विचार / लेख

राष्ट्र नायक नीरज चोपड़ा
09-Aug-2024 6:39 PM
राष्ट्र नायक नीरज चोपड़ा

- दिलीप कुमार पाठक

नीरज चोपड़ा एक ऐसा नाम जो न जाने कितनी आँखों में ख्वाब देखने की कसक पैदा कर देता है. नीरज एक ऐसा नाम है जो भारत के गांवों से लेकर ग्लोबल स्तर पर जाना जाता है. एक ऐसा एथलीट जिसके जुनून की कहानियां सैकड़ों सालों तक आने वाली पीढ़ियों को सुनाई जाएगीं. 07 अगस्त 2020 को उगते सूरज के मुल्क जापान में जब दिन ढल रहा था तब एक हिन्दुस्तानी लड़का अपने जुनून, अपनी मेहनत के दम पर कभी न भुलाया जाने वाला अध्याय लिख रहा था. उस लड़के ने 87.58 मीटर की दूरी तय की.. इसी दूरी ने भारत एवं गोल्ड मेडल के बीच की खाई पाट दी. 87.58 मीटर की दूरी ने भारत के कई साल पुराने इंतज़ार को खत्म कर दिया था. हरियाणा के पानीपत में एक किसान के घर पैदा होने वाले नीरज बचपन में बहुत मोटे थे. बचपन में 80 किलोग्राम का बच्चा जब कुर्ता - पजामा पहन कर निकलता तो लोग उसके शारीरिक कद को देखकर सरपंच कहकर पुकारते थे. चाचा के कहने पर नीरज पानीपत के स्टेडियम जाने लगे. अपनी शारीरिक स्थिति से निपटने के बाद नीरज कई तरह के खेलों में भाग लेने लगे. स्थानीय कोच के कहने पर नीरज ने भाला फेंकना शुरू किया. पहले ही दिन से नीरज ने भाला फेंकने में अपना भविष्य बनाने की ठान लिया. खुद ही तैयारी करते हुए नीरज के लिए तैयारी करना ख़तरनाक था, अतः अपनी मेहनत से नीरज चोपड़ा ने सूबेदार के रूप में इंडियन आर्मी जॉइन कर लिया, भारतीय सेना ने नीरज को उनके इस ख़ास मुकाम पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. सेना से जुड़ने के बाद नीरज ने उच्च स्तरीय ट्रेनिंग शुरू की, और खुद को अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा के लिए तैयार किया. फिर अचानक दोस्तों के साथ बास्केटबाल खेलते हुए नीरज की कलाई टूट गई, उनके परिजनों को लगा नीरज का एथलेटिक कॅरियर यहीं तक था. हालाँकि सबको गलत साबित करते हुए खुद को तैयार करके नीरज ने ज़बरदस्त वापसी करते हुए 2016- 2018 तक वर्ल्ड जूनियर चैम्पियनशिप, एशियन चैम्पियनशिप, कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर, पूरे विश्व को अपनी प्रतिभा दिखाई. 

कई बार मुश्किल वक़्त से पार पाने के लिए खिलाड़ी को अपनी इच्छाशक्ति से सबकुछ जीतना पड़ता है, और वो वक़्त हर किसी की ज़िन्दगी में आता है. टोक्यो ऑलम्पिक में क्वालीफाई करने के बाद नीरज की कोहनी में चोट लग गई, चोट कितनी गम्भीर थी, इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है. चोट लगने के बाद नीरज को वापसी करने के लिए 16 महीने लग गए, कामयाब होने के बाद उस वक्त को याद करते हुए नीरज ने कहा - "बुरा वक़्त हर खिलाड़ी की ज़िन्दगी में आता है लेकिन मैंने उसे दूसरी तरह से लिया , मैंने सोचा जैसे शेर छलांग लगाने के लिए दो कदम पीछे जाता है, मैंने अपनी ज़िन्दगी में लंबी छलांग लगाने के लिए दो कदम पीछे किए". इसी सोच के चलते नीरज अपने इस मुकाम तक पहुंच सके. मार्च 2019 में 88.07 मीटर भाला फेंककर अपना रिकॉर्ड सुधारा और गोल्ड मेडल के लिए खुद को पँख दिए. 

यूं तो नीरज को पोडियम तक पहुंचाने में कई कोचों की भूमिका रही, लेकिन एक ऐसे कोच भी रहे हैं जिनकी भूमिका अविस्मरणीय है. 'उवे हॉन' जैवलिन थ्रो की दुनिया के बेताज बादशाह जिनका नाम उनकी दुनिया में आदर सहित लिया जाता है. 'उवे हॉन' के रिकॉर्ड उनकी शख्सियत की कहानी कहते हैं. 1983 ऑलम्पिक जैवलिन थ्रो में 104.6 मीटर की दूरी तक जैवलिन थ्रो किया था. इसी के बाद अंतर्राष्ट्रीय ऑलम्पिक संघ ने जैवलिन थ्रो के डिजायन में परिवर्तन किया, क्योंकि इस तरह के जैवलिन थ्रो से दर्शकों को भाला लगने की आशंका हुई थी. जिसके बाद भाले के आकार में परिवर्तन किया गया. 'उवे हॉन' का रिकॉर्ड कभी न टूटने वाला रिकॉर्ड बनकर रह गया, बाद में इस रिकॉर्ड को हटा लिया गया. हालांकि उनके इस रिकॉर्ड के टूटने की गुंजाइश नहीं थी. 'उवे हॉन' जैसे महानतम भाला फेंकने वाले कोच के अनुभव का फायदा मिलना ही था, और वो टोक्यो ऑलम्पिक में दिख भी गया... 

