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ढाका में शेख मुजीब ही नहीं, पूरी दुनिया में तोड़ी गई हैं मूर्तियाँ
21-Aug-2024 3:52 PM
ढाका में शेख मुजीब ही नहीं, पूरी दुनिया में तोड़ी गई हैं मूर्तियाँ

-रेहान फजल

पिछले दिनों बांग्लादेश के संस्थापक शेख़ मुजीब-उर-रहमान की मूर्ति गिराए जाने, उसको जूतों की माला पहनाए जाने की तस्वीरें पूरी दुनिया ने देखी।

ये वही शेख़ मुजीब थे, जिनके नेतृत्व में बांग्लादेश ने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी।

मुजीब की मूर्ति को इस तरह नष्ट किया जाना काफ़ी चौंकाने वाला था क्योंकि बंगबंधु कहे जाने वाले शेख़ मुजीब को बांग्लादेश का राष्ट्रपिता माना जाता है।

लेकिन दुनिया में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब लोगों ने उन नेताओं की मूर्तियों को निशाना बनाया हो, जिन्हें किसी ज़माने में उन्होंने सिर-आँखों पर बैठाया था।

बग़दाद में सद्दाम हुसैन की मूर्ति गिराई गई

2003 में जब अमेरिकी टैंक बग़दाद में घुसे थे और उन्होंने सद्दाम हुसैन की सरकार को सत्ता से बेदखल किया था, तब चारों तरफ़ खुशी का माहौल था।

इराकी लोगों ने फिऱदौस स्कवायर में सद्दाम हुसैन की एक बड़ी प्रतिमा को गिराने की कोशिश की थी।

लेकिन जब उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिली तो वहाँ पहुंचे अमेरिकी सैनिकों ने इसमें उनकी मदद की थी।

सद्दाम की 12 मीटर ऊँची ये प्रतिमा अप्रैल, 2002 में बनाई गई थी। अमेरिकी सैनिकों ने सद्दाम की मूर्ति की गर्दन में लोहे की ज़ंजीर बाँध कर उसे एम 88 बख़्तरबंद गाड़ी से खींचा था।

मूर्ति गिरते ही इराकी लोगों ने उसके टुकड़े जमा कर जूतों से पीटते हुए बग़दाद की सडक़ों पर घुमाया था। इस दृश्य को दुनिया के सभी टीवी चैनलों पर लाइव दिखाया गया था। इसको सद्दाम हुसैन की सत्ता समाप्त होने के प्रतीक के तौर पर दिखाया गया था।

इसकी तुलना 1956 की हंगरी में हुई क्रांति के प्रयास से की गई थी, जब वहाँ स्टालिन की मूर्ति को तोड़ा गया था।

कर्नल गद्दाफी की मूर्ति का सिर तोड़ा गया

इसी तरह सन् 2011 में लीबिया के तानाशाह कर्नल ग़द्दाफ़ी के ख़िलाफ़ विद्रोह के दौरान लोगों ने त्रिपोली में बाब अल अज़ीज़ीया कंपाउंड में घुसकर ग़द्दाफ़ी की मूर्ति का सिर तोड़ कर उसे पैरों से रौंद डाला था।

23 अगस्त को कंपाउंड के गार्ड्स ने विद्रोहियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।

गद्दाफ़ी के मारे जाने के बाद ये कंपाउंड एक तरह का पर्यटक स्थल बन गया और हज़ारों लोग इसे देखने आने लगे।

यूक्रेन में लेनिन की मूर्ति को किया गया जमींदोज

28 सितंबर, 2014 में यूक्रेन में खारकीव में लगभग पाँच हज़ार प्रदर्शनकारियों ने रूसी क्रांतिकारी नेता व्लादिमीर लेनिन की मूर्ति को हथौड़ों से पीटकर ज़मींदोज कर दिया था। इस पूरी प्रक्रिया में चार घंटे लगे थे। ये मूर्ति 1963 में बनाई गई थी और इसको एलेक्ज़ेडर सिदोरेंको ने डिज़ाइन किया था।

मूर्ति गिराए जाने के बाद लोगों ने इसके टुकड़े याद के तौर पर जमा करने शुरू कर दिए थे।

वहाँ पर उन्होंने यूक्रेन का झंडा फहरा दिया था। इसके बाद पूरे देश में लेनिन की मूर्तियों को गिराने का सिलसिला शुरू हो गया था।

केजीबी के संस्थापक ज़ेरजि़स्की की मूर्ति हटाई गई

इसी तरह जब 1991 में रूस में राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव को अपदस्थ करने के प्रयास विफल हो जाने के बाद मॉस्को के लुब्याँका स्कवॉयर पर सोवियत संघ की पहली गुप्त पुलिस चेका के संस्थापक फ़ेलिक्स ज़ेरजि़सकी की मूर्ति को हटा दिया गया था।

केजीबी का पुराना नाम ‘चेका’ था और उस पर हज़ारों लोगों के अपहरण करने, उन्हें यातना देने और जान से मारने के आरोप थे।

22 अगस्त, 1991 की शाम को हज़ारों लोग लुब्यांका स्कवायर पर केजीबी के भवन के सामने इक_ा हो गए।

उन्होंने ज़ेरजि़सकी की मूर्ति पर ‘हत्यारा’ शब्द लिख दिया। मूर्ति पर चढ़ कर उन्होंने उसे रस्सियों से बाँध दिया। उनका इरादा उसे ट्रक से खींच कर गिराने का था।

