राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : एक पदाधिकारी मुद्दा बन गया !!
29-Jun-2023 7:00 PM
राजपथ-जनपथ : एक पदाधिकारी मुद्दा बन गया !!

एक पदाधिकारी मुद्दा बन गया !!

प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री रवि घोष की एक तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो रही है, जिसमें वो माना एयरपोर्ट पर टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनने पर बधाई देते, और चरण छूकर आशीर्वाद लेते नजर आ रहे हैं। रवि घोष के संगठन में दायित्व को लेकर प्रदेश के शीर्ष नेताओं के बीच मतभेद की स्थिति बनी हुई है।

सुनते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम चाहते हैं कि रवि घोष को राजीव भवन के कामकाज से मुक्त कर बस्तर संभाग का प्रभार दिया जाए। उन्होंने आदेश निकाल भी दिया था, लेकिन प्रदेश प्रभारी सैलजा ने हस्तक्षेप कर आदेश को फिलहाल रूकवा दिया। रवि घोष, मरकाम के करीबी रहे हैं। मरकाम ने ही प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कोंडागांव से यहां बुलाकर उन्हें महामंत्री (प्रशासन) का दायित्व सौंपा था।

रवि घोष जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं, और उन्हें पार्टी के कई लोग अच्छा संगठनकर्ता भी मानते हैं। मगर संगठन के भीतर ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो यह मानते हैं कि रवि घोष की ज्यादा जरूरत बस्तर में है। सालों से वो मरकाम के विधानसभा चुनाव का संचालन करते आए हैं। उनके नहीं रहने से मरकाम का चुनाव प्रबंधन गड़बड़ा सकता है। जबकि सीएम खेमा उन्हें बस्तर भेजने के पक्ष में नहीं है।

चर्चा है कि रवि घोष खुद भी रायपुर में ही रहना चाहते हैं। बस, इन्हीं सब वजहों से पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच किचकिच चल रही है। अभी तो रवि घोष का प्रभार बदलने का आदेश रुक गया है, लेकिन आगे क्या कुछ बदलाव होता है यह देखना है।

सिंहदेव के बनते ही साय भी...

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय को कांग्रेस में आने के बाद दो माह के भीतर सीएसआईडीसी चेयरमैन का पद दे दिया गया। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। साय को कुछ न कुछ तो मिलना ही था। यह भी संयोग है कि टीएस सिंहदेव के डिप्टी सीएम बनने के साथ ही साय को भी पद दिया गया। दोनों ही सरगुजा से आते हैं। वैसे तो नंदकुमार साय जशपुर के रहने वाले हैं, लेकिन सरगुजा के सांसद भी रह चुके हैं।

साय विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं, लेकिन शायद पार्टी के भीतर उनके टिकट को लेकर एकमत न बने। क्योंकि जशपुर जिले की तीनों सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं, और विधायक की टिकट काटकर भाजपा से आए नेता को प्रत्याशी बनाना जोखिम भरा भी हो सकता है।

ऐसे में उन्हें साथ रखने के लिए जिम्मेदारी तो मिलनी ही थी। इसके अलावा वो सरकारी बंगले में काबिज हैं। किसी पद पर न होने के बावजूद उनसे बंगला खाली नहीं कराया गया था। अब कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त हो गया है। इसलिए स्वाभाविक तौर पर वो बंगला रखने के पात्र हो गए हैं। साय को कांग्रेस में लाने में बस्तर सांसद दीपक बैज की भूमिका अहम रही है।

डिप्टी सीएम पद की संवैधानिक स्थिति

संविधान में केबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उप-मंत्री पदों का प्रावधान तो है लेकिन उप-मुख्यमंत्री पद का कोई जिक्र नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल को उसके कार्यों में सहायता और सलाह देने क लिए एक मंत्री परिषद् होगी, जिसका मुखिया मुख्यमंत्री होगा। अनुच्छेद 164 के मुताबिक राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेंगे, साथ ही मुख्यमंत्री की सलाह पर ही मंत्रिपरिषद् में केबिनेट, राज्य और उप-मंत्री नियुक्त करेंगे। राज्यपाल और संविधान की दृष्टि में कोई उप-मुख्यमंत्री मंत्रि परिषद् के एक सदस्य से अधिक नहीं हैं। मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति और व्यक्तिगत रूप से राज्यपाल के प्रति उत्तरदायी होता हैं। राज्यपाल किसी को उप मुख्यमंत्री पद की अलग से शपथ भी नहीं दिलाते, वे केबिनेट मंत्री के रूप में ही शपथ लेते हैं।

