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अस्पतालों में महिला स्टाफ की परेशानी-कभी नशे में धुत लोग, कभी रात में बढ़ता खौफ
14-Aug-2024 3:12 PM
अस्पतालों में महिला स्टाफ की परेशानी-कभी नशे में धुत लोग, कभी रात में बढ़ता खौफ

हैदराबाद के उस्मानिया मेडिकल कॉलेज में भी डॉक्टरों ने सोमवार रात प्रदर्शन किया.

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में रात की शिफ़्ट में द्वितीय वर्ष की एक मेडिकल स्टूडेंट के साथ रेप और फिर हत्या के बाद पूरे देश में डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों का विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है।

दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और अन्य शहरों के अस्पतालों के डॉक्टरों ने कहा है कि जबतक रेप और मर्डर मामले में जांच पूरी नहीं हो जाती वो काम पर नहीं लौटेंगे।

उन्होंने इस मामले की एक विस्तृत और निष्पक्ष जांच की मांग की है।

साथ ही कार्यस्थल पर स्वास्थ्यकर्मियों, ख़ासकर महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय क़ानून बनाए जाने की मांग भी रखी है।

मेडिकल जर्नल लैंसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘साल 2007 से 2019 के बीच भारत में स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसक हमलों के 153 मामले दर्ज किए गए।’

रेप के खिलाफ, विरोध प्रदर्शन

इसमें कहा गया है, ‘इनसिक्योरिटी इनसाइट (ढ्ढढ्ढ) के साथ भारत में स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा की हमारी सक्रिय निगरानी में 2020 में 225 और 2021 में 110 मामले पता चले हैं। इनमें ज़मीनी स्तर के स्वास्थ्यकर्मियों से लेकर अस्पतालों में जूनियर डॉक्टर पर हुई हिंसा भी शामिल हैं।’

इस रिपोर्ट में 2020 के उस केंद्रीय कानून, एपिडेमिक डिजीज (अमेंडमेंट) का हवाला भी दिया गया है जिसमें स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा को दंडनीय बनाया गया है।

अस्पतालों में रात की पाली में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के डर और सुरक्षा की चिंताओं को समझने के लिए बीबीसी रिपोर्टरों ने भारत के कुछ शीर्ष और प्रतिष्ठित सरकारी अस्पतालों का दौरा किया।

दिल्ली: ‘अक्सर हमें मरीजों के नशे में

धुत साथियों से निपटना पड़ता है...’

लोकनायक अस्पताल, जीबी पंत अस्पताल और लेडी हार्डिंग कॉलेज दिल्ली के केंद्र में मौजूद तीन शीर्ष अस्पताल हैं। पहले के दो अस्पताल दिल्ली सरकार के अंतर्गत आते हैं जबकि तीसरा अस्पताल केंद्र संचालित है।

लोकनायक अस्पताल में प्रवेश द्वार पर मेटल डिटेक्टर लगे हैं, लेकिन वे चालू हालत में नहीं हैं।

एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने शिकायत की, ‘कोई भी वहां से बेरोकटोक गुजर सकता है।’

इन तीनों अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ है, लेकिन डॉक्टर और अधिक कैमरा चाहते हैं।

लोकनायक अस्पताल के एक वरिष्ठ रेजिड़ेंट डॉक्टर का आरोप है कि ‘इन कैमरों की कोई निगरानी नहीं करता।’

लोकनायक अस्पताल में काम करने वाली एक नर्स ने कहा कि डॉक्टर और नर्सों को मरीज़ों के परिवारों की धमकी का डर रहता है, ‘हमें अक्सर रात में नशे में धुत्त मरीजों के साथ आने वालों से निपटना पड़ता है।’

लोकनायक अस्पताल में पोस्ट ग्रेजुएट कर रहे प्रथम वर्ष के छात्र ने कहा, ‘अस्पताल के कुछ हिस्सों में रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है। अस्पताल के परिसर में मरीजों के साथ आए लोग फ़र्श पर सोते हैं।’

