राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : आगे क्या हासिल देखना है
05-Jul-2023 3:58 PM
	 राजपथ-जनपथ : आगे क्या हासिल देखना है

आगे क्या हासिल देखना है

प्रदेश भाजपा की पूर्व प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी को आंध्र प्रदेश के पार्टी संगठन का मुखिया बनाया गया है। पुरंदेश्वरी को आंध्र प्रदेश में पार्टी का सीएम फेस माना जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के राष्ट्रीय नेता अनमने भाव से छत्तीसगढ़ को प्रभार संभालते रहे हैं। ये अलग बात है कि यहां से जाने के बाद वो लगातार तरक्कियों की सीढ़ी चढ़ते रहे।

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के समय नरेंद्र मोदी के पास छत्तीसगढ़ का प्रभार रहा है। वो यहां के प्रभार से मुक्त होने के बाद पहले गुजरात के सीएम बने, और फिर पीएम बने। इसी तरह पुरंदेश्वरी की तरह छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे राजनाथ सिंह, यहां के प्रभार से मुक्त होने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, और वर्तमान में रक्षा मंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं।

इसी तरह छत्तीसगढ़ के लंबे समय तक प्रभारी रहे धर्मेन्द्र प्रधान वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हैंं। उनके बाद के छत्तीसगढ़ प्रभारी जेपी नड्डा, वर्तमान में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। अलबत्ता, डॉ. अनिल जैन जरूर अपवाद रहे। वो छत्तीसगढ़ के प्रभारी रहने के बावजूद पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में हाशिए पर धकेल दिए गए। इसके पीछे कुछ लोग उन्हें ही जिम्मेदार ठहराते हैं। यह कहा जाता है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में पार्टी की बुरी हार साफ दिख रही थी, लेकिन हाईकमान को उन्होंने अंधेरे में रखा। खैर, पुरंदेश्वरी, और अब ओम माथुर आगे क्या कुछ हासिल करते हैं यह देखना है। 

चुनावी सभाओं का दौर

बीते चार दिनों के भीतर भाजपा की दो बड़ी जनसभाएं हुईं। बिलासपुर में राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की और कांकेर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की। दोनों ही जगह उम्मीद के अनुसार भीड़ नहीं आई। बिलासपुर में नड्डा के दो दिन बाद आम आदमी पार्टी की जनसभा हुई, जिसमें भाजपा की सभा के मुकाबले कहीं ज्यादा भीड़ थी। कांकेर, बिलासपुर दोनों ही जगह पर भाजपा ने विधायकों और पूर्व विधायकों को टारगेट दिया गया था। पांच-पांच हजार के आसपास लोगों को लाने के लिए। बिलासपुर में अधिकांश सीटें तो भाजपा के पास ही है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का भी यही इलाका है, इसके बावजूद नड्डा को सुनने लोग नहीं आए। कुछ शरारत भी की गई, बिना नाम के पोस्टर शहर में चिपकाए गए- ये नड्डा कौन हैं, किसकी सभा है। यह आशय था कि नड्डा के नाम पर भीड़ नहीं आती।

चुनावी राजनीति में जनसभा में उमडऩे वाली भीड़ यह अंदाजा लगाने का जरिया होता है कि जनता किसके पाले में जा रही है। कांग्रेस ने अभी राष्ट्रीय नेताओं का इस तरह से दौरे का सिलसिला शुरू नहीं किया है। राज्य में सरकार होने के कारण संभव है कि अभी इसकी जरूरत महसूस नहीं हो रही होगी। पर, दोबारा सत्ता में लौटने के लिए धरती आसमान एक कर रही भाजपा के लिए यह जरूर चिंता का विषय हो सकता है। फिलहाल तो सारे नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 7 जुलाई को हो रही सभा के लिए ताकत झोंक रखी है। पार्टी पदाधिकारियों को हर जिले में टारगेट दिया गया है। कहीं 25 हजार तो कहीं 10 हजार। मोदी के लिए ज्यादा भीड़ जुटाने का दबाव है। घर-घर निमंत्रण दिया जा रहा है, मुमकिन है मोदी को सुनने भीड़ आ भी जाएगी। पर, दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के स्थानीय नेता बता रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल की अगली जनसभा बस्तर में होगी। तब लोगों को फिर परखने का मौका मिलेगा कि भीड़ जुटाने में बीजेपी ज्यादा कामयाब रही या आम आदमी पार्टी।

बोधघाट पर चुनाव से पहले फैसला

बस्तर के इंद्रावती नदी पर बोधघाट परियोजना की फाइल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार आने के बाद फिर खुल गई थी। 40 साल पहले प्रस्तावित इस परियोजना की लागत अब कई गुना बढक़र 22 हजार करोड़ तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया था। बस्तर के तमाम नेता इस परियोजना पर फिर सर्वे शुरू कराने का विरोध कर रहे थे, जिस पर आंदोलन भी हुए। बड़ी संख्या में आदिवासी गावों के विस्थापन का मुद्दा था। यह परियोजना बिजली उत्पादन के मापदंड में तो ठीक था, लेकिन बस्तर को सिंचाई सुविधा बहुत कम मिलने वाली थी। इस सरकार ने परियोजना के फिर सर्वे और डीपीआर के लिए करीब 44 करोड़ रुपये मंजूर किए गए थे। प्राथमिक सर्वे का 70 प्रतिशत कार्य भी पिछले साल तक पूरा कर लिया गया था। यह जानकारी विधानसभा में डॉ. रमन सिंह के सवाल पर उस दिन रविंद्र चौबे की अनुपस्थिति में उमेश पटेल ने दी थी। पहले भी सर्वे में 12 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके थे। इस बार स्वीकृत 44 करोड़ रुपये में कितना खर्च हो गया, यह जानकारी सामने नहीं आई है। पर अब ताजा स्थिति यह है कि यह परियोजना पूरी तरह बंद कर दी गई है। तमाम सर्वेक्षण भी स्थगित कर दिए गए हैं। कोई एक वैकल्पिक बैराज बनाने की तैयारी हो रही है। बोधघाट पर निर्णय वहां के कांग्रेस सांसद और विधायकों की सलाह पर लिया गया है। जब तक इसके विरोध में विशेषज्ञ व विपक्ष के नेता बात कर रहे थे, सरकार ने ध्यान नहीं दिया। पर अब जब ऐसा लगा कि वाकई आदिवासी वोटर सशंकित हैं, तो चुनाव से पहले सरकार ने यू टर्न ले लिया।

खेत ही ओढऩा-बिछौना

किसान के पास मानसून शुरू होने के बाद एक पल की फुर्सत नहीं है। खेत में काम करते-करते दोपहर के भोजन का वक्त आ गया तो कीचड़ से सने हुए खेत पर ही बैठ गया। खाना खाने के बाद वह पीठ सीधी नहीं करेगा, फिर से काम पर लग जाएगा। जाने-माने छत्तीसगढ़ी कलाकार और अब भाजपा नेता भी, अनुज शर्मा ने यह तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है। 

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