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इमरान खान ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में चांसलर के लिए आवेदन क्यों किया?
22-Aug-2024 4:17 PM
इमरान खान ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में चांसलर के लिए आवेदन क्यों किया?

-उमर आफरीदी-आजम खान

रावलपिंडी की अडयाला जेल में क़ैद पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के संस्थापक इमरान ख़ान एक नए चुनाव में हिस्सा लेने जा रहे हैं।

यह चुनाव राजनीतिक पद के लिए नहीं बल्कि एक यूनिवर्सिटी के चांसलर का है।

हालांकि ऐसी ख़बरें बहुत पहले से आ रही थीं कि इमरान ख़ान ऑक्सफ़ोर्ड चांसलर के चुनाव में हिस्सा लेने वाले हैं।

औपचारिक तौर पर उनकी ओर से बतौर उम्मीदवार आवेदन निर्धारित समय के आखिऱी दिन 18 अगस्त को जमा करवाया गया। इसकी घोषणा इमरान ख़ान के सलाहकार ज़ुल्फ़ी बुख़ारी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर की।

ज़ुल्फ़ी बुख़ारी के अनुसार, इमरान ख़ान के निर्देशों के अनुसार, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के चांसलर के चुनाव के लिए उनका आवेदन जमा करवा दिया गया है। इस ऐतिहासिक अभियान में हमें आपके समर्थन की ज़रूरत है।

इमरान ख़ान के सलाहकार ज़ुल्फ़ी बुख़ारी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, इमरान ख़ान क्यों न उस चुनाव में हिस्सा लें? यह एक बेहद प्रतिष्ठित पद है।

ज़ुल्फ़ी बुख़ारी का कहना था, वह (इमरान ख़ान) अतीत में ब्रैडफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के चांसलर रह चुके हैं और उन्होंने यह अहम जि़म्मेदारी बड़ी ईमानदारी से निभाई। इसलिए वह इस पद के लिए सबसे ज़्यादा योग्य व्यक्ति हैं।

उनके केस ख़त्म हो रहे हैं। अगर वह चुनाव जीत जाते हैं तो वह इंशाल्लाह दिसंबर तक व्यक्तिगत तौर पर जि़म्मेदारियां संभाल लेंगे।

पीटीआई की ओर से इसकी जानकारी नहीं दी गई है कि इमरान ख़ान के इस फ़ैसले के पीछे मक़सद क्या है लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि अगर इमरान ख़ान चुने जाते हैं तो यह बड़ी बात होगी, जिसका राजनीतिक और कूटनीतिक असर होगा।

इमरान ख़ान का ख़ुद अपना क्या मक़सद हो सकता है और उनके चुने जाने की स्थिति में क्या राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव हो सकते हैं? इन सवालों का जवाब जानने से पहले यह देखते हैं कि यह चुनाव कैसे होता है।

ऑक्सफ़ोर्ड चांसलर कैसे चुने जाते हैं?

इस पद पर कामयाब उम्मीदवारों की नियुक्ति 10 साल के लिए होती है लेकिन यह एक सेरेमोनियल पद है।

इस पद पर कोई तनख़्वाह और भत्ता नहीं मिलता लेकिन चांसलर पर किसी तरह की प्रशासनिक जि़म्मेदारी भी नहीं होती।

हालांकि, यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर की नियुक्ति, महत्वपूर्ण समारोहों की अध्यक्षता, फ़ंड जमा करने और स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व करने में चांसलर की अहम भूमिका है।

वह एक तरह से यूनिवर्सिटी का राजदूत होता है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि ऑक्सफ़ोर्ड चांसलर के लिए ब्रिटेन में रहना ज़रूरी नहीं। हालांकि उसका सभी महत्वपूर्ण समारोहों में शामिल होना ज़रूरी है, जिसके लिए यात्रा भत्ता यूनिवर्सिटी अदा करती है।

नए चुनाव के लिए यूनिवर्सिटी की काउंसिल ‘चांसलर इलेक्शन कमिटी’ बनाती है, जिसका काम नियमों के अनुसार, चुनावी प्रक्रिया आयोजित करना और उसकी निगरानी करना होता है।

यह काउंसिल किसी भी तरह से इस प्रक्रिया को प्रभावित होने की कोशिश नहीं करती।

इमरान ख़ान के लिए इस मुक़ाबले में हिस्सा लेना वोटिंग सिस्टम में एक हालिया संशोधन के बाद संभव हुआ, जिसके अनुसार यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र और स्टाफ़ के मौजूदा और पूर्व सदस्य अब अपना वोट ऑनलाइन दे सकेंगे।

