विचार / लेख

अमेरिका के चुनाव
14-Aug-2024 3:14 PM
अमेरिका के चुनाव

-डॉ. आर.के. पालीवाल

ट्रंप शुरू से रिपब्लिकन पार्टी के इकलौते उम्मीदवार हैं जिन्होंने बहुत जोर शोर से चुनाव प्रचार शुरू किया था। उनके साथ दो बड़ी घटनाएं भी घटी। पहले उन्हें पिछले चुनाव में अनैतिक आचरण के कारण दोषी पाए जाने पर उनकी उम्मीदवारी निरस्त होती दिखी लेकिन इस मामले में अपील में वे मुक्त हो गए। दूसरी घटना उन पर जानलेवा हमले की हुई जिससे उनके लिए सहानुभूति पैदा हुई। वे अपने विरोधी डेमोक्रेट और वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन से काफी आगे निकलते दिखाई देने लगे थे। जो बाइडेन के बारे में पिछले कई महीनों से ऐसी खबरें आ रही थी जो उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को ठीक नहीं बता रही थी, हालांकि बाइडेन ने इनका खंडन करते हुए कहा था कि ये विरोधियों द्वारा फैलाई जा रही अफवाह हैं। एक नाटकीय घटनाक्रम में अचानक जो बाइडेन ने राष्ट्रपति चुनाव से अपनी उम्मीदवारी वापस लेकर अपनी डेप्युटी कमला हैरिस का नाम आगे कर ट्रंप के सामने कड़ी चुनौती पैदा कर दी है। पहले ना ना करते करते बाइडेन ने अंतत: अपनी हार भांपते हुए पार्टी हित में यह तय कर लिया कि ट्रंप को तगड़ी टक्कर देने के लिए किसी अन्य नेता को सामने लाना होगा। उन्होंने यह कहते हुए अपनी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस का नाम आगे बढ़ाया है कि युवा पीढी को नेतृत्व सौंपना ही सर्वश्रेष्ठ है। बाइडेन और उनकी पार्टी का यह दांव ट्रंप के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है। अभी तक ट्रंप जो बाइडेन की नीतियों और एंटी इनकंबेंसी फैक्टर पर चुनाव प्रचार केंद्रित कर रहे थे। अब कमला हैरिस के मैदान में आने पर ट्रंप को अपनी रणनीति नए सिरे से तैयार करनी पड़ेगी।

कमला हैरिस के साथ कुछ सकारात्मक फैक्टर हैं। वह महिला हैं, अश्वेत हैं और इमिग्रेंट परिवार से आती हैं। उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में उतरने वाली पहली अश्वेत महिला होने का गौरव प्राप्त है। उनके सामने ट्रंप को ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी । ट्रंप का इतिहास कई विवादों से घिरा रहा है। वे आपराधिक और विवादित मामलो में फंसते रहे हैं थे। इसके बरक्स कमला हैरिस तेजतरार अटॉर्नी रही हैं। वे कुशल वकील की तरह तर्कों के साथ ट्रंप को घेर सकती हैं। ट्रंप राष्ट्रीयता को उभारने में माहिर कलाकार हैं उन्होंने ईसाइयत को भी मुद्दा बनाया है।

वे बुजुर्ग जो बाइडेन की भुलक्कड़ प्रवृत्ति पर तंज कसते रहे हैं , अब उन्हें युवा हैरिस की काट के लिए नए तीर खोजने पड़ेंगे। कुल मिलाकर अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव रोमांचक मैच की तरह आगे बढ़ रहा है।बहरहाल अमेरिका विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र है जो पिछली एक सदी से निरंतर विकसित होता रहा है और नई नई सफलताओं के झंडे गाड़ते हुए मुसलसल आधुनिक विकास के शिखर पर सवार है। इस लिहाज से भारत जैसे विकसित होते लोकतंत्र को अपने बड़े भाई से काफी कुछ सीखने को मिल सकता है, मसलन जिस तरह से जो बाइडेन ने पार्टी हित में दूसरे कार्यकाल का लालच छोड़ते हुए अपनी पार्टी की युवा नेता को आगे कर दिया है, वैसा त्याग हमारे राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं को भी करना चाहिए जहां पचहत्तर पार वाले भी पार्टी हित में पीछे हटने के बजाय विद्रोह कर दल-बदल तक करने को तैयार रहते हैं।

अमेरिका का दूर का इतिहास भले ही क्रूर रहा है जिसमें श्वेत मालिकों ने अश्वेतों के साथ बहुत अन्याय और हिंसा की है लेकिन उसने अपनी गलतियों से काफी कुछ सीखा भी है। उन्होंने जर्मनी से निकाले गए यहूदियों को फलने-फूलने के अवसर दिए हैं जिन्होंने वर्तमान अमेरिका को विश्व का आर्थिक और वैज्ञानिक सिरमौर बनाया है।

इसी तरह अमेरिका ने भारत के उच्च शिक्षित वर्ग को भी फलने फूलने के खूब अवसर दिए हैं जिसने हमारी आरक्षण व्यवस्था और लाल फीताशाही के मकडज़ाल से परेशान होकर अमेरिका का रुख किया है। अमेरिका के बरक्स हमारे नेता वोटों की घटिया राजनीती के लिए धर्म और जातियों के पुराने झगड़ों को सुलझाने की बजाय बुरी तरह उलझाकर देश के विकास में नई नई बाधा खड़ी कर रहे हैं। काश वे अमेरिका से लोकतंत्र को विकसित करने की कला सीख सकें।

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