विचार / लेख

जै बाबा ठेलननाथ की
17-Aug-2024 3:21 PM
जै बाबा ठेलननाथ की

-श्रुति कुशवाहा

यूँ तो शास्त्रों में 64 कलाएँ बताई गई हैं..लेकिन समय और तकनीक के साथ इनमें भी विस्तार होता जा रहा है। पिछले कुछ समय में जिस कला ने तेज़ी से अपना स्थान बनाया है वो है ‘ठेलना’।

ठेलना..आधुनिक युग में सोशल मीडिया की एक अद्भुत कला है। इसमें दक्ष होने के लिए कुछ गुण अत्यावश्यक है।

जातक को यदि इस कला में निपुण होना है तो कुछ टिप्स निम्नानुसार हैं:-

 सबसे पहला और अनिवार्य गुण है ‘बेशर्मी’। आपमें ये माद्दा होना चाहिए कि आप बग़ैर संकोच कभी भी किसी के भी इनबॉक्स/मैसेंजर/वाट्सअप पर अपनी ‘तुकबंदी’ ठेल सकें।

आपको ‘मत चूको चौहान’ की तजऱ् पर काम करना है। चाहे दीवाली-होली-ईद-क्रिसमस हो अथवा स्वतंत्रता दिवस। या फिर कहीं बाढ़ आ जाए, आग लग जाए, कोई हादसा हो जाए या ऐसी ही अन्यान्य घटना। आपको अपने भीतर के ‘आशुकवि’ को सदैव सक्रिय रखना है।

यहाँ आपको गीता में श्रीकृष्ण के दिए उपदेश का पालन करना होगा। कर्म करो फल की चिंता मत करो। भले ही सामने वाला महीनों-सालों आपकी ‘ऐतिहासिक तुकबंदी’ को खोले तक नहीं, प्रतिक्रिया न दे, कोई ईमोजी तक न चेंपे..लेकिन आपको अपना कर्म करते जाना है।

 ठेलने के बाद कई बार पुन: स्मरण कराए जाने की आवश्यकता होती है। अत: सामने वाले से अपनी रचना पढऩे/देखने, टिप्पणी करने और शेयर करने का आग्रह करते रहें।

एक अत्यावश्कता बात न भूलें..ष्शठ्ठह्यद्बह्यह्लद्गठ्ठष्4। जैसे आप सुबह उठकर नित्यक्रिया से निवृत्त होते हैं..’ठेलने’ को भी अपनी नित्यक्रिया का हिस्सा ही समझें। इसमें कोई कोताही नहीं होनी चाहिए, अन्यथा आपका हाज़मा खऱाब हो सकता है।

अब आती है बारी आपकी क्रिएटिविटी की। आप कितने रचनात्मक हैं..इसपर ‘ठेलने की कला’ की दक्षता निर्भर करती है।

साढ़े चौदह हज़ार साल पहले लिखी अपनी ‘तुकबंदी’ को नए फॉन्ट में, पोस्टर का रंग बदलकर, अपनी तस्वीर के साथ या तात्कालिक परिस्थितिनुसार उसका उपयोग करना ज़रूरी है। इस तरह आपकी ‘तुकबंदी’ भी ‘कालजयी’ रहेगी और ठेलने की कला में आप धीरे-धीरे निपुण होते जाएँगे।

 ठेलने के लिए परिचय-अपरिचय का बंधन नहीं है। बस आपके पास सामने वाले का नंबर या मैंसेजर में ‘घुसने’ की सुविधा भर होनी चाहिए। इसके बाद आपका ‘परिचय’ आपकी कला स्वयं देगी।

आपने घबराना नहीं है। निराश नहीं होना है। हार नहीं मानना है।

भले लोग आपको ब्लॉक करते जाएँ, देखकर रास्ता बदल लें, मुँह बिचका लें। संभव है कि कुछेक अपशब्द भी सुनने पड़ जाएँ। लेकिन ये सब तो आपकी साधना का हिस्सा है। कला-मार्ग बेहद कठिन है। आपको अपनी जिजीविषा और निरंतरता को बाधित नहीं होने देना है।

इस तरह एक दिन देखेंगे कैसे आप ‘ठेलने’ की कला में सिद्धहस्त हो चुके हैं।

फिर भी अगर कुछ शंका शेष हो तो इस मैसेज को 101 जातकों को ठेलिए। आपका मनोरथ शीघ्र पूर्ण होगा।

जै बाबा ठेलननाथ की

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