टोक्यो ऑलम्पिक में जब नीरज चोपड़ा भाला फेंकने के लिए दौड़े तो करोड़ों हाथ दुआएं मांगते हुए उठ गए. उस ऑलंपिक में भारत ने कुछ मेडल ज़रूर जीते थे लेकिन किसी ने भी गोल्ड मेडल नहीं जीता था. नीरज ने फ़ाइनल में पहले प्रयास में 87.3 मीटर के थ्रो के बाद दहाड़ लगाकर गोल्ड मेडल पर दावा ठोका. दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर के थ्रो में नीरज ने अपना सबकुछ झोक दिया, और आसमान की ओर देखकर ईश्वर को प्रणाम किया. बचे 11 खिलाडियों ने खूब कोशिश की लेकिन नीरज के करीब भी नहीं पहुंच सके... नीरज का सीधा निशाना गोल्ड पर लगा. सालो बाद भारत ने केवल गोल्ड ही नहीं जीता, बल्कि पूरे भारत ने एक नया सवेरा देखा... जो हर हिन्दुस्तानी की आँखों में नीरज चोपड़ा नाम से चमक रहा था. 

नीरज की अन्य गेम्स में गोल्ड यात्रा निरंतर चलती रही. पेरिस ऑलंपिक में फ़ाइनल तक पहुँचने वाले नीरज से पूरे मुल्क को उम्मीद थी कि इकलौता कोई गोल्ड मेडल ला सकता है तो कोई और नहीं बल्कि नीरज चोपड़ा हैं. उम्मीद के मुताबिक नीरज फ़ाइनल तक पहुंचे लेकिन दूसरे नंबर पर पहुंच कर सिल्वर मेडल लाने में कामयाब हुए... पाकिस्तानी गोल्ड मेडल विजेता अरशद नीरज को अपना हीरो मानते हैं, उन्होंने कई बार कहा है कि मैं नीरज से मार्गदर्शन लेता हूं. इसे ही कहते हैं जीते जी संतृप्त अवस्था प्राप्त कर लेना.. एक बार बुडापेस्ट में आयोजित विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल करने वाले नीरज पोडियम में खड़े थे राष्ट्रगान बज रहा था. पॉज देते नीरज ने देखा पाकिस्तान का पदक विजेता एथलीट संकोच में बिना अपने बिना झंडे के खड़ा है. तब ही नीरज ने पाकिस्तान के एथलीट अरशद को अपने पास बुलाया, और तिरंगे के नीचे खड़ा कर लिया. दोनों ने तिरंगे के साथ तस्वीरे खिचाई. यूं लगा जैसे अरशद इंतज़ार में ही खड़े थे... उस दिन नीरज ने अरशद सहित पूरी दुनिया का दिल जीत लिया था. 

गोल्ड मेडल जीतने के बाद अरशद के पिता ने कहा है - "जब भी खेल प्रतियोगिताओं में अरशद भाग लेने के बाद वापस गांव आते हैं, तो वे पूरे गाँव के लोगों को नीरज की बातेँ ही बताते रहते हैं, लोग नीरज की बातेँ बड़ी चाव से सुनते हैं.. लोग भारतीय एथलीट नीरज की बहुत इज़्ज़त भी करते हैं.

अरशद ने फ़ाइनल से पहले भी कहा था - "अगर मैं जीत भी जाऊँगा तो मैं पोडियम में नीरज के बगल में खड़ा होना चाहूँगा, नीरज जैसे महान एथलीट के बगल में खड़ा होना अपने आप में गर्व की बात है". इससे ही समझा जा सकता है कि नीरज कितने बड़े एथलीट हैं. 

जबकि नीरज की माँ ने सिल्वर मेडल जीतने के बाद अरशद को शुभकामनाएं देते हुए कहा - " सिल्वर मेडल भी गोल्ड के बराबर ही है, इतने बड़े मंच पर खड़ा होना भी अपने आप में बड़ी बात है. गोल्ड जीतने वाले अरशद को शुभकामनाएं वो भी हमारा ही बच्चा है. कोई भी माँ ऐसी ही होती है. नीरज की माँ के उच्च विचार नीरज की शख्सियत में भी देखने को मिलते हैं. 

आज हमारे मुल्क में नीरज चोपड़ा जैसे एथलीट दुर्लभ हैं. नीरज चोपड़ा हमारे हीरो हैं, व्यक्तिगत दो ऑलंपिक मेडल, उसमे एक गोल्ड... ऐसा करने वाले पहले एथलीट हैं.. ओवर ऑल गोल्ड मेडल देखे जाएं तो नीरज ने आठ गोल्ड मेडल समेत दर्जनों पदक जीते हैं. अव्वल रात 10 बजे सो जाता हूँ, लेकिन हीरो को देखने के लिए जगता रहा. नीरज का आत्मविश्वास देखने लायक था, सारे के सारे एथलीट पर नीरज का दबाव दिख रहा था. नीरज ने बड़ी दिलेरी के साथ फ़ाइनल में थ्रो किया. इसलिए ही छह में से चार प्रयास फाउल रहे.. यह बताता है कि नीरज ने कितना रिस्क लिया. ख़ैर नीरज का सिल्वर भी गोल्ड से कम नहीं है. हमारे हीरो नीरज को सलाम...

भारत सरकार उन्हें बड़े सम्मान से सम्मानित करे.. ऐसे नायक भारत में बहुत कम पैदा होते हैं. नीरज का सर्वोच्च सम्मान होने से देश के कोने-कोने के बच्चे ऑलंपिक में जाना चाहेंगे. नीरज को देखने के बाद हिन्दुस्तान में गोल्ड जीतने वाली पीढ़ियां तैयार होंगी.. वैसे भी नीरज की यात्रा किसी भी बच्चे को जानना चाहिए उनका व्यक्तिगत संघर्ष अपने आप में एक मिशाल है. 

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