इन तीनों ही अस्पतालों में रात में सिक्योरिटी बहुत नाम मात्र की रहती है। जब मैं अंदर गया तो किसी ने भी मुझे चेक नहीं किया। दो गायनेकोलॉजी इमर्जेंसी वार्डों में महिला गार्डों ने वहां आने का मकसद जरूर पूछा लेकिन और कोई सवाल नहीं किए।

राज घाट के पास स्थित जीबी पंत अस्पताल में काम करने वाली एक नर्स ने कहा, ‘हमें और बेहतर सिक्योरिटी की ज़रूरत है, शायद बाउंसर की भी, जो मरीजों के साथ आने वाले उपद्रवी लोगों से निपट सकें।’

दो महिला डॉक्टरों ने कहा कि लोक नायक अस्पताल में 24 घंटे कैंटीन की सुविधा है लेकिन वहां जाने में उन्हें असुरक्षित महसूस होता है।

एक वरिष्ठ रेजिड़ेंट डॉक्टर ने कहा, ‘मैं अकसर ऑनलाइन खाना मंगाती हूं।’

लेडी हार्डिंग कॉलेज के एक सीनियर रेजिड़ेंट डॉक्टर ने कहा कि रात में मेडिकल जांच का मतलब है कि परिसर में दूर स्थित प्रयोगशालाओं तक पैदल जाना।

लेडी हार्डिंग कॉलेज में एक इंटर्न ने जोड़ा, ‘कभी कभी एक महिला डॉक्टर को मरीज़ों की जांच के लिए वार्ड में भेजा जाता है, जहां अधिकांश पुरुष होते हैं। इसे बंद करना चाहिए।’

डॉक्टरों ने रात की पाली में काम करने वालों के लिए गंदे और असुरक्षित रेस्ट रूम की भी शिकायत की।

लोक नायक अस्पताल के गायनीकोलॉजी इमर्जेंसी वार्ड की एक डॉक्टर ने कहा, ‘हमें बेहतर कमरे चाहिए।’

लेडी हार्डिंग कॉलेज की एक इंटर्न ने कहा कि कुछ विभागों में, महिला और पुरुष डॉक्टरों के लिए कॉमन रूम होते हैं।

इस मामले में प्रशासन से हमने बात करने की कोशिश की और उनके जवाब का इंतजार है।

लखनऊ: ‘बाहरी लोग बेरोक टोक आ सकते हैं’

मैं जब किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) गया तो वहां मुख्य द्वार पर दो गार्ड तैनात मिले लेकिन वहां आने जाने को लेकर कोई रोक नहीं थी।

मेडिसिन डिपार्टमेंट के मरीज वार्ड में दो पुरुष और महिला गार्ड मौजूद थे।

वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर नीता ने शिकायत की कि मरीज़ों के साथ आने वाले ड्यूटी डॉक्टरों से बुरा बर्ताव करते हैं।

उन्होंने कहा, ‘इन हालात में, हम सिक्योरिटी को बुलाते हैं, जो शायद ही कुछ करते हैं। आखऱिकार हमें ही हालात से निपटना पड़ता है।’

हॉस्टल के हिस्से में रोशनी की पूरी व्यवस्था नहीं है और कई जगह अंधेरा रहता है।

एमबीबीएस के अंतिम वर्ष की छात्रा डॉ. हर्षिता और डॉ. नीतू ने कहा कि वे अक्सर अजनबी लोगों को घूमते और फब्तियां कसते देखती हैं। प्रशासन को प्रवेश और निकास द्वार पर रोक लगानी चाहिए।

डॉ. हर्षिता ने कहा कि पिछले कुछ महीनों से गश्त बढ़ी है, इसलिए कैंपस थोड़ा सुरक्षित लग रहा है।

डॉक्टरों ने कहा कि गर्ल्स हॉस्टल के ठीक सामने ट्रॉमा सेंटर के बाहर महिलाओं के साथ छेडख़ानी की घटनाएं होती रही हैं।

डॉ. आकांक्षा चाहती हैं कि परिसर में अधिक गार्ड्स, अधिक रोशनी और सीसीटीवी कैमरा होने चाहिए।

अधिकारियों का का क्या कहना है?

केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने कहा, ‘हमारे पास कैंपस, हॉस्टल और वार्डों में पर्याप्त सुरक्षा तंत्र है। हमारे पास प्रोक्टोरियल टीम और हॉस्टल में एक टीम है। वार्डों में सुरक्षा गॉर्ड हैं। कैंपस में हमें अभी तक किसी तरह की घटना की रिपोर्ट नहीं मिली है। विशाखा गाइडलाइन का पूरी तरह पालन किया जाता है। प्रमुख जगहों पर सीसीटीवी लगाए गए हैं और उनकी नियमित निगरानी की जाती है।’

चेन्नई: ‘आराम के लिए कोई कमरा नहीं’

चेन्नई के बिल्कुल केंद्र में वालाजा रोड पर ओमानदुरार गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज स्थित है। यहां मैं रात 9.30 बजे कैंपस में अपनी गाड़ी पार्क करने पहुंची तो एक गार्ड पूछताछ करने आया।

एडमिशन ब्लॉक के बाहर मद्धिम रोशनी में खुली सीढिय़ों पर मरीजों के परिजन बैठे हुए थे। इमरजेंसी के प्रवेश द्वार पर दो पुलिसकर्मी खड़े थे।

रात की पाली में काम करने वाली एक इंटर्न अबर्ना ने कहा कि कोलकाता की घटना ने महिला स्टाफ के अंदर डर पैदा कर दिया है। इसीलिए अस्पताल प्रशासन ने सुरक्षा चिंताओं पर बात करने के लिए एक मीटिंग बुलाई थी।

इंटर्न को स्टाफ रूम इस्तेमाल करने के लिए कहा गया और कमरे को लॉक करने के निर्देश दिए गए।

उन्हें सिटी पुलिस ऐप कवालान को इस्तेमाल करने की सलाह दी गई ताकि वे इमर्जेंसी अलार्म भेज सकें, लेकिन उन्हें लगता है कि ‘कभी भी कुछ भी घटित हो सकता है।’

डॉक्टरों की सुरक्षा की मांग करने के लिए आयोजित प्रदर्शन में हिस्सा ले चुकीं अबर्ना ने कहा, ‘वार्ड में इंटरकॉम की सुविधा और इमर्जेंसी बटन से मदद मिलेगी।’

राज्य का सबसे शीर्ष अस्पताल ओमानदुरार मल्टी स्पेशलियटी अस्पताल में रात के 10 बजे काम कर रही एक स्टाफ नर्स ने आराम करने के लिए कोई कमरा न होने की शिकायत की। रात की पाली में काम करने वालों को एक कुर्सी और एक लंबी डेस्क मिलती है। उन्होंने कहा कि एक पुलिस पोस्ट कुछ ही दूरी पर है और उनके पास पुलिस के फोन नंबर हैं।

प्रशासन का क्या कहना?

ओमानदुरार मेडिकल कॉलेज हॉस्पीटल के डीन डॉ। ए अरविंद ने कहा, ‘लेक्चर हॉल के दो निकास द्वार हैं, जहां अब पहरा लगाया गया है। कैंपस में सीसीटीवी की संख्या बढ़ाई जा रही है। कैंपस में 20 सुरक्षाकर्मी रात की पाली में तैनात हैं। असिस्टेंट रेजिड़ेंट मेडिकल ऑफि़सर किसी भी तात्कालिक परिस्थिति को हैंडल करने के लिए 24 घंटे कैंपस में मौजूद हैं।’

हैदराबाद: ‘मैं सुरक्षित महसूस नहीं करती’

कोलकाता मामले में इंसाफ़ देने की मांग लिए हैदराबाद के उस्मानिया मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

मैं सोमवार को रात में 11.40 से 12.50 बजे के बीच कैंपस में गया था और नाइट ड्यूटी कर रहीं महिला स्टाफ से बात की।

