राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : साख बचाने की चुनौती
19-Oct-2022 4:09 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : साख बचाने की चुनौती

साख बचाने की चुनौती

छत्तीसगढ़ में ईडी की कार्रवाई से आखिर में जाकर बरसों बाद चाहे जिसे सजा मिले या न मिले, सच को सजा तो अभी से मिल रही है। हर घंटे कुछ न कुछ नई अफवाह सोशल मीडिया और वॉट्सऐप पर तैरने लगती है, जिसके दावे करने वाले लोग हिम्मती माने जाते हंै, और जिन पर शक करने वाले सरकार के या अफसरों के हिमायती मान लिए जाते हैं। हर कुछ घंटों में कहीं पर छापे, किसी की गिरफ्तारी, किसी के सरकारी गवाह बन जाने, और किन्हीं लोगों के बीच कोई समझौता हो जाने के दावे सामने आते हैं, और इनमें से अधिकतर फर्जी भी साबित होते हैं। ईडी हो, या इंकम टैक्स, ऐसी किसी भी एजेंसी को अपनी कार्रवाई चलते हुए हर दिन एक तय समय पर ताजा जानकारी लोगों के सामने रखना चाहिए ताकि अफवाहें जोर न पकड़ें। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि एजेंसियां ऐसी धुंध पसंद करती हैं, और वे सोच-समझकर अफवाहों पर चुप रहती हैं। बाजार में किसी एजेंसी के किसी सरकार को लिखी हुई चि_ी के चुनिंदा हिस्से फैलते हैं, दोनों ही पक्ष न इसे गलत बताते हैं, और न ही सही बताते हैं। नतीजा यह होता है कि पैदा हुई अफवाहोंं से सच को सजा मिलती रहती है। किसी भी तरह के जंग के मोर्चे पर पहली शहादत सच की ही होती है, आज केन्द्र सरकार की एजेंसियों, और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच जो खुली जंग चल रही है, उसमें भी यही हुआ है, दोनों ही तरफ से कुछ कहा नहीं जा रहा है, और यह चुप्पियां अफवाहों के लिए एक उपजाऊ जमीन साबित होती हैं।

आज भी सुबह से कुछ जाने-माने लोगों ने बस्तर के आधा दर्जन जिलों में सीआरपीएफ के साथ ईडी की छापामार टीमों के पहुंचने की बात पोस्ट की, लेकिन कई घंटों के बाद तक किसी को ऐसी टीमें नहीं दिखीं। बस्तर के पत्रकारों को भी तमाम चौकन्नेपन के बाद ही ऐसा कुछ नहीं दिखा, तो इसके बाद पत्रकारों के बीच ऐसी ‘खबरें’ जल्द ही मजाक का सामान बन गईं। यह मौका जिस तरह नेताओं और अफसरों के लिए अपनी साख बचाने का है, उसी तरह मीडिया, खासकर अखबारनवीसों के लिए भी अपनी साख बचाने का है। कौएं के पीछे दौडऩे के पहले रिपोर्टर अपने कान टटोल लें तो बाद में अपना लिखा हुआ मिटाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

भाजपा में आते हैं, तो कैसा रहेगा?

सरकार के मंत्री टीएस सिंहदेव के राजनीतिक पैंतरेबाजी पर भाजपा की नजर है।  सिंहदेव कई दफा कह चुके हैं कि वो कांग्रेस छोडकऱ कहीं नहीं जाएंगे, लेकिन पार्टी भाजपा के बड़े नेता बैठकों में उन्हें लेकर चर्चा जरूर करते हैं। पिछले दिनों प्रदेश भाजपा संगठन के कर्ताधर्ता अजय जामवाल सरगुजा गए, तो पार्टी के चुनिंदा पदाधिकारियों के संग बैठक में उन्होंने पूछ लिया कि टीएस सिंहदेव भाजपा में आते हैं, तो कैसा रहेगा?

बताते हैं कि थोड़ी देर तक तो बैठक में पार्टी के नेता एक-दूसरे का मुंह देखते रहे फिर पूर्व सांसद कमलभान सिंह बोल पड़े कि सिंहदेव अकेले नहीं आएंगे। उनके साथ लाल-लल्लूओं की टोली भी आ जाएगी। उनसे गांव वाले नाराज रहते हैं। ऐसे में सिंहदेव के भाजपा में आने से अच्छा मैसेज नहीं जाएगा। हालांकि कमलभान की बात से कई नेता असहमत थे। इससे पहले बात आगे बढ़ती, जामवाल ने विषय चेंज कर दिया।

विश्नोई की गुड गवर्नेंस !