इस प्रक्रिया को कन्वोकेशन कहते हैं। इससे पहले उम्मीदवारों और वोटरों के लिए कन्वोकेशन में व्यक्तिगत तौर पर हाजिऱ होना ज़रूरी हुआ करता था।

यूनिवर्सिटी के अनुसार, अब दुनिया भर से ढाई लाख से अधिक योग्य वोटर चांसलर के चुनाव में हिस्सा ले सकेंगे।

चुनाव में हिस्सा लेने वाले उम्मीदवारों की अंतिम सूची अक्टूबर में प्रकाशित की जाएगी और वोटिंग की प्रक्रिया 28 अक्टूबर से शुरू होगी।

दस से कम उम्मीदवारों की स्थिति में चुनाव का केवल एक दौर में होगा। उम्मीदवारों की संख्या अधिक होने की स्थिति में चुनावी प्रक्रिया का दूसरा राउंड 18 नवंबर को शुरू होगा।

ख़ास बात यह है कि इस चुनाव में अभी पढ़ रहे स्टूडेंट्स, यूनिवर्सिटी कर्मचारी या किसी राजनीतिक पद के उम्मीदवार हिस्सा नहीं ले सकते।

चांसलर क्रिस्टोफऱ फ्ऱांसिस पैटन 2003 से इस पद पर बने हुए थे, जिन्होंने 31 जुलाई को इस्तीफ़ा दे दिया है।

अस्सी साल के लॉर्ड पैटन हॉन्ग कॉन्ग के आखऱिी गवर्नर रहे और उससे पहले ब्रिटेन की कंज़र्वेटिव पार्टी के चेयरमैन भी रह चुके हैं।

ऑक्सफ़ोर्ड के मशहूर पाकिस्तानी स्टूडेंट्स

इमरान ख़ान ने 1972 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के केबल कॉलेज में दाखि़ला लिया और 1975 में राजनीति, दर्शनशास्त्र और अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन की डिग्री ली।

इस दौरान उन्होंने क्रिकेट के मैदान में यूनिवर्सिटी के लिए कई पुरस्कार जीते। उसी दौरान बेनज़ीर भुट्टो भी ऑक्सफ़ोर्ड में शिक्षा प्राप्त कर रही थीं और इमरान ख़ान के अनुसार उनके बीच दोस्ती भी थी।

71 साल के इमरान ख़ान पाकिस्तान की उन पांच शखि़्सयतों में से एक हैं, जिनका जि़क्र ब्रिटेन की इस सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपनी ‘फ़ेमस ऑक्सोनियन्स’ की लिस्ट में शामिल किया है।

दूसरी चार शखि़्सयतों में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ान, पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फिक़़ार अली भुट्टो, उनकी बेटी और पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो और पूर्व राष्ट्रपति फ़ारूक़ अहमद लेग़ारी हैं।

इस लिस्ट में उन मशहूर शखि़्सयतों के नाम शामिल हैं, जिन्होंने यहां से ग्रेजुएशन की या यहां पढ़ाया और किसी न किसी क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय शोहरत हासिल करके अपना नाम हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज करा लिया।

उनमें ब्रिटेन के 28 प्रधानमंत्री, कम से कम 30 अंतरराष्ट्रीय लीडर, 55 नोबेल पुरस्कार विजेता और 120 ओलंपिक मेडल जीतने वाले शामिल हैं।

इमरान ख़ान दिसंबर 2005 से नवंबर 2014 तक ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रैडफ़ोर्ड के चांसलर रहे हैं।

यूनिवर्सिटी की वेबसाइट के अनुसार, अपनी आठ साल की चांसलरशिप के दौरान उन्होंने यूनिवर्सिटी में नए इंस्टीट्यूट ऑफ़ कैंसर थेरैप्यूटिक्स की बुनियाद रखी।

इसके बाद से उस इंस्टीट्यूट और इमरान ख़ान के शौकत ख़ानम मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के बीच नज़दीकी संपर्क रहे हैं।

इमरान ख़ान ने जब इस पद से इस्तीफ़ा दिया तो उस समय यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफ़ेसर ब्रायन कैंटर ने उनकी सेवाओं को सराहते हुए कहा था, वह यूनिवर्सिटी के लिए एक अद्भुत राजदूत और हमारे छात्रों के लिए ज़बर्दस्त रोल मॉडल रहे हैं।’

इमरान ख़ान के लिए यह चुनाव क्यों महत्वपूर्ण है?