प्रदर्शन के दौरान मौजूद एक इंटर्न डॉ. हरिनी ने कहा, ‘हमें असुरक्षित महसूस होता है। कैंपस में कुछ जगहें ऐसी हैं जो सुरक्षित नहीं हैं।’ उन्होंने कहा, ‘रात में काम करते हुए हमें एक विभाग की इमारत से दूसरी इमारत में जाना पड़ता है। इन इमारतों और उनके रास्ते में न तो कोई गार्ड होता है और ना ही कोई अन्य सुरक्षा के इंतज़ाम हैं।’

अस्पताल से पीजी हॉस्टल के बीच सडक़ पर पर्याप्त रोशनी का इंतज़ाम न होने को लेकर लोगों में नाख़ुशी है। एक महिला डॉक्टर ने पुरुष और महिला डॉक्टरों के लिए अलग अलग आराम कमरे न होने की भी शिकायत की।

उन्होंने कहा, ‘महिला और पुरुष डॉक्टरों के बिस्तर अगल बगल लगे हुए हैं। मैं इससे सहज नहीं हूं और सुरक्षित भी नहीं लगता। इसलिए रात में मैं पास ही अपने हॉस्टल चली जाती हूं।’

‘एक बार मैं तडक़े अपनी बाइक से हॉस्टल जा रही थी तो कुछ लडक़ों ने पीछा किया। यह बहुत डरावना था।’

हमने कैज़ुअल्टी वार्ड के बाहर पुलिस देखा। इसके अलावा हर प्रवेश द्वार पर कई निजी सुरक्षा गॉर्ड तैनात थे।

प्रशासन के जवाब का इंतज़ार है। आने पर अपडेट किया जाएगा।

चंडीगढ़: ‘जब हमला हुआ तो कोई सिक्योरिटी नहीं थी’

रेजिड़ेंट डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने से पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च की सेवाओं पर असर पड़ा है।

मैं कैंपस में रात के करीब 11 बजे गया था। दो सिक्योरिटी गार्ड ट्रॉमा सेंटर के गेट के बाहर मरीज़ों और अन्य लोगों से सवाल कर रहे थे।

प्रवेश द्वार पर चंडीगढ़ पुलिस संचालित एक हेल्प सेंटर है। वहीं, महिला ऑफिसर भी तैनात हैं।

वार्ड के अंदर नर्स, डॉक्टर और प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड मौजूद थे। ट्रॉमा सेंटर के पास एक बैनर लगाया गया था, जिस पर लिखा था कि ‘हमें न्याय चाहिए।’

बेंगलुरु की रहने वाली और पीजीआई में काम कर रहीं डॉक्टर पूजा ने कहा, ‘परिसर शहरों की तुलना में यहां अधिक सुरक्षा व्यवस्था है।’

उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता भी काफ़ी चिंतित हैं क्योंकि कई बार मरीज़ों के परिजनों ने डॉक्टरों पर हमला किया।’

वहीं, मोहाली के सरकारी अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर गगनदीप सिंह ने कहा, ‘सुरक्षा पर्याप्त नहीं है।’

उन्होंने एक घटना का जि़क्र करते हुए कहा, ‘छह अगस्त को एक मरीज़ के परिवार ने पटियाला के पास एक बाल रोग विशेषज्ञ पर हमला किया था। इसको लेकर पुलिस में मामला भी दर्ज हुआ है। उस समय अस्पताल में कोई सिक्योरिटी नहीं थी।’

इसके जवाब में पीजीआई के ज्वाइंट मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉक्टर पंकज अरोड़ा ने बीबीसी से कहा कि अस्पताल में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था और सीसीटीवी है।

उन्होंने कहा कि ‘डॉक्टरों की कोई शिकायत है तो उसका समाधान किया जाएगा।’

अहमदाबाद: ‘डॉक्टरों के कमरे में सीसीटीवी नही’