लेकिन उससे बगल के लुब्यांका मेट्रो स्टेशन की इमारत को खतरा पैदा हो गया।

तब मॉस्को सिटी काउंसिल के उपाध्यक्ष सरजेई स्टानकेविच ने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा था कि वो स्वयं मूर्ति को हटाने का बीड़ा उठाते हैं। इसके बाद इस मूर्ति को क्रेन की मदद से वहाँ से हटाकर ‘फॉलेन मौनुमेंट पार्क’ में रख दिया गया।

जॉर्ज तृतीय की लोहे की मूर्तियाँ तोड़ कर गोलियाँ बनाई गईं

अमेरिका की आज़ादी की लड़ाई के दौरान न्यूयॉर्क में ब्रिटेन के राजा जॉर्ज तृतीय की लोहे की मूर्ति भी गिराई गई थी। इसको आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे अमरीकियों ने ब्रिटिश अत्याचार का प्रतीक माना था।

बाद में इस मूर्ति को पिघला कर 42000 गोलियाँ बनाई गई थीं और उनका इस्तेमाल ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ किया गया था।

ब्रिटेन के वफादार कुछ लोगों ने उस मूर्ति के कुछ हिस्सों को बचाने के लिए उन्हें ज़मीन में गाड़ दिया था। आज भी उस मूर्ति के कुछ अवशेष खुदाई में कभी-कभी बाहर निकलते हैं।

मुसोलिनी का मूर्तियों का भी बुरा हश्र

सन् 1945 में जब इटली के तानाशाह मुसोलिनी का पतन हुआ तो उन्हें, उनके कुछ समर्थकों और उनकी गर्लफ्रेंड क्लारा पिटाची को गोली मार दी गई। उनके शवों को एक वैन में रखकर मिलान ले जाया गया, जहाँ एक खंभे से उल्टा लटका दिया गया।

इसके बाद कई महीनों तक मुसोलिनी और तानाशाही की प्रतीक स्मारकों, भवनों और मूर्तियों को ध्वस्त किया जाता रहा।

जॉर्ज पंचम की मूर्ति इंडिया गेट से हटाई गई

भारत जब 1947 में आज़ाद हुआ तो दिल्ली की कई जगहों पर अंग्रेज़ शासन से जुड़े लोगों की मूर्तियाँ थीं। उनमें से कुछ मूर्तियों को ब्रिटेन को वापस भेज दिया गया और कुछ को उत्तरी दिल्ली स्थित कोरोनेशन पार्क में स्थानांतरित कर दिया गया।

हटाई गई मूर्तियों में सबसे प्रमुख थी इंडिया गेट पर लगी जॉर्ज पंचम की 70 फ़ीट ऊँची मूर्ति।

1968 तक वो मूर्ति अपने पहले वाले स्थान पर मौजूद रही लेकिन फिर ये सोचा गया कि दिल्ली के इतने प्रमुख स्थान पर उस मूर्ति के रहने का कोई औचित्य नहीं है।

मूर्ति को नष्ट नहीं किया गया बल्कि उस स्थान पर रखा गया, जहाँ 1911 में उन्होंने दिल्ली दरबार में शिरकत की थी।

जॉर्ज पंचम की मूर्ति इंडिया गेट के पास जिस जगह पर कभी हुआ करती थी, उस जगह साल 2022 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित की गई।

हेती के तानाशाह डुवैलियर की मूर्ति भी तोड़ी गई

सन् 1971 में जब हेती के तानाशाह फ्राँसुआ डुवैलियर का निधन हुआ तो उन्हें काला कोट पहना कर शीशे के टॉप वाले ताबूत में दफऩाया गया।

उनके शव को पहले राष्ट्रीय क़ब्रगाह में दफऩाया गया और फिर वहाँ से स्थानांतरित कर उनके बेटे के बनाए ग्रैनडियोस म्यूजिय़म में दफऩाया गया।

मरने से पहले उन्होंने अपने 19 वर्षीय बेटे ज्यां क्लाउड डुवैलियर को उत्तराधिकारी घोषित किया था। जब 1986 में उनके बेटे का तख़्ता पलटा गया तो डुवैलियर की मूर्ति और समाधि को नाराज़ भीड़ ने तहस-नहस कर दिया।

जब उनकी क़ब्र खोदी गई तो उसमें डुवैलियर का ताबूत ग़ायब था। न्यूयॉर्क टाइम्स में ख़बर छपी कि देश छोडऩे से पहले उनके बेटे ने अपने पिता का ताबूत उखाड़ कर दूसरी जगह रखवा दिया था।

इथोपिया की राजधानी आदिस अबाबा में वहाँ की नगरपालिका के गैरेज में रूसी नेता लेनिन की मूर्ति पीठ के बल लेटी हुई है। उसके चारों तरफ़ मकड़ी के अनगिनत जाले और पेट्रोल के ख़ाली पीपे रखे हुए हैं।

बहुत कम लोग उस मूर्ति को देखने आते हैं और जो आते भी हैं, उनको वहाँ मौजूद कर्मचारी आगाह करते हैं कि लेनिन को जगाया न जाए।

लेनिन की मूर्ति न सिर्फ बड़ी है बल्कि भारी है। इसको नीचे गिराना काफी मशक्कत का काम था। रस्सियाँ उस मूर्ति को हिला तक नहीं सकी थीं, इसलिए उसे अपने स्थान से हटाने के लिए मशीनों का इस्तेमाल किया गया था।

नवंबर, 1989 में बर्लिन दीवार गिरने के बाद दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लेनिन की मूर्तियों को बार-बार ढहाया गया है। इसी तरह अल्बानिया में 40 सालों तक देश का नियंत्रण करने वाले एनवर होक्सा की कई मूर्तियों को भी ज़मींदोज़ किया गया था।

(bbc.com/hindi)

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