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बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी पर लगी पाबंदी हटी, जमात प्रमुख की भारत पर ये टिप्पणी, क्या होगा असर
29-Aug-2024 3:12 PM
बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी पर लगी पाबंदी हटी, जमात प्रमुख की भारत पर ये टिप्पणी, क्या होगा असर

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने बुधवार को जमात-ए-इस्लामी पर लगी पाबंदी हटा ली है।

जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन इस्लामी छात्र शिविर और उसके अन्य संगठनों पर भी लगी पाबंदी हटा दी गई है।

इन संगठनों पर शेख़ हसीना सरकार के दौरान साल 2013 में पाबंदी लगाई गई थी। पिछले साल बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने जमात के चुनाव लडऩे पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के गृह मंत्रालय ने 28 अगस्त को प्रतिबंध हटाने की अधिसूचना जारी की है।

जमात-ए-इस्लामी से पाबंदी हटा लेने के बाद बांग्लादेश की राजनीति में उसके लिए विकल्प खुल गए हैं और देश के चुनावों में वह अपनी भूमिका निभा सकता है।

जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी है। इस पार्टी का छात्र संगठन काफ़ी मज़बूत है। इस पर देश में हिंसा और चरमपंथ को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं।

भारत में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पार्टी पर बांग्लादेश में हिन्दू विरोधी दंगे भडक़ाने का भी आरोप लगा था। जमात-ए-इस्लामी की छवि भारत विरोधी रही है।

साल 1990 में बांग्लादेश में सैन्य शासन ख़त्म होने के बाद जमात-ए-इस्लामी और इसके नेताओं पर युद्ध अपराध के आरोप लगे थे और उन पर मुक़दमा चला था।

साल 2010 में अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्राइब्यूनल ने पार्टी के आठ नेताओं को युद्ध अपराध का दोषी भी पाया था।

जमात ने पहली बार साल 1978 के चुनावों में हिस्सा लिया था। साल 2001 में बेग़म ख़ालिदा जिया के नेतृत्व वाली सरकार में यह पार्टी भी शामिल हुई थी।

गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है, ‘जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश, इसकी छात्र शाखा इस्लामी छात्र शिबिर और संगठन की अन्य सभी सहयोगी इकाइयों का आतंकवाद से कोई संबंध नहीं मिला है।’

‘इसलिए सरकार का मानना है कि जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश, इस्लामी छात्र शिबिर और जमात की अन्य सभी सहयोगी इकाइयां आतंकवादी गतिविधियों में शामिल नहीं हैं।’

जमात प्रमुख ने भारत पर क्या कहा?

समाचार एजेंसी पीटीआई से जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख शफ़ीक़-उर रहमान ने कहा है कि भारत ने अतीत में कुछ ऐसे काम किए हैं जो बांग्लादेश के लोगों को पसंद नहीं आया है।

उन्होंने कहा, ‘मसलन साल 2014 के बांग्लादेश में चुनाव के दौरान एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक ने ढाका का दौरा किया और निर्देश दिया कि चुनावों में किसे भाग लेना चाहिए और किसे नहीं। यह अस्वीकार्य था, क्योंकि यह पड़ोसी देश की भूमिका नहीं है।’

जमात प्रमुख ने कहा, ‘हमारा मानना है कि भारत अंतत: बांग्लादेश के साथ संबंध में अपनी विदेश नीति का पुनर्मूल्यांकन करेगा। हमें लगता है कि एक-दूसरे के आंतरिक मुद्दों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए।’

उन्होंने कहा, ‘मिलकर काम करना और हस्तक्षेप करना दो अलग-अलग बात है। साथ मिलकर काम करना सकारात्मक मायने रखता है जबकि हस्तक्षेप नकारात्मक है। भारत हमारा सबसे कऱीबी पड़ोसी है। हम ज़मीन और समुद्री दोनों सीमाएं साझा करते हैं, इसलिए हमारे बीच अच्छे संबंध होने चाहिए।’

उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी भारत के साथ सौहार्दपूर्ण और स्थिर संबंध चाहती है, लेकिन साथ ही उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत को पड़ोस में अपनी विदेश नीति पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है, द्विपक्षीय संबंधों का मतलब एक-दूसरे के आंतरिक मुद्दों में हस्तक्षेप करना नहीं है। शफ़ीक़-उर रहमान ने बांग्लादेश में हाल ही में आई बाढ़ के हालात और भारत की भूमिका पर भी टिप्पणी की है।

हिन्दुओं पर हमलों के आरोपों को बताया बेबुनियाद

जमात-ए-इस्लामी पर शेख़ हसीना सरकार ने पाबंदी लगाई थी। लेकिन शेख़ हसीना के इसी महीने पाँच अगस्त को देश छोडक़र जाने के बाद से ही ढाका में जमात का दफ़्तर सक्रिय हो चुका था।

जमात के प्रमुख का कहना है कि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना अशांति की वजह से इस्तीफ़ा देकर भारत भागने की जगह क़ानून का सामना करतीं तो बेहतर होता।

रहमान ने स्वीकार किया कि अतीत में जमात-ए-इस्लामी का भारतीय प्रतिष्ठानों के साथ संपर्क था लेकिन पिछले 16 साल में अवामी लीग के शासन के दौरान ये संपर्क कम हो गया।

उनका मानना है कि भारत के साथ प्रभावी संबंध फिर से स्थापित किए जा सकते हैं।

बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी कार्यकर्ताओं के हिन्दुओं पर हमले के आरोपों को रहमान ने बेबुनियाद बताया है।

