विचार / लेख

वो उपन्यास जिसे पढ़ प्रेमचंद रोते रहे...
23-Aug-2024 3:11 PM
वो उपन्यास जिसे पढ़ प्रेमचंद रोते रहे...

-अपूर्व गर्ग
प्रेमचंद उस महान उपन्यास को पूरा न पढ़ पाए ,इतने भावुक हो गए कि किताब हाथ से छूट गयी .

सोचिये उपन्यास सम्राट एक उपन्यास को पढ़ते -पढ़ते आंसुओं में डूब गए कितना महान उपन्यास होगा वो !

दरअसल वो उपन्यास वेश्यावृत्ति की दुनिया की दहला देने वाली तस्वीर कुछ ऐसे सामने रखता है जिसे पढ़ते हुए पाठक काँप ही जाए .

इसे पढ़ते हुए प्रेमचंद के बहते आंसू बताते हैं वो स्त्री के शोषण को लेकर कितने संवेदनशील थे .

स्त्री समस्या को लेकर विशेष रूप से प्रेमचंद ने सेवासदन , निर्मला और प्रतिज्ञा जैसे महान उपन्यास लिखे .

याद करिये प्रेमचंद की कहानी ' नैराश्यलीला ' में कहानी की पात्र कैलाशी अपने आक्रोश को किस तरह व्यक्त करती है :

"मैं अपने आत्मसम्मान की रक्षा आप कर सकती हूँ .मैं इसे अपना घोर अपमान समझती हूँ कि पग- पग पर मुझ पर शंका की जाय ,नित्य कोई चरवाहों की भांति मेरे पीछे लाठी लिए घूमता रहे कि किसी खेत में न जा पडूं .यह दशा मेरे लिए असह्य है "....

प्रेमचंद स्त्री समस्या को लेकर भावुक ,संवेदनशील ही नहीं मुखर थे .

बहरहाल , उस दिन प्रेमचंद जैनेन्द्र जी से मिलने गए और बोले -:

" भई जैनेन्द्र ये किताब powerful है .. कहीं -कहीं तो मुझसे पढ़ा ही नहीं गया .दिल इतना बेकाबू हो गया , आंसू रोकना मुश्किल हुआ ..... मुझसे आगे पढ़ा ही नहीं गया जैनेन्द्र , किताब हाथ से छूट गयी ..''
जैनेन्द्र जी बताते हैं कि-- :

''उस पुस्तक के उस प्रसंग का प्रेमचंद अनायास ही वर्णन करने लगे .मैं सुनता रहा .......प्रसंग बेहद मार्मिक था .

प्रेमचंद जी मानों अवश्य भाव से ,आप खोये से कहते जा रहे थे . सहसा मैं देखता हूँ वाक्य अधूरा रह गया .वाणी मूक हो गयी आँख उठाकर देखा --उनका चेहरा एकाएक मानों

राख की भांति सफ़ेद हो आया है . क्षण भर में सन्नाटा हो गया ........और पल बीते न बीते मैंने देखा , प्रेमचंद का सौम्य मुख एकाएक बिगड़ उठा है .

जैसे भीतर से कोई उसे मरोड़ रहा हो .जबड़े हिल आये ,मानों कोई भूचाल उन्हें हिला गया .......देखते -देखते उन आँखों से आंसू झर झर रहे थे ...लड़खड़ाती आवाज़ में बोले जैनेन्द्र ...आगे उनसे बोलै न गया ..''
वो महान उपन्यास जिसने हमारे उपन्यास सम्राट को रुला दिया वो था ''Aleksandr I. Kuprin का Yama: The Pit ''

प्रेमचंद ने जैनेन्द्र से उम्मीद करी कि वे इसका अनुवाद करें .जैनेन्द्र ने उन्हें आश्वस्त किया .जैनेन्द्र ने इस पर काम शुरू किया पर इस बीच चन्द्रभाल जौहरी ने इस काम को पूरा किया .वे इस उपन्यास का नामचकला रखना चाहते थे पर उनकी सोच थी कि 'भले आदमी नाम सुनकर छूने तक की हिम्मत न करते '.

चन्द्रभाल जौहरी ने इस इस उपन्यास का नाम 'गाड़ीवालों का कटरा' रखा .

चन्द्रभाल जौहरी के 'गाड़ीवालों का कटरा' आने के बाद जैनेन्द्र जी ने इस पर काम छोड़ दिया था पर प्रेमचंद को याद कर इस काम को 1931 में किये वायदे को 25 बरस बाद पूरा कर किया ,और पुस्तक का नाम रखा 'यामा '
चन्द्रभाल जौहरी ने'गाड़ीवालों का कटरा' में लिखा है 'दिल थाम कर पढ़िए '

जैनेंद्र ने 'यामा ' में लिखा है 'मूल पुस्तक के सम्बन्ध में बहुत विवाद रहा है ..... विवाद अब भी हो सकता है पर मुँह फेरना नैतिकता नहीं ..'
 

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