विचार / लेख

नज़ीर के कृष्ण हम सबके हैं !
26-Aug-2024 4:33 PM
नज़ीर के कृष्ण हम सबके हैं !
-अशोक पांडे

करीब ढाई सौ बरस पहले आगरे के ताजगंज में रहने वाले दिग्गज शायर नज़ीर अकबराबादी ने कृष्ण के जन्म का वर्णन यूं किया है –
फिर आया वां एक वक़्त ऐसा जो आये गरभ में मनमोहन
गोपाल, मनोहर, मुरलीधर, श्रीकिशन, किशोरन कंवल नयन
घनश्याम, मुरारी, बनवारी, गिरधारी, सुन्दर स्याम बरन
प्रभुनाथ, बिहारी, कान्ह लला, सुखदाई जग के दुःख भंजन
जब साअत परगट होने की, वां आई मुकुट धरैया की
अब आगे बात जनम की है, जै बोलो किशन कन्हैया की
था नेक महीना भादों का, और दिन बुध, गिनती आठन की
फिर आधी रात हुई जिस दम और हुआ नछत्तर रोहिनी भी
सुभ साअत नेक महूरत से, वां जनमे आकर किशन जभी
उस मन्दिर की अंधियारी में, जो और उजाली आन भरी

नज़ीर के यहाँ कृष्ण भक्ति के मीठे रस की सदानीरा बहती है. एक नज़्म में वे श्रीकृष्ण से यूं मुखातिब होते हैं -
कहता नज़ीर तेरे जो दासों का दास है
दिन रात उसको तेरे ही चरनों की आस है

यूं उनके रचनाकर्म में गणेश जी भी आते हैं और भैरों भी, गुरु नानक जी भी और हरि भी, लेकिन कृष्ण के प्रति उनका अनुराग किसी स्फटिक की ठोस पारदर्शी चमक जैसा जादुई है. नज़ीर अकबराबादी के काव्य में कृष्ण का जीवनवृत्त कितने ही विवरणों और रूप-सरूपों में नज़र आता है और वे घोषणा करते हैं -
दिलदार गवालों बालों का, और सारे दुनियादारों का
सूरत में नबी, सीरत में खुदा या सल्ले अला
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
हे कृष्ण कन्हैया नन्द लला, अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी

भक्ति से सराबोर उनके काव्य का जो हिस्सा कृष्ण की बाल-लीलाओं को समर्पित है, उसकी ज़ुबान का संगीत और निश्छल-निर्बाध पोयटिक प्रवाह मिल कर नज़ीर को हमारी पूरी सांकृतिक विरासत के एक बड़े प्रतिनिधि के तौर पर स्थापित करते हैं.
यूँ बालपन तो होता है हर तिफ़्ल का भला
पर उनके बालपन में तो कुछ और भेद था
इस भेद की भला जी, किसी को ख़बर है क्या
क्या जाने अपने खेलने आए थे क्या कला
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन

एक कविता उनके ब्याह को लेकर है, एक उनके बचपन के खेलों के बारे में. एक में नज़ीर बताते हैं कि नरसी मेहता के मन में कृष्ण की लगन कैसे उपजी तो एक में कृष्ण और सुदामा की विख्यात कथा का दिलचस्प बयान है.

हर जन्माष्टमी को मुझे बाबा नज़ीर की पुरानी किताब निकाल कर उनके कृष्ण-काव्य में डूब जाना होता है -
सब ब्रज बासिन के हिरदै में आनंद खुशी उस दम छाई
उस रोज़ उन्होंने ये भी नज़ीर इक लीला अपनी दिखलाई
ये लीला है उस नन्द ललन मन मोहन जसुमति छैया की
रख ध्यान सुनो दंडौत करो, जै बोलो किशन कन्हैया की
नज़ीर के कृष्ण हम सब के हैं!

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