राजपथ - जनपथ
इतना गोपनीय दौरा !
क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के सचिव जय शाह पिछले महीने रायपुर आए थे, और यहां से सपरिवार सीधे कान्हा किसली रवाना हो गए। जय केंद्रीय मंत्री अमित शाह के बेटे हैं। उनके आने की सूचना छत्तीसगढ़ क्रिकेट बोर्ड के सिर्फ एक पदाधिकारी को ही थी। उन्होंने ही जय के कान्हा किसली यात्रा का इंतजाम किया था।
बताते हैं कि पदाधिकारी को जय का दौरा गोपनीय रखने की हिदायत दी गई थी। जय तीन दिन कान्हा किसली में रूके, और फिर लौटकर रायपुर से दिल्ली चले गए। भाजपा के लोगों को जय के दौरे की भनक नहीं लग पाई। उन्हें कुछ दिनों बाद इसकी जानकारी मिल पाई। भाजपाई जय के स्वागत में पलक पॉवड़े बिछाने का मौका चूक गए।
एसपी, कौन, कहाँ, क्यों ?
पिछले दिनों 7 जिलों के एसपी बदल गए। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा राजनांदगांव एसपी संतोष सिंह के कोरबा तबादले की हो रही है। संतोष 6 महीने पहले ही रायगढ़ से राजनांदगांव आए थे। सुनते हैं कि उस वक्त उनकी इच्छा कोरबा में काम करने की थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अब उनकी मन माफिक पोस्टिंग हुई है। दूसरी तरफ, कोरबा में बेहतर रिजल्ट देने के बाद भी एसपी भोजराज पटेल को अपेक्षाकृत अच्छी पोस्टिंग नहीं मिल पाई है। उन्हें महासमुंद एसपी बनाया गया है। चर्चा है कि वो इस पोस्टिंग से नाखुश हैं, और इसी वजह से अपने फेयरवेल में भी शामिल नहीं हुए। हालांकि सरकार के लोगों का कहना है कि बॉर्डर का जिला होने और नक्सलियों की बढ़ती घुसपैठ की वजह से महासमुंद जिला अब चुनौतीपूर्ण हो गया है। इस वजह से भोजराज पटेल जैसे काबिल अफसर को भेजा गया है।
फिर आमने-सामने होंगे?
विधानसभा चुनाव में अभी डेढ़ साल बाकी है। लेकिन भाजपा में टिकट के दावेदारों में खींचतान चल रही है। रायपुर उत्तर से पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी की स्वाभाविक दावेदारी है, लेकिन इस बार उन्हें अपने ही समाज के चेंबर अध्यक्ष अमर पारवानी से चुनौती मिल सकती है।
पारवानी का नाम पिछले बार भी पैनल में था, और कई बड़े भाजपा नेता श्रीचंद की जगह पारवानी को ही प्रत्याशी बनाने के पक्ष में थे। विधानसभा चुनाव के बाद श्रीचंद के विरोध के बाद भी चेम्बर चुनाव में पारवानी ने भारी वोटों से जीत हासिल की, तो उन्हें भाजपा से टिकट का मजबूत दावेदार समझा जाने लगा है। अब इसका असर यह हो रहा है कि दोनों के बीच बोलचाल बंद हो गई है। श्रीचंद और पारवानी आमना-सामना करने से बचते हैं। प्रत्याशी तय होने के पहले ही दोनों के रिश्तों में खटास आ गई है।
एक अलग सरकारी स्कूल..
सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के बदहाल स्तर पर लगातार हंगामा मचा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे उदाहरण धारणा को बदलने के लिए सामने भी आ जाते हैं। जांजगीर जिले के पंतोरा स्थित सरकारी प्राइमरी स्कूल में पहली से लेकर पांचवी तक 5-5 बच्चों का चयन किया गया है। यह कुछ-कुछ बिहार में चल रहे आनंद कुमार के सुपर थर्टी की तरह है। ये बच्चे अंग्रेजी में भी 50 तक का पहाड़ा पढ़ लेते हैं, हिंदी की तो बात ही छोड़ दें। पांचवी के बच्चों को देश के सभी राज्यों की राजधानी के नाम मालूम हैं। सामान्य ज्ञान, ड्राइंग, पेंटिंग, खेलकूद, कंप्यूटर और शत-प्रतिशत हाजिरी, यह सब इन बच्चों की गतिविधियों में शामिल हैं। प्रत्येक क्लास से बच्चों का चयन उनकी प्रतिभा का आकलन करने के बाद किया गया। इनकी गतिविधियों से जब लगा कि इन्हें ठीक तरह से तराशा जा सकता है तब इन्हें प्रोत्साहित करने की ठानी गई। इसका असर स्कूल के दूसरे छात्रों में भी दिखाई दे रहा है। इस योजना को चलाने वाले स्कूल के प्रभारी प्रधान पाठक को मुख्यमंत्री गौरव अलंकरण से सम्मानित भी किया जा चुका है।
बैगलेस नहीं रहा शनिवार
सरकारी स्कूलों में शनिवार को बैगलेस डे घोषित किया गया है। इस दिन बच्चे बिना बस्ते के स्कूल जाएंगे। वे शनिवार को पढ़ेंगे नहीं। खेलकूद, व्यायाम तथा सांस्कृतिक गतिविधियों में वक्त बिताएंगे। मगर दिखा है पिछले शनिवार को बच्चे रोज की तरह बैग लेकर ही स्कूल पहुंचे। यह रायपुर, बिलासपुर से लेकर रायगढ़, जशपुर तक के अनेक स्कूलों में देखने को मिला। प्राचार्यों का कहना है कि राज्य सरकार का आदेश नहीं पहुंचा है। अब जब मंत्रालय से कोई भी आदेश निकलते ही तत्काल वायरल होने लग जाता है तब सरकारी आदेश की रफ्तार इतनी धीमी क्यों हो जाती है, यह सोचने की बात है। बच्चे तो खूब खेलना, गीत-संगीत नृत्य करना चाहेंगे, पर क्या शिक्षक उन्हें सिखाने के लिए तैयार हैं?