कोरिया

झोपड़ी टूटी, बरसों से हाट बाजार के दुकान में निवास
23-Aug-2022 7:42 PM
झोपड़ी टूटी, बरसों से हाट बाजार के दुकान में निवास

0 साल से 2 बच्चे लापता, एक बेटी दिव्यांग, बेहद गरीबी में परिवार का गुजर बसर कर रहा बुधराम

चंद्रकांत पारगीर

बैकुंठपुर (कोरिया), 23 अगस्त (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता )। सरकार की तमाम योजनाओं के बाद भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो सरकारी योजनाओं की पहुंच से दूर है और ऐसे लोग अपने हाल पर गरीबी में जीवन यापन करने को मजबूर हैं। जनप्रतिनिधियों का भी ऐसे लोगों पर नजर नहीं पड़ती है, जिस कारण सरकारी योजनाओं का लाभ ऐसे लाचार व गरीब लोगों को नहीं मिल पा रही है। आज भी समाज के कई लोग सरकारी योजनाओं से दूर बेहद गरीबी में परिवार का गुजर बसर कर रहे हंै। इसी तरह का हाल कोरिया जिले के कटकोना कॉलरी में एक ग्रामीण को अपने हाल में जीवन गुजर करते हुए देखा गया।

जानकारी के अनुसार कटकोना में रहने वाले बुधराम अपने परिवार के साथ रहता है। इसके दो संतान (एक बेटी-एक बेटा) 10 साल से लापता है जिनका कोई अता पता अब तक नहीं चल सका है। 

इस संबंध में ग्रामीण बुधराम का कहना है कि आस-पास पता लगाया, लेकिन पता नहीं चला। अब कहां जाये पता लगाने। बुधराम अपने परिवार के साथ रहता है, जिनमें माता मालादेवी, पत्नी के साथ एक पुत्री हैं, जो कि दिव्यांग है। ऐसे में उनकी जिंदगी और भी ज्यादा कठिन हो गया है। स्थानीय जन प्रतिनिधियों की भी उस पर नजर नहीं पड़ी है।

बरसों से हाट बाजार के दुकान में निवास
ग्रामीण के नाम अटल आवास भी नहीं स्वीकृत हुई है। जिसके कारण वह एक छोटी झोपड़ी बनाकर रहा करता था, कुछ वर्ष पूर्व उसकी झोपड़ी  टूट गई, तब से हाट बाजार के तहत बनी  दुकान को ही अपना निवास बनाया है। इसी स्थल पर अपने परिवार के साथ बुधराम वर्षों से जीवन गुजार रहा है। इतने वर्षों में भी यहां के जनप्रतिनिधियों की नजर इसकी दयनीय हालत पर नहीं जा पायी है। लकडिय़ोंं से घर में खाना पकाया जाता है और तंग जगह पर अपने परिवार के साथ किसी तरह जिंदगी का हर दिन बिता रहा है।

मिलता है राशन
कटकोना के बुधराम को ग्राम पंचायत से राशन मिलता है। इसके अलावा उसकी दिव्यांग पुत्री के लिए सायकिल भी दी गई है। परन्तु दिव्यांग बेटी को ही पेंशन मिल रही है। बेहद गरीबी में जीवन बसर कर रहे इस परिवार के लिए बुधराम किसी तरह से अपनी परिवार की गाड़ी को खींच रहा है।  अब तक इसके दयनीय दशा की और न तो अधिकारी का ही ध्यान जा पाया और न ही स्थानीय किसी जनप्रतिनिधि की ही नजर पड़ी।
 

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