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हमने नहीं गिराई हसीना की सरकार: अमेरिका
13-Aug-2024 3:16 PM
हमने नहीं गिराई हसीना की सरकार: अमेरिका

अमेरिका ने कहा है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को हटाने में उसकी कोई भूमिका नहीं थी. व्हाइट हाउस ने सोमवार को अमेरिकी हस्तक्षेप के आरोपों को "सिर्फ झूठा" बताया.

 

डॉयचे वैले पर विवेक कुमार का लिखा-  

अमेरिका ने कहा है कि दक्षिण एशिया के देश बांग्लादेश की राजनीतिक उठापटक में उसकी कोई भूमिका नहीं है। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरिन ज्यां-पिएरे ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘हमारा इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है। यह आरोप या अफवाहें कि अमेरिका की सरकार इन घटनाओं में शामिल थी, बिल्कुल गलत हैं।’

रविवार को भारत के इकोनॉमिक टाइम्स अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि हसीना ने अमेरिका पर उन्हें हटाने की कोशिश का आरोप लगाया क्योंकि अमेरिका बांग्लादेश के सेंट मार्टिन द्वीप पर नियंत्रण चाहता था। अखबार ने कहा कि हसीना ने यह संदेश अपने करीबी सहयोगियों के माध्यम से दिया था।

हालांकि हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने इस बात का खंडन करते हुए रविवार को सोशल मीडिया साइट ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि उन्होंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था।

ज्यां-पिएरे ने कहा, ‘हमारा मानना है कि बांग्लादेश की जनता को वहां की सरकार का भविष्य तय करना चाहिए और इस मामले में हमारा यही रुख है।’

बांग्लादेश में करीब एक महीने चले प्रदर्शनों के बाद पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया था और वह भारत चली गई थीं। उसके बाद देश में एक अंतरिम सरकार बनाई गई, जिसका नेतृत्व नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनूस को सौंपा गया।

इसी साल जनवरी में आम चुनाव में चौथी बार जीतने के बाद हसीना ने सत्ता संभाली थी, लेकिन विपक्ष ने चुनाव का बहिष्कार किया था और अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा था कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं था। अपने चौथे कार्यकाल में हसीना सात महीने ही पद पर रह पाईं और इस्तीफे के साथ उनके 15 साल के निरंतर शासन का अंत हो गया।

क्यों आया सेंट मार्टिन का जिक्र

कुछ खबरों में आरोप लगाया गया कि शेख हसीना की सरकार गिरने की वजह सेंट मार्टिन द्वीप में अमेरिका की दिलचस्पी है। भारतीय मीडिया में कहा गया था कि शेख हसीना पांच अगस्त को देश छोडऩे से पहले राष्ट्र को संबोधित करना चाहती थीं, लेकिन छात्रों के हिंसक प्रदर्शनों के बीच उनका भाषण नहीं हो पाया।

एक रिपोर्ट के मुताबिक शेख हसीना ने खुलासा किया था कि ‘अगर मैंने सेंट मार्टिन और बंगाल की खाड़ी अमेरिका को दे दिए होते, तो मैं सत्ता में बनी रह सकती थी।’

रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने एक पत्र में लिखा, ‘अगर मैंने सेंट मार्टिन और बंगाल की खाड़ी को अमेरिका को दे दिया होता तो मैं सत्ता में बनी रह सकती थी। कृपया कट्टरपंथियों द्वारा इस्तेमाल न हों।’ हालांकि, अब उनके बेटे वाजेद ने इन बयानों से इंकार किया है।

वाजिद ने ट्वीट किया, ‘हाल ही में एक अखबार में प्रकाशित मेरी मां के इस्तीफे से जुड़ा बयान पूरी तरह से झूठा और मनगढ़ंत है। मैंने अभी उनसे पुष्टि की है कि उन्होंने ढाका छोडऩे से पहले या बाद में कोई बयान नहीं दिया है।’

क्यों अहम है एक छोटा सा द्वीप

सेंट मार्टिन द्वीप बंगाल की खाड़ी के पूर्वोत्तर में स्थित एक छोटा कोरल द्वीप है। यह द्वीप बांग्लादेश के दक्षिणी प्रायद्वीप कॉक्स बाजार-टेकनाफ के लगभग नौ किलोमीटर दक्षिण में, म्यांमार के पास स्थित है। यह बांग्लादेश का एकमात्र कोरल द्वीप है।

इस द्वीप का क्षेत्रफल केवल तीन वर्ग किलोमीटर है और यहां लगभग 3,700 लोग रहते हैं। ये लोग मुख्य रूप से मछली पकडऩे, धान की खेती, नारियल की खेती और समुद्री शैवाल की कटाई का काम करते हैं। इस शैवाल को सुखाकर म्यांमार को निर्यात किया जाता है।

हाल ही में यह द्वीप तब चर्चा में आया जब बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) पर आरोप लगा कि उसने अमेरिका को द्वीप बेचकर वहां एक सैन्य अड्डा बनवाने की योजना बनाई थी ताकि चुनावों में जीत हासिल की जा सके। हालांकि अमेरिकी विदेश विभाग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए बांग्लादेश की संप्रभुता का सम्मान करने और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से लोकतंत्र को बढ़ावा देने की बात कही।

इस द्वीप को बांग्ला में ‘नारिकेल जिंजिरा’या नारियल द्वीप के नाम से भी जाना जाता है। इसे ‘दारुचिनी द्वीप’ या दालचीनी द्वीप भी कहा जाता है। पहले यह द्वीप टेकनाफ प्रायद्वीप का हिस्सा था, 

लेकिन प्रायद्वीप का एक हिस्सा डूबने के कारण यह मुख्य भूमि से अलग होकर एक द्वीप में बदल गया।

कभी भारत का हिस्सा था द्वीप

इस द्वीप का इतिहास काफी पुराना है। 18वीं सदी में अरबी व्यापारी वहां सबसे पहले बसे थे और तब उन्होंने इसे ‘जजीरा’ नाम दिया था। साल 1900 में एक ब्रिटिश भूमि सर्वेक्षण टीम ने सेंट मार्टिन द्वीप को ब्रिटिश भारत का हिस्सा बनाया और इसका नाम एक ईसाई पादरी सेंट मार्टिन के नाम पर रखा। हालांकि कुछ रिपोर्टों के अनुसार इसका नाम चटगांव के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर, मिस्टर मार्टिन के नाम पर रखा गया था।

1974 में बांग्लादेश और म्यांमार के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें सेंट मार्टिन द्वीप को बांग्लादेशी क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई। हालांकि, द्वीप की समुद्री सीमा को लेकर विवाद बना रहा। बांग्लादेशी मछुआरों को म्यांमार की नौसेना द्वारा हिरासत में लिया गया और चेतावनी दी गई।

2012 में अंतरराष्ट्रीय समुद्री न्यायाधिकरण ने एक फैसले में इस द्वीप पर बांग्लादेश के अधिकार को मान्यता दी। यह द्वीप बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के लिए अहम है और विशेष आर्थिक क्षेत्र में होने की वजह से यह समुद्री व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। (डॉयचेवैले)

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