राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : खडग़े की जांजगीर में सभा इसलिए जरूरी
09-Aug-2023 3:48 PM
	 राजपथ-जनपथ : खडग़े की जांजगीर में सभा इसलिए जरूरी

खडग़े की जांजगीर में सभा इसलिए जरूरी

13 अगस्त को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े जांजगीर पहुंच रहे हैं। वैसे खडग़े फरवरी में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में छत्तीसगढ़ आ चुके हैं। अब भरोसे का सम्मेलन में पहुंच रहे हैं। ऐसे ही सम्मेलन में प्रियंका गांधी बस्तर आ चुकी हैं।

खडग़े का कार्यक्रम कहीं और भी रखा जा सकता था लेकिन जांजगीर-चांपा जिले को ही इसके लिए क्यों चुना गया, इसके कुछ कारण साफ हैं। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित बिलासपुर संभाग की चार सीटों में से तीन इसी तरफ हैं। मस्तूरी, पामगढ़ और सारंगढ़। इनमें से मस्तूरी बिलासपुर जिले के भीतर होने के बावजूद जांजगीर जिले से सटा है। सारंगढ़ भी नए जिले का मुख्यालय बन चुका है, पर जांजगीर-चांपा जिले से लगा है।

चालीस साल पहले पूरा इलाका कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, इन्हीं अनुसूचित जाति वर्ग  के समर्थन के चलते। लेकिन 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार कांशीराम मैदान में उतरे। इसके लिए उन्होंने जांजगीर को चुना। साल भर पहले ही उन्होंने साइकिल, बाइक से गांव-गांव दौरा शुरू कर दिया था। उनका लक्ष्य एसईसीएल, एनटीपीसी, बालको के दलित मतदाता भी थे। वहां वे बामसेफ के जरिये अपना आधार बढ़ा रहे थे। कांशीराम ने तब बहुजन समाज पार्टी का गठन कर लिया लेकिन राजनीतिक दल की मान्यता नहीं मिलने के कारण वे निर्दलीय उतरे। उन्होंने 32 हजार से अधिक वोट हासिल किये। यह चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ था। देशभर से 401 सीटों का विशाल बहुमत कांग्रेस को मिला, जांजगीर से भी कांग्रेस के डॉ. प्रभात कुमार मिश्रा जीते। इसी दौरान सारंगढ़ सीट से दाऊराम रत्नाकर भी विधानसभा चुनाव लड़े और 34 हजार वोट पाकर वे भी हार गए। पर यहां बसपा की नींव पड़ गई और वह मजबूत होती गई। बसपा का एक न एक उम्मीदवार यहां से हर बार चुनाव जीतता है। मौजूदा विधानसभा में भी जैजैपुर से केशव प्रसाद चंद्रा और पामगढ़ से इंदु बंजारे बसपा से हैं। जैजैपुर की तरह अकलतरा भी सामान्य सीट है। यहां भी बसपा उम्मीदवार ऋचा जोगी सिर्फ 1800 मतों से पीछे रह गईं। यह सीट भाजपा के सौरभ सिंह के पास है। मस्तूरी आरक्षित सीट पर बसपा उम्मीदवार जयेंद्र पाटले दूसरे स्थान पर थे। 2013 में चुने गए कांग्रेस के दिलीप लहरिया तीसरे स्थान पर आ गए। दोनों को करीब 53-53 हजार वोट मिले। वोट ऐसे बंटे कि यहां भाजपा जीती, डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी विधायक हैं। बीते चुनाव में जब कांग्रेस को विधानसभा में प्रचंड समर्थन मिला तब भी दो सीट भाजपा, दो सीट बसपा के पास चली गई और इतनी ही कांग्रेस को मिल पाई। यदि कोई सीट सामान्य है तो वहां पर भी भाजपा को लाभ मिलता रहा है।

हालांकि कांग्रेस ने हमेशा कहा है कि खडग़े राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अपने अनुभव और योग्यता के कारण हैं, पर इस बात से कोई इंकार नहीं करता कि वे पार्टी के एक बड़े दलित चेहरा के रूप में भी उभरे हैं। बीते कुछ वर्षों में बसपा की स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर हुई है। इस मौके का लाभ कांग्रेस अपने खोये हुए दलित वोटों को हासिल करने के लिए उठा सकती है। दलित वोटों का झुकाव बसपा से कांग्रेस की ओर होने से भाजपा से लड़ाई कांग्रेस के लिए आसान हो जाएगी। खडग़े की सभा जांजगीर में रखने की रणनीति इसीलिए तैयार की गई है।

