियों को असहज नहीं करने का कोई दबाव दिख रहा था?

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, ‘पिछले दो महीने से संसद और बाक़ी जगहों पर देखकर ऐसा लग रहा था कि मोदी थोड़े कमज़ोर पड़ गए हैं। लेकिन लाल कि़ले से मोदी अपने पुराने अंदाज़ में बोला है। उनके भाषण में उत्साह और आक्रमण दोनों नजऱ आ रहा था।’

नीरजा चौधरी के मुताबिक़ मोदी ने अपनी पार्टी की उपलब्धियाँ भी गिनाई हैं और दूसरे देशों को भी संदेश देने की कोशिश की है। मोदी बताना चाहते हैं कि भारत की प्रगति दूसरे देशों के लिए ख़तरा नहीं है।

‘सेक्युलर सिविल कोड’

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, ‘मोदी जी ने साल 2024 की राजनीतिक परिस्थिति में जब उनके पास अपना पूर्ण बहुमत नहीं है, उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की है कि सबकुछ उनके नियंत्रण में है और वो कठोर कदम उठाने से पीछे नहीं हटेंगे। ’

रशीद किदवई इस मामले में यूनिफॉर्म सिविल कोड का उदाहरण देते हैं, जिसके बारे में प्रधानमंत्री ने भी अपने भाषण में जि़क्र किया है।

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में आरोप लगाया है कि जिस सिविल कोड को लेकर हम जी रहे हैं, वह एक प्रकार का सांप्रदायिक सिविल कोड है, भेदभाव करने वाला सिविल कोड है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में 'सेक्युलर सिविल कोड' की बात की है। उन्होंने इस मुद्दे पर देशभर में चर्चा और बहस की मांग भी की है।

रशीद किदवई कहते हैं, ‘मोदी जी ने कहा कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड होना चाहिए। लेकिन वो इसकी गहराई में नहीं गए कि इसे कैसे लागू करेंगे। उन्होंने केवल बीजेपी के एजेंडे को आगे करके उसकी बात की है।’

‘जो क़ानून देश को धर्म के आधार पर बांटते हैं जो ऊंच-नीच का कारण बन जाते हैं। ऐसे क़ानूनों का आधुनिक समाज में कई स्थान नहीं हो सकता है। इसलिए मैं कहूंगा कि समय की मांग है कि देश में एक सेक्युलर सिविल कोड हो।’

हालाँकि बीजेपी अब तक यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड की बात करती रही है। इसलिए ‘सेक्युलर सिवल कोड’ का जि़क्र छेडऩा एक नई बहस खड़े कर सकता है।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’

रशीद किदवई के मुताबिक़, ‘प्रधानमंत्री यह धारना पेश करना चाहते हैं कि धर्म से जुड़े हुए जितने सिविल कोड हैं उनको मान्यता नहीं दी जाएगी और एक ऐसा सिविल कोड होगा जो धर्म पर आधारित नहीं होगा।

सिविल कोड को लेकर कई महिलाएँ और कुछ अन्य वर्ग सिविल मामलों से जुड़े क़ानूनों को लैंगिक भेदभाव से दूर रखने की मांग करते हैं। यानी ऐसा क़ानून जो पुरुषों और महिलाओं के लिए एक जैसा हो।

इसमें पैत्रिक संपत्ति या विरासत का हस्तांतरण, शादी-ब्याह और तलाक़ जैसे मामले शामिल हैं।

रशीद किदवई मानते हैं, ‘यह इतना आसान नहीं है क्योंकि धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं में रूढ़ीवाद का असर होता है। यह केवल इस्लाम में ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों में भी होता है। ऐसे क़ानून बनाने के लिए सरकार के पास प्रचंड बहुमत होना चाहिए।’

इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण में 'वन नेशन वन इलेक्शन' का जि़क्र किया है और इसके लिए देश से आगे आने की अपील की है।

भारत में केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले कुछ साल से लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने यानी 'वन नेशन वन इलेक्शन' की चर्चा कई बार की है।

हालाँकि पिछले कुछ समय इस मुद्दे पर बीजेपी या केंद्र सरकार में एक तरह की ख़ामोशी देखी जा रही थी।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के पीछे कई तरह के तर्क दिए जाते हैं कि इससे चुनावी ख़र्च कम होगा और देश के विकास कार्यों में तेज़ी आएगी।

