कोरिया
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बैकुंठपुर, (कोरिया) 31 जुलाई। वर्षों से काबिज भूमि पर बनाये गये झोपड़ी एवं पास में ही ठेला लगाकर विभिन्न तरह का व्यवसाय करने वाले को गत दिवस बिना सूचना दिये झोपड़ी को तोड़ दिया गया तथा ठेला को भी जेसीबी की सहायता से हटा दिया गया, जिससे पीडि़तों को बड़ी आर्थिक क्षति पहुंची। एकतरफा बिना सूचना दिये वर्षों से काबिज झोपड़ी को हटाये जाने को लेकर दोषियों पर कार्रवाई करने की मांग को लेकर पीडि़तों ने कलेक्टर कोरिया को शिकायत पत्र सौंपकर मुआवजे की मांग की।
भरतपुर तहसील अंतर्गत ग्राम मुर्किल निवासी पीडि़त पुरूषोत्तम सिंह, सुरेंद्र सिंह, महेंद्र प्रताप सिंह, बलराम सिंह, श्यामनारायण सिंह, निवासी मुर्किल तहसील भरतपुर ने कलेक्टर कोरिया को शिकायत देकर बताया कि ग्राम मुर्किल में विगत 45-50 वर्षों से सरकारी भूमि पर सडक़ किनारे कब्जा कर झोपड़ी बनाया गया था, जिसमें उनके द्वारा गाय, बैल, भैंस बांधने का काम किया जा रहा था। इसके साथ ही पास में ही सडक़ के दूसरी ओर ठेला बनाकर रखा गया था, जिसमें पीडि़तों के द्वारा विभिन्न तरह के व्यवसाय कर अपने परिवार का पालन पोषण किया जा रहा था। इसी बीच गत दिवस ग्राम पंचायत सचिव, रोजगार सहायक तथा जनपद पंचायत के इंजीनियर आये और पीडि़तों को इसके पूर्व किसी प्रकार की सूचना दिये बिना ही जब पीडि़त लोग सभी अपने खेतों में काम करने गये थे, तब जेसीबी की सहायता से उनकी वर्षों से काबिज भूमि में बनाये गये झोपड़ी तथा ठेले को तोड़ दिया गया, जिससे उन्हें बड़ी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी। पीडि़तों ने यह भी आरोप लगााया कि उनके कब्जे की भूमि के बगल में ही रोजगार राहायक के चाचा व अन्य के द्वारा भी कब्जा कर मकान बनाया गया जिसको नहीं तोड़ा गया। इस मामले में पीडि़तों ने दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए हुई आर्थिक क्षति की भरपाई करने की मांग की।
हजारों रूपये की हुई आर्थिक क्षति
पीडि़तों ने कलेक्टर कोरिया को सौंपे गये अपने शिकायत में उल्लेख किया है कि बिना पूर्व सूचना व समय दिये बिना ही अवैध कब्जा बताकर जिन लोगों की झोपड़ी तोड़ी गयी, उन्हें बड़ी आर्थिक क्षति भी उठाना पड़ा। शिकायत में उल्लेख किया गया है कि झोपड़ी व ठेला तोड़े जाने से पुरूषोत्तम सिंह को 50 हजार, सुरेंद्र कुमार सिंह को 55 हजार, महेंद्र प्रताप सिंह को 20 हजार, बलराम सिंह को 30 हजार, श्यामनारायण सिंह को 20 हजार रूपये की क्षति हुई। सभी पीडि़त गोड आदिवासी परिवार के हैं।