बसपा ने अकेले लडऩे का इशारा कर दिया  

बहुजन समाज पार्टी ने 9 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर बाकी दलों से बाजी मार ली। उसने दोनों मौजूदा विधायकों केशव चंद्रा और इंदु बंजारे की टिकट बरकरार रखी है। इन सीटों में चार जांजगीर-चांपा, जैजैपुर, अकलतरा और बेलतरा सामान्य हैं। अकलतरा में पिछले चुनाव में बसपा कांटे की टक्कर में हार गई थी, जब उनका छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी के साथ गठबंधन था। मस्तूरी में भी गठबंधन के चलते बसपा दूसरे नंबर पर थी। इस बार अकलतरा से डॉ. विनोद शर्मा को टिकट दी गई है। मस्तूरी में 2018 में वह दूसरे स्थान पर थी। यहां से पूर्व विधायक दाऊराम रत्नाकर को लड़ाया जा रहा है। बिलाईगढ़ सीट पर श्याम टंडन को फिर टिकट दी गई है। टंडन ने भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था और कांग्रेस को करीब 9 हजार वोटों से जीत मिली थी। यहां से अभी चंद्रदेव प्रसाद राय विधायक हैं। जांजगीर-चांपा सामान्य सीट से अनुसूचित जाति के कार्यकर्ता राधेश्याम सूर्यवंशी को टिकट दी गई है। यहां से पिछली बार ब्यास नारायण कश्यप लड़े थे, जो तीसरे स्थान पर थे। इस सीट पर अभी नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल विधायक हैं। बेलतरा विधानसभा सीट पर समझौते के तहत जेसीसी ने चुनाव लड़ा था। यहां तब उम्मीदवार कांग्रेस की पृष्ठभूमि वाले अनिल टाह उम्मीदवार थे। वे तीसरे स्थान पर जरूर थे लेकिन 38 हजार वोट उन्हें मिले। इसके चलते भाजपा के रजनीश सिंह की जीत आसान हो गई। बेलतरा सीट का पुराना नाम सीपत था, जहां से बसपा से रामेश्वर खरे विधायक रह चुके हैं। अर्थात,  यह सीट भी बसपा के लिए महत्वपूर्ण है। इस बार रामकुमार सूर्यवंशी को टिकट दी गई है। ये सात सीटें वे हैं, जिनमें बसपा से या तो विधायक चुने जाते रहे हैं या फिर उसकी मजबूत उपस्थिति रही है। ये सभी सीटें बिलासपुर संभाग की हैं।

इसके अलावा बेमेतरा जिले के नवागढ़ और बलरामपुर जिले सामरी से उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। नवागढ़ सीट से बसपा को 11 प्रतिशत, करीब 18 हजार वोट मिले थे। यहां प्रत्याशी ओमप्रकाश बाचपेयी की टिकट बरकरार रखी गई है। घोषित सूची में एकमात्र अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीट सामरी है जहां से इस बार आनंद तिग्गा लड़ेंगे, पिछली बार यहां से प्रत्याशी मिटकू भगत उम्मीदवार थे। उन्हें 4 प्रतिशत 6500 वोट मिले थे। इस हिसाब से उनकी जमानत भी नहीं बची थी।   

परंपरागत रूप से आमने-सामने रहने वाले दल कांग्रेस और भाजपा के साथ तो बसपा के गठबंधन की कोई गुंजाइश छत्तीसगढ़ में है नहीं, पर कई दूसरे दल हैं, जो बसपा से तालमेल की संभावना ढूंढ रहे थे। इनमें सर्व आदिवासी समाज प्रमुख है, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों के अलावा अन्य सीटों पर कुल 50 प्रत्याशी खड़ा करने का ऐलान कर चुका है। कुछ समय पहले जेसीसी के अध्यक्ष पूर्व विधायक अमित जोगी ने कहा था कि बसपा से पिछले चुनाव में गठबंधन हमारी भूल थी। पर, 2023 के लिए उनका रुख स्पष्ट नहीं है। फिलहाल, बसपा ने 9 उम्मीदवारों की घोषणा कर बाकी दलों को यह संदेश तो दे ही दिया है कि यदि कोई दल गठबंधन करना चाहता है तो वह ऐसा अपने ही शर्तों पर करेगी।

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