दरअसल चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होते ही सरकार कोई नई योजना लागू नहीं कर सकती है।

आचार संहिता के दौरान नए प्रोजेक्ट की शुरुआत, नई नौकरी या नई नीतियों की घोषणा भी नहीं की जा सकती है और इससे विकास के काम पर असर पड़ता है।

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रशीद किदवई कहते हैं, ‘अगर मोदी ऐसा मानते हैं तो इस साल लोकसभा चुनावों के समय बीजेपी शासित 20-22 राज्यों में भी विधानसभा चुनाव करा देते। यह एक अवसर था, लेकिन प्रधानमंत्री केवल ‘रेटोरिक’ या जुमले की तरह बात को दोहरा रहे हैं।

वो केवल लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। उनकी कोशिश केवल इसे चर्चा में रखने की है ताकि लोगों को लगे कि प्रधानमंत्री ऐसा चाहते हैं, लेकिन विपक्ष यह नहीं करने दे रहा है।

हालाँकि जानकार मानते हैं एक देश एक चुनाव कराने में कई व्यवहारिक समस्याएं हैं। इसके लिए सबसे ज़रूरी है कि देश के हर राज्य की विधानसभा एक साथ भंग हो जाए।

साल 1947 में आज़ादी के बाद भारत में नए संविधान के तहत देश में पहला आम चुनाव साल 1952 में हुआ था। देश में साल 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव एक साथ ही होते थे।

यह क्रम पहली बार उस वक़्त टूटा था जब केरल में साल 1957 के चुनाव में ईएमएस नंबूदरीबाद की वामपंथी सरकार बनी।

इस सरकार को उस वक़्त की केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति शासन लगाकर हटा दिया था। केरल में दोबारा साल 1960 में विधानसभा चुनाव कराए गए थे। उसके बाद अलग अलग वजहों से कई राज्यों की सरकारों के गिरने से यह क्रम टूट गया।

पीएम मोदी ने लाल कि़ले से कहा कि महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे अपराध को गंभीरता से लिया जाना ज़रूरी है और दोषियों में डर पैदा करने की ज़रूरत है।

महिला सुरक्षा न्याय की मांग

पीएम ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जल्द जांच और दोषियों को जल्द से जल्द कड़ी सज़ा देने की मांग की ताकि समाज में भरोसा पैदा किया जा सके।

उन्होंने कहा, ‘मैं आज लाल कि़ले से अपनी पीड़ा व्यक्त करना चाहता हूं। हमें गंभीरता से सोचना होगा। हमारी माताओं, बहनों, बेटियों के प्रति जो अत्याचार हो रहे हैं, उसके प्रति जन सामान्य का आक्रोश है। इसे देश को, समाज को, हमारी राज्य सरकारों को गंभीरता से लेना होगा।’

नीरजा चौधरी कहती हैं, ‘ख़ासकर कोलकाता वाले मामले को लेकर महिलाओं में आक्रोश है । इसके अलावा पेरिस ओलंपिक में विनेश फोगाट का मुद्दा भी देश में काफ़ी चर्चा में रहा है। महिलाओं में एक तरह की जागृति आई है और मोदी उसे समझ रहे हैं। इसलिए उनके भाषण में महिलाओं का काफ़ी जि़क्र था।’

हालाँकि भारत में लॉ एंड ऑर्डर राज्य का मुद्दा है और इसमें केंद्र सरकार की बहुत ज़्यादा भूमिका नहीं होती है।

प्रधानमंत्री ने किसी घटना का जि़क्र नहीं किया लेकिन फि़लहाल पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक डॉक्टर की हत्या और बलात्कार के मामले को लेकर देशभर में काफ़ी आक्रोश देखा जा रहा है।

रशीद किदवई कहते हैं, ‘अगर बीजेपी शासित राज्य प्रधानमंत्री की मांग पर चलें तो अन्य राज्यों पर भी इसका दबाव होगा। हमारे पास बीजेपी शासित राज्यों के सैंकड़ों मामले हैं, लेकिन प्रधानमंत्री का ऐसा कोई बयान नहीं आया जिससे लगे कि वो बहुत गंभीर हैं।’

रशीद कदवई मानते हैं कि प्रधानमंत्री के भाषण में जिस रिफॉर्म की बात की गई है वह सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा कांग्रेस भी चाहती है और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में उसने आर्थिक सुधार के कदम उठाए थे।

(bbc.com/hindi)

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