कोरिया

जलवायु परिवर्तन : बढ़ती गर्मी से विलुप्त होते जंगली फल
18-Apr-2022 12:37 PM
जलवायु परिवर्तन : बढ़ती गर्मी से विलुप्त होते जंगली फल

  कोरिया के जगलों में पाए जाने वाले फलों की पैदावार में आ रही है कमी  

चंद्रकांत पारगीर

बैकुंठपुर (कोरिया), 18 अप्रैल (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)।  कोरिया जिले के जंगलों में लगने वाले फलों की पैदावार में लगातार गिरावट देखी जा रही है। साथ ही इन फलों के पेड़ विभिन्न बीमािरयों से ग्रसित होकर विलुप्त होते जा रहे हंै। इसका प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है, इस वर्ष पड़ रही भीषण गर्मी के साथ बीते वर्ष बेमौसम बारिश ने काफी कुछ बदल कर रख दिया है।

कोरिया जिले में स्थित जंगलों से ग्रामीण मौसम के अनुसार लघु वनोवज एकत्रित करते हंै, इनसे उन्हें आर्थिक तौर पर काफी मजबूती भी मिलती आ रही है। ज्यादातर वनोपज गर्मी के मौसम में एकत्रित की जाती है और इस मौसम में वनोपज के मिलने की मात्रा भी ज्यादा होती है। परन्तु बीते कुछ वर्षों से गर्मी के मौसम में बढ़ रही गर्मी से जंगलों में मिलने वाले फलों के साथ पेड़ों की कई प्रजातियों में काफी कमी देखी जा रही है। जंगल में फलों की लगातार कमी होने से शाकाहारी जानवरों की भूख नहीं मिट रही है। ग्रामीण इन्हें फल मानते आ रहे हैं।

कोरिया जिले में ऐसे स्थान जो घने वनों से अच्छादित हंै, वहां बारिश दूसरे स्थानों के मुकाबले ज्यादा होती है, परन्तु गर्मी एक जैसी पड़ रही है। अप्रैल की शुरूआत से ही अधिकतम तापमान 40 डिग्री पर था तो अब 15 अप्रैल तक बढक़र 42 से 43 डिग्री पर आ चुका है। बीता मार्च का माह भी पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले काफी गर्म रहा है।

जंगली फलों की पैदावार घटी
कोरिया के जंगलों में हर वर्ष गर्मी के मौसम में फलने वाला तेंदू का फल पेड़ों पर काफी कम मात्रा में देखा जा रहा हैं, पूर्व में इससे पेड़ लदे हुए होते थे, तेंदू भी अब एक साल छोडक़र फसल देने लगा है, जबकि ऐसा पहले नहीं होता था। जंगल के इस फल से शाकाहरी जानवरों को पेट भी भरता था, ग्रामीणों की माने तो इस वर्ष बीते कई वर्षो के मुकाबले काफी कम मात्रा में तेंदू का फल की पैदावार देखी जा रही है। यही हाल महुआ की फसल को लेकर हुआ है। बीते वर्ष के मुकाबले इस वर्ष महुआ की फसल काफी कम हुई है।

नष्ट होता आंवला
एक समय हुआ करता था कोरिया के जंगल बड़े-बड़े साइज के आंवले के लिए जाना जाता था, परन्तु अब धीरे-धीरे बड़ा आंवला खत्म हो चुका है, अब इसकी चलिटी भी घट गई है, फल का आकार कम होने के साथ खाने पर ज्यादा कसैला हो चुका है, ज्यादातर आंवले के पेड़ों ने फल देना बंद कर दिया है, इनमें एक विशेष प्रकार की बीमारी हो रही है, जिससे क्रमश उनके अंग धीरे-धीरे सूखते जा रहे हंै, अंतत: आंवले के पेड़ नष्ट हो जा रहे हंै।

चार (चिरौंजी) में काफी कमी
आज से 30 वर्ष पूर्व अविभाजित सरगुजा के समय यहां जंगलों से ग्रामीण काफी मात्रा में चार से चिरौंजी निकाल कर लाते, चिरौंजी के बदले नमक लेकर जाया करते थे। समय बदला और अब धीरे-धीरे जलवायु परिवर्तन का असर इस पर भी दिखने लगा। अब बढ़ती गर्मी के कारण इसका अस्तित्व खत्म होने लगा है। चार के पेड़ भी अब काफी कम हो गए हैं। जंगल में एक्का-दुक्का पेड़ नजर आ जाए तो काफी बड़ी बात होती है। इनको अब पेड़ से तोडक़र खाने तक के लाले पडऩे लगे हंैै।

भेलवा पेड़ की छाया से लगता है डर
कोरिया के जंगलों में पाया जाने वाला भेलवा फल हर किसी के शरीर के अनुकुल नहीं रहता है। मीठा लगने वाले इस फल के पेड़ की छाया से कई लोगों को परेशानी हो जाती है। चार की तरह यह भी विलुप्ति की कगार पर है। इसे जंगली काजू कहते है। इस पेड़ की छाया का भी प्रभाव होता है। इस फल के खाने कई लोगों को अलग-अलग तरह की एलर्जी हो जाती है, गर्मी के मौसम में भेलवा खाने से बीमार होने के मामले जिला अस्पताल पहुंचते हैं। परन्तु अब इस फल की पैदावार काफी कम हो रही है। जंगली जानवर इस फल के खासे शौकीन होते हंै। ऐसा ही हाल महोया फल का है।

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