विचार / लेख

ऑर्गेनिक मतलब?
12-Aug-2024 1:15 PM
ऑर्गेनिक मतलब?

-सच्चिदानंद जोशी

बाथरूम में नहाने गया तो साबुन रखने के स्थान पर टाइल्स के टुकड़े की तरह का एक टुकड़ा दिखाई दिया। हमारा फ्लैट कुछ पुराना है इसलिए जगह-जगह से यदा-कदा कुछ ऐसी चीजें टपकती ही रहती हैं। मुझे लगा फिर कोई टाइल टूटकर गिरी है। ऐसे अपघातों से बचने के लिए कुछ मित्रों ने हेलमेट पहनकर नहाने की सलाह भी दी है। इससे पहले कि मैं टाइल्स टूटने की घोषणा करता मेरा हाथ इस टुकड़े पर गया और मैंने पाया कि वह टाइल्स की तरह सख्त नहीं बल्कि काफी मुलायम है।

‘अरे ये क्या रखा है साबुन की जगह ?’ मैंने चिल्लाते हुए श्रीमती जी से पूछा। वो लगभग दौड़ती हुई आई और बोली ‘ये क्या मतलब साबुन है, महंगा वाला। ‘साबुन! मैंने आश्चर्य से एक बार फिर उस टुकड़े को देखा । मर्दों की सैंडो-बनियान के आकार का पीले रंग का वो टुकड़ा था। ‘ये साबुन है ?’ कहते हुए मैंने उसे हाथ में उठाया तो वो हाथ से फिसल कर नीचे गिर गया। उसे उठाने लगा तब तक उसने शरीर के दूसरे अंतर्वस्त्र का आकार धारण कर लिया था। तब तक श्रीमती जी भी परिदृश्य में दाखिल हो गई थी। मेरे हाथ में उस परिवर्तित आकार की वस्तु को देखकर बोली ‘कर दिया न सत्यानाश। जानते हो कितना महंगा था, अपने घर के पूरे महीने के साबुन आ जाएं इतनी कीमत इस एक अकेले साबुन की है।’ मेरे मन में हैरानी थी कि पूरी दुनिया इतने सुंदर और सुवासिक प्रसाधनों से अटी होने के बावजूद ये इतना उटपटांग साबुन खरीदा ही क्यों गया। उत्तर तुरंत ही मिल गया। श्रीमती जी फरमा रही थीं, ‘जानते हो कितने बड़े वैद्य जी का बनाया हुआ है, खास उनकी औषधिशाला में। शुद्ध और ऑर्गेनिक। मैं तो शैंपू भी लाई हूं वहां से ।’ श्रीमती जी ने आले में रखी एक बिना लेबल की बोतल की तरफ इशारा किया जिसमे गहरे भूरे रंग का द्रव भरा था। ‘ये शैंपू है , मुझे तो लगा टॉयलेट क्लीनर है। फिनायल की बोतल की तरह दिख रहा है।’ मेरी स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी।

‘तुम्हे तो किसी बात की कदर ही नही है। और ऑर्गेनिक का महत्व तुम क्या जानो।’ श्रीमती जी उलाहना देते हुए चली गई।

हां ये बात सच है कि ऑर्गेनिक शब्द से बहुत दोस्ती कभी रही नहीं हमारी। हमारे लिए तो सब्जी भी सब्जी ही होती थी। बहुत से बहुत वो ताजी या बासी होती थी। सब्जी में ऑर्गेनिक सुना दिल्ली में आने के बाद जब एक मित्र ने चाणक्यपुरी में चलकर ऑर्गेनिक सब्जी खरीदने का ऑफर दिया। वो समय डीमोनेटाइजेशन का था और घर में नकदी कम थी। तो मित्र बोले ‘चिंता की कोई बात नहीं, साथ में चेक बुक रख लीजिए।’ चेक से सब्जी खरीदने का वह जीवन का पहला प्रसंग था। सब्जी ऐसी कि सूरत देखकर रोना आ जाए। बताया गया कि यही सही ऑर्गेनिक है। तब बचपन और भोपाल का न्यू मार्केट याद आया जहां सब्जी मार्केट में पहली दो चार दुकानें सजी हुई सब्जी की होती थी। वहां सब्जियां ऐसे चमकती मानो पॉलिश लगाया हो। ऐसा लगता कि सब्जी की नही मिठाई की दुकान है। जाहिर है कि वहां भाव दूसरे दुकानदारों से ज्यादा होते थे और हमारी पहुंच से बाहर होते थे। हम उन्हे कुंठा से ढ्ढ्रस् सब्जी वाले कहते थे। उस दिन चाणक्यपुरी में चेक पर आंकड़ा भरते समय लगा कि जाकर ये चेक न्यू मार्केट उन सब्जी वालों को भी दिखाना चाहिए कि देखो आखिर हमारी भी औकात हो ही गई। लेकिन दुख इसी बात का था कि चौगुने दाम देकर जो सब्जी हम घर ला रहे थे वो बेचारी एकदम मालूल और आकार में विसंगत थी। लेकिन क्या करें ऑर्गेनिक थी।