रानी अहमदाबाद में स्थित सिविल अस्पताल में काम करती हैं।

उन्होंने बताया, ‘हम पीजी हॉस्टल से अस्पताल तक रात की शिफ्ट के लिए पैदल जाते हैं। सडक़ पर पर्याप्त स्ट्रीट लाइट नहीं है। साथ ही सडक़ पर भी सुरक्षा नहीं है।’

उन्होंने कहा,‘हमने अस्पताल के प्रशासन से सुरक्षा का इंतजाम करने को कहा है। क्योंकि हम 24 घंटे शिफ्ट करते हैं। नाइट शिफ्ट में महिला डॉक्टर अक्सर वार्ड में बने डॉक्टर रूम में आराम करती हैं।’

एक अन्य महिला डॉक्टर ने बताया कि कई बार मरीज़ों के परिजन रूम में आ जाते हैं और बदतमीजी करते हैं। रूम में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं।

सिविल अस्पताल का सबसे महत्वपूर्ण वार्ड यानी ट्रॉमा सेंटर के बाहर आठ सिक्योरिटी गार्ड मौजूद थे, लेकिन वार्ड में रात में आने वाले लोगों से वो कोई सवाल नहीं करते।

मैं एक वार्ड में प्रवेश किया और फिर दूसरे वार्ड में गई, लेकिन किसी ने कोई सवाल नहीं पूछा।

सिविल अस्पताल के एडिशनल सुपरिटेंडेंट डॉक्टर रजनीश पटेल ने बीबीसी को बताया कि अस्पताल में ‘सुरक्षा व्यवस्था मजबूत’ है।

उन्होंने कहा कि ‘जूनियर डॉक्टरों के एसोसिएशन ने लाइट का मुद्दा उठाया था और हमने इसको लेकर काम शुरू कर दिया है।’

मुंबई: ‘कभी कभी मदद के लिए कोई नहीं होता’

एक महिला डॉक्टर ने कहा कि कभी-कभी हमारे आस-पास हमारी मदद के लिए कोई मौजदू नहीं होता है।

सोमवार को देर शाम जेजे अस्पताल के प्रवेश पर सिक्योरिटी गार्ड मौजूद थे। हम अस्पताल के कैंपस में जा सकते थे, लेकिन बिना अनुमति मेडिकल वार्ड में नहीं जा सकते।

हालांकि, महिला डॉक्टर और नर्स ने कहा कि उन्हें नाइट शिफ्ट में काम करने के दौरान सुरक्षित महसूस नहीं होता है।

रेजिडेंट डॉक्टर अदिति कनाडे ने कहा, ‘प्रशासन को मेडिकल वार्ड और कैंपस के बाहर सिक्योरिटी गार्ड की संख्या बढ़ानी चाहिए। अस्पताल का कैंपस बड़ा है और कई इलाक़े में लाइट नहीं है। ऐसे में मुझे रात में हॉस्टल से मेडिकल वार्ड तक जाने में डर लगता है।’

उन्होंने आगे कहा, ‘एक बार मृतक मरीज़ के परिजन गुस्सा हो गए थे। मामला इतना बढ़ गया था कि इसे शांत करने के लिए कर्मचारियों को रूम बदलना पड़ा था।’

अदिति कनाडे ने बताया, ‘कई रूम और कॉरिडोर में सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा है। हर जगह सीसीटीवी होना चाहिए। ऑपरेशन थिएटर के पास महिला डॉक्टरों के लिए अलग से कमरा होना चाहिए है, लेकिन ऐसा नहीं है।’

नर्स हेमलता गजबे ने भी पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं होने की शिकायत की।

उन्होंने कहा, ‘मरीज़ के परिजन कभी-कभी अपशब्द बोलते हैं और कई नशे की हालत में होते हैं तो कई लोग राजनीतिक दबाव डालने की भी कोशिश करते हैं। कभी-कभी किसी घटना की स्थिति में हमारी मदद करने के लिए आसपास कोई नहीं होता है।’

इसको लेकर जेजे अस्पताल की डीन पल्लवी सापले से सवाल किया गया लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा है।

(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित) (bbc.com/hindi)

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