कोरिया

अनूठी स्पर्धा: केकड़ा-मछली पकडऩे की होड़, गिलहरी, खरगोश और जंगली मुर्गे ने लगाई दौड़
20-Mar-2022 7:46 PM
अनूठी स्पर्धा: केकड़ा-मछली पकडऩे की होड़, गिलहरी, खरगोश और जंगली मुर्गे ने लगाई दौड़

रंजीत सिंह
मनेन्द्रगढ़, 20 मार्च (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)।
होली पर जहां शहरी क्षेत्रों में आमजन अपने मनोरंजन और उत्साह के लिए कई प्रकार के आयोजन करते हैं, जिनमें भारी-भरकम राशि खर्च होती हैं वहीं दूसरी ओर ग्रामीण अंचलों में आज भी ऐसी परंपराएं हैं जिनके माध्यम से ग्रामीण अपना मनोरंजन करते हैं। ऐसे आयोजनों में न बड़ा तामझाम होता है और न ज्यादा खर्च, अगर कुछ होता है तो लोगों का उत्साह उमंग और मस्ती का वह मंजर जिसमें ग्रामीण अपनी सुध-बुध खोकर उत्साह में सराबोर दिखाई देते हैं।

कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड से लगभग 35 किलोमीटर ग्राम पंचायत ताराबहरा के आश्रित ग्राम बैरागी की पहचान होली के दो दिन बाद होने वाले एक विशेष आयोजन को लेकर पूरे प्रदेश में बनी हुई है। यह अनूठी प्रतियोगिता न केवल छत्तीसगढ़ वरन् पूरे भारतवर्ष में अपनी तरह की एकमात्र ऐसी प्रतियोगिता है, जिसमें पानी के अंदर जहां मछली और केकड़ा पकडऩे प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है, वहीं खुले में जंगली खरगोश, गिलहरी और मुर्गे की रोमांचक दौड़ होती है, जिसे देखने आसपास के कई गांवों के लोग काफी संख्या में एकत्रित होते हैं।

 प्रतियोगिता में दर्शकों के लिए न तो कोई शुल्क होती है और न तो किसी प्रकार का सहयोग भी उनसे लिया जाता है। बीते कई दशकों से होने वाली इस अनूठी प्रतियोगिता को देखने लोगों के उत्साह का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि होली के बाद इस प्रतियोगिता की तैयारी में पूरे गांव के लोग 2 समूहों में बंटकर जंगल और नदी की ओर चल देते हैं। इनमें से एक समूह पुरूषों का होता है, जिसमें बच्चे भी शामिल होते हैं।

वहीं दूसरे समूह में महिलाएं और युवतियां शामिल होती हैं। पुरूष जंगल में जाकर जंगली खरगोश और गिलहरी ढूंढते हैं, वहीं महिलाएं नदियों में जाकर केकड़ा और मछली पकड़ती हैं और फिर दूसरे दिन मुकाबले की तैयारी शुरू होती है।

प्रतियोगिता की शुरूआत में ग्रामीण तयशुदा स्थान पर एक बड़ा घेरा बनाते हैं। इस घेरे में गांव के पुरूष और खिलाड़ी महिलाएं शामिल होती हैं। सीटी बजने के साथ ही गांव के पुरूष वर्ग के लोग हाथ में पकडक़र रखे खरगोश को छोड़ते हैं, जिन्हें पकडऩे के लिए महिलाओं का समूह इनके पीछे जंगल की ओर भागता है।

इस खेल के पीछे मान्यता है कि अगर महिलाएं पुरूषों द्वारा छोड़े गए खरगोश को पकड़ लेती हैं तो गांव में वर्ष भर अकाल नहीं पड़ेगा, वहीं अगर महिलाएं पकडऩे में सफल नहीं हुईं तो उन्हें अर्थदण्ड भी लगाया जाता है जिससे मिलने वाली राशि का सामूहिक भोज में उपयोग किया जाता है।
 
महिलाओं के बाद पुरूषों और बच्चों के लिए प्रतियोगिता शुरू होती हैं, जिसमें गांव के लोगों द्वारा पॉलीथिन लगाकर एक छोटा तालाब बनाया जाता है जिसमें गांव की महिलाएं जो नदियों से मछली और केकड़ा पकडक़र लाती हैं, उसे छोड़ा जाता है। इस प्रतियोगिता में निर्णायक द्वारा सीटी बजाने के साथ ही पॉलीथिन से निर्मित कृत्रिम तालाब से मछलियां और केकड़ा पकडऩा होता है, जो सबसे अधिक केकड़ा और मछली पकड़ता है, उसे विजयी घोषित किया जाता है।

 प्रतियोगिता में भाग लेने वाले खिलाडिय़ों और ग्रामीणों के लिए बैरागी गांव के लोगों द्वारा रात में सामूहिक भोज का आयोजन किया गया, जिसमें सभी तबके के लोग उत्साहपूर्ण वातावरण में शामिल हुए। इस परम्परा को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि बीते कई दशकों से गांव में यह अनूठी प्रतियोगिता आयोजित होती चली आ रही है। इसमें उनका एक रूपए भी खर्च नहीं होता। गांव के लोग अपनी तरफ से पूरी व्यवस्था करते हैं।

अनूठे ओलंपिक में महिलाओं ने बाजी मारी
जंगल से पकडक़र लाए गए गिलहरी, मुर्गा और खरगोश को पकडऩे के लिए इस बार अनूठे ओलंपिक में महिलाओं ने श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। कैलशिया (55) ने जहां जंगल की ओर तेजी से भागे गिलहरी को पकडऩे में सफलता हासिल की, वहीं 60 वर्षीया बसपतिया ने उम्र को पीछे छोड़ते हुए खेत की सरपट भाग रहे जंगली मुर्गा को दौडक़र पकड़ा।

गिलहरी और मुर्गा पकडऩे में नारी शक्ति के श्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद ताराबहरा की सरपंच बिलशिया भला कहां पीछे रहने वाली थीं, उन्होंने सबसे अधिक मछली और केकड़ा पकडक़र जीत दर्ज की। महिलाओं के श्रेष्ठ प्रदर्शन पर अनूठे ओलंपिक को कवर करने पहुंचे मीडिया कर्मियों ने पुरस्कार स्वरूप नगद राशि देकर उन्हें सम्मानित किया।

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