हमारे एशियाड विलेज में भी ऑर्गेनिक सब्जी का बाजार कुछ दिन चला। एक बुजुर्ग महिला जो प्याज बेच रही थी ने बहुत अच्छी टिप्पणी की जब हमने उसके पास रखे अलग-अलग आकार और रंग के थोड़ी सी मिट्टी लगे प्याज के बारे में पूछा। वो बोली ‘ऑर्गेनिक में ऐसे ही चलता है। यदि एक ही साइज के प्याज साफ करके रखो तो लोग उसे ऑर्गेनिक मानते ही नहीं।’इस ऑर्गेनिक सब्जी मार्केट के सब्जी बेचने वाले भी साधारण नहीं होते थे। वे सब भी महंगी कारों में सब्जी बेचने आते थे। साथ में वैन में उनका स्टाफ उनके फार्म की सब्जी लेकर आता था।

लेकिन ये बाते भी अब पुरानी हो गई सी लगती है। अब हमारे घर विशेष ऑर्गेनिक सब्जी किसी के खेत विशेष से आती है। इस उपक्रम का मासिक बिल लगभग उतना ही होता है जितना हमारा बिजली का बिल। अब बिजली का बिल भी कैपिटल एक्सपेंस में आता है ये अलग से बताने की जरूरत तो है नही।

इतना होने के बाद ऑर्गेनिक शब्द से इतनी दहशत हो गई है कि उसके नाम पर किसी बहस की हिम्मत ही नहीं होती। हमारे सोशल मीडिया हैंडल्स के फॉलोअर्स बढ़ाने थे। दहाई के आंकड़ों में उनकी व्यूअरशिप देखकर शर्म आती थी। इतने दिनो से देख रहे थे कि सब्जी बनाने के, बाल काटने के, बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजने के, साड़ी पहनना सिखाने के और ऐसे ही न जाने कितने विडियोज के लाखों में फॉलोअर्स कुछ ही दिन में बन जाते हैं। घिसे पिटे लतीफे सुनाकर भी स्टैंडअप कॉमेडियन लाखों फॉलोअर्स जुटा लेते हैं। उनकी तुलना में हमारा कंटेंट कहीं अधिक अच्छा था ,लेकिन दहाई से सैकड़ा तक आने में ही पसीना छूट जा रहा था। मन में खीज और कुंठा दोनों रखते हुए जब ये सवाल अपने सहयोगी से किया तो उत्तर मिला ‘आपको तो खुश होना चाहिए। हमारी ग्रोथ बहुत अच्छी है क्योंकि वो ऑर्गेनिक है। उनकी ग्रोथ बनावटी है।’

एक बार फिर ऑर्गेनिक इस शब्द ने मुंह बंद कर दिया। बहुत पहले विज्ञापन आता था ‘ठंडा मतलब कोकाकोला।’ वैसे ही अब लगता है कहना पड़ेगा ‘महंगा, बेडौल और दुरूह मतलब।’ बाय द वे आपको बता दूं वो साबुन जिससे बात शुरू हुई थी इतने दिन चलने के बाद अच्छा खासा सख्त हो गया है और साबुन के साथ साथ अब वो चकमक पत्थर का भी काम कर रहा है। उसे घर में छुपा कर रखा है इस डर से कि कहीं ्रस्ढ्ढ वाले उसे आकार न ले जाएं, मोहन जो दारो कालीन मान कर।

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