उन्होंने जमात-ए-इस्लामी के नकारात्मक चित्रण के लिए दुर्भावनापूर्ण मीडिया अभियान को जि़म्मेदार ठहराया है और कहा है, ‘पिछले 15 साल में शेख़ हसीना सरकार के अत्याचारों का सबसे ज़्यादा शिकार होने के बावजूद हम अब भी बचे हुए हैं और जमात को अब भी लोगों का समर्थन हासिल है।’

पाकिस्तान के साथ रिश्तों के बारे में रहमान ने कहा, ‘हम उनके साथ भी अच्छे संबंध चाहते हैं। हम उपमहाद्वीप में अपने सभी पड़ोसियों के साथ समान और संतुलित संबंध चाहते हैं। स्थिरता बनाए रखने के लिए यह संतुलन बहुत ज़रूरी है।’

जमात-ए-इस्लामी भारत विरोधी नहीं

शफ़ीक़-उर रहमान ने कहा, ‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि भारी बारिश के लिए भारत जि़म्मेदार है लेकिन भारत को पानी छोडऩे से पहले हमें सूचित करना चाहिए था ताकि हम स्थिति को बेहतर तरीक़े से संभाल सकें और लोगों की जान बचा सकें।’

‘हमारा मानना है कि यह बांध बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए और पानी को उसके प्राकृतिक रास्ते पर चलने देना चाहिए।’

उनकी यह टिप्पणी ढाका से आई उन रिपोर्टों के बीच आई है, जिनमें बांग्लादेश में आई बाढ़ के लिए भारत को जि़म्मेदार ठहराया गया है।

बांग्लादेश और उससे सटे भारत के कई इलाक़ों में बारिश और बाढ़ से कई लोगों की मौत हो गई है और कऱीब 30 लाख लोग प्रभावित हुए हैं।

इस बाढ़ से राजनीतिक बदलाव के बाद बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।

भारत ने हाल ही में बांग्लादेश में आई उन रिपोर्टों का खंडन किया है, जिनमें कहा गया है कि त्रिपुरा में गुमती नदी पर बांध के खुलने की वजह से बांग्लादेश के कुछ इलाक़ों में बाढ़ आई है। उनका कहना है कि उनकी पार्टी भारत और बांग्लादेश के बीच घनिष्ठ संबंधों का समर्थन करती है, लेकिन बांग्लादेश को अतीत का बोझ पीछे छोडक़र अमेरिका, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ मज़बूत और संतुलित संबंध बनाए रखना चाहिए।

रहमान ने तर्क दिया है कि जमात-ए-इस्लामी को भारत विरोधी मानने की भारत की धारणा ग़लत है और जमात-ए-इस्लामी किसी देश के ख़िलाफ़ नहीं है।

क्या है जमात-ए-इस्लामी संगठन

जमात-ए-इस्लामी की मूल शाखा जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की स्थापना 26 अगस्त 1941 को लाहौर में हुई थी।

यह अविभाजित पाकिस्तान का समर्थक था। उसने साल 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद भी इसके लिए अभियान चलाया था।

डॉ. रहमान ने ढाका में पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि पाकिस्तान के शासन के दौरान हमारा बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था, लेकिन हमारे साथ भेदभाव किया जाता था।

डॉ. रहमान ने स्वीकार किया है कि बांग्लादेश कई धर्मों को मानने वाला देश है।

‘बांग्लादेश मुसलमानों, हिंदुओं, बौद्धों, ईसाइयों और अन्य छोटे धार्मिक समूहों से बना है। मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि हम सभी मिलकर बांग्लादेश बनाते हैं।’ (बाकी पेज 8 पर)

इस बीच बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख़ हसीना और उनकी सरकार में मंत्री रहे सभी लोगों के राजनयिक पासपोर्ट रद्द कर दिए हैं।

शफ़ीक़-उर रहमान ने कहा कि जब भी बांग्लादेश में चुनाव होंगे जमात-ए-इस्लामी उनमें भाग लेगी।

उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि अंतरिम सरकार को समय दिया जाना चाहिए, लेकिन यह अनिश्चितकालीन नहीं होना चाहिए। हम नए चुनावों के समय पर अपनी स्थिति स्पष्ट करेंगे। लेकिन जब भी चुनाव होंगे, हम उसमें भाग लेंगे।’

1978 में जमात ने पहली बार आम चुनाव में हिस्सा लिया। 1986 में देश की संसद में उसके दस उम्मीदवार विजयी रहे।

साल 2001 में पार्टी ने संसद में 18 सीटें हासिल कीं और तीन अन्य दलों के साथ गठबंधन बनाया

इसी साल पार्टी बेगम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेतृत्व में बनी सरकार में शामिल हुई।

जमात पर लगे अहम आरोप

1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पार्टी के कई नेताओं पर लोगों पर अत्याचार के संगीन आरोप लगे।

पार्टी पृथक बांग्लादेश का विरोध कर रही थी क्योंकि उसकी निगाह में ये इस्लाम विरोधी था

1990 में सैन्य शासन के समाप्त होने के बाद पार्टी और उसके नेताओं के ख़िलाफ़ युद्ध अपराध में शामिल होने के आरोप लगे और मुक़दमे चले

मई 2008 में बांग्लादेश पुलिस ने जमात नेता और पूर्व मंत्री मतीउर रहमान को दो अन्य पूर्व मंत्रियों के साथ गिरफ्तार किया

गिरफ़्तार किए गए दो अन्य पूर्व मंत्री थे- अब्दुल मन्नान भुइयां और शम्सुल इस्लाम

साल 2010 में अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्राइब्यूनल ने पार्टी के आठ नेताओं को युद्ध अपराध का दोषी पाया

भारत में बाबरी विध्वंस के बाद पार्टी के नेताओं और छात्र संगठन पर बांग्लादेश में हिन्दू विरोधी दंगे भडक़ाने का भी आरोप है। (bbc.com/hindi)

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