इमरान ख़ान के समर्थकों की राय है कि अनुभव, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड से लंबे संबंध, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जनकल्याण के काम और क्रिकेट की दुनिया में शोहरत उन्हें चांसलरशिप का एक मज़बूत उम्मीदवार बनाती है।

पाकिस्तान में राजनीतिक विवाद पर लिखी गई किताब ‘पॉलिटिकल कनफ़्िलक्ट इन पाकिस्तान’ के लेखक प्रोफ़ेसर डॉक्टर मोहम्मद वसीम ने बीबीसी को बताया कि ऑक्सफ़ोर्ड चांसलर एक मानद् पद समझा जाता है जो ऐसे लोगों को दिया जाता है, जो बहुत शोहरत रखते हैं।

उनके अनुसार, इससे पहले इमरान ख़ान एक ब्रिटिश यूनिवर्सिटी के चांसलर रह भी चुके हैं।

डॉक्टर वसीम के अनुसार, इमरान ख़ान के लिए पहले भी दो-तीन बार इस पद के लिए कोशिशें की जा चुकी हैं। इन हालात में अगर इमरान ख़ान को ऑक्सफ़ोर्ड जैसी यूनिवर्सिटी की चांसलरशिप मिल जाती है तो फिर यह उनके लिए बहुत हमदर्दी पैदा करेगी।’

एक सवाल के जवाब में उनका कहना था कि इमरान ख़ान अगर चुन लिए जाते हैं तो फिर किसी भी सरकार के लिए उन्हें रोकना ब्रिटेन विरोधी क़दम माना जाएगा।

डॉ वसीम के अनुसार इमरान ख़ान के लिए बाइज़्ज़त तौर पर यह देश से निकलने का भी एक अच्छा मौक़ा होगा।

पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव शमशाद अहमद ख़ान की राय में अगर पाकिस्तान सरकार ने इमरान ख़ान के चुने जाने के बाद भी उनका रास्ता रोकने की कोशिश की और उन्हें बाहर न जाने दिया तो इससे कूटनीतिक जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।’

हालांकि डॉक्टर वसीम इस राय से सहमत नहीं है। उनके अनुसार पाकिस्तान और ब्रिटेन कभी एक दूसरे के अंदरूनी मामले को लेकर कूटनीतिक संबंधों को प्रभावित नहीं होने देंगे।

उनके अनुसार, इससे पहले अमेरिका और ब्रिटेन में इमरान ख़ान की रिहाई के बारे में प्रस्ताव भी पास हुए हैं मगर उन बातों का कूटनीतिक संबंधों पर असर नहीं पड़ा।’

हालांकि डॉक्टर वसीम इस बात से सहमत हैं कि ब्रिटेन में इमरान ख़ान की अच्छी शोहरत है और वह इस पद की दौड़ के लिए एक अहम उम्मीदवार माने जा रहे हैं।

पाकिस्तान के पूर्व राजदूत अब्दुल बासित ने बीबीसी को बताया, इमरान ख़ान अगर ऑक्सफ़ोर्ड के चांसलर बन जाते हैं तो उनके लिए इस रोल में काम जारी रखना आसान नहीं होगा क्योंकि अभी वह जेल में हैं और कई मुक़दमों का सामना कर रहे हैं।’

कूटनीतिक संबंधों के बारे में उनका कहना था कि ब्रिटेन किसी राजनीतिक नेता की वजह से कूटनीतिक संबंध पर असर नहीं आने देता। उनके अनुसार, सिविल सोसाइटी या जनता की हद तक इमरान ख़ान के पक्ष में सामने आना और बात है।

अब्दुल बासित के अनुसार, अमेरिका और ब्रिटेन समेत पश्चिमी देशों की सरकारों ने इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी और उनके मुक़दमों के बारे में बहुत ध्यान नहीं दिया है।

उनकी राय में, इमरान ख़ान का भी बुनियादी मक़सद यही लगता है कि वह इस तरीक़े से राजनीतिक स्कोरिंग करना चाहते हैं और सबको यह बताना चाहते हैं कि जेल में रहकर भी वह इतने लोकप्रिय हैं कि दुनिया की एक बेहतरीन यूनिवर्सिटी ने उन्हें अपना चांसलर चुना है।’

लेकिन उनके अनुसार, अभी तो यह भी देखना है कि ऑक्सफ़ोर्ड के नियम क़ानून इस बात की इजाज़त देते हैं कि कोई सज़ायाफ़्ता शख़्स इसका चांसलर बन सके। यह अलग बहस है कि सज़ा सही है या ग़लत।’ (bbc.com/hindi)

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