प्रतीकात्मक होने के बावजूद पद में मुख्यमंत्री शब्द आ जाता है जिससे उप-मुख्यमंत्री को बाकी मंत्रियों से ऊपर और मुख्यमंत्री के ठीक बाद का ओहदा मान लिया जाता है। विभिन्न दल राजनीतिक, क्षेत्रीय, जातिगत संतुलन बनाने के लिए उप-मुख्यमंत्री पद का सृजन करते हैं और इसका लाभ भी मिलता है। छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव के समर्थकों के बीच जश्न इसीलिये मनाया जा रहा है कि उनके साथ यह पदनाम जुड़ गया। राज्य बनने के बाद यह सिंहदेव पहले उप-मुख्यमंत्री पर छत्तीसगढ़ के दूसरे नंबर के हैं। संयुक्त मध्यप्रदेश में जब 1993 में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार थी, तब रामपुर (कोरबा) से 6 बार विधायक रहे प्यारेलाल कंवर उप-मुख्यमंत्री बनाये गए थे। तब उनके पास वित्त और आदिम जाति कल्याण विभाग की जिम्मेदारी थी।

राजीव शुक्ला के होते हुए...

नया रायपुर का शहीद वीरनारायण अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम देश का तीसरा सबसे बड़ा स्टेडियम है, जिसकी क्षमता 65 हजार लोगों के बैठने की है। दुनिया का यह चौथा सबसे बड़ा स्टेडियम भी है। मध्य भारत में तो इससे बड़ा कोई स्टेडियम नहीं। 2010 में यहां पहली बार कनाडा और छत्तीसगढ़ का एक फ्रैंडली मैच हुआ था। सन् 2013 में आईपीएल का एक मैच हुआ। पहला अंतर्राष्ट्रीय वन डे क्रिकेट इसी साल भारत और न्यूजीलैंड के बीच हुआ जिसमें भारत की जीत हुई। यहां रोड सेफ्टी वर्ल्ड क्रिकेट भी हुआ था। प्रत्येक आयोजन यहां सफलता के साथ हुआ था। मेहमान खिलाडिय़ों तथा एसोसिएशन ने इसकी तारीफ भी की। इस बार भारत में 5 अक्टूबर से 12 नवंबर तक क्रिकेट वर्ल्ड कप होने जा रहा है, जिसमें 12 स्थानों पर 48 मैच होंगे। पर नया रायपुर के इतने महत्वपूर्ण स्टेडियम का नाम इस सूची में नहीं है। मोहाली सहित पंजाब में एक भी मैच तय नहीं करने पर वहां के क्रिकेट एसोसियेशन ने गहरी नाराजगी जताई है। तिरूअनंतपुरम् में मैच तय नहीं करने पर वहां के सांसद शशि थरूर ने भी आपत्ति दर्ज कराई है। मई महीने में खबर चली थी कि एक मैच नया रायपुर में होने जा रहा है लेकिन जून में जब आईसीसी ने सूची जारी की तो नाम गायब था। जिन शहरों में मैच हो रहे हैं वे हैं- अहमदाबाद, बेंगलूरू, चेन्नई, दिल्ली, धर्मशाला, लखनऊ, हैदराबाद, पुणे, कोलकाता और मुंबई। कई लोग इसे राजनीति से जोडक़र भी देख रहे हैं। जहां भाजपा शासित राज्य है, वहां की कम क्षमता और सुविधा वाले स्टेडियम भी तय कर दिए गए हैं।   बीसीसीआई के पदाधिकारियों के हिसाब से भी जगह तय किए गए हैं। यह आरोप पंजाब क्रिकेट एसोसियेशन ने खुलकर लगाया भी है। अहमदाबाद में ओपनिंग सहित 6 मैच होने वाले हैं, जहां स्टेडियम का नाम ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर है, फिर जय शाह भी वहीं से आते हैं। छत्तीसगढ़ के लोग भी उम्मीद कर रहे थे कि बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में पहुंचे हैं तो कम से कम एक मैच यहां कराने के लिए जोर दे सकते थे।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news