छत्तीसगढ़ में ईडी की कार्रवाई को लेकर सियासी बयानबाजी से लेकर तमाम तरह के कयासों का दौर चल रहा है। आम लोगों की दिलचस्पी बरामदगी को लेकर है, तो सियासतदार का सरोकार आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित है। ब्यूरोक्रेसी एकदम शांत है। कोई भी अफसर इस विषय पर चर्चा तक नहीं करना चाहते। उनका यह व्यवहार जायज भी है, क्योंकि सवाल तो उनकी ही बिरादरी के खिलाफ है। तीन-तीन आईएएस घेरे में है। इसमें से एक आईएएस समीर विश्नोई तो बुरे फंसे हैं। उनकी गिरफ्तारी भी हो चुकी है।
समीर विश्नोई ऐसे बुरे फंसेंगे शायद उन्होंने खुद भी नहीं सोचा था। तभी तो इतनी बेफ्रिकी के साथ लाखों दबाए बैठे थे। समीर विश्नोई को तो गुड गवर्नेंस का चेहरा बनाया गया था। इस साल 11-12 जुलाई को केन्द्र सरकार ने बेंगलुरु में गुड गवर्नेंस पर कार्यशाला का आयोजन किया था, जिसमें देशभर के बड़े और नामी आईएएस अधिकारियों ने शिरकत की थी। छत्तीसगढ़ से भी तीन आईएएस को वहां भेजा गया था। इसमें समीर विश्नोई भी शामिल थे। अब सवाल तो यही है कि समीर विश्नोई कौन सी गुड गवर्नेंस सीखने-सिखाने गए थे।

गुजरात का यह चराई मॉडल

इन दिनों छत्तीसगढ़ में हरियाली पसरी हुई है। इन्हीं दिनों गुजरात से निकले दर्जनों काफिले सैकड़ों ऊंट और हजारों भेड़ों के साथ राज्य के अलग-अलग जंगलों से गुजर रहे हैं। ज्यादातर भुज जिले से आते हैं। लोग इन बंजारों को सहानुभूति से देखा करते हैं। लोगों को लगता है कि जीवन-यापन के लिए इन्हें मीलों पैदल चलना पड़ रहा है। पर अब वन्य और वन्यजीव प्रेमी इनको मिली चराई की छूट पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। यह तस्वीर अचानकमार टाइगर रिजर्व जाने के रास्ते से ली गई है। जाहिर है ये जंगल में भी प्रवेश करेंगे। जंगल में चराई पर प्रतिबंध है पर जब सैकड़ों ऊंट, भेड़ बकरियों का डेरा वहां जमेगा तो यहां के सींग वाले जानवरों का चारा इनकी भेंट चढ़ जाएगा। गांवों के मवेशी भी आहार के लिए भटकेंगे। इनके परम्परागत पहनावे और रहन सहन को देखकर भ्रम होता है। पर आम धारणा के विपरीत इन ऊंट और भेड़ों के मालिक धनी होते हैं। ऐसा नहीं है कि गुजरात मॉडल का देश दुनिया में शोर मचाने वाली सरकारों को पता न हो कि उनके यहां अपने मवेशियों के लिए चारे का इंतजाम नहीं है। दिलचस्प यह है कि आम आदमी पार्टी ने जो अनेक चुनावी वादे इस चुनाव में किए हैं उनमें से एक यह भी है कि कच्छ की खाली जमीन पर मीलों तक चारागाह तैयार किए जाएंगे।

व्रत के बाद भोग का उत्सव...

मदिरा प्रेमियों में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की होती है जो नवरात्रि पर्व पर संयम बरतते हैं। बार और शराब दुकानों की भी बिक्री घट जाती है। इसकी कसर निकालने का काम दशहरे के दिन से शुरू हो जाता है। दशहरा मिलन के नाम पर अलग-अलग नजारे दिखाई देते हैं। कोरबा जिले के कटघोरा में भोजपुरी द्विअर्थी गानों से सराबोर डांस प्रोग्राम रखा गया था। कटघोरा का पटवारी मंच पर नोटों का बंडल लेकर चढ़ गया। जो वीडियो वायरल हुआ है उसमें दिखाई दे रहा है कि वह नर्तकी पर नोट लुटा रहा है साथ में स्टेप्स मिलाकर डांस भी कर रहा है। इधर लोग देख रहे थे कि राजस्व मंत्री के जिले में कोई पटवारी अपने मनचलेपन का बेखौफ सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहा है।

बिलासपुर में पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल के समर्थकों ने भी दशहरा मिलन कार्यक्रम रख। एक कांग्रेस नेता ने इसका एक वीडियो वायरल किया है- परदेशिया..., गाना मंच पर चल रहा है। पीछे की कुर्सी में बैठा एक दर्शक अपने थैले से बोतल निकालकर घूंट लेता जा रहा है। फिर अपनी जगह पर खड़े होकर नाचने भी लगता है। कांग्रेसियों ने तो इस पोस्ट को लेकर भाजपा की खूब खिंचाई की है, पर भाजपा के एक नेता ने इस पर सफाई दी कि उस कार्यक्रम में आने वालों की गेट पर कोई चेकिंग नहीं हो रही थी। कोई नजर बचाकर बोतल में शराब लेकर पहुंच गया और पीछे जाकर नाचने लगा तो हम क्या कर सकते हैं? [email protected]

 

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